Friday, 4 November 2016

उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव में विकास का मुद्दा हाशिए पर

समाजवादी पाटी की अंतर्कलह या नूराकुश्ती कहें, ने सूबे में फिलहाल चुनाव में विकास के मुद्दे को हाशिए पर ला दिया है। पिछले दो महीने से सपा की अंदरूनी खींचतान चर्चा में है। चुनाव इतने करीब आने के बावजूद अब भी चाचा-भतीजा, पिता-पुत्र की बातें ज्यादा हो रही हैं। विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक रहा है, सियासी दलों का नजरिया भी बदल रहा है। यूपी में पार्टियां भले ही विकास के मुद्दे पर चुनाव में उतरने का दम भर रही हों, पर जिस तरह सूबे की गतिविधियां चल रही हैं, उसे देखते हुए सूबे में जाति-धर्म भावनात्मक मुद्दों पर ही सियासी घमासान के आसार ज्यादा नजर रहे हैं। विकास का मुद्दा लगता है कि एक बार फिर हाशिए पर ही रहने की संभावना है। 2017 में यूपी की सत्ता हासिल करने के पयासों में कोई दल कसर बाकी नहीं रख रहा। चुनाव में जीत के मायने सिर्प यूपी की सत्ता पर काबिज होने तक सीमित नहीं है। सभी पमुख पार्टियां जानती हैं कि इस चुनाव जीत से सिर्प राज्यसभा में उसकी ताकत बढ़ेगी, बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भी बड़ा आधार होगा। पारिवारिक कलह से जूझ रही समाजवादी पाटी के लिए जहां आगामी विधानसभा चुनाव कड़ा इम्तिहान है वहीं भाजपा के लिए भी यह कम अहम नहीं है। यही वजह है कि पीएम मोदी समेत उनके मंत्रियों की पूरी फौज माहौल तैयार करने में जुट गई है। कांग्रेस और बसपा भी पीछे नहीं हैं। राहुल गांधी ने किसान यात्रा से चुनाव अभियान का आगाज कर दिया तो मायावती भी वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए मैदान में निकल पड़ी हैं। विकास की बात करने वाली  पार्टियां जिस तरह से जातीय धार्मिक समीकरण साधने में जुटी हैं, उससे विकास का मुद्दा हाशिए पर ही रहने के पूरे-पूरे आसार हैं।  भगवा खेमा  जहां फिर राम  मंदिर, कॉमन सिविल कोड तीन तलाक जैसे मुद्दों को निंदा करके हिंदुत्व कार्ड खेलने में जुटा है वहीं सपा, बसपा और कांग्रेस जातियों की  गोलबंदी और खासकर मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। दो महीने पहले तक चुनावी तैयारियों में सपा अन्य दलों के मुकाबले काफी आगे चल रही थी। चुनाव सर्वेक्षण में  भी उसकी स्थिति बेहतर बताई जा रही थी मगर एकाएक सतह पर आई पारिवारिक लड़ाई ने सपा की हवा फिलहाल निकाल दी है। जहां दूसरे दल अपने-अपने दलों की वोटरों पर पकड़ मजबूत करने में जुटे हुए हैं वहीं सपा के नेता आपस में एक-दूसरे से निपटने में उलझे हुए हैं। चुनावी अभियान के नजरिए से दोनों समाजवादी पार्टा और सूबे में विकास का मुद्दा काफी पीछे हो गया है। हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश अब भी कह रहे हैं कि वह चुनाव विकास के मुद्दे पर ही लड़ेंगे।
-अनिल नरेन्द्र

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