Thursday 3 November 2016

क्या हम पाकिस्तान के साथ युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

जम्मू-कश्मीर सीमा पर इन दिनों भयंकर युद्ध चल रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक से बुरी तरह बौखलाई पाकिस्तानी सेना जेहादी संगठन अब सिविलियन जनता पर गोलीबारी करने लगे हैं। गांव के गांव खाली हो रहे हैं। एक दिन में आठ नागरिकों का मारा जाना यह साबित करता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। जहां तक मुझे याद आता है कि पिछले 20 सालों में यह पहली घटना है जहां एक दिन में इतने नागरिक मारे गए हैं। पाकिस्तान की बौखलाहट का इससे ही पता चलता है कि भारत द्वारा 29 सितम्बर की रात सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान द्वारा युद्ध विराम का 63 बार उल्लंघन हो चुका है, जिसमें 12 आम नागरिक मौत के शिकार हुए। ऐसा नहीं कि हमारे जवान भी इसका करारा जवाब नहीं दे रहे हैं। पाकिस्तान की तरफ से लगातार सीमा पार से हो रही गोलीबारी का बीएसएफ की तरफ से भी माकूल जवाब दिया जा रहा है। पिछले  11 दिनों में पाकिस्तान लगातार सीजफायर तोड़ रहा है। बीएसएफ ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देते हुए 11 दिनों में 5000 मोर्टार दागे हैं जबकि 35000 से ज्यादा गोलियां चलाई हैं। बीएसएफ ने पाकिस्तानी फायरिंग के जवाब में 3000 लांग रेंज के मोर्टार, 2000 शार्ट रेंज के मोर्टार दागे हैं। लांग रेंज के मोर्टार की रेंज 5 से 6 किलोमीटर जबकि शार्ट रेंज की करीब 900 मीटर तक होती है। इसके अलावा बीएसएफ  ने एमएमजी, एलएमजी और राइफल जैसे हथियारों का इस्तेमाल कर 38000 से अधिक   गोलियां दागी हैं। बीएसएफ के मुताबिक अधिकतर कास-बार्डर फायरिंग  जम्मू के सेक्टरों में हो रही है। पाकिस्तानी रेंजर्स खास कर रातों को फायरिंग कर रहे हैं। यह  फायरिंग आतंकी घुसपैठ करने का पयास भी है। बीएसएफ की जवाबी कार्रवाई में अब तक कम से कम 15 पाकिस्तानी सैनिकों को मारे जाने का दावा किया जा रहा है। 19 अक्तूबर के बाद लगातार चल रही पाकिस्तानी फायरिंग में बीएसएफ के 3 जवान भी शहीद हुए हैं। पाकिस्तान ने 11 दिनों के भीतर अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 63 बार सीजफायर तोड़ा है। बीएसएफ के एडीजे (वेस्टर्न सेक्टर) अरुण कुमार ने बताया कि भारतीय फौजें भी पाकिस्तानी सेना को   करारा जवाब दे रही हैं। पाक गोला दागने के साथ मोर्टार से गोले बरसा रहा है। कई गांवों में तो कुछ घंटे के अंदर 100 के आसपास गोले तक गिरने की बात सामने आई है। बस्तियों पर अघोषित हमले का जवाब देना कठिन जरूर होता है। सरकार की ओर से लगातार उच्चस्तरीय बैठकों में स्थिति की समीक्षा की जा रही है। हमारे सामने सवाल अब यह है कि ऐसा कब तक चलेगा? कल्पना कीजिए कि जिन लोगों को अपना घर-बार छोड़कर अलग रहने को मजबूर होना पड़ रहा है उन पर क्या   बीत रही होगी? चूंकि गांवों में ज्यादातर किसान हैं, इसलिए उनकी फसलें भी नष्ट हो रही हैं और मवेशियों के लिए संकट अलग खड़ा हो गया है। क्या हम धीरे-धीरे पूरे युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं।

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