दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में रविवार को मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल
का बदला हुआ रूप देखने को मिला। इसी रामलीला मैदान ने उन्हें एक जुझारू आंदोलनकारी
के रूप में देखा था। इसके बाद दिल्ली की सियासी गद्दी मिलने के बाद केंद्र के साथ उनके
बगावती तेवर भी नजर आए, लेकिन रविवार को तीसरी बार दिल्ली
की कमान संभालते हुए केजरीवाल कुछ बदले-बदले थे। उन्होंने शपथ
ग्रहण के बाद केवल दिल्ली के विकास की बात की। विपक्ष को उनके आरोपों के लिए माफ करते
हुए केजरीवाल ने दिल्ली के विकास में सबका योगदान मांगा। केजरीवाल का दिल्ली के रामलीला
मैदान से गहरा नाता रहा है। इसी रामलीला मैदान पर उन्होंने अपने साथियों के साथ अन्ना
हजारे के साथ एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म हुआ और दिल्ली की सियासत बदल गई। रामलीला
मैदान ने कई बार मुख्यमंत्री को अपने विरोधियों पर गरजते हुए देखा। भ्रष्टाचार के खिलाफ
आंदोलन कर जब अरविन्द केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उनके तेवर अलग थे। उन्होंने
मुख्यमंत्री रहते हुए धरना दिया, आंदोलन किया और मोदी से सीधा
टकराव लिया। पर इस बार उन्होंने मोदी का समर्थन मांगा और कहा कि वह केंद्र के साथ मिलकर
दिल्ली का विकास करेंगे। अरविन्द केजरीवाल समय के साथ परिपक्व हो गए हैं। कंफैडरेशन
की नीति को बदल लिया है और यह अच्छा लक्षण है। रविवार को अपने तीसरे शपथ ग्रहण समारोह
में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पूरे देश को अपनी लंबी पारी के संकेत दिए हैं।
शपथ ग्रहण के बाद लोगों को अपने संबोधन में कहाöदिल्ली ने जिस
नई राजनीति की नींव रखी है, इस नई राजनीति से पूरी दुनिया में
भारत का डंका बजेगा। यही नहीं, उन्होंने जिस गीत, हम होंगे कामयाब... से अपने संबोधन का समापन किया,
उसने भी पूरे देश को एक संकेत दे दिया कि यह नई राजनीति सिर्प दिल्ली
तक रुकने वाली नहीं है, यह आगे बढ़ेगी और आम आदमी पार्टी (आप) के जरिये देश के कोने-कोने
में पहुंचेगी। दरअसल जब सर्वोच्च अदालत ने अधिकार और संवैधानिक व्यवस्था से जुड़े विवाद
का निपटारा करते हुए स्पष्ट कर दिया कि कानून-व्यवस्था,
पुलिस और जमीन जैसे विषय पूरी तरह से केंद्र के आधीन हैं तो केंद्र से
यह टकराव एक तरह से खत्म हो गया। निश्चित रूप से पिछले कार्यकाल के उत्तरार्द्ध में
केजरीवाल सरकार ने जो मुफ्त बिजली, पानी, मोहल्ला क्लिनिक, सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता में सुधार
और महिलाओं के लिए बस तथा मेट्रो के मुफ्त सफर जैसी पेशकश की, उसका उसे चुनाव में फायदा मिला। केजरीवाल ने स्पष्ट किया है कि उनकी प्राथमिकता
में अभी सिर्प दिल्ली है। उसने अपना एकदम शुरुआती वादा बिजली, पानी सस्ता मुहैया कराने की बात बहुत हद तक निभाई है, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों के सियासी और नीतिगत पहलुओं को भी बदल दिया।
सस्ती बिजली का वादा सिर्प सब्सिडी के भरोसे नहीं रहा, बल्कि
बिजली कंपनियों की मांग के बावजूद दाम बढ़ाने की इजाजत नहीं दी गई। इसी तरह पानी भी
दिल्ली के दूरदराज इलाकों में पहुंचने लगा और टैंकर माफिया की हनक कम हुई। इसी तरह
शिक्षा और स्वास्थ्य में निजीकरण पर जोर दिया जा रहा था, तब आम
आदमी पार्टी (आप) सरकार ने सरकारी स्कूलों
और अस्पतालों में सुधार की कोशिशें कीं जिनके नतीजे भी दिखने लगे। इससे आम आदमी खासकर
गरीब और मजदूर, नौकरीपेशे की जनता के जीवन में फर्प आया और वह
इस बार भाजपा के ध्रुवीकरण, तमाम कोशिशों के अलावा इस बात में
भी नहीं फंसे कि खैरात बांटकर कब तक चलेगा? देखना अब यह है कि
क्या दिल्ली के जनादेश को बाकी पार्टियां व सरकारें समझेंगी और देश में सरकारी उपक्रमों
को मजबूती देने की दिशा में बढ़ेंगी? एक समय कहा जाता था कि चुनाव
सड़क, बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर नहीं जीता जा सकता,
लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार के काम को केजरीवाल ने काम की राजनीति
कहकर मैदान फतह कर लिया, यह देखना वाकई ही दिलचस्प होगा कि वह
किस तरह से केंद्र सरकार और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी)
से तालमेल बिठाते हैं, जहां अभी भी भाजपा का कब्जा
है। अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) को इस शानदार जीत पर बधाई।