Monday 21 November 2016

क्या डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनावी वादों पर कायम रहेंगे?

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक तरफ अपना राष्ट्रपति का पद संभालने की तैयारी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ देश का एक वर्ग उनके खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है। जाहिर है कि ट्रंप अपने एजेंडे पर काम भी करना चाहते हैं और साथ-साथ उनके सामने अपनी छवि और देश को एकजुट करने की चुनौती भी है। सालाना एक डॉलर वेतन लेकर लगातार बगैर छुट्टी के काम करने की बात कहकर वह उस वर्ग पर भी अपनी पैठ बनाना चाहते हैं, जो उनका विरोध कर रहा है। हाल के समय में अमेरिका के अब तक के सबसे कड़वाहट भरे चुनाव में विजयी होने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अवैध आब्रजन उनके लिए सिर्प चुनावी मुद्दा नहीं था, बल्कि यह उनकी प्राथमिकता में है। वैसे भी अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने अवैध अप्रवासियों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था और इसकी वजह से उन्हें काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी थी, यहां तक कि गलत साबित हो चुके चुनावी पंडित और मीडिया ने इसी वजह से उनकी हार तक सुनिश्चित कर दी थी। ट्रंप की जीत के लिए जिस अमेरिकी राष्ट्रवाद को बड़ी वजह माना जा रहा है उसमें अप्रवासियों के प्रति रोष भी अंतर्निहित है। ट्रंप ने मैक्सिको से जुड़ी सीमा की सुरक्षा का मुद्दा उठाते हुए वहां से आने वाले अवैध अप्रवासियों को तो निशाने पर लिया ही था, उनका इशारा ऐसे लोगों की ओर भी था, जिनकी वजह से अमेरिकी लोगों के हित प्रभावित हो रहे थे। उन्होंने मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने और बाढ़ लगाने की भी बात कही, अलबत्ता मैक्सिको सरकार ने इसके खर्च में किसी तरह की हिस्सेदारी निभाने से साफ मना कर दिया है। सरकारी अनुमान है कि अमेरिका में करीब एक करोड़ 10 लाख प्रवासी बगैर दस्तावेज के रह रहे हैं। ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसा अत्यंत महत्वपूर्ण पद पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल माइकल टी. फ्लिन को देने की भी पेशकश की है। ट्रंप की ट्रांजिशन टीम के शीर्ष अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि माइकल फ्लिन एक सेवानिवृत्त खुफिया अधिकारी हैं जो मानते हैं कि इस्लामी आतंकवाद ने सैन्य व विदेश नीति में सर्वाधिक ताकतवर भूमिका निभाते हुए दुनिया के समक्ष अस्तित्व संबंधी खतरा पैदा कर दिया है। 57 वर्षीय जनरल फ्लिन एक रिटायर्ड डेमोकेट हैं। लेकिन इसके बावजूद वह चुनाव प्रचार में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के प्रमुख सलाहकार थे। उन्हें रूस का करीबी भी माना जाता है तथा सेना और विदेश नीति संबंधी मामलों का भी अनुभव है। उल्लेखनीय है कि स्वयं ट्रंप भी रूस के करीबी माने जाते हैं। अत नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का यह फैसला उनके द्वारा नए सिरे से अमेरिकी नीतियां बनाने का संकेत देता है। जनरल फ्लिन ने एक सलाहकार के बतौर हमेशा ट्रंप को यही समझाया है कि इस्लामिक आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिका में विश्व युद्ध चल रहा है, जिससे निपटने के लिए किसी से भी समझौता करना पड़े तो करना चाहिए। चाहे वे रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ही क्यों न हों। वह मुसलमानों की इबादत को अपने आप में समस्या की जड़ मानते हैं और कहते हैं कि यह कोई मजहब नहीं बल्कि एक राजनीतिक विचारधारा है। उधर अमेरिकी ओबामा प्रशासन सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद को सत्ता से हटाने के लिए चार साल से विद्रोहियों की मदद कर रहा है। अब राष्ट्रपति असद ने कहा है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगर अपने चुनावी वादों पर टिके रहे तो वे आतंकवाद को खत्म करने में सीरिया सरकार की मदद करेंगे। अमेरिका के न्यूयार्प टाइम्स सहित मीडिया ने कहा था कि ट्रंप सत्ता संभालने के बाद सीरिया में असद विरोधियों को मदद देना बंद कर देंगे। बेचैनी अमेरिका के उस वर्ग में है, जिसे लग रहा है कि आने वाले वक्त में उनके यहां रेसिज्म का वह आदर्शवादी रूप देखने को मिल सकता है, जो अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। यही वजह है कि ट्रंप के चुनाव परिणाम आने के साथ ही कई बड़े अमेरिकी शहरों में लोग जुलूस निकालकर कह रहे हैं कि वे ट्रंप को अपना राष्ट्रपति नहीं मानते।

-अनिल नरेन्द्र

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