आमतौर
पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक का देश में स्वागत हो रहा है। अधिकतर लोगों
का मानना है कि मोदी का यह सही दिशा में सही कदम है। इससे आतंकवाद, अलगाववादियों, हवाला कारोबारियों, दाऊद इब्राहिम जैसे माफिया को भारी
धक्का लगा है। नक्सलियों के करोड़ों रुपए स्वाहा हो गए हैं और उनकी कमर टूट गई है।
दोबारा से संग"ित होने में उन्हें बड़ा समय लगेगा। देश में जाली नोटों के सबसे
बड़े केंद्र के तौर पर बदनाम पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में जाली नोटों की आवक थम
गई है। 500 और 1000 के नोटों पर पाबंदी
लगने के बाद जाली नोटों के कारोबार से हमेशा महकने वाले सीमावर्ती इलाकों में मुर्दनी-सी छा गई है। 500 और 1000 के नोट
बंद करने से जम्मू-कश्मीर में आवाज उठाने वाले अलगाववादियों में
बौखलाहट हो गई है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यह अलगाववादियों को पाकिस्तान
से मिलने वाली मदद पर करारी चोट है। इन अलगाववादी संगठनों व नेताओं को यह भी चिन्ता
है कि नोटों पर प्रतिबंध का फैसला ऐसे वक्त हुआ है जब वे घाटी में लोगों को उकसाने
का अभियान तेज करने में लगे थे। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है उसके तो अरबों रुपए के
जाली नोट बर्बाद हो गए हैं। इन तमाम कारणों से आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली शक्तियों
को तो करारा झटका लगा है। पर जहां तक काले धन को निकालने का संबंध है हमें नहीं लग
रहा है कि उसमें ज्यादा सफलता मिलने के आसार हैं। जिन बड़े लोगों के पास काला धन है
उन्होंने इसे कन्वर्ट करने के तरीके निकाल लिए होंगे। मरा तो छोटा तबका है। आप एक प्रतिशत
लोगों के काले धन को निकालने के लिए 99 प्रतिशत आम जनता को इस
तरह हैरान-परेशान नहीं कर सकते। सरकार की स्कीम तो ठीक हो सकती
है पर उसके क्रियान्वयन पर जरूर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। सरकार ने जनता को आश्वस्त
किया था कि नए नोटों की कमी से परेशानियां एक-आध दिन ही मेहमान
रहेंगी। लेकिन अब खुद वित्तमंत्री कह रहे हैं कि समाधान में कुछ हफ्ते लग सकते हैं।
एटीएम को नए नोटों को साइज में कैलिब्रेट करने में समय लगेगा। आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक
के कुछ घंटों बाद ही बैंकों में लंबी लाइनें लगनी शुरू हो गईं। अधिकतर एटीएम खाली हो
गए हैं। घंटों कतार में खड़े होने के बावजूद लोगों को अपने पैसे लेने के लिए मायूस
होना पड़ रहा है। पूरे देश में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। असंतोष बढ़ता जा
रहा है। जगह-जगह पुलिस की सहायता लेनी पड़ रही है। कई जगहों पर
तो फायEिरग तक हुई है। हम लोग तो यहां दिल्ली में अफरातफरी और
अराजकता का माहौल देख सकते हैं पर भारत के ग्रामीण आंचल का क्या हाल होगा? ग्रामीण इलाकों में न तो इतने बैंक हैं न ही केडिट कार्ड इकोनॉमी है। किसान
अलग परेशान है। वह तो खेती की सारी कमाई अपने घर में रखता है, न तो उसे बैंकों पर यकीन है और न ही वह केडिट कार्ड में विश्वास करता है। उनमें
इस कदम का कितना घातक असर होगा। जब उसे पता लगे कि उसकी जिन्दगी की तमाम पूंजी कागज
का टुकड़ा हो गई है। बैंकों की अलग मुसीबत हो गई है। बैंक कर्मचारियों को तय घंटों
से कई गुना ज्यादा काम करना पड़ रहा है। पिछले कुछ दिनों से बैंक कर्मचारी सुबह आठ
बजे से रात 12 बजे तक काम करने को मजबूर हैं। 2000 की नई नोट से लेन-देन की आदत न होने की वजह से कई बार
ग्राहकों को दोगुना पैसा दे रहे हैं। असल में 1000 के नोट की
आदत के चलते कर्मचारी ग्राहकों को दो हजार रुपए देने के लिए दो हजार की ही नोट दे रहे
हैं। आजकल बैंकों की ब्रांच छोटे स्पेस में ही खोल दिए जाते हैं। ऐसे में इस आपात स्थिति
के चलते इन छोटी-छोटी शाखाओं में भारी भीड़ हो जाती है। मुश्किल
यह भी है कि इन बैंकों में न तो जमा करने, पैसा निकालने के लिए
अलग-अलग काउंटर हैं न ही यह तय हुआ कि इस समय से इस समय तक आप
पैसा जमा कर सकते हैं और इस टाइम आप निकाल सकते हैं। इस वजह से नॉर्मल बैंकिंग भी प्रभावित
हो गई है। आज मार्केटें बंद-सी पड़ी हैं। पुराने नोट लेने से
अव्वल तो दुकानदार इंकार करता है जो लेता भी है तो वह कहता है कि 500 रुपए या 1000 का पूरा समान ले लो, छुट्टा नहीं है। अब खबर यह भी आई है कि मंदिरों ने भी काले धन को लेकर सख्ती
शुरू कर दी है। काले धन पर लगाम लगाने की कोशिश के मद्देनजर शुक्रवार को महाराष्ट्र
पर लगाम लगाने की कोशिश में मंदिरों ने अपनी-अपनी दानपेटियां
सील कर दी हैं। दानपेटियों को सील करने का उद्देश्य है कि कोई भी काले धन या किसी प्रकार
का पैसा मंदिर की दानपेटी में न डाल दें। तेलंगाना के महबूब नगर में रहने वाली एक महिला
ने इसलिए सुसाइड कर लिया, क्योंकि उसके घर में 54 लाख रुपए के 500 और 1000 रुपए के
नोट रखे हुए थे। नोट बंद होने के बाद महिला को लगा कि अब उसका कैश कागज बनकर रह गया
है। एटीएम और बैंकों के बाहर कतारों के बीच इतने झगड़े हो रहे हैं कि पुलिस भी परेशान
हो गई है। मध्य प्रदेश के देवास जिले में सीताराम नाम के एक अंधे भिखारी ने पंचायत
से गुहार लगाई कि उसके पास 98 हजार रुपए हैं, जिसे छोटे नोटों में बदल दिया जाए। कुछ लोगों का कहना है कि इस आर्थिक सर्जिकल
स्ट्राइक का एक उद्देश्य है उत्तर प्रदेश, पंजाब इत्यादि सूबों
में विधानसभा में सियासी दलों को मुश्किल में डालना। अगर पैसा होगा ही नहीं तो वोटरों
में बाटेंगे कैसे? इस सर्जिकल स्ट्राइक से सबसे ज्यादा प्रभावित
हो रहा है पूर्वोत्तर। केंद्र सरकार की 500 और 1000 रुपए के नोटों पर पाबंदी के बाद नोटों के नहीं पहुंचने के कारण पूर्वोत्तर
के राज्यों में न केवल अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है बल्कि लोगों को भारी परेशानियों
का सामना करना पड़ रहा है। असम के अधिकांश हिस्सों में नोटों को बदलने में बैंक विफल
हुए हैं और ग्राहक दर-दर भटकने पर मजबूर हो रहे हैं।
500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने की खबर आते ही
बड़े ब्लैक मनी धारक ज्यूलरों की दुकान पहुंच गए। पहले दिन तो रात के तीन बजे तक दुकानें
खुली रहीं। दिनभर की सोने-चांदी की सेल दोगुना महज तीन से चार
घंटे में ही बिक गया। सरकार ने करेंसी की डिमोनेटाइजेशन से पहले जो होमवर्प करना चाहिए
था वह शायद ठीक से नहीं किया। आप एटीएम का ही उदाहरण ले लें। पुराने नोटों के हिसाब
से फार्मेट है एटीएम मशीनें। 2000 और 500 के नए नोट 1000-500 के पुराने नोट से छोटे, लंबे और हल्के हैं। इन नोटों के हिसाब से फार्मेट नहीं की गई पुरानी मशीनें
इसलिए नहीं भरे जा सकते नए नोट। मशीनों में नोट रखने वाली ट्रे भी नहीं बनी हैं नई
करेंसी के हिसाब से। फिर एटीएम से अगर 100 के नोट दिए जाते। जिसका
फार्मेट सेट था तो भी जनता का काम चल जाता। अब आप रोज कमाने वाले मजदूर को
2000 रुपए का नोट देते हैं तो वह 20 रुपए का दूध,
कुछ किलो आटा, बच्चों की फीस, किताबें, कॉपियां, दवाइयां कैसे
लेगा? फिर हर एटीएम मशीन में सिर्प चार-पांच लाख रुपए ही भरे जा सकते हैं। 100-100 के नोटों
की उपलब्धता भी बैंकों और एटीएम मशीनों में भरने वाली एजेंसियों के पास भी नहीं है
पर्याप्त व्यवस्था। वैसे किसी बड़े फैसले को लागू करने में इस तरह की दिक्कतें आती
हैं और यह मामला भी अपवाद नहीं है। मगर देश की बनावट इतनी परतदार है कि सरकार की तमाम
तैयारियां भी छितरा जाती हैं। किलोमीटर लंबी साइज वाली कतारों में लाखों लोग आज अपनी
कमाई के पैसे निकालने के लिए खड़े हैं। जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है और कोई तुरन्त
राहत की संभावना नजर नहीं आ रही है। ऐसे में सरकार को बीते दिनों की समीक्षा करनी होगी।
उन दिक्कतों का अविलंब हल तलाशने होंगे जिनकी वजह से आम जन में निराशा, गुस्सा और असंतोष है। वैसे सरकार के लिए शुभ संकेत है कि आम जनता ने प्रधानमंत्री
के कदम को सराहा है। लेकिन बदइंतजामी के हालात अगर ऐसे ही रहते हैं तो सरकार के नेक
इरादे और दूरगामी सोच पर बेसब्र सवाल उठने लगेंगे। यह स्थिति अगर जारी रहती है तो भारी
जन असंतोष का खतरा पैदा हो सकता है। इससे उस मकसद के ही चोटिल हो जाने का खतरा है जो
सरकार का अभिप्राय रहा है। मुस्तैदी से नोटों का निरंतर सम्यप् वितरण निदान है। इसे
सरकार जितनी जल्दी समझे उतना ही बेहतर है। कहीं सरकार को लेने के देने न पड़ जाएं?
जहां तक हम समझ सके हैं यह सर्जिकल स्ट्राइक काले धन के खिलाफ थी न कि
आम जनता के?
-अनिल नरेन्द्र
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