Wednesday 23 November 2016

हादसे से प्रभु की जीरो टालरेंस मिशन पर सवालिया निशान

कानपुर में हुए भयंकर रेल हादसे ने एक बार फिर रेलवे की एक्सिडेंट मामले में जीरो टालरेंस पॉलिसी की असलियत उजागर कर दी है। इंदौर राजेन्द्र नगर एक्सप्रेस रेल हादसा दिल दहलाने वाला है। 140 से ज्यादा लोगों की मौत और 300 से ज्यादा लोगों के घायल होने का अर्थ है कि रेल के ज्यादातर यात्री इस दुर्घटना के शिकार हुए। यह तो होना ही था क्योंकि जब किसी तेज गति से चलती ट्रेन के 14 डिब्बे पटरी से उतरकर दूर हो जाएं तो वे इस तरह चिपक जाएं कि फंसे हुए यात्रियों को बैल्डिंग कटर से निकाला जाए तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि हादसा कितना भयंकर था। बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड और सेमी हाई स्पीड ट्रेनों की ओर तेजी से आगे बढ़ने वाले रेलमंत्री सुरेश प्रभु को इस हादसे ने रेल संरक्षा की जमीनी हकीकत पर सोचने को विवश कर दिया है। रेलमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि बेपटरी हो रही रेल को कैसे रोका जाए? जमीनी स्तर पर ऐसी कौन-सी खामियां हैं, जिसे सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर ठीक करने की जरूरत है। यह दुर्घटना किस वजह से हुई, इसका ठीक-ठाक पता तो जांच रिपोर्ट से ही चल पाएगा, लेकिन शुरुआती तौर पर ये कयास लगाए जा रहे हैं कि पटरी में दरार आने से यह हादसा हुआ। हालांकि दुर्घटनास्थल पर इस हादसे से कुछ ही मिनट पहले उसी पटरी से एक और ट्रेन साबरमती एक्सप्रेस गुजरी थी। इस दुर्घटना की ठोस वजहें फिलहाल सामने न आने के बावजूद दो तथ्य ऐसे हैं, जो बताते हैं कि रेल यात्रा को सुरक्षित बनाने के प्रति ध्यान अब भी कम है। एक तो यही कि इंदौर-पटना एक्सप्रेस के डिब्बे अगर एलएचबी कोच होते, जो स्टेनलेस स्टील के होते हैं और दुर्घटना होने पर भी उसका भीतरी असर बहुत कम होता है तो हताहतों की संख्या इतनी नहीं होती। विकसित देशों में रेल दुर्घटनाओं में हताहतों का आंकड़ा मामूली होता है, तो उसकी एक बड़ी वजह एलएचबी कोच है। हमारे यहां अनेक ट्रेनों में एलएचबी कोच हैं पर सभी ट्रेनों में नहीं। लिहाजा सबसे पहला टारगेट तो यह होना चाहिए कि सभी ट्रेनों में ऐसे एलएचबी कोच लगें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेलवे के कायाकल्प की बात कर रहे हैं और इस दिशा में काम भी हो रहा है। लेकिन अभी भी दुनिया के प्रमुख देशों की तुलना में दुर्घटनाओं में हताहत होने वालों की संख्या हमारे यहां ज्यादा है, क्यों? इस पर गंभीर विचार होना चाहिए। सामान्य मानवीय भूलें बड़ी दुर्घटनाओं के कारण बन जाती है। पर यहां तो न दो रेलों के टकराने की घटना है, न पटरियों के उखड़ने की और न ही मानवरहित क्रॉसिंग पर किसी अन्य वाहन से टकराने की। जाहिर है, इस दुर्घटना में रेलवे की आंतरिक खामियां कहीं न कहीं दुर्घटना की जिम्मेदार हैं। भारत में दुर्घटनाओं से बड़ी त्रासदी, समय पर और सही तरीके से राहत और बचाव कार्य का न होना रहता है। पर इस मामले में यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश व रेलवे और प्रशासन की मुस्तैदी से अनेक जानें बच गईं।

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