Thursday, 24 November 2016

फिर कोलेजियम और सरकार में टकराव

न्यायपालिका और विधायिका में टकराव जारी है। यह भी ऐसे समय में जब सरकार और अदालतें नोटबंदी के कारण आमने-सामने आती नजर रही हैं। ताजा मामला विभिन्न हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति का है। विभिन्न हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम द्वारा भेजे गए 43 नामों को नकारने के केंद्र सरकार के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करने से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने फिर से इन सभी नामों को केंद्र सरकार के पास भेजा है और सरकार को इस पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की अध्यक्षता करने वाले चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि हमने फाइलों को देख लिया है और देखने के बाद यह निर्णय लिया है। पीठ ने सरकार को आगे की कार्यवाही करने का निर्देश देते हुए कहा कि अब सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद होगी। मालूम हो कि पिछली सुनवाई में अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया था कि विभिन्न हाई कोर्टों के जजों की नियुक्ति को लेकर कोलेजियम द्वारा की गई 77 नामों की सिफारिश में से 34 को हरी झंडा दे दी गई है जबकि 43 सिफारिशों को वापस भेज दिया गया है। साथ ही अटार्नी जनरल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार ने गत तीन अगस्त को मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) का ड्राफ्ट कोलेजियम को भेज दिया था लेकिन अब तक सरकार को वापस नहीं मिला। अदालत लेफ्टिनेंट कर्नल अनिल बाबोतरा द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बने कोलेजियम द्वारा सरकार की ओर से वापस किए गए सभी 43 नामों की दोबारा सिफारिश करने के बाद सरकार के समक्ष इसके अलावा और अन्य कोई विकल्प नहीं दिख रहा कि वह इन नामों के स्वीकृति प्रदान करे। चूंकि कोलेजियम की दोबारा सिफारिश सरकार के लिए बाध्यकारी होती है इसलिए संभावना इसी बात की है कि इन नामों को केंद्र सरकार की स्वीकृति मिल जाए। न्यायाधीशों की नियुक्तियों का मामला लंबे अरसे से सरकार और न्यायपालिका के बीच खींचतान का कारण बना हुआ है। यह खींचतान तब से और बढ़ी दिख रही है जब से सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए बनाए गए कानून को असंवैधानिक ठहराया है। जो भी हो न्यायाधीशों की कमी को दूर करना देशहित में होगा। इससे देश में लंबित केसों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। हालांकि लंबित मुकदमों का बोझ बढ़ते जाने का एकमात्र कारण पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों का होना ही नहीं है। बेहतर है कि इस विवाद को जल्द सुलझाया जाए जिससे जनता को जल्द न्याय मिल सके। हम तो सभी पक्षों से अनुरोध करेंगे कि मिल-बैठ कर इस समस्या को सुलझाएं। आगे तभी बढ़ा जा सकता है।

                        -अनिल नरेन्द्र

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