Thursday, 3 November 2016

शिवराज की सर्जिकल स्ट्राइक पर सियासत

भोपाल जेल से भागे सिमी के 8 आतंकियों को पुलिस द्वारा आठ घंटे बाद ही एनकाउंटर में मार देने की खबर आग की तरह फैल गई। फैलनी भी थी क्योंकि यह साधारण वाकया नहीं था। ऐसे खूंखार आतंकियों का पहली  बार जेल से भागना और फिर एनकाउंटर में मारे जाने की पकिया तो होनी ही थी। सवाल उठाए जा रहे हैं कि पुलिस ने इन आतंकियों का फर्जी एनकाउंटर करके मार गिराया? सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि एक साथ जेल से इतनी संख्या में आतंकी  कैसे भागे ? 10 किलोमीटर दूर तक   कैसे पहंचे? एक ही जगह कैसे मिल गए? उन्होंने  जीन्स, जूते, घड़ियां कहां पहनां? पुलिस  का दावा है कि उनके पास तीन चाकू और देसी कट्टे भी मिले? यह सवाल अपनी जगह सही भी है। जिस तरह यह समझना मुश्किल है कि पहले भी जेल से फरार हो चुके सिमी के खूंखार आतंकियों को उनके शातिर साथियों के साथ एक ही वैरक में क्यों रखा गया? यह उनकी मूर्खता या मजबूरी हो सकती है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि ये सिमी के आतंकी थे। बिजनौर से मिली सूचना के अनुसार मध्यपदेश के भोपाल से भागने के बाद पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए पतिबंधित गुट सिमी के आठ आतंकियों में से चार काफी समय तक बिजनौर में रह रहे थे और बम बनाने के पयास में विस्फोट होने पर फरार हो गए थे। जिस जेल में सिमी के खूंखार आतंकी कैद हों, उसकी व्यवस्था इतनी लचर कैसे थी कि एक सुरक्षा पहरी का गला रेत  कर आतंकी चादरों को बांध कर जेल लांघ गए। भूलना नहीं चाहिए, महज तीन वर्ष पूर्व मध्यपदेश के ही खंडवा के जेल से सिमी के कुछ आतंकी ठीक इसी तरह फरार हो गए थे, जिसमें तीन मुठभेड़ में मारे गए, तीन संदिग्ध आतंकी भी शामिल थे। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल इस मुठभेड़ पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन इसका दूसरा पक्ष ये भी है कि जेल से फरार होने के बाद ये आतंकी कई घंटे तक भटकते रहे, जिससे इस आशंका से कैसे इनकार किया जा सकता कि वे किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते था, सिमी की आतंकी गतिविधियों के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। जिसे सितम्बर 2001 में अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद आतंकी संगठन के रूप में पतिबंधित किया गया था, वर्ष 2008 में उसे कुछ ढील जरूर दी गई थी, मगर उसके बाद उसका नाम देश भर में हुई कई आतंकी हमलों और घटनाओं में आता रहा और उस पर फिर से पतिबंध लगा दिया गया था जो अब भी लागू है। हालांकि यह पता नहीं चल सका कि मुठभेड़ की नौबत क्यों आई? क्या वे हथियार से लैस थे अगर थे तो क्या उनके पास बम-बंदूक थे? इन सवालों का जवाब जितनी जल्दी आए उतना ही अच्छा। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक संदिग्ध आतंकियों की मौत पर राजनीतिक रोटियां सेंकने से बचा नहीं जा सकता। वैसे ऐसी घटना पर किसी भी तरह के राजनीतिक आरोप-पत्यारोप लगाने से बेहतर है कि पहले राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) जिसे जांच का जिम्मा सौंपा गया है की, रिपोर्ट का इंतजार किया जाए। जेल से भागे संदिग्ध आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ की सच्चाई कुछ भी हो, यह स्पष्ट  है कि वे बेहद शातिर और खूंखार थे। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पतिबंध के दौर में ही सिमी ने खुद को न केवल इंडियन मुजाहिद्दीन में तब्दील कर लिया था बल्कि  दायरा भी बढ़ा लिया था। भोपाल में ढेर किए गए आठ में से तीन कुछ वर्ष पहले अपने कई सथियों के साथ सनसनीखेज तरीके से खंडवा जेल से फरार हुए थे। वहां से भागने के बाद उन्होंने देश के अनेक हिस्सों में कई आतंकी वारदातों को अंजाम दिया था। उन्होंने  बम विस्फोट किएबैंक लूटे और आतंकरोधी दस्ते के पुलिस कर्मियों की हत्याएं कीं। वे जेहादियों की भर्तियां भी कर रहे थे और राष्ट्रीय स्तर पर कई नेताओं की हत्या करने की फिराक में भी थे। यह भी साफ है कि अति सुरक्षित मानी जाने वाली भोपाल केन्द्राrय कारागार में ऐसे खूंखार आतंकियों पर जितनी और जिस तरह से निगरानी रखी जानी चाहिए, नहीं रखी गई। सवाल यह भी है कि अगर आतंकवादियों को न्यायालय  सजा दे सकता है लेकिन सजा कटेगी तो जेल में ही। ऐसे में भोपाल केन्द्राrय कारागार की यह घटना भयभीत करने वाली है।

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