Tuesday 1 November 2016

पाक का पुराना पैंतरा पहले जासूसी फिर सीनाजोरी

जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से लगातार जारी गोलाबारी के बीच गुरुवार को दिल्ली स्थित पाक उच्चायोग के एक अधिकारी को जासूसी करने के आरोप में पकड़ा गया। भारत में पाकिस्तानी और पाकिस्तान में भारतीय जासूस का पकड़ा जाना कोई नई घटना नहीं है, हर दो-चार महीनों में ऐसी घटनाएं हो ही जाती हैं लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव के इस दौर में ऐसी गतिविधियां बेहद घातक हो सकती हैं। यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान के किसी राजनयिक को जासूसी के आरोप में देश से बाहर किया गया हो। पहले भी पाक अधिकारियों व कर्मचारियों को सर्सोना नान ग्राटा यानी देश में अनाधिकृत व्यक्ति के तहत वापस भेजा जा चुका है। इतिहास में कई मामले दर्ज हैं, जब पाक ने प्रतिक्रिया में भारतीय अधिकारियों को बेवजह वापस भेजा। राजधानी दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त में कार्यरत महमूद अख्तर को जासूसी के आरोप में उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वह राजस्थान के दो निवासियों के साथ सरहद और बीएसएफ से संबंधित अत्यंत गोपनीय दस्तावेजों की सौदेबाजी कर रहा था। यानी साफ है कि उड़ी हमले के बाद भारतीय सैन्य बलों की नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार आतंकी शिविरों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई और राजनयिक स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के बावजूद इस पड़ोसी मुल्क की भारत के खिलाफ साजिश रचने वाली आतंकी मशीनरी को कोई खास फर्प नहीं पड़ा लगता है। निश्चित रूप से यह चिन्ता की बात है कि उसके साथ ही कुछ भारतीयों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिनकी भूमिका के बारे में जांच से पता चलेगा। जाहिर है कि सीमा पर घुसपैठ की गतिविधियां स्थानीय लोगों की मिलीभगत के बिना नहीं हो सकतीं और पाक फौज और आईएसआई इस काम को बखूबी अंजाम देती है। आईएसआई की गतिविधियों के संचालन के लिए पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारी से  लेकर गैर सरकारी स्तर पर लोग सक्रिय रहते हैं। देश बदर किया गया पाक राजनयिक अधिकारी महमूद अख्तर बलूचिस्तान में तैनात पाक फौज का हवलदार बताया जाता है। उसकी कार्यकुशलता देखकर उसे आईएसआई ने अपने काम में लगाया था। आईएसआई की यह विशिष्टता है और इसी के बूते पर वे आतंकवाद को एक हथियार बनाकर कई देशों में अस्थिरता पैदा करते हैं। देश की सुरक्षा से जुड़े इस मामले में केंद्र की कठोर ना]ित के चलते इस बात के लिए जरूर आश्वस्त हुआ जा सकता है कि इस साजिश में जो लोग भी शामिल होंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। विगत तीन वर्षों के दौरान 46 पाकिस्तानी एजेंटों को देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तार किया जा चुका है। ताजा मामला इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि पहली बार इतने स्पष्ट तौर पर पाक उच्चायोग की भारत के खिलाफ भूमिका उजागर हुई है। वरना अभी तक वह अलगाववादियों को प्रश्रय देने और उनकी मेजबानी करने तक सीमित रहा है।

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