Saturday, 29 February 2020

लिंगायत मठ में पहला मुस्लिम प्रधान पुरोहित

ऐसे समय जब राजधानी दिल्ली सांप्रदायिक दंगों की चपेट में है एक उत्साहवर्धक खबर आई है। कर्नाटक के लिंगायत मठ में एक मुस्लिम युवक को अपना प्रधान पुरोहित चुनकर नायाब मिसाल रखी है। 33 साल के दीवान शरीफ रहमानसाब मुल्ला ने 26 फरवरी को गडग स्थित मठ में पद्भार संभाला। लिंगायत 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना की शिक्षाओं को मानने वाला दक्षिण भारत का प्रमुख समुदाय है। लिंगायत गुरुओं के अनुसार उनके समुदाय में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। बसवन्ना की शिक्षाओं में विश्वास रखने वाले सभी नागरिक समुदाय का हिस्सा माने जाते हैं। वहीं शरीफ ने बताया कि वह बचपन से आटा-चक्की पर काम करते हुए खाली समय में बसवन्ना की शिक्षाएं पढ़ते थे। उनसे प्रेरणा लेकर वह समाज में न्याय और सौहार्द बढ़ाने के लिए काम करना चाहते हैं। शरीफ विवाहित हैं और उनकी तीन  बेटियां व एक बेटा है। शरीफ रहमानसाब मुल्ला को मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वर शांति धाम मठ का प्रधान बनाया जा रहा है। गडग के असुति गांव में स्थित मठ का संबंध कुलबुर्गी में 350 साल पुराने कोरानेश्वर मठ में है। खजूरी के मठ प्रधान मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वर शिवयोगी ने बताया कि बसवा देव के विचार सभी के लिए हैं। उनके आस्थावानों में जाति-धर्म मायने नहीं रखते, मठ सभी के लिए खुले हैं। शरीफ का मठ प्रधान बनना कल्याण राज्य स्थापित करने का अवसर है, जिसके तहत बसवा ने 12वीं सदी में न्याय व बराबरी की कल्पना की थी।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली हिंसा ने 2002 गुजरात दंगों की याद दिला दी

दिल्ली हिंसा पर अब सियासत भी शुरू हो गई है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने केंद्र और भाजपा सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। सोनिया गांधी ने भाजपा सरकार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए पांच सवाल पूछे हैं। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर भी सवाल दागा और पूछा कि दंगों के दौरान वह क्या कर रहे थे? बुधवार को कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहाöइन हादसों के पीछे एक सोचा-समझा षड्यंत्र है, जिसे दिल्ली चुनाव के दौरान भी देखा गया। भाजपा नेता डर और नफरत फैलाने वाले बयान दे रहे हैं। पिछले रविवार को भी एक भाजपा नेता ने ऐसा ही भड़काऊ बयान दिया था। उसने दिल्ली पुलिस को भी कहा था कि तीन दिन बीतने के बाद हमें कुछ नहीं कहना। सोनिया गांधी ने केंद्र और दिल्ली सरकार पर हमला बोलते हुए कहाöकेंद्र सरकार और दिल्ली सरकार द्वारा कोई कार्रवाई न करने की वजह से 20 से अधिक लोग मारे गए। दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल की भी मौत हो गई। एक पत्रकार समेत  सैकड़ों लोग अस्पताल में भर्ती हैं। इस स्थिति को देखते हुए कांग्रेस समिति का मानना है कि दिल्ली में मौजूदा स्थिति के लिए केंद्र सरकार और खासतौर पर गृहमंत्री जिम्मेदार हैं और कांग्रेस गृहमंत्री से इस्तीफे की मांग करती है। सोनिया गांधी ने शाह-केजरी से पांच सवाल भी पूछे। पिछले रविवार से देश के गृहमंत्री कहां थे और क्या कर रहे थे? रविवार से दिल्ली के मुख्यमंत्री कहां थे और क्या कर रहे थे? दिल्ली चुनाव के बाद इंटेलीजेंस एजेंसी के द्वारा क्या जानकारी दी गई और उस पर क्या कार्रवाई हुई? रविवार की रात से कितनी पुलिस फोर्स दंगों वाले इलाकों में लगाई गई, जबकि यह साफ था कि दंगे और ज्यादा फैलने वाले हैं? जब दिल्ली में हालात बेकाबू हो गए थे, पुलिस का कंट्रोल नहीं हो सका था, तब तुरन्त एक्शन की जरूरत थी। उस समय अतिरिक्त सुरक्षा फोर्स लगानी चाहिए थी, ताकि स्थिति पर काबू पाया जा सके। शांति कमेटी बनाई जानी चाहिए थी, ताकि कोई और ऐसी घटना न हो। सीनियर सिविल सर्वेंट हर जिले में  लगाने चाहिए थे, ताकि स्थिति से निपटा जा सके। मुख्यमंत्री को प्रभावित इलाकों में जाकर लोगों से बात करनी चाहिए थी। ऐसा क्यों नहीं हुआ? सोनिया गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए भाजपा ने बुधवार को कहा कि अब हिंसा समाप्त हो रही है और सच्चाई सामने लाने के लिए जांच भी शुरू हो गई है, ऐसे में सभी दलों की प्राथमिकता शांति स्थायी होनी चाहिए। साथ ही पार्टी ने गृहमंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग को हास्यास्पद करार दिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश जाव़ड़ेकर ने संवाददाताओं से कहाöकांग्रेस के हाथ 84 के दंगों के खून से रंगे हैं। उनके द्वारा ऐसी बातें करना उचित नहीं है। जांच में यह बात भी सामने आ जाएगी कि किसने पथराव की तैयारी की। किसने वाहनों को आग लगाई और कौन पिछले दो माह से लोगों को उकसा रहा था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पूछ रही है कि अमित शाह कहां थे? अमित शाह ने कल सभी दलों की बैठक ली, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) के साथ-साथ कांग्रेस के नेता भी उपस्थित थे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कांग्रेस की ऐसी टिप्पणियों से पुलिस का मनोबल गिरता है। वहीं माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को कहा कि दिल्ली हिंसा ने 2002 के गुजरात दंगों की याद दिला दी है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में शांति एवं सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सेना को बुलाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। भाकपा महासचिव डी. राजा के साथ संवाददाताओं से दावा किया, यह स्पष्ट है कि दिल्ली में हिंसा को पुलिस और उन ताकतों की शह थी जो उन्हें संचालित करते हैं। येचुरी ने कहा कि दिल्ली में हिंसा की घटनाओं ने गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक नरसंहार की याद दिला दी जब मौजूदा प्रधानमंत्री राज्य के मुख्यमंत्री थे। राजा और येचुरी ने हिंसा से निपटने में गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका पर सवाल उठाया और उन पर ऐसी स्थिति से निपटने में समर्थ नहीं होने का आरोप भी लगाया। उन्होंने पूछाöअगर एनएसए को दिल्ली पुलिस का प्रभारी माना जाए तो गृहमंत्री की क्या भूमिका है? क्या सरकार ने यह मान लिया है कि गृहमंत्री दिल्ली हिंसा से निपटने में अक्षम हैं। उन्होंने कहा कि हिंसा को लेकर कुछ भी तत्काल नहीं हुआ। उन्होंने भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री अमित शाह इसे स्वत भड़की हिंसा कहकर इसकी सुनियोजित प्रवृत्ति को छिपाना चाहते हैं। राजा ने आरोप लगाया कि आरएसएस-भाजपा गुंडों के हाथों कत्लेआम, आगजनी और धमकी के दौर के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

Friday, 28 February 2020

राजद्रोह कानून पर कोर्ट का नजरिया

सीएए-एनआरसी के खिलाफ ऑल इंडिया मजलिस--इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की रैली में गुरुवार को हंगामा हो गया। एक महिला ने मंच पर पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए। युवती का नाम अमूल्या बताया जा रहा है। इसके बाद महिला को जबरन मंच से उतार दिया गया। उसके उपर देशद्रोह का केस दर्ज हो गया है और उसे 14 दिन के लिए जेल भेज दिया गया है। वहीं ओवैसी ने कहा कि वह पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारों का समर्थन नहीं करते। पुलिस ने महिला के खिलाफ आईपीसी की धारा-124ए के तहत देशद्रोह का मामला दर्ज किया है। राजद्रोह एक बार फिर चर्चा में आना स्वाभाविक ही है। पिछले दिनों सरकार ने संसद में बताया कि तीन सालों में अलग-अलग राज्यों में करीब 313 लोगों पर राजद्रोह के आरोप में कार्रवाई की गई है। उधर शाहीन बाग में आक्रामक भाषण देने के लिए राजद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार शरजील इमाम के समर्थन में नारा लगाने वाले एक छात्रा पर भी राजद्रोह का केस दर्ज कर लिया गया। राजद्रोह का मामला शुरू से ही विवादों में रहा है। चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल करके इस कानून पर सवाल उठाए गए थे। याचिका में कहा गया कि सरकार इसका दुरुपयोग कर रही है। आईपीसी की धारा-124ए के तहत राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाता है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के मामले में व्यवस्था दे रखी है, उसका पालन किया जाना चाहिए और इसको लेकर सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए। याचिका में महात्मा गांधी का भी जिक्र किया गया और कहा गया कि जब उन्हें राजद्रोह का आरोपी बनाया गया था तब महात्मा गांधी ने कहा था कि यह कानून लोगों की आवाज दबाने के लिए बनाया गया है। आईपीसी की धारा-124ए के मुताबिक अगर कोई शख्स देश (भारत सरकार) के खिलाफ लिखकर, बोलकर या फिर किसी भी माध्यम से अभिव्यक्ति के जरिये विद्रोह करता है या समुदायों के बीच नफरत के बीज बोता है या ऐसी कोशिश करता है तो राजद्रोह का केस बनेगा। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम सजा उम्रकैद है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एमएल लोहाटी बताते हैं कि अनुच्छेद-19-(1)() के तहत देश के हर नागरिक को विचार रखने, जाहिर करने की आजादी है लेकिन यह संवैधानिक अधिकारपूर्ण नहीं है, बल्कि इस पर वाजिब रोक भी है। अनुच्छेद-19(2) के तहत वाजिब रोक की बात है। वाजिब दायरे में वैसे बयान हैं जो किसी की मानहानि करते हों या जिससे देश में नफरत या हिंसा फैले या हिंसा फैलाने का खतरा है तो मामला राजद्रोह का बन जाता है यानि अभिव्यक्ति की आजादी की एक तय सीमा है। जेएनयू में नारेबाजी के मामले में कन्हैया कुमार पर देशद्रोह के केस में भी चार्जशीट तो दाखिल है पर दिल्ली सरकार की इजाजत का अभी भी इंतजार है।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रंप का दौरा भारत के लिए आंशिक रूप से सार्थक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा से भारत के रिश्ते व्यापार गतिरोधों के बावजूद कई मोर्चों पर मजबूत हुए हैं। खासकर कट्टर इस्लामी आतंकवाद से लड़ने का साझा संकल्प दोहराया गया है और इस मामले में दोनों के बीच सम्पर्प के नए तंत्र विकसित करने की बात हुई। ट्रंप ने कहा कि वह पाकिस्तान के साथ आतंकवादी नेटवर्प को खत्म करने की दिशा में सकारात्मक पहल करेंगे। डोनाल्ड ट्रंप की दो दिन की भारत यात्रा को दो देशों के बीच एक नया युग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसमें कोई शक नहीं कि जिस मकसद को लेकर ट्रंप भारत आए, उसमें वह पूरी तरह से सफल रहे। इसलिए दोनों देशों के बीच यह नया युग अमेरिका के लिए बहरहाल ज्यादा लाभदायक होगा। अमेरिका अब यह समझ चुका है कि भारत के रक्षा क्षेत्र का बाजार उसके लिए अनंत संभावनाएं लिए हुए है, इसलिए वह भारत को जमकर हथियार और रक्षा सामान बेच सकता है। व्यापक रक्षा और रणनीतिक साझेदारी पर समझौता आने वाले दिनों में एक ताकतवर भारत का आगाज है। दो दिन तक देश स्वागत-मोड में रहा। कुछ मानते हैं कि नमस्ते ट्रंप ही देश को वैतरणी पार कराएगा और कुछ का कहना है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के नेता का स्वागत तो हमारा प्रजाधर्म है। लेकिन एक तीसरे वर्ग ने इसे शुद्ध रूप से स्वागत, लेकिन वार्ता की मेज पर अपने हित के लिए दृढ़ता के भाव से लिया। यह तीसरा वर्ग मोदी सरकार का था। लिहाजा समझौते हुए। कुछ उम्मीद के अनुरूप और कुछ निराशाजनक। लेकिन 21 हजार करोड़ डॉलर में खतरनाक अपाचे और रोमियो हेलीकॉप्टर की रक्षा डील में दोनों पक्षों के लिए जीत है। रक्षा उपकरण किसी भी मजबूत राष्ट्र की अपरिहार्य जरूरत है, खासकर तब जब पड़ोस में पाकिस्तान और चीन जैसे मुल्क हों। यह दौरा राष्ट्रपति ट्रंप के लिए बनिस्पत हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद रहा। वह अमेरिकी हथियार बेचने आए थे, बेचने में सफल रहे। फिर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बातचीत का फायदा उन्हें अमेरिका के आसन्न चुनावों में मिल सकता है। जानकारों का कहना है कि इस यात्रा से अगर सबसे ज्यादा फायदा हुआ तो वह राष्ट्रपति ट्रंप को हुआ है। ट्रंप इस साल चुनाव लड़ने वाले हैं। उनके संबंध पुराने दोस्तों से अच्छे नहीं हैं। खासतौर पर यूरोप में और मध्य एशिया में भी उनके संबंध ठीक नहीं हैं। लेकिन एक जगह है जहां वह दिखा सकते हैं कि उन्हें सम्मान देते हैं और भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अमेरिका का नेता होते हुए उन्हें भारत में सम्मान मिला है। इस शानदार सम्मान और यात्रा को भारतीय मूल के अमेरिकियों ने भी बड़े गौर से देखा होगा। इस साल राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को फायदा मिलेगा। कश्मीर में मध्यस्थता को लेकर ट्रंप अकसर ऐसे बयान देते रहे हैं जो भारत को नागवार गुजरे हैं। पर इस बार उन्होंने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का ही मसला करार दिया है और भारत के रुख का समर्थन किया। ट्रंप की भारत यात्रा से पहले लग रहा था कि अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता का मामला उठाकर भारत को असहज स्थिति में डाल सकता है। जैसा कि वह पहले भी करता रहा है। यह आश्चर्य की बात है कि ट्रंप ने इस मामले में भारत को एक तरह से क्लीन चिट देते हुए यहां तक कह डाला कि धार्मिक आजादी पर भारत अच्छा काम कर रहा है। भारत में दूसरे देशों से ज्यादा धार्मिक आजादी है। लेकिन दोनों देशों में एच-1बी वीजा मुद्दे को लेकर जो गतिरोध बना हुआ है, उसमें अमेरिका से भारत को कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलना चिन्ता पैदा करता है। भारत और अमेरिका के बीच कारोबारी रिश्ते तेजी से बढ़ रहे हैं, यह अच्छा संकेत है। हैदराबाद हाउस में ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत में अफगानिस्तान में तालिबान से बातचीत, पश्चिम एशिया में इस्लामी आतंकवाद पर अंकुश और तेल को लेकर बन रही स्थितियों पर भी विस्तार से बातचीत हुई। जाहिर है कि यह सभी मुद्दे भारत के राजनीतिक-आर्थिक मामले में बेहद महत्वपूर्ण हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि ट्रंप के इस दौरे से दोनों देशों के लिए भू-राजनीतिक स्थितियों में सकारात्मक बदलाव आएगा।

Thursday, 27 February 2020

ड्यूटी पर निकले रतन को बेटी ने कहा, बाय-पापा

नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में सोमवार को हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस के एक हैड कांस्टेबल शहीद हो गए। 42 साल के रतन लाल गोकुलपुरी एसीपी ऑफिस में तैनात थे। वह नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन और आगजनी कर रही भीड़ के हमले के शिकार हुए। रतन लाल को तुरन्त जीटीबी हॉस्पिटल में ले जाया गया। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शहीद रतन लाल मूल रूप से राजस्थान के सीकर जिले की तहसील रामगढ़ के गांव तिहावली के रहने वाले थे। उन्होंने 1998 में दिल्ली पुलिस ज्वाइन की थी। रतन लाल परिवार के साथ फिलहाल बुराड़ी के अमृत विहार स्थित गली नम्बर-8 में रहते थे। उनके परिवार में पत्नी पूनम, दो बेटियां और एक सबसे छोटा बेटा है। पूनम हाउस वाइफ हैं। सबसे बड़ी बेटी 13 साल की सिद्धी सातवीं कक्षा में, 10 साल की कनक पांचवीं कक्षा में और पांच साल का राम पहली क्लास में पढ़ रहे हैं। तीनों बच्चे एनपीएल स्थिति दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल में पढ़ाई करते हैं। परिवार वालों ने बताया कि रतन लाल सुबह ड्यूटी पर निकले। हर बार की तरह बच्चों ने पापा को बाय बोला था। ड्यूटी से जब भी घर लौटते, घर की जरूरतों के लिए सब्जी वगैरह साथ लाते थे। बच्चों के लिए कुछ न कुछ जरूर लेकर आते थे। वह हमेशा बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करते थे। रविवार से ही मौजपुर, जाफराबाद और अन्य इलाकों में भड़की हिंसा के बारे में परिवार को रतन लाल ने जानकारी दी थी। सोमवार को जब वह ड्यूटी पर गए तो पत्नी ने उनकी खैरियत जानने के लिए फोन किया। तब सब कुछ ठीक था। दोपहर बाद जैसे ही टीवी पर हैडलाइन देखी, रतन की पत्नी परेशान हो गई। उन्होंने पति को फोन मिलाया। रिंग जाती रही। उसके बाद बच्चे बेचैन हो गए। कुछ ही समय में पुष्टि हुई कि रतन लाल अब इस दुनिया में नहीं रहे। हम शहीद रतन लाल को श्रद्धांजलि देते हैं और एक और सुरक्षा कर्मी अपनी ड्यूटी निभाते हुए शहीद हो गया।

-अनिल नरेन्द्र

सड़क से गली- मोहल्लों तक हिंसा

देश में एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर अहमदाबाद और आगरा होते हुए सोमवार रात को दिल्ली पहुंचे, वहीं दूसरी तरफ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की आग एक बार दोबारा से दिल्ली के उत्तर-पूर्व जिले में फफक उठी। यह कहना गलत नहीं होगा कि सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट अब क्रिमिनल एंड आर्म्स (सीएए) में तब्दील हो चुका है। लेकिन इस बार आमना-सामना सीएए विरोधियों व समर्थकों के बीच है। दिल्ली में सोमवार को भड़की हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस के एक हवलदार रतन लाल शहीद हो गए। भीड़ द्वारा मौजपुर और गोकुलपुरी में किए गए पथराव व आगजनी में हैड कांस्टेबल रतन लाल शहीद हो गए। जबकि शाहदरा जिले के डीएसपी (उपायुक्त) अमित शर्मा पथराव में जख्मी हो गए। वहीं दंगाइयों की पत्थरबाजी में आईबी कांस्टेबल अंकित शर्मा की भी मृत्यु हो गई। इसके अलावा 60 से ज्यादा अन्य पुलिस कर्मी घायल हो गए। 20 अन्य लोगों जिनमें प्रदर्शनकारी और अन्य नागरिक शामिल हैं, की मौत की खबर है। मरने वालों की संख्या अब 22 हो गई है। नागरिकता कानून के विरोध में पूर्वी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में हुई हिंसा को पुलिस सुनियोजित बता रही है। पुलिस के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सोमवार को भारत दौरे पर आ रहे थे। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की छवि विश्व पटल पर खराब करने के इरादे से इस पूरी हिंसा की एक क्रिप्ट लिखी गई। इसका माहौल गुरुवार रात से ही बनना शुरू हो गया था। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक शाहीन बाग में काफी दिनों से सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकार लोगों से बात कर रहे थे। ऐसे में वहां शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन की इमेज बनाए रखने के लिए दूसरी जगहों पर हिंसक प्रदर्शन की पटकथा लिखी गई। स्पेशल ब्रांच सूत्रों की ओर से दावा किया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को लेकर पहले से ही अंदेशा जाहिर किया गया था कि माहौल को जानबूझ कर खराब किया जा सकता है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस हिंसक घटना के पीछे ऐसी बाहरी शक्तियां शामिल हो सकती हैं। इसके लिए कम उम्र के युवाओं को मोहरा बनाया गया। करावल नगर रोड स्थित शेरपुर चौक पर सोमवार सुबह से ही बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हो गए थे। एक तरफ सीएए के विरोध में लोग अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे, तो दूसरी तरफ समर्थन में लोग लामबंद थे। डीसीपी नॉर्थ-ईस्ट वेदप्रकाश सूर्या की ओर से कहा गया था कि वह दोनों पक्षों से बात कर रहे हैं। उन्हें प्रदर्शन नहीं करने को लेकर समझाया जा रहा है। हालांकि नतीजा एकदम उलट हुआ। लोग माने नहीं और आमने-सामने आ गए। इससे भी भयंकर हालात मौजपुर में देखने को मिले। लगभग 50 मीटर की दूरी पर दोनों गुटों के लोग नारेबाजी करते रहे। न केवल उपद्रवियों ने पुलिस के सामने तलवारें लहराईं बल्कि पुलिस के ऊपर पथराव भी कर दिया। यह सिलसिला रुक-रुक कर चलता रहा। पुलिस इन उपद्रवियों को काबू कर पाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई। स्थिति यह थी कि मौजपुर में घरों से लोग पत्थरबाजी कर रहे थे। दूसरी ओर से भी पथराव हुआ तो घरों के शीशे टूट गए। मौजपुर में उपद्रवियों ने बड़ी संख्या में दुकानों में तोड़फोड़ भी की। यही हालत चांद बाग में हुई। विरोध और समर्थक पक्ष आपस में भिड़ गए और दोनों तरफ से पथराव शुरू हो गया। इसी दौरान करीब 155 बजे दंगाइयों ने भजनपुरा स्थित पेट्रोल पंप पर पहले तो गाड़ियों में आग लगाई और फिर पेट्रोल पंप को भी पूंक डाला। उधर सूचना मिलते ही जब दमकल की गाड़ियां मौके पर पहुंचीं तो दंगाइयों ने दमकल की दो गाड़ियों को घेर लिया और एक गाड़ी में जमकर तोड़फोड़ की। वहीं दमकल कर्मियों के साथ हाथापाई भी की। यही हालत बाबरपुर में भी रही। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण करने के लिए कई बार आंसू गैस के गोले भी छोड़े। बहुत से उपद्रवियों में कुछ ऐसे थे जो पहचान छिपाने के इरादे से मुंह को रूमाल से कवर किए हुए थे। गुंडागर्दी का आलम यह कि वह सड़क पर हाथों में लाठी-डंडे लेकर दिनभर उत्पात मचाते रहे। जाफराबाद में पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे तो भीड़ पहले के मुकाबले ज्यादा उग्र हो गई। उपद्रवी लोगों ने दूसरे पक्ष के लोगों को पीटना शुरू कर दिया। करीब एक घंटे तक वह लोगों के घरों में पथराव करते रहे। यह सब पुलिस देखती रही। देर रात हिंसा सड़क से गली-मोहल्लों तक चली गई। भजनपुरा की गलियों के अंदर भी घरों में आग लगा दी गई। किसी मुद्दे पर समर्थन या विरोध को सुलझाने का रास्ता अगर बातचीत हो, तब किसी समाधान तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन दोनों पक्ष न केवल आमने-सामने आ गए, बल्कि उनके बीच टकराव शुरू हो गया। दोनों तरफ से हुई पत्थरबाजी और आगजनी ने दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए। सवाल है कि हिंसा में लिप्त होने वाले दोनों ही समूहों के लोग क्या यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अगर समय रहते इस टकराव को खत्म नहीं किया गया तो यह किस खतरनाक रास्ते की ओर बढ़ सकता है? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि विरोध और समर्थन में खड़े लोग अगर टकराव और हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ते हैं तो इसका परिणाम कुछ भी अच्छा नहीं हो सकता। पुलिस और राजनीतिक दलों को सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिस तरह कुछ नेताओं ने चेतावनी के लहजे में लोगों के बीच हिंसा और आक्रोश को भड़काने वाली भाषा का इस्तेमाल किया। उन पर रोक लगाई जाए और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। अगर दोनों पक्षों में कोई आशंका खड़ी हो रही है तो उस पर बातचीत के जरिये समाधान की राह तलाशना। अगर केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है तो इसमें दिल्ली सरकार को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। मामले को डिफ्यूज करना पहली प्राथमिकता है।

Wednesday, 26 February 2020

जीएसटी 21वीं सदी का सबसे बड़ा पागलपन

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने महत्वपूर्ण सुधार माने जा रहे माल एवं सेवाकर (जीएसटी) को गत बुधवार को 21वीं सदी का सबसे बड़ा पागलपन बताया। उन्होंने कहा कि देश को 2030 तक महाशक्ति बनने के लिए सालाना 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ आगे बढ़ना होगा। स्वामी ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को उनके कार्यकाल में किए गए सुधारों के लिए देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भारत रत्न दिए जाने की मांग भी की। स्वामी यहां प्रज्ञा भारती द्वाराöभारत वर्ष 2030 तक एक आर्थिक महाशक्ति विषय पर आयोजित सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि समय-समय पर हालांकि देश ने आठ प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर हासिल की है लेकिन कांग्रेस नेता द्वारा आगे बढ़ाए गए सुधारों में आगे कोई बेहतरी नहीं दिखाई। स्वामी ने कहा कि ऐसे में हम उस 3.7 प्रतिशत (निवेश इस्तेमाल के लिए जरूरी दक्षता कारक) को कैसे हासिल करेंगे? इसके लिए एक तो हमें जरूरत है भ्रष्टाचार से लड़ने की और दूसरे निवेश करने वालों को पुरस्कृत करने की। आप उन्हें (निवेशकों) को आयकर और जीएसटी, जोकि 21वीं सदी का सबसे बड़ा पागलपन है। इसके जरिये आतंकित मत कीजिए। राज्यसभा सांसद ने कहा कि जीएसटी इतना जटिल है कि कोई भी नहीं समझ पा रहा है कि कहां कौन-सा फॉर्म भरना है और वह चाहते हैं कि इसे कम्प्यूटर पर अपलोड किया जाए। स्वामी ने निवेश के मामले में दक्षता स्तर में सुधार के मुद्दे पर कहाöकोई राजस्थान, बाड़मेर से आया... उसने कहा कि हमारे पास बिजली नहीं है, हम कैसे इसे अपलोड करें? इस पर मैंने उससे कहा कि इसे अपने माथे पर अपलोड कर लो और प्रधानमंत्री के पास जाकर उन्हें कहो। उन्होंने कहा कि भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए अगले 10 साल तक हर साल 10 प्रतिशत की दर की आर्थिक वृद्धि हासिल करनी होगी। उन्होंने कहा कि यह गति बनी रहती है तो हम 50 साल में चीन को पीछे छोड़ देंगे और अमेरिका को पहले स्थान के लिए चुनौती देने की स्थिति में आ जाएंगे।

-अनिल नरेन्द्र

डोनाल्ड ट्रंप का अहमदाबाद में अभूतपूर्व स्वागत

अमेरिकी राष्ट्रपति सोमवार 1137 बजे अपनी पत्नी मेलानिया, पुत्री इवांका और दामाद जेरेड कुश्नर को लेकर एयरफोर्स वन विमान से सरदार बल्लभ भाई पटेल हवाई अड्डे पर अपनी ऐतिहासिक यात्रा के लिए उतरे। राष्ट्रपति ट्रंप ने काले रंग का सूट और पीले रंग की टाई पहन रखी थी। हवाई अड्डे पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप और उनके परिवार का शानदार स्वागत किया। ट्रंप के विमान से बाहर आने के बाद मोदी उनसे गले मिले और मेलानिया का भी अभिवादन किया। 22 किलोमीटर के रोड शो के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के काफिले का सड़कों के किनारे खड़े लोगों ने जमकर स्वागत किया। इस दौरान मार्ग में 50 स्टेज बनाए गए थे जहां देश के विभिन्न हिस्सों से आए नर्तकों एवं गायकों ने प्रस्तुति दी। हवाई अड्डे से ट्रंप दम्पति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़े महत्वपूर्ण स्थल साबरमती आश्रण पहुंचे। वहां पहुंचने पर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप और पत्नी को आश्रम का भ्रमण कराया। मोदी ने ट्रंप और उनकी पत्नी को हृदय पुंज भी दिखाया जहां गांधी जी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी रहती थीं। वहां से रवाना होने से पहले ट्रंप ने आश्रम में आंगतुक पुस्तिका में लिखाöमेरे अच्छे मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस शानदार यात्रा के लिए आपका धन्यवाद। वहां से ट्रंप का काफिला अहमदाबाद में नए बने मोटेरा स्टेडियम की ओर रवाना हो गए। 22 किलोमीटर की इस यात्रा में ट्रंप का स्वागत करने लाखों लोग मौजूद थे। मोटेरा में नवनिर्मित क्रिकेट स्टेडियम में नमस्ते ट्रंप समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने एक लाख से अधिक लोग जमा हुए। ट्रंप का भाषण दोपहर 130 बजे के बाद शुरू होना था, लेकिन पूरे राज्य से स्टेडियम में सुबह आठ बजे से ही लोग पहुंचने लगे। वाहनों के लिए पार्किंग स्टेडियम से दूर होने की वजह से सुबह से ही लोगों का सैलाब स्टेडियम की तरफ उमड़ता दिखाई दे रहा था। बड़ी संख्या में लोग बसों से यहां पहुंचे। स्टेडियम में कई लोग मोदी और ट्रंप की तस्वीर वाले मास्क पहने थे। सबके सिर पर स्पेशल टोपी थी जिसमें ट्रंप और मोदी की तस्वीर छपी हुई थी। मोटेरा स्टेडियम में ट्रंप ने नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में 27 मिनट का संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि हम आठ हजार मील की दूरी तय करने के बाद यह बताने आए हैं कि अमेरिकियों को भारत से प्यार है। पांच महीने पहले अमेरिका ने आपके महान प्रधानमंत्री का स्वागत किया था। आज भारत ने हमारा दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम में स्वागत किया है। खूबसूरत और नए मोटेरा स्टेडियम में आकर संबोधित करना मेरे लिए गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि भारत का हमेशा हमारे दिल में विशेष स्थान रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जीवन इस महान देश की यात्रा को भी रेखांकित करता है। वह उनके पिता के साथ चाय बेचते थे। वह इसी शहर के एक कैफेटिरिया में काम करते थे। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक चुनाव में वह जीतकर आए हैं। आप सिर्प गुजरात के लिए गर्व नहीं हैं, बल्कि आप इस बात के प्रतीक हैं कि भारतीय जो चाहें, वैसे उसे पूरा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की कहानी असाधारण तरीके से तरक्की करने की है। यही भारत की भी कहानी है। भारत दुनियाभर में इंसानियत के लिए एक उम्मीद है। यह दुनिया का सबसे नायाब देश है। मोटेरा स्टेडियम को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहाöलोगों को हिन्दी फिल्में देखने और उनके माध्यम से भारतीय संस्कृति को समझने में बहुत मजा आता है। उन्होंने करीब एक लाख लोगों के भरे स्टेडियम में अपने भाषण में कहा कि इस देश में कौशल और रचनात्मकता के गढ़ माने जाने वाली बॉलीवुड से करीब एक साल में लगभग 2000 फिल्में बनती हैं। ट्रंप ने कहाöपूरी दुनिया में लोग भांगड़ा, संगीत और नृत्य, रोमांस और ड्रामा तथा डीडीएलजे (दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे) एवं शोले जैसी शानदार फिल्मों का आनंद उठाते हैं। अपनी पहली यात्रा से पूर्व उन्होंने एक वीडियो साझा किया था जिसमें उनके चेहरे पर भारत की लोकप्रिय फिल्म बाहुबली के शीर्ष किरदार की तस्वीर लगा दी गई थी। उन्हें 81 सैकेंड की क्लिप के साथ शनिवार को ट्वीट कियाöभारत में अपने काबिल दोस्तों के साथ मुलाकात को लेकर बहुत उम्मीदें लगाए हुए हूं। इससे पहले ट्रंप ने आयुष्मान खुराना की नई फिल्म शुभ मंगल ज्यादा सावधान की भी तारीफ की। फिल्म के पर्दे पर समलैंगिक प्रेम को दर्शाने वाली इस फिल्म की तारीफ करते हुए ट्रंप ने पिछले हफ्ते कहा थाöग्रेट। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी 2015 में भारत यात्रा के दौरान डीडीएलजे का जिक्र किया था और उन्होंने शाहरुख खान का एक प्रसिद्ध संवाद सेनोरिटा, बड़े-बड़े देशों में... भी बोला था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के पहले दिन उनके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कैमिस्ट्री देखने को मिली। दोनों नेताओं की पांच महीने पहले ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम में मुलाकात हुई थी और इस बार अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में हुई है। जब ट्रंप का विमान अहमदाबाद पहुंचा तो वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर उनका स्वागत किया और गले मिले। ट्रंप और फर्स्ट लेडी मेलानिया तीन घंटे तक अहमदाबाद रहे। इन तीन घंटों में मोदी-ट्रंप सात बार गले मिले और नौ बार हाथ मिलाया। अहमदाबाद उतरते ही मोदी-ट्रंप पहले गले मिले और फिर हाथ मिलाया। उसके बाद साबरमती आश्रम में न तो गले मिले और न हाथ मिलाया इसके बाद मोदी-ट्रंप अलग-अलग मोटेरा स्टेडियम में आयोजित नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में पहुंचे। इस कार्यक्रम के दौरान मोदी-ट्रंप छह बार गले मिले, पांच बार हाथ मिलाया। उसके बाद ट्रंप और उनके तमाम साथी अहमदाबाद एयरपोर्ट पहुंचे, जहां से वह आगरा के लिए निकल गए।

Tuesday, 25 February 2020

सोनभद्र में सोना और यूरेनियम की संभावना

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की हरदी पहाड़ियों से खबर आई थी कि वहां 3000 टन सोना होने की संभावना है। इससे सारे देश में खुशी की लहर दौड़ गई। पर यह खुशी जल्द ही थोड़ी निराशा में बदल गई जब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने कहा कि उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में करीब 3000 टन सोना मिलने की कोई सूचना नहीं है जैसा कि उत्तर प्रदेश खनन अधिकारी ने दावा किया था। जीएसआई के महानिदेशक एम. श्रीधर ने कहा है कि जीएसआई की ओर से इस तरह का डाटा किसी को नहीं दिया जाता। सचिव एवं निदेशक भूतत्व एवं खनिजकर्मी डॉ. रोशन जैकब ने बताया कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण उत्तर क्षेत्र, लखनऊ जनपद सोनभद्र के सोना पहाड़ी क्षेत्र में महाकौशल समूह की फिलाइट चट्टानों के क्वाटर्ज वैन के अंदर लगभग 52806.25 टन अयस्क संसाधन का आंकलन किया गया है, जिसमें स्वर्ण धातु की मात्रा 3.03 ग्राम जो तकरीबन 160 किलो सोने का भंडार होगा। सोने के भंडार की खबर के बाद अब सोनभद्र में यूरेनियम मिलने की संभावना जताई जा रही है। इसके लिए सर्वे शुरू हो गया है। इसके मद्देनजर  मयोरपुर ब्लॉक स्थित कुदरी पहाड़ी पर सर्वे के लिए खुदाई शुरू कर दी गई है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की टीम हेलीकॉप्टर के माध्यम से एरोमैग्नेटिक सिस्टम के जरिये कुदरी का सर्वे तेजी से कर रही है। इसके अलावा यहां से सटे पड़ोसी राज्यों में भी इसका सर्वे हो रहा है। सर्वे में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि सोनभद्र जिले के कुदरी पहाड़ी क्षेत्र में कई टन यूरेनियम मिलने की उम्मीद है। पहाड़ी पर जीएसआई की टीम तीन स्थानों पर सैंपल के लिए खुदाई कर रही है। यूरेनियम कितनी गहराई पर है इसका पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए परमाणु ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की टीम लगी हुई है। सोनभद्र के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने बताया कि सर्वे टीम को सोने को अन्य टीमें खोजने में लगी हुई हैं। यूरेनियम का कुछ अंश मिला होगा, तभी सर्वे का कार्य तेजी से चल रहा है। अभी यह नहीं बताया जा सकता है कि कितना यूरेनियम मिल सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यूरेनियम जिस देश में होता है वह आर्थिक रूप से सुदृढ़ होता है। ऊर्जा की खपत जिस देश में ज्यादा होती है उसे विकसित माना जाता है। इसीलिए पेट्रोलियम पदार्थ के अलावा अन्य स्रोत पर ध्यान दिया जा रहा है। अगर यूरेनियम अधिक मात्रा में मिल गया तो इससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। देखें, खुदाई के क्या परिणाम निकलते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

क्या बजरंग बली आप पार्टी के नए प्रतीक बन गए हैं

क्या बजरंग बली देश के अंदर सियासत के नए प्रतीक बन गए हैं? क्या जिस तरह भगवान राम के इर्द-गिर्द राजनीतिक तानाबाना बुना गया उसी तरह अब हनुमान जी मुख्यधारा की राजनीति में चर्चा में रहेंगे? यह सवाल तब उठे जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान बजरंग बली छाए रहे। दिलचस्प बात तो यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने बहुमत के बावजूद बजरंग बली को आगे ले जाने की कोशिश की। दिल्ली में भले ही आम आदमी पार्टी (आप) अपनी काम की राजनीति के बूते फिर से धमाकेदार वापसी करने में सफल हुई लेकिन पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल एवं अन्य रणनीतिकार जानते हैं कि केवल काम की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति व मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती पेश नहीं की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि पार्टी भाजपा के उग्र हिन्दुत्व की काट की थ्यौरी अपनाए। माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी (आप) सॉफ्ट हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद की सीढ़ी चढ़कर देश में अपने विस्तार की योजना पर चल रही है। केजरीवाल व उनके अन्य रणनीतिकार जानते हैं कि देश की जनता धर्म व आस्था को लेकर बेहद संवेदनशील है और ऐसे में उसके दिल में जगह बनाने के लिए काम का मॉडल काफी नहीं है। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता की ओर से कहा गया है कि दिल्ली में हर महीने के पहले मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ अलग-अलग इलाकों में किया जाएगा। इसकी शुरुआत भी गत मंगलवार से शुरू हो गई है। इसके पीछे आम आदमी पार्टी के नेता तर्प दे रहे हैं कि बजरंग बली दिल्लीवासियों का संकट दूर करेंगे। चुनाव के दौरान भी अरविन्द केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त के रूप में पेश किया और कई टीवी इंटरव्यू में हनुमान चालीसा पढ़कर सुनाया। केजरीवाल व उनके अन्य रणनीतिकार जानते हैं कि देश की जनता धर्म व आस्था को लेकर बेहद संवेदनशील है और ऐसे में उसके दिल में जगह बनाने के लिए सिर्प काम का मॉडल काफी नहीं होगा। भाजपा की तर्ज पर ही आम आदमी पार्टी (आप) भी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए सॉफ्ट हिन्दुत्व का सहारा लेने की तैयारी में है, जिस तरह भाजपा ने राम के नाम पर सवार होकर धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति में अपने पैर जमाए वैसे ही आम आदमी पार्टी (आप) हनुमान जी की भक्ति व शक्ति तथा राष्ट्रवाद के सहारे अपनी महत्वाकांक्षाओं को `पर' देने की रणनीति पर काम कर रही है। आम आदमी पार्टी को भरोसा है कि सॉफ्ट हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सवार होकर आने वाले दिनों में न केवल राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह मजबूत की जा सकती है बल्कि इसके द्वारा भाजपा के हिन्दुत्व की धार को भी पुंद किया जा सकता है। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता केजरीवाल ने चुनाव के दौरान व चुनाव के बाद अपने इन इरादों का संकेत दे दिया है। हनुमान जी की भक्ति व वंदे मातरम तथा भारत माता की जय के नारे आम आदमी पार्टी (आप) की आने वाली राजनीति का ट्रेलर-भर है। चूंकि अब राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें भाजपा का सामना करना है जिसके लिए जरूरी है कि भाजपा की कमजोर नस पर हाथ रखा जाए और यह तभी संभव है जब सॉफ्ट हिन्दुत्व का सहारा लें।

Sunday, 23 February 2020

जर्मनी के हुक्का बारों में गोलीबारी, फ्रांस में इमामों पर प्रतिबंध

पिछले कुछ समय से यूरोप अलकायदा और उसके समर्थकों के निशान पर है। आए दिन खबर आती है कि यूरोप के फलां शहर में आतंकी हमला हुआ है। हाल ही में लंदन में आतंकी हमला हुआ था। अब खबर आई है कि जर्मनी के हनाऊ शहर में हुक्का बारों को निशाना बनाकर की गई गोलीबारी में नौ लोगों की मौत हो गई जिसके बाद रातभर हमलावरों की तलाश की गई। जर्मनी में हुई दो गोलीबारी की घटनाओं के संदिग्ध बंदूकधारी की मौत हो गई है। गौरतलब है कि बुधवार शाम को स्थानीय समयानुसार रात 10 बजे के आसपास हनाऊ में दो अलग-अलग स्थानों पर गोलीबारी की घटनाएं हुईं। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार एक गहरे रंग का वाहन पहले अपराध स्थल से भाग गया। पहला हमला हनाऊ शहर के केंद्र में मिड-नाइट हुक्का बार में हुआ। वहीं दूसरा हमला एरिना बार के पास हुआ। पुलिस ने कहा कि एक वाहन को पहले हमले के स्थान पर लगभग 10 बजे छोड़ा गया। साथ ही दूसरी जगह पर एक और शूटिंग की वारदात हुई। पुलिस ने बयान में पीड़ितों पर कोई जानकारी नहीं दी और कहा कि यह हमला क्यों किया गया। इसको लेकर कोई जानकारी नहीं है। हनाऊ के मेयर क्लास कमिंसकी ने बाइल्ड अखबार को बताया कि यह एक भयानक शाम थी जो निश्चित रूप से हमें लंबे समय तक परेशान करेगी और हम दुख के साथ इसे याद करेंगे। बिल्ड अखबार ने कहा कि एक बंदूकधारी ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई और लोगों पर गोलियां चला दीं। उधर एहतियाती कदम उठाते हुए फ्रांस सरकार ने विदेशी इमाम और मुस्लिम शिक्षकों को देश में आने पर रोक लगा दी है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने बुधवार को कहा कि यह फैसला कट्टरपंथ और अलगाववाद रोकने के लिए लिया है। साथ ही स्पष्ट किया कि फ्रांस में मौजूद सभी इमामों को फ्रेंच सीखना अनिवार्य होगा। उन्होंने आगाह किया कि फ्रांस में रहने वालों को कानून का सख्ती से पालन करना होगा। राष्ट्रपति मैक्रों ने पूर्वी फ्रांस के मुस्लिम बाहुल्य मुलहाउस शहर का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि हम विदेशी इमामों और मुस्लिम शिक्षकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। इनकी वजह से देश में कट्टरपंथ और अलगाववाद का खतरा बढ़ा है। इसके अलावा विदेशी दखलंदाजी भी नजर आती है। दिक्कत तब होती है जब मजहब के नाम पर कुछ लोग खुद को अलग समझने लगते हैं और देश के कानून का सम्मान नहीं करते। पिछले साल फ्रांस की कुल जनसंख्या करीब 6.7 करोड़ थी। इसमें करीब 65 लाख मुस्लिम हैं। फ्रांस ने वर्ष 1977 में चार देशों से एक समझौता किया था, जिसके तहत अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को और तुर्की फ्रांस में इमाम, मुस्लिम शिक्षक भेज सकते थे। हर साल 300 इमाम करीब 80 हजार छात्रों को शिक्षा देने फ्रांस आते हैं। वर्ष 2020 के बाद यह समझौता खत्म हो जाएगा। सरकार ने आदेश दिया है कि इमामों को स्थानीय भाषा सिखाएं और किसी पर इस्लामिक विचार न थोपे जाएं।

-अनिल नरेन्द्र

राकेश मारिया के सनसनीखेज खुलासे

मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर राकेश मारिया की पुस्तक से सियासत गरम हो गई है। मारिया ने अपनी पुस्तक `लेट मी से इट नाऊ' में सनसनीखेज तथ्य उजागर किया है कि पाक समर्थित आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा ने मुंबई 26/11 हमले को हिन्दू आतंकवाद के रूप में पेश करने की साजिश रची थी। पुस्तक के अनुसार कसाब को हिन्दू आतंकवादी दिखाने की कोशिश की थी और इसी कारण अजमल कसाब के हाथ में हिन्दू कलावा पहनाया गया था और बाकी सभी हमलावरों को हिन्दू साबित करने के लिए उनके साथ फर्जी पहचान पत्र भी मौजूद थे। किताब में मारिया ने 26/11 मुंबई हमले में एकमात्र पकड़े गए जिन्दा आतंकवादी अजमल कसाब के संबंध में बड़ा खुलासा करते हुए लिखा है कि यदि कसाब जिन्दा नहीं पकड़ा जाता तो यही लगता कि यह हमला हिन्दू आतंकवादियों ने किया है क्योंकि सभी आतंकियों के पास हिन्दू नाम के फर्जी पहचान पत्र थे। पुस्तक के अनुसार लश्कर ने पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब के हाथ में कलावा बांधकर भेजा था और उसके पास बेंगलुरु निवासी समीर चौधरी के नाम से पहचान पत्र भी था। साजिश के मुताबिक जवाबी कार्रवाई में कसाब मारा जता तो इसे आसानी से हिन्दू आतंक का नाम दे दिया जाता। लेकिन मुंबई हमले का सबसे दुखद पहलू यह है कि यहां के कुछ लोग भी इस षड्यंत्र का हिस्सा थे, जिनकी कोशिश थी कि मुंबई हमले के तार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जोड़ दिए जाएं। इस कड़ी में एक उर्दू पत्रकार ने गलत तथ्यों के आधार पर पूरी पुस्तक लिख डाली थी जिसका विमोचन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने किया था। इस तरह की साजिश न तो पहली थी और न ही अंतिम। भारत में एक वर्ग ऐसा है जो पाकिस्तान के भारत विरोधी षड्यंत्र का हिस्सा बन जाता है। यह वर्ग आरएसएस का विरोधी है और इस संगठन के बहुप्रचारित कथन को झूठा सिद्ध करने पर आमादा है कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता। देश में दो-तीन आतंकी वारदातें हुईं, जिनसे हिन्दू संगठनों के नाम जुड़े हैं। हालांकि एक मामले से जुड़े आरोपियों पर न्यायिक कार्रवाई अभी चल रही है, बाकी मामलों के सभी अभियुक्त बरी कर दिए गए हैं। मारिया के इस रहस्योद्घाटन के बाद महाराष्ट्र प्रदेश महासचिव व विधायक अतुल मातखलकर ने मामले की दोबारा जांच करने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि 26/11 की जांच के लिए पूर्व सचिव राम प्रधान समिति की रिपोर्ट को तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने विधानसभा सदन में पूरी तरह पेश नहीं किया था। उस समय कांग्रेस के नेताओं ने कहा था कि 26/11 आतंकी हमले में शहीद तत्कालीन एटीएस चीफ हेमंत करकरे, पुलिस अधिकारी अशोक कामटे को अजमल कसाब ने नहीं मारा था। उस बीच 26/11 हमले में सरकारी वकील रहे उज्जवल निकम ने कहा कि मुंबई हमले में मारे गए 10 आतंकियों में से नौ के पास हिन्दू आईडी थी। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने मुंबई अपराध जगत से जुड़ा एक और बड़ा खुलासा किया है। यह कैसेट किंग गुलशन कुमार की हत्या से संबंधित है। मारिया ने अपनी आत्मकथा पुस्तक में लिखा है कि उन्हें पहले ही खबरी से टिप मिल गई थी कि शिव मंदिर में गुलशन कुमार की हत्या होने वाली है। 26/11 हमले की जांच के लिए गठित राम प्रधान समिति को स्थानीय कनेक्शन के सुराग मिले थे, जिन्होंने आतंकियों की मदद की थी। आतंकी हमले के 10 साल बाद 26 नवम्बर 2018 को एक इंटरव्यू में राम प्रधान ने स्वीकार किया था कि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने स्थानीय कनेक्शन का रिपोर्ट में जिक्र करने से रोका था, इसलिए रिपोर्ट में स्थानीय कनेक्शन का खुलासा नहीं किया गया। राकेश मारिया के सनसनीखेज खुलासों में कितनी सच्चाई है यह कहना मुश्किल है। कुछ लोगों का मानना है कि अपनी किताब का प्रचार करने के लिए यह सनसनीखेज खुलासे किए गए हैं।

Saturday, 22 February 2020

भाजपा विधायक के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज

उत्तर प्रदेश के भदोही से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी सहित सात लोगों के खिलाफ बुधवार को सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज किया गया। महिला वाराणसी में रहने वाली है और उसने कुछ दिनों पहले पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचकर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले में महिला ने विधायक समेत सात लोगों को आरोपी बनाया है। वहीं आरोपी विधायक ने इस पूरे मामले को सियासी साजिश करार देते हुए कहा कि आरोप सच साबित हुए तो वह सपरिवार फांसी पर लटकने को तैयार हैं। अधीक्षक राम बंदन सिंह ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि एक महिला ने गत 10 फरवरी को तहरीर देकर आरोप लगाया था कि उसके साथ भाजपा विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी और उनके साथियों संदीप, सचिन, चंद्रभूषण, दीपक, प्रकाश और नीतीश ने एक होटल में एक महीने तक बारी-बारी से बलात्कार किया। इसके अलावा एक बार जब वह गर्भवती हुई तो जबरदस्ती उसका गर्भपात करा दिया गया। भदोही पुलिस ने आईपीसी 376डी, 313, 504 और 506 के तहत यह मुकदमा दर्ज किया है। उन्होंने बताया कि मामले की जांच अपर पुलिस अधीक्षक रविन्द्र वर्मा को सौंपी गई थी। महिला के बयान और होटल सहित तमाम बिन्दुओं पर जांच के बाद बुधवार को भाजपा विधायक समेत सातों अभियुक्तों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया। सिंह ने बताया कि महिला का मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान कराने के साथ मेडिकल जांच के बाद आगे की कार्रवाई होगी। अभी फिलहाल गिरफ्तारी नहीं होगी। बता दें कि इस तरह का प्रकरण सामने आने से भदोही जिले की सियासत गरमा गई है। इस मामले के बाद भदोही और ज्ञानपुर के विधायक के बीच सियासी अदावत तेज हो गई है। वाराणसी की लोहटिया निवासी एक महिला ने पुलिस अधीक्षक आरबी सिंह को दिए एक प्रार्थना पत्र में आरोप लगाया है कि भदोही के भाजपा विधायक रविन्द्रनाथ त्रिपाठी के भतीजे संदीप से छह साल पहले मुंबई से लौटते समय उसकी मुलाकात ट्रेन में हुई थी। मामला गंभीर है, पुलिस तहकीकात कर रही है। तहकीकात करने के बाद आगे की कार्रवाई होगी।

-अनिल नरेन्द्र

गांधी और गोडसे एक साथ नहीं चल सकते

अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग नीतियों वाली पार्टियों के लिए लुभाने वाले नारे गढ़ने वाले चुनावी प्रबंधक प्रशांत किशोर की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आजकल ठन गई है। जदयू से निकाले जाने के 20 दिनों के बाद प्रशांत किशोर (पीके) ने जदयू व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पितातुल्य माना, फिर तुरन्त बाद उनको भाजपा के पीछे-पीछे चलने वाला कह दिया। पीके ने नीतीश कुमार पर मंगलवार को कटाक्ष करते हुए कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उपदेशों की बात करने वाले नीतीश कुमार नाथूराम गोडसे की विचारधारा से सहमत लोगों के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं? प्रशांत ने पटना में पत्रकारों को संबोधित करते हुए स्वीकार किया कि वह नीतीश को कई मायनों में पितातुल्य ही मानते हैं। उन्होंने कहा कि जदयू में उन्हें रखे जाने और पार्टी से निकाले जाने का नीतीश ने जो निर्णय किया, वह उसे हृदय से स्वीकार करते हैं और उनके प्रति आदर आगे भी बना रहेगा। जदयू प्रमुख के साथ अपने मतभेदों का जिक्र करते हुए पीके ने कहा कि नीतीश से जब भी बातें होती थीं वह कहते थे कि महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया की बताई हुई बातों को कभी नहीं छोड़ सकते। उन्होंने कहा कि मेरे मन में यह दुविधा रही है कि आप जब पूरे बिहार में गांधी जी की बताई बातों को लेकर शिलापट लगा रहे और यहां के बच्चों को गांधी की बातों से अवगत करा रहे हैं, उसी समय आप गोडसे के साथ खड़े हुए लोग अथवा विचारधारा को सहमति देने वालों के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं? दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। उन्होंने नीतीश की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यदि आप भाजपा के साथ रहना चाहते हैं तो उसमें हमें दिक्कत नहीं है पर मतभेद का पहला विषय है कि गांधी और गोडसे साथ नहीं चल सकते। पार्टी के नेता के तौर पर आपको बताना पड़ेगा कि हम किस ओर खड़े हैं। दूसरी मतभेद की वजह नीतीश के गठबंधन (राजग) में स्थान को लेकर है। उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ नीतीश का संबंध पिछले 15 सालों से है पर 2004 में राजग में उनका जो स्थान था, उसमें आज जमीन-आसमान का अंतर है। नीतीश को बिहार की शान करार देते हुए उन्होंने कहा कि आज 16 सांसदों वाले दल के नेता को जब गुजरात का कोई नेता (अमित शाह) यह बताते हैं कि आप ही राजग के बिहार में नेता बने रहेंगे, तो उन्हें यह बात अच्छी नहीं  लगती। बिहार का मुख्यमंत्री यहां के 10 करोड़ लोगों का नेता है और उनका सम्मान, शान और आन है। वह कोई मैनेजर नहीं हैं कि किसी दूसरे दल का नेता उन्हें डिप्यूट करे कि यह हमारे नेता होंगे। यह अधिकार केवल और केवल बिहार की जनता का है। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या गठबंधन दो सीट अधिक पाने या मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए है? नीतीश को किसी गठबंधन की जरूरत नहीं। पीके ने कहा कि अब लोग यह जानना चाहते हैं कि अगले 10 साल में आप बिहार के लिए क्या कीजिएगा? लालू के शासनकाल की तुलना में बिहार कहां खड़ा है? प्रशांत किशोर ने पहली बार नीतीश की नीतियों और उनकी सरकार के कामकाज पर सार्वजनिक टिप्पणी की तो जदयू के प्रमुख नेताओं ने उन पर जोरदार हमला बोल दिया। जदयू और भाजपा के राज्यसभा में सांसद आरपी सिंह ने कहा कि धरती पर किसी की औकात नहीं है, जो नीतीश कुमार को पिछलग्गू बना सके। ऐसे किसी ऐरे-गेरे नत्थू खैरे से नीतीश को सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है। हमारी पार्टी गांधी, लोहिया, जेपी और अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलती है। बिहार किसी भी क्षेत्र में पिछड़ा नहीं है। जनता जानती है कि नीतीश कुमार ने बिहार के लिए कितना काम किया है? यह तो हद है। नैतिकता के खिलाफ है। यह कौन-सा तरीका हुआ कि कोई सिर्प अपनी सुविधा से वह कुछ करे, जिसमें फायदा दिखे, उसका श्रेय ले और जब कहीं और ज्यादा की गुंजाइश लगे तो पहले वाले को बेवजह कठघरे में खड़ा कर दे? बिहार के उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जो व्यक्ति (प्रशांत किशोर) 2014 में नरेंद्र मोदी (नमो) की जीत के लिए काम करने का डंका पीट चुका हो, उसे बताना चाहिए तब मोदी उन्हें गोडसेवादी क्यों नहीं लगे? पिछले ढाई साल से नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं लेकिन चुनाव से आठ महीने पहले वह गोडसेवादी क्यों लगने लगे? अजीब पाखंड है कि कोई किसी को पितातुल्य बताए और पिता के लिए पिछलग्गू जैसा घटिया शब्द चुने। इवेंट मैनेजमेंट करने वालों की अपनी विचारधारा नहीं होती। लेकिन वह अपने प्रायोजक की विचारधारा और भाषा तुरन्त अपनाने में माहिर होते हैं। पीके ने साफ किया कि वह कोई राजनीतिक दल नहीं बनाएंगे। गुरुवार को `बात बिहार की' नाम से कैंपेन शुरू करने का ऐलान भी किया। इस यात्रा के दौरान अगले 100 दिन तक एक करोड़ से अधिक ऐसे युवाओं से मिलेंगे जो नए नेतृत्व पर यकीन रखते हैं।

Friday, 21 February 2020

महिलाएं किसी से कम नहीं, सरकार बदले अपनी दकियानूसी सोच

आज के दौर में महिलाओं ने हर स्तर पर यह साबित कर दिया है कि वह घर से लेकर बाहर तक किसी भी मोर्चे पर जटिल से जटिल हालात में काम करने में सक्षम हैं। उनकी क्षमताओं को कठघरे में खड़ा करना अपने आप में बेहद अफसोसजनक है। अब वह भी सेना में किसी सैन्य टुकड़ी की कमान संभाल सकेंगी। सोमवार को यह दूरगामी ऐतिहासिक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया। केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को लेकर केंद्र को दकियानूसी मानसिकता बदलनी होगी। कमान नियुक्तियों में महिलाओं को शामिल न करना गैर-कानूनी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि महिला अफसरों को सेना के 10 विभागों में स्थायी कमिशन दिया जाए। अदालत ने इसे लेकर केंद्र की पिछली 25 फरवरी को स्थायी कमिशन नीति को मंजूरी दी। हालांकि पीठ ने साफ कहा, चूंकि जंगी भूमिका के लिए महिला अफसरों की तैनाती नीतिगत मामला है, इसे सरकार तय करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहाöदो सितम्बर 2011 को हमने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, फिर भी केंद्र ने फैसले को लागू नहीं किया। हाई कोर्ट के फैसले पर अमल नहीं करने की कोई वजह या औचित्य नहीं है। महिलाओं की शारीरिक क्षमताओं पर केंद्र के विचारों को कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि 70 साल बाद भी सरकार ने अपने नजरिये और मानसिकता में बदलाव नहीं किया। सेना में सच्ची समानता लानी होगी। असल में 30 प्रतिशत महिलाएं युद्ध क्षेत्रों में तैनात हैं। स्थायी कमिशन से इंकार करना पूर्वाग्रह से ग्रस्त और पुरातनपंथी है। महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं, उनकी सहायक नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि महिलाएं अपने पुरुष अधिकारियों के साथ कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। महिला अधिकारी अपने पराक्रम में कहीं से भी कम नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को शारीरिक आधार पर परमानेंट कमिशन न देना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। स्थायी कमिशन से लेकर यूनिट और कमान के नेतृत्व यानि कमांड पोस्टिंग को लेकर सरकार का रुख बेहद नकारात्मक था और अदालत में जिस तरह की दलीलें दी गईं, वह न केवल बेहद उथली थी, बल्कि बराबरी के मूल्यों पर आधारित एक आधुनिक समाज की परिकल्पना के खिलाफ भी। जहां खुद सरकार को समाज में फैली महिलाओं के प्रति पिछड़ी और सामंती धारणाओं को दूर कर लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ने देना चाहिए था। वहां उसने अदालत में महिलाओं की क्षमता को कठघरे में खड़ा किया और यहां तक कि महिला के विरुद्ध औसत पुरुषों की मानसिकता में बैठी पुंठा को अपने तर्प में पेश किया। 51 महिलाओं को यह जंग जीतने का श्रेय जाता है जो अपने हक के लिए लड़ती रहीं। बता दें कि यह फैसला 51 अफसरों की याचिका पर आया है। सेना में 1653 महिला अफसर हैं, जो अफसरों की संख्या का 3.9 प्रतिशत है। 30 प्रतिशत महिलाएं लड़ाकू क्षेत्रों में तैनात हैं।

-अनिल नरेन्द्र

शाहीन बाग को लेकर अगले सात दिन महत्वपूर्ण

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शाहीन बाग को लेकर अगले कुछ दिन महत्वपूर्ण हैं। शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरुद्ध करीब दो महीने से शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र में विरोध के अधिकार और प्रदर्शनों के जरिये जनजीवन को ठप कर देने के फर्प को उचित ही रेखांकित किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि लोकतंत्र विचार व्यक्त करने की तो इजाजत देता है, लेकिन इसकी सीमाएं और रेखाएं भी हैं। उल्लेखनीय है कि शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों ने वह सड़क बंद कर रखी है, जो दिल्ली और नोएडा को जोड़ती है। इससे नोएडा और दिल्ली के बीच सफर करने वालों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा है कि यह मुद्दा जनजीवन को ठप करने की समस्या से जुड़ा है। पिछली सुनवाई में भी उसने कहा था कि सार्वजनिक जगह पर अनंत काल के लिए प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। अदालत की चिन्ता यह है कि शाहीन बाग की तर्ज पर लोग अगर समाज और सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए सार्वजनिक जगहों पर प्रदर्शन करने लगें तो बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी। लिहाजा अदालत ने कहा कि प्रदर्शन करने के लिए जंतर-मंतर निर्धारित है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सड़क खाली कराने का कोई निर्देश देने के बजाय प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिए। शाहीन बाग की धरना दे रही महिलाओं का कहना है कि अगली तारीख पर सुप्रीम कोर्ट ने रास्ता खाली करने का निर्णय दिया तो सभी प्रदर्शनकारी उसे स्वीकार करेंगे। महिलाओं ने सोमवार को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर सोमवार सुबह से ही शाहीन बाग में सबकी सांसें थमी हुई थीं। दोपहर करीब दो बजे निर्णय आने के बाद हर कोई उसे जानने के लिए उत्सुक दिखा। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को प्रदर्शनकारियों से बातचीत करनी चाहिए। अदालत की ओर से प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह को मध्यस्थ नियुक्त करने का धरने पर बैठी महिलाओं ने तालियां बजाकर स्वागत किया। दादी बिलकिस ने मंच से दूसरी महिलाओं को इसकी जानकारी दी। दादियों ने कहा कि वह मध्यस्थों के समक्ष अपनी बात विस्तार से रखेंगी। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि वह मध्यस्थों से बातचीत करेंगी लेकिन पुलिस के किसी भी अधिकारी से नहीं। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण में पुलिस की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही है। उधर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले शाहीन बाग में मामूली भीड़ थी, लेकिन इसके बाद वहां लोग जमा हो गए। कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत भी बता रहे थे। यह दुख की बात है कि रास्ता खुलवाने का भी काम सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ रहा है। यह काम सरकार का है। अगर सरकार के स्तर पर पहले ही प्रदर्शनकारियों से बातचीत की पहल की जाती तो संभवत हल निकल सकता था। लेकिन उससे उलटा किया गया। अब भी मौका है सरकार चाहे तो बातचीत से हल निकल सकता है पर बातचीत तो करें?

Thursday, 20 February 2020

असहमति लोकतंत्र का सुरक्षा वाल्व है

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के विरोध में देश के कई हिस्सों में विरोध पदर्शन हो रहे हैं। माननीय न्यायाधीश ने शनिवार को कहा कि असहमति को लोकतंत्र के सुरक्षा वाल्व की तरह देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि असहमति को एक सिरे से राष्ट्र विरोधी और लोकतंत्र विरोधी बता देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के मूल विचार पर चोट करता है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है। जो कानून के शासन का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि असहमति का संरक्षण करना यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक रूप से एक निवार्चित सरकार हमें विकास एवं सामाजिक समन्वय के लिए एक न्यायोचित औजार पदान करती है, वे उन मूल्यों एवं पहचानों पर कभी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो हमारी बहुलवादी समाज को परिभाषित करती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विचार-विमर्श वाले संवाद का संरक्षण करने की पतिबद्धता पत्येक लोकतंत्र का खासतौर पर किसी सफल लोकतंत्र का एक अनिवार्य पहलू है। न्यायमूर्ति ने कहा कि लोकतंत्र की असली परीक्षा उसकी सृजनता और उन गुंजाइशों को सुनिश्चित करने की उसकी क्षमता है जहां हर व्यक्ति बगैर किसी भय के अपने विचार पकट कर सके। उन्होंने कहा कि संविधान में उदारवाद में विचार की बहुलता के पति पतिबद्धता है। संवाद करने के लिए पतिबद्ध एक वैध सरकार राजनीतिक पतिवाद पर पाबंदी नहीं लगाएगी, बल्कि उसका स्वागत करेगी। उन्होंने परस्पर आदर और विविध विचारों की गुंजाइश के संरक्षण की असहमति पर भी जोर दिया। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस पीठ के हिस्सा थे, जिसने यूपी में सीएए के खिलाफ पदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से क्षतिपूर्ति वसूल करने के लिए जिला पशासन द्वारा कथित पदर्शनकाfिरयों को भेजी गई नोटिस पर जनवरी में पदेश सरकार से जवाब मांगा था। न्यायमूर्ति के मुताबिक बहुलवाद को सबसे बड़ा खतरा विचारों को रखने से और वैकल्पिक या विपरीत विचार देने वाले लोकपिय एवं अलोकपिय आवाजों को खामोश करने से है। उन्होंने कहा कि विचारों को बढ़ाना राष्ट्र की अंतरात्मा को दबाना है। उन्होंने यह भी कहा कि व्यक्ति या संस्था भारत की परिकल्पना पर एकाधिकार करने का दावा नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत या मुस्लिम भारत के विचार को खारिज कर दिया थे। उन्होंने सिर्प भारत गणराज्य को मान्यता दी थी।

-अनिल नरेन्द्र

पीएम मोदी पूछेंगे-केमछो ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस महीने की 24-25 तारीख को अपनी दो दिवसीय यात्रा पर भारत आ रहे हैं। ट्रंप के स्वागत में कोई कसर न रह जाए, इसलिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। अपने भारत दौरे पर ट्रंप महज तीन घंटे के लिए अहमदाबाद आएंगे। मगर उनके यह तीन घंटे गुजरात पशासन को काफी महंगे पड़ रहे हैं। एक अनुमान है कि ट्रंप के तीन घंटे के दौरे के लिए पशासन को 100 करोड़ रुपए तक खर्च करने पड़ रहे हैं। यानी एक मिनट में करीब 55 लाख रुपए। मोटेरा स्टेडियम से लौटने के लिए एयरपोर्ट तक खासतौर से बनाई जा रही 1.5 किमी. लंबी सड़क पर ही करीब 60 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस रूट और स्थान के सौंदर्यीकरण के लिए 8 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। रास्ते में जितनी भी झुग्गी बस्तियां आ रही हैं उनके सामने ऊंची दीवार बतौर पर्दा बनाई जा रही हैं ताकि ट्रंप भारत की यह तस्वीर न देख सकें। यह यात्रा राष्ट्रपति ट्रंप और पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों के लिए विशेष महत्व रखती हैं। अमेरिकी कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट के जरिए महाभियोग की कार्रवाई से उबरने के बाद डोनाल्ड ट्रंप को इस वर्ष राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव का सामना करना है। अमेरिका के अब तक के लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि महाभियोग की कार्रवाई से बचने के बाद कोई भी राष्ट्रपति दोबारा इस पद के लिए चुनाव लड़ने जा रहा है। जाहिर है कि विपक्षी डेमोकटिक पार्टी ने ट्रंप के विरुद्ध भ्रष्टाचार के जो तथ्य जुटाए हैं वे सभी चुनाव अभियान में इस्तेमाल किए जाएंगे जिनका सामना ट्रंप को करना होगा। अमेरिका में भारतीय मूल के अमेरिकियों की संख्या काफी है। इस यात्रा से वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करना चाहेंगे। याद रहे कि नरेन्द्र मोदी जब हाल ही में अमेरिका गए थे तो अपनी एक विशाल जनसभा में उन्होंने भी ट्रंप के लिए वोट करने की अपील की थी। पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए हाल का समय ज्यादा अनुकूल नहीं रहा। सीएए, एनआरसी के खिलाफ बना माहौल उन्हें जरूर सता रहा होगा। फिर रही सही कसर दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम ने निकाल दी जहां भरपूर ताकत लगाने के बावजूद भाजपा बुरी तरह केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार से हार गई। भाजपा दिल्ली में चुनाव पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ी थी। इस बात की संभावना कम ही दिख रही है कि ट्रंप की भारत यात्रा में यह आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ट्रंप की यात्रा के दौरान तमाम दुनिया का फोक्स उनकी भारत यात्रा पर होगा, इसका फायदा उठाते हुए क्या पता ये आंदोलन और तेज हो जाए। इसलिए ट्रंप और मोदी, दोनों इस यात्रा को एक अवसर में बदलने की भरपूर कोशिश करेंगे। पधानमंत्री मोदी पिछले वर्ष अमेरिका के ह्यूस्टन में हुए हाउडी मोदी के गुजराती संस्करण को दो मिस्टर पेसिडेंट पेश करने की कोशिश में है। पिछले 6 महीने भारत में कूटनीतिक स्तर पर उठा पटक भरे रहे हैं। पहले जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्कय करने का मामला हो या बाद में आया नागरिकता संशोधन कानून, पाकिस्तान सहित कुछ देशों ने इसके अंतर्राष्ट्रीकरण की कोशिश की। अधिकतर देशों ने जहां दोनों ही मुद्दों को भारत का आंतरिक मामला बताया, वहीं ट्रंप का रुख उलझन भरा रहा। कई बार ट्रंप मध्यस्थता का पस्ताव दे चुके हैं। ऐसे में भारत ट्रंप के दौरे से इस मामले का स्थायी हल निकालना चाहेगा। साथ ही अगर ट्रंप पाकिस्तान नहीं जाते हैं तो यह बड़ा संदेश होगा। ट्रंप के इस दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच ट्रेड डील पर भी मुहर लग सकती है। जो पिछले कुछ महीनों से गतिरोध के कारण आगे नहीं बढ़ सकी है। अगर यह ट्रेड डील होती है तो सुस्ती के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था को संजीवनी मिल सकती है। दरअसल इस डील में अमेरिका कुछ खास रियायतों की मांग कर रहा है। भारत ने मेक इन इंडिया का हवाला देते हुए डील से इंकार कर दिया है। इसके अलावा भारत अमेरिका से दूबारा स्पेशल स्टेटस बहाल करने की भी मांग कर रहा है। ट्रंप के भारत दौरे पर पाकिस्तान की निगाहें भी होंगी। कश्मीर को लेकर वह पहले ही परेशान है। ट्रंप कश्मीर में मध्यस्थता और मदद के शिगूफे छोड़ते रहते हैं जो भारत को नागवार गुजरे हैं। ऐसे में यह देखने की बात है कि ट्रंप के इस दौरे से भारत को कितना और क्या हासिल होता है?

Wednesday, 19 February 2020

सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देते हैं, देश छोड़ना ही बेहतर होगा

दूरसंचार विभाग को 1.47 लाख करोड़ रुपए चुकाने के फैसले पर अमल नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार और टेलीकॉम कंपनियों को फटकार लगाते हुए ऐसी बातें कह दीं जिनसे माननीय अदालत की नाराजगी साफ प्रकट हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश रोकने वाले दूरसंचार विभाग के डेस्क अफसर के पत्र पर नाराज जस्टिस अरुण मिश्रा ने मजबूरन यहां तक कह दिया कि मैं हैरान और परेशान हूं। कोर्ट के आदेश के बावजूद एक भी पैसा नहीं दिया गया। इस देश में क्या हो रहा है? एक अफसर ने कोर्ट का आदेश रोकने का दुस्साहस कैसे किया? क्या कोर्ट के आदेश की कोई कीमत नहीं है? क्या देश में कोई कानून नहीं बचा है? मुझे अब इस देश में काम नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देना चाहिए। देश छोड़ना ही बेहतर होगा। दौलत के दम पर वह कुछ भी कर सकते हैं। कोर्ट का आदेश भी रोक सकते हैं। डेस्क ऑफिसर ने संवैधानिक अथॉरिटीज को लिखा था कि कंपनियों पर बकाया भुगतान का दबाव न बनाएं और न ही कार्रवाई करें। इससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल रुक गया था। सुप्रीम कोर्ट ने डेस्क ऑफिसर को और टेलीकॉम कंपनियों को अवमानना का नोटिस भी दिया है। इन टेलीकॉम कंपनियों को 94 हजार करोड़ रुपए की बकाया राशि सरकार के पास नहीं जमा कराने पर सीधे-सीधे मानहानि का मामला तो है लेकिन इसमें एक और तथ्य तब जुड़ गया जब एक सरकारी आदेश ने ही उन्हें पैसा न जमा कराने का तर्प दे दिया। इन कंपनियों को यह धनराशि इस साल 23 जनवरी तक जमा करवानी थी, लेकिन अनेक कंपनियों ने यह रकम जमा नहीं कराई। 94 हजार करोड़ की रकम कम नहीं होती, खासकर तब जब मंदी के कारण सरकारी संस्थानों पर काफी दबाव है। कहा यह भी जा रहा है कि अदालत की सख्ती के बाद वोडाफोन-आइडिया जैसी कंपनियां बाजार से बाहर भी हो सकती हैं। जिसे 53 हजार करोड़ रुपए का बकाया चुकाना है, जबकि दिसम्बर तिमाही में उसे 6,438.80 करोड़ रुपए का घाटा हुआ हो। लेकिन इन कंपनियों का समर्थन इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि लाइसेंस एग्रीमेंट पर दस्तखत करने के बाद बकाया चुकाना उनका फर्ज है। इसके अलावा देश में दूरसंचार क्षेत्र के लगातार फैसले टाले जाने का लाभ उन्होंने उठाया है और खुद पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का दबाव उपभोक्ताओं पर वह डालती है। विगत दिसम्बर में ही दूरसंचार कंपनियों ने शुल्क बढ़ाने के अलावा ग्राहकों को मिलने वाली कई छूटें खत्म भी कर दी थीं। लिहाजा शीर्ष अदालत के फैसले का पालन तो उन्हें करना ही पड़ेगा। यह अलग बात है कि कंपनियों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का असर एक बार फिर उपभोक्ताओं पर ही पड़ने वाला है।

-अनिल नरेन्द्र

इस बार बदले-बदले से नजर आए अरविन्द केजरीवाल

दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में रविवार को मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का बदला हुआ रूप देखने को मिला। इसी रामलीला मैदान ने उन्हें एक जुझारू आंदोलनकारी के रूप में देखा था। इसके बाद दिल्ली की सियासी गद्दी मिलने के बाद केंद्र के साथ उनके बगावती तेवर भी नजर आए, लेकिन रविवार को तीसरी बार दिल्ली की कमान संभालते हुए केजरीवाल कुछ बदले-बदले थे। उन्होंने शपथ ग्रहण के बाद केवल दिल्ली के विकास की बात की। विपक्ष को उनके आरोपों के लिए माफ करते हुए केजरीवाल ने दिल्ली के विकास में सबका योगदान मांगा। केजरीवाल का दिल्ली के रामलीला मैदान से गहरा नाता रहा है। इसी रामलीला मैदान पर उन्होंने अपने साथियों के साथ अन्ना हजारे के साथ एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म हुआ और दिल्ली की सियासत बदल गई। रामलीला मैदान ने कई बार मुख्यमंत्री को अपने विरोधियों पर गरजते हुए देखा। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर जब अरविन्द केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उनके तेवर अलग थे। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए धरना दिया, आंदोलन किया और मोदी से सीधा टकराव लिया। पर इस बार उन्होंने मोदी का समर्थन मांगा और कहा कि वह केंद्र के साथ मिलकर दिल्ली का विकास करेंगे। अरविन्द केजरीवाल समय के साथ परिपक्व हो गए हैं। कंफैडरेशन की नीति को बदल लिया है और यह अच्छा लक्षण है। रविवार को अपने तीसरे शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पूरे देश को अपनी लंबी पारी के संकेत दिए हैं। शपथ ग्रहण के बाद लोगों को अपने संबोधन में कहाöदिल्ली ने जिस नई राजनीति की नींव रखी है, इस नई राजनीति से पूरी दुनिया में भारत का डंका बजेगा। यही नहीं, उन्होंने जिस गीत, हम होंगे कामयाब... से अपने संबोधन का समापन किया, उसने भी पूरे देश को एक संकेत दे दिया कि यह नई राजनीति सिर्प दिल्ली तक रुकने वाली नहीं है, यह आगे बढ़ेगी और आम आदमी पार्टी (आप) के जरिये देश के कोने-कोने में पहुंचेगी। दरअसल जब सर्वोच्च अदालत ने अधिकार और संवैधानिक व्यवस्था से जुड़े विवाद का निपटारा करते हुए स्पष्ट कर दिया कि कानून-व्यवस्था, पुलिस और जमीन जैसे विषय पूरी तरह से केंद्र के आधीन हैं तो केंद्र से यह टकराव एक तरह से खत्म हो गया। निश्चित रूप से पिछले कार्यकाल के उत्तरार्द्ध में केजरीवाल सरकार ने जो मुफ्त बिजली, पानी, मोहल्ला क्लिनिक, सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता में सुधार और महिलाओं के लिए बस तथा मेट्रो के मुफ्त सफर जैसी पेशकश की, उसका उसे चुनाव में फायदा मिला। केजरीवाल ने स्पष्ट किया है कि उनकी प्राथमिकता में अभी सिर्प दिल्ली है। उसने अपना एकदम शुरुआती वादा बिजली, पानी सस्ता मुहैया कराने की बात बहुत हद तक निभाई है, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों के सियासी और नीतिगत पहलुओं को भी बदल दिया। सस्ती बिजली का वादा सिर्प सब्सिडी के भरोसे नहीं रहा, बल्कि बिजली कंपनियों की मांग के बावजूद दाम बढ़ाने की इजाजत नहीं दी गई। इसी तरह पानी भी दिल्ली के दूरदराज इलाकों में पहुंचने लगा और टैंकर माफिया की हनक कम हुई। इसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य में निजीकरण पर जोर दिया जा रहा था, तब आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में सुधार की कोशिशें कीं जिनके नतीजे भी दिखने लगे। इससे आम आदमी खासकर गरीब और मजदूर, नौकरीपेशे की जनता के जीवन में फर्प आया और वह इस बार भाजपा के ध्रुवीकरण, तमाम कोशिशों के अलावा इस बात में भी नहीं फंसे कि खैरात बांटकर कब तक चलेगा? देखना अब यह है कि क्या दिल्ली के जनादेश को बाकी पार्टियां व सरकारें समझेंगी और देश में सरकारी उपक्रमों को मजबूती देने की दिशा में बढ़ेंगी? एक समय कहा जाता था कि चुनाव सड़क, बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर नहीं जीता जा सकता, लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार के काम को केजरीवाल ने काम की राजनीति कहकर मैदान फतह कर लिया, यह देखना वाकई ही दिलचस्प होगा कि वह किस तरह से केंद्र सरकार और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से तालमेल बिठाते हैं, जहां अभी भी भाजपा का कब्जा है। अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) को इस शानदार जीत पर बधाई।

Tuesday, 18 February 2020

नफरत की राजनीति को मतदाताओं ने नकारा

विदेशी मीडिया ने आम आदमी पार्टी (आप) की जीत व भाजपा की हार को बड़ी तवज्जो दी है। उन्होंने माना कि मतदाताओं ने नफरत की राजनीति को नकार दिया। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संकेत दिया कि उन्हें पार्टी पर असर बढ़ाने और कार्यकर्ताओं को खुद काबू में करने की कोशिश करनी चाहिए। दूसरे शब्दों में वह पार्टी और कार्यकर्ताओं को अमित शाह के भरोसे अब नहीं छोड़ सकते। द न्यूयार्प टाइम्स ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी पार्टी को एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी ने करारी शिकस्त दी है। इसे मोदी की नीतियों पर फैसले के रूप में देखा जा रहा है। इन नीतियों में देश के भीतर मुस्लिम विरोधी सीएए भी शामिल है। दरअसल मोदी की कई नीतियों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल विरोध जता चुके हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की शिक्षा, सेहत और बिजली-पानी की नीति को लोगों ने जबरदस्त समर्थन दिया है। भाजपा नेताओं की राष्ट्रीय मुद्दों पर दिल्ली चुनाव लड़ने की रणनीति विफल हो गई है। दिल्ली की जनता ने दिखाया है कि राज्य के चुनाव में उसे स्थानीय मुद्दों की परवाह है न कि राष्ट्रीय मुद्दों की। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में मोदी ने दिल्ली से सातों सीटें जीतीं लेकिन विधानसभा चुनाव में हार गए। पाकिस्तान के दो अखबारों ने दिल्ली विधानसभा चुनावों पर टिप्पणी की है। एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने नागरिक संशोधन मोदी को ले डूबा, इस शीर्षक से खबर लगाई है। अखबार ने लिखा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मोदी की भाजपा को तीसरी बार भी बेहतरीन शिकस्त दी। डॉन अखबार ने लिखाöसीएए को संसद में पास कराने के बाद मोदी के लिए दिल्ली चुनाव पहली चुनौती थी। उसने आक्रामक चुनाव प्रचार भी किया लेकिन लोगों ने उसकी एक न सुनी। हार भाजपा के लिए पिछले दो वर्षों में राज्यों के चुनाव में मिल रही लगातार शिकस्त की ताजा कड़ी है। वहीं खलील टाइम्स ने लिखाöसत्तारूढ़ भाजपा ने दिल्ली चुनाव में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। लेकिन उसकी झोली में सिर्प आठ सीटें आईं। दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डेरा डाला। दोनों नेताओं ने हिन्दू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मतदाताओं ने मोदी सरकार की नीतियों को नकार दिया और धूल चटा दी। एक अन्य विदेशी अखबार ने लिखाö (डीडब्ल्यूदिल्ली के चुनाव भारत के लिए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। एक तरफ तो इसने दिखाया कि लोग नफरत की राजनीति को स्वीकार नहीं करते हैं, वहीं मतदाता सियासी दलों के विकास के नारों को गंभीरता से लेते हैं, अरविन्द केजरीवाल की भारी जीत इस बात का संकेत है। दिल्ली की जनता ने नफरत को नकार दिया और विकास को चुना है।

-अनिल नरेन्द्र

पुलवामा हमले की बरसी पर छिड़ी सियासी जंग

पुलवामा हमले पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान पर सियासी तूफान खड़ा हो गया है। पुलवामा हमले की पहली बरसी पर शुक्रवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर कांग्रेस ने जमकर निशाना साधा और सवाल किया कि इस घटना से सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ? इसकी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? राहुल गांधी ने शहीद जवानों के पार्थिव शरीर वाले ताबूतों की तस्वरी शेयर करते हुए ट्वीट कियाöआज जब हम पुलवामा हमले में शहीद हुए 40 जवानों को याद कर रहे हैं तो हमें यह पूछना है कि इस हमले से सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ? उन्होंने यह सवाल भी किया कि हमले की जांच में क्या निकला? हमले से जुड़ी सुरक्षा खामी के लिए भाजपा सरकार में अब तक किसको जवाबदेह ठहराया गया है? पुलवामा हमले की पहली बरसी पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने घटना की जांच रिपोर्ट के बारे में सरकार से सवाल किया और यह बताने को कहा कि इसके लिए किसे जवाबदेही ठहराया गया? सीताराम युचेरी ने कहा कि साथ ही पार्टी ने इस हमले में मारे गए सीआरपीएफ जवानों के नाम पर भाजपा पर वोट मांगने का आरोप लगाया। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने पूछाöआतंकी हमले के एक साल बाद भी जांच रिपोर्ट कहां है? इतनी सारी मौतों के लिए और खुफिया तंत्र की बड़ी नाकामी के लिए किसे जवाबदेही, जिम्मेदार ठहराया गया? उन्होंने सीआरपीएफ के शहीद कर्मियों को श्रद्धांजलि पेश करते हुए भाजपा पर शहीदों के नाम पर वोट मांगने का आरोप भी लगाया। येचुरी ने एक अन्य ट्वीट में कहाöप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांगा। कांग्रेस ने सवाल किया कि पुलवामा हमले की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है? इस हमले से जुड़े कई सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब मिलने बाकी हैं। मसलन इसके लिए कौन जिम्मेदार है? 350 किलो आरडीएक्स कौन लेकर आया और हमले को लेकर खुफिया जानकारियों को नजरंदाज क्यों किया गया? क्या देवेंद्र सिंह की इस हमले में कोई भूमिका थी? भाजपा ने पुलवामा आतंकी हमले की बरसी पर राहुल गांधी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। पार्टी ने शुक्रवार को उन पर आतंकी संगठनोंöलश्कर--तैयबा, जैश--मोहम्मद से सहानुभूति रखने का आरोप लगाया और कहा कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष का बयान उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर की। राहुल पर निशाना साधते हुए भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिंहा राव ने कहा कि पुलवामा नृशंस आतंकी हमला था और गांधी परिवार अपने फायदे के अलावा कुछ नहीं सोचता। संबित पात्रा ने कहा कि श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या का किसको लाभ मिला? इस सियासी विवाद में असल सवाल दब रहे हैं। इतना बड़ा हमला हुआ, 40 जवान शहीद हुए और आज तक यह नहीं पता चला कि आखिर इतना बड़ा हमला हुआ कैसे? कौन-कौन इसके जिम्मेदार हैं, जवाबदेह हैं?

Sunday, 16 February 2020

19 साल बाद फिर निकला मैच फिक्सिंग का भूत

भारत-दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट मैच फिक्सिंग कांड के मुख्य आरोपी संजीव चावला को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दो दशक बाद लंदन से दिल्ली लेकर आना इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि अब मैच फिक्सिंग के कई छिपे राज खुलेंगे। विदेश मंत्रालय ने पिछले साल मार्च में ब्रिटिश सरकार को संजीव चावला के बारे में डोजियर सौंप कर प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू की थी। 50 वर्षीय संजीव चावला ब्रिटिश नागरिक हैं। दिल्ली पुलिस की टीम ने उसे अदालत में पेश किया। अदालत ने उसे पूछताछ के लिए 12 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया। मैच फिक्सिंग मामले में संजीव चावला के पास कई पूर्व क्रिकेटरों के राज हैं। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोनिये से जुड़े मैच फिक्सिंग मामले के मास्टर माइंड रहे चावला के कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय ]िक्रकेट सितारों के साथ सीधे सम्पर्प रहे हैं। डोजियर में दिए गए ब्यौरे के मुताबिक ब्रिटिश नागरिक चावला के लंदन स्थित 41, चौक विले एवेन्यू बंगले में कई भारतीय क्रिकेटरों का आना-जाना था। मैच फिक्सिंग में तत्कालीन अफ्रीकी टीम के कप्तान हैंसी क्रोनिये समेत छह लोग शामिल थे। पुलिस ने संजीव चावला से पूछताछ के लिए प्रश्न तैयार किए हैं, जिसके जरिये वह यह जानने की कोशिश करेगी कि क्रोनिये के साथ-साथ उसने किन अन्य खिलाड़ियों से सम्पर्प किया था? उससे यह भी पूछा जाएगा कि मैच फिक्सिंग में उसने किसी भारतीय खिलाड़ी से तो सम्पर्प नहीं किया था। पुलिस अधिकारियों को विश्वास है कि पूछताछ के दौरान सीरीज को लेकर संजीव चावला कई बड़े खिलाड़ियों के नामों का खुलासा कर सकता है। मामला दर्ज होने के दो दशक बाद मुख्य आरोपी संजीव चावला पुलिस की गिरफ्त में आया है। हालांकि पहले भी इस मामले में कई लोगों से पूछताछ की जा चुकी है। लेकिन मुख्य आरोपी होने की वजह से संजीव से कई नई जानकारियां हाथ लगने की उम्मीद है, क्योंकि संजीव चावला ही खिलाड़ियों से सम्पर्प का मुख्य जरिया था। उसके जरिये ही मैच फिक्सिंग की गई थी। पुलिस उपायुक्त डॉ. जी. रामगोपाल नायक ने बताया कि जब से मामला दर्ज किया गया, तभी से वह लंदन में रह रहा था। संजीव चावला के भारत लाने के लिए क्राइम ब्रांच की टीम लगी हुई थी। इसके लिए विदेश मंत्रालय और भारतीय उच्चायोग लंदन, गृह मंत्रालय, ब्रिटिश उच्चायोग और सैंट्रल अथॉरिटी यूके की मदद से लगातार सम्पर्प किया गया और कानूनी कार्रवाई की जाती रही। मैच फिक्सिंग के मामले की जांच करते हुए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच तीन आरोपियोंöकृष्ण कुमार, सुनील दारा और राजेश कालरा को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है। दो आरोपी संजीव चावला और मनमोहन खट्टर पुलिस की गिरफ्त से बाहर थे। पुलिस के अनुसार संजीव चावला लंदन में छिपा हुआ था, जबकि मनमोहन के बारे में सूचना मिली है कि वह अमेरिका में है। हैंसी क्रोनिये की 2002 में एक हवाई हादसे में मौत हो गई थी।

-अनिल नरेन्द्र

हाफिज सईद की सजा दबाव में उठाया फैसला

लाहौर की आतंकवाद निरोधी अदालत द्वारा जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद तथा उसके करीबी को साढ़े पांच साल की दो सजाओं से इतना तो साबित हो ही गया है कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव का असर पाकिस्तान की इमरान खान सरकार पर है, अन्यथा उसका मुकदमा इससे पहले कभी भी ठीक तरीके से नहीं लड़ा गया। पाक की आतंकरोधी अदालत (एटीएस) ने सईद और उसके करीबी जफर इकबाल को आतंकवाद के वित्त-पोषण के दो मामलों में साढ़े पांच साल की कैद सुनाई। दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। प्रथम दृष्ट्या ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने इस मामले में आखिरकार सख्ती दिखाई है। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि पर नजर डालने पर फिलहाल यह सिर्प औपचारिकता ही दिखाई देती है। अब तक जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद की कारगुजारियों के जगजाहिर होने के बावजूद पाकिस्तान ने उसके खिलाफ कोई कार्रवाई करने को लेकर जिस तरह का टालमटोल देखा गया था, उससे तो यही लगता था कि उसे बचाने की कोशिश शीर्ष स्तर से की जा रही थी। लेकिन यह तभी तक संभव था, जब तक कि पाकिस्तान के इस रुख का असर उसके खिलाफ बनने वाले वैश्विक माहौल और उससे होने वाले व्यापक नुकसान के रूप में सामने नहीं आ रहा था। जाहिर है कि जब इसकी शुरुआत हो गई तब जाकर पाकिस्तान को शायद इस मामले की गंभीरता का अंदाजा हुआ। चूंकि न्यायालय ने सईद की आतंकवाद के वित्त-पोषण मामले में उसके खिलाफ चल रहे छह मामलों को एक साथ जोड़ने की अपील भी स्वीकार कर ली, इसलिए आने वाले समय में उसको और सजा भी मिल सकती है। उसके खिलाफ आतंकवाद के वित्त-पोषण को लेकर कुल 23 मुकदमे दर्ज हैं। दो में सजा के बाद उसके खिलाफ अब भी 21 मामले कायम हैं। हमारे लिए यह ज्यादा राहत की बात इसलिए नहीं है कि संसद हमले से लेकर 2006 के मुंबई उपनगरीय रेलों पर तथा फिर 26 नवम्बर 2008 को सबसे भयावह मुंबई हमले को लेकर पाकिस्तान की यही एटीएस टालमटोल का रवैया अपनाती रही है। उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित कराया जा चुका है। अमेरिका ने उस पर एक करोड़ डॉलर का इनाम भी रखा है तो उसके आतंकवादी होने में दुनिया को कोई संदेह नहीं था। पर पाकिस्तान में उसे पूरा सम्मान व सुरक्षा मिल रही थी। लगता है कि पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की काली सूची में डाले जाने की आशंका ने पाकिस्तान को मजबूर कर दिया कि वह कुछ कार्रवाई करके दिखाए। लश्कर--तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद को जेल भेजने का फैसला कितना प्रभावी होता है यह तो वक्त ही बताएगा, क्योंकि यह फैसला पाकिस्तान की धरती पर सक्रिय आतंकी नेटवर्प के खिलाफ इस्लामाबाद की कार्रवाई की वैश्विक निगरानी संस्था (एफएसटीएफ) द्वारा समीक्षा किए जाने के महज कुछ दिन पहले आया है। यह फैसला पेरिस में होने वाली बैठक से महज चार दिन पहले आया है।

Friday, 14 February 2020

गार्गी कॉलेज में छेड़छाड़ का शर्मनाक मामला

दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में छह फरवरी की शाम छात्राओं के साथ जिस तरह से बदतमीजी, छेड़छाड़ और मारपीट की वह इस बात का प्रमाण है कि राजधानी दिल्ली में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं? गार्गी कॉलेज में छह फरवरी को फेस्ट समारोह के दिन करीब 10 हजार छात्र-छात्राओं की भीड़ थी लेकिन इसके मुताबिक सुरक्षा इंतजाम नहीं थे। जुबिन नौटियाल के कार्यक्रम की वजह से शोरशराबा इतना था कि कि पीड़ित छात्राओं की आवाज वहीं दबकर रह गई और किसी ने कोई बयान नहीं दिया। सभी को प्रवेश के लिए पास जारी किया गया था। ऐसे में भारी भीड़ कैंपस परिसर में जुट गई थी, बाहरी लोग छात्राओं से आपत्तिजनक हरकतें करते रहे, वह चिल्लाईं और विरोध किया। लेकिन भारी शोरशराबे में उनकी आवाज पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। जो सबसे आगे बैठे थे उन्हें तो पता भी नहीं था कि ऐसा कुछ हुआ है। छात्राओं ने आप-बीती बयां करते हुए कहा कि वार्षिक समारोह के दौरान कॉलेज परिसर में घुसे लोग 30 साल के आसपास की उम्र के थे और वह नशे में धुत्त थे। उन्होंने छात्राओं को जबरन गलत तरीके से छुआ और घसीटा। आपत्तिजनक हरकतें कीं जबकि पुलिस व सुरक्षाकर्मी तमाशा देखते रहे। छात्राओं का कहना है कि कॉलेज परिसर उनके लिए एक सुरक्षित स्थान था, लेकिन उसकी सुरक्षा पूरी तरह से धराशायी हो गई है। एक छात्रा ने बताया कि कॉलेज प्रशासन ने सुरक्षा इंतजामों का दावा किया था लेकिन इसके बाद भी छात्राओं से बाहरी लोगों ने छेड़छाड़ व धक्का-मुक्की, छुआ छुई की। देश के किसी भी कॉलेज में इस तरह की घटना नहीं हुई होगी। अगर छात्राओं ने इस घटना को रविवार को ट्विटर और इंस्टाग्राम पर साझा नहीं किया होता तो शायद इसकी कहीं खबर नहीं नजर आती, न ही सोमवार को लोकसभा में यह मामला उठता। हालांकि अब दिल्ली महिला आयोग भी जगा है। और कॉलेज प्रशासन व दिल्ली पुलिस को समय पर कार्रवाई नहीं करने के लिए नोटिस भी भेजा है। दिल्ली के कॉलेजों में सालाना उत्सव के दौरान कुछ घटनाएं पहले भी होती रही हैं। लेकिन उनसे सबक लेना जरूरी नहीं समझा गया। गार्गी कॉलेज की घटना राजधानी की कानून-व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिन्ह इसलिए भी है कि दिल्ली में पूरा सत्ता तंत्र मौजूद है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस की निगरानी कैमरे लगे होने का दावा किया जाता है। इसके बाद भी अपराधी अगर बेखौफ रहते हैं तो यह सवाल स्वाभाविक है कि उन्हें कहां से सुरक्षा और शह मिल रही है? आपराधिक तत्व जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे और सीएए के समर्थन में शायद रैली निकल रही थी। यह समूचे समाज को सोचने की जरूरत है कि गार्गी कॉलेज में लड़कियों पर हमला करने वाले कौन थे, और कौन उन्हें संरक्षण दे रहा था?

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल की जीत ऐतिहासिक है, भाजपा की हार उससे भी ऐतिहासिक

देश की राजधानी दिल्ली में 1998 से लगातार सत्ता से बाहर भाजपा को एक बार फिर विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। नई रणनीति, अहम राष्ट्रीय मुद्दे और पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा के हिस्से में 70 में से मात्र आठ सीटें आई हैं यानि पिछली बार से मात्र पांच ज्यादा। हालांकि उसका वोटर शेयर भी छह प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। लेकिन सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के मुफ्त बिजली, पानी, महिलाओं को डीटीसी में फ्री यात्रा, मोहल्ला क्लिनिक का भाजपा कोई तोड़ नहीं निकाल सकी। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए पिछले दो सालों में सात राज्यों से सत्ता गंवा चुकी है। पिछली बार दिल्ली में महज तीन सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। हालांकि यह अनुमान गलत साबित हुए। इसी के साथ भाजपा के लिए देश का सियासी नक्शा भी नहीं बदला। दिल्ली समेत 12 राज्यों में अब भी भाजपा विरोधी दलों की सरकारें हैं। एनडीए के पास 16 राज्यों में सरकार है। दिल्ली में केजरीवाल की जीत ऐतिहासिक है लेकिन भाजपा की हार उससे भी ऐतिहासिक है। देश के इतिहास में भाजपा पहली बार इतनी बुरी तरह हारी है। हो सकता है कि आंकड़े इसका समर्थन न करते हों, हो सकता है कि लोग कहें कि भाजपा 1984 में लोकसभा में सिर्प दो सीटें लाई थी। दिल्ली में भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्प तीन सीटें लाई थी फिर यह हार सबसे बड़ी हार कैसे कही जा सकती है? लेकिन यह हार आम हार नहीं है। केंद्र में जो भाजपा 1984 में हारी उस समय केंद्र में उसकी सरकार भी नहीं थी। न उसके पास अनंत संसाधन ही थे। दिल्ली चुनाव में जब पिछली बार भाजपा हारी तो भी उसने इतनी बड़ी बाजी नहीं खेली थी। इस बार का चुनाव खास है। थोड़ा बहुत नहीं 350 चुनाव जीतने के एक्सपर्ट सांसद इस बार दिल्ली की सड़कों का इंच-इंच नाप रहे थे ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। भाजपा के चाणक्य समझे जाने वाले अमित शाह इस तरह टूटकर चुनाव में इससे पहले कभी भी नहीं उतरे थे। गृहमंत्री अमित शाह खुद गली-गली घूमकर वोट मांग रहे थे। उन्होंने अपने हाथ से पर्चे तक बांटे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोरदार भाषणों से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। अमित शाह ने अपने अंदाज में हर तरह से प्रशासन को दांव पर लगा दिया। शाहीन बाग में तमंचा चलाने के मामले में कपिल गुर्जर नामक ल़ड़का पकड़ा गया तो खुलकर दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी का नाम तक ले लिया। भाजपा के सारे मुख्यमंत्री दिल्ली में लोगों को लुभाने में लगे थे। कुछ धर्म के नाम पर वोट मांग रहे थे तो कुछ कसमें खिला रहे थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं जानबूझ कर ऐसे इलाकों में रखी गईं, जहां मुस्लिम आबादी बहुत थी और तनाव की संभावना पूरी थी। इन इलाकों में जाकर उन्होंने उग्र भाषण भी दिए। लेकिन भाजपा हार गई। इससे बड़ी हार क्या हो सकती थी? हार इसलिए भी सबसे बड़ी हार है कि पार्टी ने अपना तुरुप का पत्ता बेकार फेंका। धर्म के नाम पर वोट कमाने के लिए पार्टी के सांसद प्रवेश वर्मा ने यहां तक कह दिया कि मुसलमान शाहीन बाग के धरने से उठकर घरों में घुस जाएंगे। इस बयान के लिए उन्हें चुनाव आयोग ने प्रतिबंधित तक किया। देश के वित्तमंत्री के खिलाफ गोली मारो वाले बयान के लिए एफआईआर तक दर्ज हुई। प्रतिबंध भी लगा। सिर्प इतना ही नहीं, भाजपा ने अपने सबसे खास साख वाले चेहरों को भी दांव पर लगा दिया। शाहीन बाग को लेकर पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने लगातार फेक वीडियो प्रसारित किए। दिल्ली में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे वोट मांगे और सभाएं कीं। यहां तक कि संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस में भी प्रधानमंत्री ने वही भाषण दिया जो उनका दिल्ली में चुनावी भाषण था। इस बार भाजपा ने दिल्ली के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार के लिए 350 से अधिक नेताओं और उम्मीदवारों का इस्तेमाल किया। भाजपा शासित राज्यों के अधिकांश मुख्यमंत्री और एनडीए के सदस्यों ने भाजपा के प्रचार के लिए हाथ मिलाया। लेकिन पार्टी हार गई यह भाजपा की सबसे बड़ी हार है।

Thursday, 13 February 2020

अनिल अंबानी बोले मैं दिवालिया हूं

अनिल अंबानी ने चीन के बैंकों के कर्ज से जुड़े विवाद के लिए गत शुकवार को इंग्लैंड हाईकोर्ट में दलील रखी कि उनके नेटवर्थ जीरो हैं। वे दिवालिया हैं इसलिए बकाया नहीं चुका सकते। परिवार के लोग भी उनकी मदद नहीं कर पाएंगे। लेकिन, कोर्ट ने अंबानी के वकीलों की दलीलों को खारिज करते हुए छह हफ्ते में 10 करोड़ डॉलर (714 करोड़ रुपए) जमा करने का आदेश दिए। चीन के तीन बैंकों इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चायना, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एक्जिम बैंक ऑफ चायना लि. ने अनिल अंबानी के खिलाफ लंदन की अदालत में केस किया था। इन बैंकों ने अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्यूनिकेशन (आर कॉम) को 2012 में 70 करोड़ डालर (5000 करोड़ रुपए) का कर्ज दिया था, लेकिन आर कॉम भुगतान नहीं कर पाई। बैंकों का दावा है कि अनिल अंबानी लोन के गारंटर थे। बैंकों के वकील ने यह भी कहा कि कई मौकों पर अनिल अंबानी के परिवार के सदस्य उनकी मदद कर चुके हैं। अंबानी के वकीलों ने कहा कि उनके क्लाइंट को मां, पत्नी और बेटों के एसेट्स और शेयरों का एक्सेस नहीं है। लेकिन बैंकों ने सवाल उठाया क्या यह माना जा सकता है कि अfिनल अंबानी की मां, पत्नी और बेटे जरूरत के वक्त उनकी मदद नहीं करेंगे? साथ ही कहा कि अनिल अंबानी के भाई मुकेश अंबानी एशिया में सबसे अमीर हैं। अंबानी के वकीलों ने अदालत में कहा कि 2012 में उनके क्लाईंट के निवेश की वैल्यू 700 करोड़ डालर (50,000 करोड़) थी। लेकिन अब जीरो है। बैंकों के वकील ने इस वादे पर सवाल उठाते हुए अंबानी के खर्चों और लाइफ स्टाइल का भी जिक किया। वकील ने अंबानी के पास 11 लक्जरी कारें, एक पाइवेट जेट और दक्षिण मुंबई में सीविंड पर फार्म हाउस में रेंट फी एक्सेस होने का हवाला दिया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद जज डेविड वॉक्समैन ने कहा कि वित्तीय स्थिति का हवाला देकर अंबानी की ओर से बचाव की जो दलीले रखी गई हैं उनमें पारदर्शिता नहीं दिख रही। इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है। अंबानी परिवार के एक सदस्य का यूं अपने आप को दिवालिया सार्वजनिक रूप से घोषित करना वाकई चौंकाने वाला है। अन्य मामलों की तरह इस बार भी शायद बड़े भाई मुकेश अनिल को बचाने के लिए आगे आएं।  बेटे की ऐसी हरकतों से अगर धीरुभाई जिंदा होते तो बहुत परेशान जरूर होते। अनिल अंबानी कहां से कहां पहुंच गए यह सब उद्योगपतियों के लिए एक सबक है।

-अनिल नरेन्द्र