Sunday 20 November 2016

नोटबंदी पर बढ़ता असंतोष ः शायद दंगों का इंतजार हो रहा है?

नोटबंदी से हो रही जनता को दिक्कत पर सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्च न्यायालयों के विचार करने पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि लोग गंभीर रूप से प्रभावित हैं और ऐसी स्थिति में अदालती दरवाजे बंद नहीं किए जा सकते। बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारों को गंभीर मामला बताते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या केंद्र सरकार सड़कों पर दंगे होने का इंतजार कर रही है? मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 500 और 1000 के नोट बंद करने की अधिसूचना को विभिन्न अदालतों में चुनौती देने वाली याचिकाओं पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि हम लोगों को अपनी समस्याएं कोर्ट में लाने से नहीं रोक सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विभिन्न कोर्टों में दायर याचिकाओं को दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित किया जा सकता है। केंद्र इसके लिए स्थानांतरण याचिका दे। पीठ ने कहा कि कुछ उपाय करने की जरूरत है। देखिए जनता किस तरह की समस्याओं से रूबरू हो रही है। लोगों को हाई कोर्ट जाना ही पड़ेगा? यदि हम हाई कोर्ट जाने का उनका विकल्प बंद कर देंगे तो हमें समस्या की गंभीरता का कैसे पता चलेगा? लोगों के विभिन्न अदालतों में जाने से ही समस्या की गंभीरता का पता चलता है। बड़े नोटों के चलन को बाहर करने के विरोध में कोलकाता हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश गिरीश चन्द्र गुप्ता और अरिहंत सिन्हा के पीठ की केंद्र के फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि सरकार ने कोई होमवर्प ही नहीं किया। इस कारण देश में नकदी संकट हो गया है। हालांकि अदालत ने कहा कि हम केंद्र को फैसला रद्द करने का आदेश नहीं दे सकते। हमें लगता है कि अदालत अब नोटबंदी पर सख्ती करने के मूड में है। अगले सप्ताह तक, अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट नोटबंदी पर कोई सख्त कदम उठा सकते हैं। इस दौरान लोगों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं। बैंकों के बाहर शुक्रवार को लाइनें थोड़ी कम जरूर हुई हैं पर सिर्प 2000 रुपए मिलना भी एक कारण हो सकता है। बैंकों में पुराने नोट धड़ाधड़ जमा हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार अब तक चार-पांच लाख करोड़ रुपए पुराने नोटों में जमा हो चुके हैं। रिजर्व बैंक की प्लानिंग पर भी सवाल उठने लगे हैं। पुराने नोटों को बैंक से वापस मंगाने के लिए  उसकी सप्लाई चेन ठीक से काम नहीं कर रही है। पुराने नोटों से बैंकों के करेंसी चेस्ट फुल हो चुके हैं। वहां और नोट रखने तक की जगह नहीं बची। भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक के करेंसी चेस्ट के अधिकारियों ने बतायाöरिजर्व बैंक चलन से बाहर हुए नोटों को बैंकों से वापस नहीं मांग रहा है। करेंसी चेस्ट वाले बैंक दो समस्याओं से परेशान हैं। पहली यह कि नोटों के करेंसी चेस्ट पूरी तरह खाली हो चुके हैं। दूसरा यह कि यहां और पुराने नोट अब रखने की जगह नहीं। आधी-अधूरी तैयारी के साथ उतरी सरकार की पोल इसी से खुलती है कि आज बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नई करेंसी ही नहीं है। कभी स्याही लगाकर तो कभी 4500 से 2000 सीमा कर तो कभी जिस बैंक में खाता है वहीं आप बैंकिंग कर सकते हैं, ये सब इस बात का संकेत देते हैं कि रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त संख्या में नई करेंसी नहीं आ सकी। जरूरत भर नए नोट छापने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने सूत्रों के अनुसार अभी तक टेंडर प्रक्रिया ही नहीं शुरू की है। मैसूर में भारत सरकार की पेपर मिल में प्रयोग के तौर पर थोड़े करेंसी कागज बनाए गए थे, उन्हीं से काम चलाया जा रहा है। वहां जरूरत का पांच प्रतिशत कागज तैयार करने भर की क्षमता है। बाकी 95 प्रतिशत कागज के लिए अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी की कंपनियों पर निर्भरता है। आरबीआई द्वारा वित्त मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार नए नोट छापने के लिए 22 हजार मीट्रिक टन करेंसी कागज की जरूरत होगी। इसकी खरीद के लिए जल्द से जल्द प्रक्रिया शुरू करनी होगी। भारत के पास जरूरत का महज 10 प्रतिशत कागज उपलब्ध है, जिसे देश में तैयार किया गया है। जहां तक स्याही का सवाल है कि स्विस कंपनी एसआईसीपीए दुनिया के तमाम देशों (भारत सहित) को नोटों की छपाई के लिए स्याही की आपूर्ति करती है। स्याही के लिए आरबीआई इसी कंपनी से स्याही खरीदती है। इस साल छपे 212 करोड़ नोटों में 80 प्रतिशत बड़े नोट थे। भारत सरकार हर साल नए नोट छापने के लिए 22 हजार मीट्रिक टन करेंसी कागज का इस्तेमाल करती है उनकी खरीद में नोटों की छपाई की लागत का 40 प्रतिशत खर्च हो जाता है। कुछ नोटों का 80 प्रतिशत हिस्सा 1000 500 के नोटों का था। बड़े नोटों को अमान्य करने को लेकर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर तीखा हमला बोला है। उसने कहा कि इस तुगलकी फैसले के 10 दिन बाद पूरा देश खून के आंसू रो रहा है और देश को आर्थिक संकट व आर्थिक अराजकता की तरफ धकेल दिया गया है। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि केवल एक व्यक्ति की सनक और उसकी छवि चमकाने के लिए यह सारा बवंडर रचा गया है। अब तक 55 लोगों की मौत हो गई है। माकपा ने इन मौतों का ब्यौरा जारी किया है। पुरानी नकदी का चलन बंद होने से जहां एक ओर लोग अपने काले धन को सफेद करने के जुगाड़ में लगे हैं, वहीं देश में कर चोरी की प्रवृत्ति और अचानक नोटबंदी से मची अफरातफरी में अनेक लोगों की मेहनत का सफेद धन भी काले धन में बदल गया है। भ्रष्टाचार पर काम करने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया में भारतीय शाखा के प्रमुख रमानाथ झा ने कहा कि दरअसल भारत में अभी भी नकदी से ही लेन-देन की मानसिकता है। अभी यहां के लोग प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल से अभ्यस्त हैं। बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने और बैंकिंग जागरुकता के बगैर अचानक किए गए इस निर्णय से इस प्रकार के परिणाम तो सामने आने ही हैं। आमतौर पर हमारे यहां कर चोरी को अपराध नहीं समझा जाता। छोटे दुकानदार से लेकर बड़े व्यापारी और आम नागरिक सभी लोग सरकारी कर चुराने का हर संभव प्रयास करते हैं। देश के दूरदराज इलाकों में दबंग लोग जबरन गरीबों के खाते में पैसा जमा करवाकर उसे वैध बनाने के काम में लगे हैं। राजधानी में भी मिल मालिकों द्वारा अपने मजदूरों को बैंकों में लाइन लगाकर पुराने नोट बदलवाने की रिपोर्टें आ रही हैं। कुल मिलाकर केंद्र सरकार की चौतरफा किरकिरी हो रही है।

-अनिल नरेन्द्र

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