मंगलवार की शाम प्रधानमंत्री की 86 प्रतिशत
मुद्रा के चलन से बाहर करने की घोषणा से पूरे देश में जो अफरातफरी का माहौल बना वह
थमने का नाम नहीं ले रहा है। आठवें दिन मंगलवार सुबह भी हर बैंक के सामने लंबी-लंबी कतारें नजर आ रही थीं। लगता है कि अभी लंबे समय तक संकट बरकरार रहने वाला
है। मध्यवर्गीय परिवार, मजदूर वर्ग और छोटे तबके के लोग व महिलाएं
सबसे ज्यादा परेशान हैं। अभी तक तो लोगों का काम उधार से चल रहा था। अगर आगे संकट गहराया
तो यह तबका क्या करेगा? आठ-आठ घंटे तक लाइनों
में रहने के बाद भी बहुत से लोगों को खाली या बंद एटीएम मिले। वास्तविक सत्य यह है
कि एक खरीदार दूसरे खरीदार को आगे बढ़ाता है और बाजार चलता है। ग्राहकों को दुकानदार
उधार दे देता है और खुद थोक व्यापारी से उधार ले लेता है। पर जब न तो उधार लेने
वाला पैसा नहीं दे पाता तो वह दुकानदार भी थोक व्यापारी को पैसे नहीं दे पाता और थोक
व्यापारी उसे आगे उधार पर माल देने से मना कर देता है। जब दुकानदार के पास माल ही नहीं
होगा तो वह आगे ग्राहकों को देगा क्या? यही वजह है कि आज मार्केटें
बंद पड़ी हैं। जब आदमी के पास पैसा नहीं होता या कम भी होता है तो वह इस विश्वास पर
जीता है कि इमरजैंसी में मैं पड़ोसी, रिश्तेदार या दोस्त से कुछ
दिन के लिए उधार ले लूंगा। पर अगर पड़ोसी, रिश्तेदार व दोस्त
के खुद के पास करेंसी नहीं है तो वह कहां से आपको उधार देगा? विश्वास ही डगमगा गया है। लेकिन आज तो आपने पूरे बाजार को ठप कर दिया है। इससे
पता नहीं काले धन पर कितना असर पड़ेगा वह तो सरकार ही बताए। लेकिन जब खुदरा विकेता
के पास उसके बेचे माल की कीमत नहीं पहुंचेगी तो वह आगे थोक विकेता से कहां से सामान
लाएगा? और अब वित्तमंत्री साफ तौर पर कह रहे हैं कि बैंकिंग व्यवस्था
को ठीक होने में 20-21 दिन का समय लगेगा। तब तक हम हालात की भयावहता
की कल्पना कर सकते हैं और यह तय है कि हालात सुधरने में महीनेभर तक का वक्त लग सकता
है। सरकार एक-दूसरे से मदद करने को कह रही है और हमारे समाज का
सामाजिक ताना-बाना ऐसा है कि दो-चार दिनों
तक आप उधार मांग कर काम चला लेंगे पर ऑटो वाला, रिक्शा वाला तो
आपको जानता नहीं वह आपको उधार देने से रहा। सरकार ने शून्य तैयारी के साथ पूरे देश
को आर्थिक आपातकाल में झोंक दिया है। आज महिलाएं बैंकों के सामने घंटों खड़ा रहने पर
मजबूर हैं। न तो उन्हें घर खाना बनाने की सुध है न बच्चों की। राजनीतिक दृष्टि से भी
देखा जाए तो व्यापारी वर्ग भाजपा की रीढ़ रही है और आज अपने सबसे बड़े वोट बैंक को
ही करारा झटका दे दिया है।
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