Wednesday, 25 April 2012

तीन साल का यूपीएसरकार का रिपोर्ट कार्ड

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 April 2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा विधानसभा चुनावों में हार के बाद दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस की लगातार पांचवीं हार है। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार 22 मई को अपने तीन साल पूरे कर रही है। परम्परा के मुताबिक सरकार इसी दिन `रिपोर्ट टू द पीपुल' पेश करेगी। पता नहीं मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस पार्टी अपनी इस दौरान क्या-क्या उपलब्धियां दिखाएगी। समय आ गया है कि कांग्रेस पार्टी आत्ममंथन करे कि आखिर वह किस ओर जा रहे हैं। यह इसलिए भी जरूरी है कि अब लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं और इससे पहले पार्टी को गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में विधानसभा चुनाव का सामना भी करना है। यूपीए सरकार की दूसरी पारी लगातार विवादों में फंसती जा रही है। राष्ट्रमंडल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम और आदर्श हाउसिंग सोसाइटी जैसे तमाम घोटाले-महाघोटाले चर्चा में रहे। इनके चलते कांग्रेस को लगातार फजीहत झेलनी पड़ी है और घोटालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। कांग्रेस नेतृत्व को कहीं से भी राजनीतिक राहत मिलती नहीं दिखाई पड़ती है। संसद में पिछले कई महीनों से गैर-कांग्रेसी दिग्गज यूपीए सरकार के खिलाफ लामबंदी तेज कर रहे हैं। खुद यूपीए के अन्दर कई घटक सरकार का सिरदर्द बढ़ा रहे हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी की तरफ से है। लगातार यह ऊहापोह बना हुआ है कि टीएमसी कब तक सरकार में बनी रहेगी? क्योंकि हर महीने दो महीने में ममता, सरकार के खिलाफ कोई न कोई राजनीतिक टंटा खड़ा कर देती हैं। बिगड़ते ट्रेक रिकॉर्ड के चलते यूपीए-2 सरकार और पार्टी में अविश्वास बढ़ रहा है। कांग्रेस के तमाम नेता अब एक-दूसरे पर तोहमत लगा रहे हैं। सरकार और पार्टी में तालमेल की बातें जरूर हो रही है लेकिन तस्वीर कुछ और ही है। बड़े नेताओं की नूराकुश्ती फुल स्विंग में है। 10 जनपथ में बड़ी-बड़ी बैठकें हो रही हैं। लेकिन पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई कांग्रेस कार्यसमिति में हाल फिलहाल एक भी बड़े मुद्दे पर चर्चा नहीं हो पाई। अगर आ रही खबरों पर विश्वास किया जाए तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को गत मुलाकात में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दो टूक कह दिया है कि वे या तो लम्बित पड़े मामलों पर फैसला लेकर काम शुरू करें वरना पार्टी नेतृत्व उनसे आगे के बारे में सोचना शुरू करेगा। इसी तरह राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की आग थमी नहीं है। आंध्र प्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड में भी नेतृत्व के लिए समस्याएं खड़ी हैं। इन परिस्थितियों में पार्टी रणनीतिकारों को एक मजबूत और कारगर रणनीति बनानी होगी जिससे कि योजनाबद्ध तरीके से आगे आने वाली चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके। कांग्रेस के एक शीर्ष नेता का कहना है कि यूपीए के दोबारा केंद्र में सत्तासीन होने के बाद उसकी छवि एक भ्रष्टाचारी और महंगाई बढ़ाने वाली सरकार की बनती चली गई और आज तक यही छवि दिन प्रतिदिन और अधिक मजबूत होती जा रही है जिसके कारण से कांग्रेस को पिछले तीन सालों में देशभर में हुए चुनाव और उपचुनावों में लगभग हर जगह हार का मुंह देखना पड़ा है। लिहाजा पार्टी रणनीतिकार चाहते हैं कि संगठन के सभी शीर्ष नेता इस बात के लिए बैठकर आत्मचिन्तन व आत्ममंथन करें कि केंद्र सरकार कौन-कौन से ऐसे कदम उठाए जिससे उसकी छवि बदले। उन्हें यह भी सोचना होगा कि सहयोगी दलों के दबाव से कैसे मुक्त हुआ जाए। गठबंधन आधारित राजनीति को कितना महत्व दिया जाए। आम लोगों में पैठ बनाने के और पुरानी लोकप्रियता को हासिल करने के लिए क्या किया जाए जिससे कि पार्टी कार्यकर्ता फिर से नए जोश के साथ मैदान में उतर सकें। हाथ पर हाथ धरे बैठने से काम नहीं चलेगा।
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