Thursday 10 November 2016

अब 130 साल पुरानी कांग्रेस में राहुल युग का उदय

कांग्रेस पार्टी के 130 साल के इतिहास में पहली बार वर्किंग कमेटी ने अध्यक्ष पद के लिए किसी नाम की सिफारिश की है। और ज्यादा मुश्किल नहीं कि यह नाम किसका होगा। जाहिर है कि हम युवराज राहुल गांधी की बात कर रहे हैं। राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान सौंपने पर लंबे समय से कायम सस्पेंस अब खत्म हो रहा है। 130 साल पुरानी कांग्रेस में पहली बार वर्किंग कमेटी ने एक सुर से किसी नेता के नाम की सिफारिश की है। प्रस्ताव पेश करने वाले पूर्व रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है, इसलिए उम्मीद है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उचित ध्यान देंगी। कार्यसमिति ने राहुल को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पार्टी अध्यक्ष को भेज भी दिया है। राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने की मांग नई नहीं है। कार्यसमिति की बैठक में एके एंटनी के प्रस्ताव और डॉ. मनमोहन सिंह के अनुमोदन पर सर्वसम्मति भी बन गई, लेकिन प्रस्ताव लागू कब होगा और राहुल कमान कब संभालेंगे इस पर पार्टी का आधिकारिक बयान है कि समिति की अगली बैठक का इंतजार करें। दरअसल राहुल विरोधी खेमा लगातार तेज हो रही अध्यक्ष बनाने की मांग पर सहमत तो हो गया, लेकिन कोई टाइम फ्रेंम तय नहीं करने देने की अपनी रणनीति में सफल रहा है। कुछ महीने बाद यूपी और पंजाब के चुनाव हैं। नतीजे अनुकूल न होने पर राहुल की काबिलियत पर सवाल उठाकर इसे फिर टाल दिया जाएगा। कार्यसमिति की बैठक ढाई साल बाद हुई और सोनिया गांधी को एक साल और मिल गया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक लॉबी सोनिया गांधी के करीब रही है वह हमेशा से  चाहती है कि पार्टी की स्टीयरिंग उन्हीं के हाथ रहे। कभी पार्टी टूटने का डर और प्रियंका वाड्रा को राहुल के समानांतर बताकर पार्टी में उनकी एंट्री की खबर करा उन्हें परेशानी में डाला। सोनिया गांधी काफी दिनों से बीमार चल रही हैं। वहीं अगले साल उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव में आशानुरूप प्रदर्शन करने का दबाव भी पार्टी आलाकमान को हलकान किए हुए है। पार्टी के नीति-निर्धारकों को यह बखूबी अहसास है कि सोनिया की गैर मौजूदगी में राहुल ही स्वाभाविक तौर पर इस पद के दावेदार हैं और यह निर्णय लेने में ज्यादा वक्त गंवाना पार्टी की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। वैसे 2013 में पार्टी के उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल की रनिंग काफी फीकी रही है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह ठीक नहीं कि जब भाजपा नए क्षेत्रों में फैलती जा रही है तब कांग्रेस सिमटती दिख रही है। आज के दिन कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। और यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। देश में सत्तापक्ष के साथ-साथ एक मजबूत विपक्ष भी उतना ही जरूरी है। पर सवाल यह भी है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस यह भूमिका निभा पाएगी?

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