Thursday 19 April 2012

भाजपा की जीत नहीं वोट तो महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19 April 2012
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जिस एमसीडी को तीन टुकड़ों में बांटने का जो दांव चला था, वह उल्टा पड़ गया। भाजपा ने तीनों ही हिस्सों में कांग्रेस को पछाड़ दिया। नॉर्थ और ईस्ट में बीजेपी बहुमत में आ गई और दक्षिण में वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं यही कहूंगा कि यह कांग्रेस के खिलाफ एक नेगेटिव वोट है। इसमें भाजपा की उपलब्धियों के कारण वोट नहीं पड़ा यह तो लोगों का कांग्रेस से गुस्से का परिचायक वोट है। जनता महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों से तंग आ चुकी है और चूंकि दिल्ली सरकार भी कांग्रेस की है और केंद्र सरकार भी कांग्रेस की है, इसलिए जनता ने कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए पार्टी के खिलाफ वोट दिया। यह वोट शीला दीक्षित की दिल्ली सरकार के खिलाफ भी है और केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ भी है। शीला जी ने तो सोचा था कि एमसीडी को तीन हिस्सों में बांटकर बीजेपी को हमेशा के लिए कमजोर कर देंगी पर दांव उल्टा पड़ा। शीला जी की स्थिति खराब हुई है। कुछ लोग इसे शीला के खिलाफ वोट भी मान रहे हैं। कांग्रेस कह सकती है कि हमारे अन्दर बहुत फूट थी, बागियों ने हमें हरवा दिया पर फूट तो बीजेपी में आपसे ज्यादा थी और बागी तो वहां भी खड़े थे। आपके तो कई दिग्गज धूल चाट गए। लीडर विपक्ष जय किशन शर्मा नजफगढ़ से हार गए। पिछले तीन बार से लगातार पार्षद रहे कांग्रेस के सीनियर नेता चौधरी अजीत दिलशाद कॉलोनी से हार गए। तीन बार पार्षद रही कांग्रेस की अनीता बब्बर तिलक नगर से बीजेपी की रितु वोहरा से हार गई। दिलचस्प बात यह रही कि दोनों कांग्रेस और बीजेपी के बागी अधिकतर हारे पर उन्होंने वोट काटने का काम किया। पूर्वी दिल्ली का चुनाव कांग्रेस के लिए विशेष महत्व और प्रतिष्ठा रखता था। शीला दीक्षित, संदीप दीक्षित, जय प्रकाश अग्रवाल, अशोक वालिया, अरविन्दर सिंह लवली सभी की प्रतिष्ठा दांव पर थी। शीला दीक्षित ने खुद तो हार पर कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके बेटे और पूर्वी दिल्ली के सांसद संदीप दीक्षित ने महंगाई और 2जी स्पेक्ट्रम जैसे घोटालों को हार का कारण स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि सीएजी की रिपोर्ट और अन्ना के आंदोलन से ऐसा माहौल बना कि लोगों को लगा कि कांग्रेस की सारी गलतियों का केंद्र में है। उन्होंने कहा कि हमने लोकल मुद्दों को रखा जबकि पूरे देश और दिल्ली में ऐसा माहौल था कि बीजेपी ने महंगाई और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को फोकस किया। कांग्रेस के मंत्री राजकुमार चौहान बयान देते हैं कि अगर महंगाई बढ़ी है तो वेतन भी तो बढ़े हैं। यह बयान जनता को पसंद नहीं आया। पूरे प्रचार में बीजेपी ने कहीं भी एमसीडी में पिछले पांच साल के अपने रिकॉर्ड पर वोट नहीं मांगा, उसने केंद्र सरकार और शीला सरकार को निशाने पर रखा। इससे भी यही साबित होता है कि अगर बीजेपी जीती है तो वह अपने कारनामों से नहीं बल्कि केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस सरकारों के खिलाफ नेगेटिव वोट से जीती है। चूंकि इन चुनावों में स्थानीय दिग्गज भी असर रखते हैं, इसलिए जनता ने कई स्थानों पर दोनों प्रमुख दलों को नकारते हुए उम्मीदवार को व्यक्तिगत शख्सियत को वोट दिए तभी तो 37 निर्दलीय जीतकर आए। दिल्ली नगर निगम में बीजेपी की जीत का सेहरा प्रदेशाध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता के सिर पर बंधता है। उन्होंने जीतोड़ मेहनत की। इस जीत से अति-प्रसन्न पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि ये परिणाम कांग्रेस विरोधी जन भावना का पक्का सुबूत है और उनका दल आगामी दिल्ली विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों में भी विजयी होगी। दिल्ली विधानसभा का चुनाव लगभग डेढ़ साल में होने हैं और 2014 में लोकसभा चुनाव होने हैं। सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार अब भी चेतेगी? यह चुनाव एक तरह से केंद्र सरकार की नीतियों, कारगुजारियों, घोटालों पर था। इस सरकार को जनता की भावनाओं की कोई परवाह नहीं है और अपनी जन विरोधी नीतियों पर चलती जा रही है। जनता के पास अपना विरोध करने का एकमात्र हथियार अपना वोट है और उसने कांग्रेस के खिलाफ वोट देकर अपना रोष और बदलने की भावना को साफ रूप से प्रकट कर दिया है। बाकी इन चुनाव परिणामों का विश्लेषण तो कई दिनों तक चलता रहेगा।
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