Saturday, 12 November 2016

आसान नहीं होगी डोनाल्ड ट्रंप की प्रेसिडेंसी

अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। किसी को भी ऐसी जीत की उम्मीद नहीं थी। उनकी विजय इसलिए अधिक अप्रत्याशित है क्योंकि एक तो वह राजनेता की पारंपरिक परिभाषा में फिट नहीं बैठते और दूसरा यह कि डेमोकेट पार्टी के साथ-साथ अमेरिकी मीडिया, तमाम थिंक टैंक, बुद्धिजीवी एवं चुनावी पंडित यह भविष्यवाणी कर रहे थे कि अमेरिकी जनता ऐसे बड़बोले एवं अनुभवहीन ट्रंप को राष्ट्रपति बनाने की गलती नहीं करेगी। अभी दो महीने पहले तक यह माना जा रहा था कि इस बार भी अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के लिए उम्मीद का कोई कारण नहीं है। फिर अभी एक हफ्ते तक यह लग रहा था कि वह डेमोकेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। फिर भी न्यूयार्प टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र व सर्वेक्षण यह दावा कर रहे थे कि हिलेरी की मामूली-सी लीड है और वही जीतेंगी। पर जब परिणाम आए तो न केवल डोनाल्ड ट्रंप भारी वोटों से जीते बल्कि उन्होंने सबका आकलन गलत कर दिया। पहली बार अमेरिका की मेन स्ट्रीम मीडिया ने चुनाव में किसी एक उम्मीदवार का न सिर्प समर्थन किया बल्कि उसके पक्ष में वोट करने तक की अपील कर दी। कभी खुलकर अमेरिकी मीडिया ने किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में ऐसी अपील नहीं की थी। सीएनएन, न्यूयार्प टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट सहित 55 मीडिया संस्थानों ने सीधे तौर पर हिलेरी का साथ दिया। पर ट्रंप ने सभी को चारों खाने चित कर दिया। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के सबसे ज्यादा उम्र वाले प्रेसिडेंट बने हैं। वह 70 साल के हैं। उनसे पहले रानल्ड रीगन 69 साल की उम्र में अमेरिका के सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपति बने थे। हालांकि हिलेरी क्लिंटन की उम्र भी 69 साल है। ट्रंप जिस अंतर से जीते, वह बताता है कि चुनावी सर्वेक्षण और आकलन अकसर भारत में ही नहीं, अमेरिका में भी चूक जाते हैं। यह अंतर बताता है कि वहां ट्रंप के समर्थन की एक हवा चल रही थी जिसे तमाम तरह के विशेषज्ञ समझने में नाकाम रहे। जहां तक ट्रंप की जीत और भारत का सवाल है देखना यह होगा कि जहां ओबामा ने अपने टर्म की समाप्ति तक नरेंद्र मोदी से जैसे बेहतरीन संबंध रखे, वहां से ट्रंप उसे आगे बढ़ाते हैं या नहीं? उनके भारत के साथ रिश्ते कैसे होंगे? ट्रंप की जीत के बाद जहां उम्मीद की जा रही है कि पूरी दुनिया में एक नया गठबंधन बनेगा। रूस के ब्लादिमीर पुतिन ने खुलकर ट्रंप का समर्थन किया है। अमेरिका, रूस, इजरायल और भारत यह दुनिया का नया गठबंधन हो सकता है। यह गठबंधन इस्लामिक कट्टरवाद के सख्त खिलाफ है और उम्मीद है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों पर अब खुलकर अंकुश लगेगा। बराक ओबामा डबल गेम खेलते रहे। आज वैश्विक आतंकवाद का एक बहुत बड़ा कारण है अमेरिका का दोगलापन। डोनाल्ड ट्रंप एक ट्रैक के आदमी लगते हैं और उनकी प्राथमिकताएं भी साफ हैं। पर जहां ट्रंप से बहुत-सी उम्मीदे हैं वहीं चुनाव प्रचार के दौरान उनके कुछ विचारों से अमेरिकी भयभीत भी हैं, डरे हुए भी हैं। पूरी दुनिया जानती है कि महिलाओं के बारे में उनके विचार और कुविचार क्या हैं? सबको पता है कि अल्पसंख्यकों के बारे में अकसर उनके मुंह से किस तरह के फूल झड़ते रहे हैं? उनके चाल-चरित्र और चेहरे के तमाम कारनामें पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया को लगातार दिखाए और बताए जाते रहे हैं। आर्थिक नीतियों और विदेश संबंधों पर हमने उनके उग्र तेवर और आक्रामक शब्दों वाले भाषण तो सुने हैं, लेकिन हम नहीं जानते कि वे इन नीतियों को कौन-सा आकार देने जा रहे हैं। अमेरिकी जनता को इतिहास रचने का एक अवसर मिला था। वह हिलेरी को चुनती तो इस देश की पहली महिला राष्ट्रपति आसानी बनती, लेकिन उसने ट्रंप का साथ देकर गैर राजनीतिक शख्सियत को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठाने का इतिहास बनाया। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी जनता ने जहां ट्रंप का मूल्यांकन उनकी निजी जिन्दगी से जुड़े विवादों के आधार पर नहीं किया वहीं हिलेरी के मामले में विदेश मंत्री के तौर पर उनकी भूमिका का खासा गौर किया। लगता है कि क्लिंटन फाउंडेशन और ईमेल सर्वर से जुड़े विवाद व उनकी सेहत के कारण हिलेरी पिट गईं। हिलेरी ओवर कॉन्फिडेंस में मारी गईं। अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने जो कुछ बोला उससे यह प्रश्न चारों तरफ पैदा हो रहा है कि आखिर अब वह करेंगे क्या? लेकिन जीतने के बाद वे महान सपने और उसे पूरा करने के लिए देश में जज्बे की बात उठा रहे हैं। आज अमेरिका उनके चुनाव को लेकर भयभीत और विभाजित है। वे कह तो यही रहे हैं कि वे सबको साथ लेकर चलेंगे। इससे यह भी पता लगता है कि ट्रंप ने कुछ बातें तो चुनाव जीतने के लिए कहीं और कुछ वाकई करने के लिए। उनका फिलहाल पूरा फोकस अमेरिका पर ही होगा। उन्होंने कहा है कि उनके पास पूरा रोड मैप है। पर इसको उन्होंने पेश नहीं किया। तो देखना होगा कि उनकी प्रेसिडेंसी की शुरुआती दिनों में क्या स्थिति रहती है। जहां तक भारत का सवाल है तो ट्रंप ने देश और उसके नेतृत्व की प्रशंसा की है। उन्होंने भारत के साथ हर स्तर पर बेहतर संबंध की बात की है। इसलिए हमें उन पर किसी तरह की आशंका नहीं होनी चाहिए। निस्संदेह डोनाल्ड ट्रंप सबसे शक्तिशाली शासनाध्यक्ष होंगे, लेकिन उनकी राह आसान तब होगी जब वह अपनी छवि के साथ-साथ अपनी नीतियों को लेकर भी संजीदा होंगे। उनका सबसे पहला काम होगा अमेरिकियों को एकजुट रखना।

No comments:

Post a Comment