Wednesday, 30 November 2016

500 और 1000 के बंद नोटों का अब क्या होगा?

नोटबंदी के बाद पहले से ही तकलीफ के दौर से गुजर रही आम जनता के लिए रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए 500 के नए नोटों को लेकर भ्रम की स्थिति और पैदा हो गई है। बाजार में जो नए नोट आए हैं वे दो तरह के हैं। इसके कारण लोगों को लग रहा है कि नोट की छपाई में कमियां हैं तो कोई कह रहा है कि ये नकली नोट हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक 500 के नोट एक-दूसरे से अलग पाए गए हैं। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि एक नोट में गांधी जी के सिर के पीछे और चेहरे के आगे ज्यादा परछाईं नजर आ रही है तो दूसरे में कम। इसके अलावा राष्ट्रीय चिन्ह के अलाइनमेंट और सीरियल नम्बरों में भी गड़बड़ी दिखाई दे रही है। नोटों के बारे में अंतर पर आरबीआई की प्रवक्ता अल्पना किलावाला से स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि जल्दबाजी के कारण वे नोट भी जारी हो गए हैं जिनमें प्रिंटिंग की कुछ खामियां रह गई थीं लेकिन लोग आराम से इन नोटों का लेनदेन कर सकते हैं। इतना ही नहीं, अगर उनको ज्यादा गड़बड़ी लगती है तो वह यह नोट आरबीआई को लौटा सकते हैं। उधर 1000 और 500 के पुराने नोट जिनकी संख्या लगभग 14,179,43 अरब रुपए है, को जनवरी 2017 से नष्ट करने का सिलसिला शुरू होगा। आरबीआई को इतनी बड़ी संख्या में नोटों को नष्ट करने में कठिनाई का सामना करना स्वाभाविक है। यह पहला मौका है जब इतनी ज्यादा तादाद में नोटों को नष्ट किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय बैंक के पास 27 थ्रेडिंग और ब्रिकरिंग सिस्टम मशीन एसबीएस हैं। ये मशीनें कई केंद्रों में स्थापित हैं। यहां पुराने लौटाए गए नोटों के पहले टुकड़े किए जाते हैं। फिर राख में तब्दील करके ईंट बना दिया जाता है। अभी तक हर वर्ष 13,574 अरब तक के नोटों को नष्ट किया जाता रहा है। इस बार दोगुने से ज्यादा नष्ट करने होंगे। इसमें दो राय नहीं कि रिजर्व बैंक के मुख्य कार्यों में नोटों को नष्ट करना भी एक खास काम है। एक और चिन्ता है थानों में पड़े पुराने 500 और 1000 के नोटों की। सरकार के फैसले के बाद चिन्ता यह है कि देशभर के थानों में जब्त किए गए नोट कहीं रद्दी न बन जाएं। यह राशि अरबों में हो सकती है। सरकारी विभागों के कब्जे में मौजूद बरामद धनराशि का क्या होगा? इस बारे में बात करने पर दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने कहाöऐसे मामले में अदालत तय करती है कि इस धनराशि का क्या होगा? ऐसे मामले में आरोपी को सजा होने के बाद यह धनराशि सरकारी खजाने में जमा कर दी जाती है। सरकार इतने मूल्य का नोट खुद बदल भी सकती है या इसे रद्द भी कर सकती है। नई व्यवस्था में चलन से बाहर हुए वो नोट जो मालखाने में मौजूद नोटों के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को निर्देश देने की जरूरत होगी। पूरे देश में 2009 में 12806 थाने थे। अब उनकी संख्या और भी हो सकती है। इस हिसाब से इनके पास मौजूद राशि अरबों में हो सकती है। रिजर्व बैंक अमूमन एक साल में 16 करोड़ रुपए के नोट नष्ट करता है। उनके पास इतने भर का इंतजाम है। पर अब उसके सामने 2203.3 करोड़ रुपए के नोटों को नष्ट करने की चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

13 मिनट में 12 लोगों ने आतंकियों और गैंगस्टरों को छुड़ाया

अभी मध्य प्रदेश के भोपाल में सिमी से जुड़ी आठ कैदियों के केंद्रीय जेल से भागते हुए मुठभेड़ में मारे जाने की खबर फीकी भी नहीं पड़ी थी कि पंजाब के नाभा में जेल पर हमला कर एक खूंखार आतंकवादी सरगना समेत कुछ खतरनाक अपराधियों को छुड़ा लेने की सूचना चौंकाने वाली है। रविवार सुबह 12 लोगों ने नाभा की जेल पर हमला किया। दो खालिस्तानी आतंकवादियों और चार गैंगस्टरों को छुड़ा ले गए। वह भी 13 मिनट में। छह हमलावर पुलिस की वर्दी में आए, उन्होंने 100 राउंड फायरिंग की पर जेल गार्ड्स ने जवाब में एक भी गोली नहीं चलाई। सुबह से फॉर्च्यूनर कार समेत दो गाड़ियां जेल के सामने खड़ी थीं। इनमें ड्राइवर भी थे। तीन अन्य कारें गेट से थोड़ी दूर थीं। 8.30 बजे एक कार मेन गेट पर आई। सब इंस्पेक्टर की वर्दी में बैठे लोगों को देख गार्ड ने गेट खोल दिया। अंदर पहुंचते ही हमलावरों ने बैरकों के गेट पर गार्ड से चाबी मांगी। मना करने पर धारदार हथियारों से गार्ड को जख्मी कर दिया। चाबी छीनकर फायरिंग शुरू कर दी। शोर सुनते ही जेल के अंदर से छह कैदी गेट पर पहुंचे। फायरिंग से घबराए सुरक्षाकर्मी छुप गए। किसी ने भी जवाबी फायरिंग नहीं की। जेल के बाहर निकले आरोपियों में से एक ने फॉर्च्यूनर में बैठे ड्राइवर को डिक्की खोलने को कहा। इसमें हथियारों का जखीरा था। एक हमलावर ने रजाई में लिपटे हथियार कैदियों को दिए। सब कार में बैठकर फायरिंग करते हुए भाग निकले। डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर रेलवे फाटक बंद मिला तो वापस लौटकर जेल के सामने से ही निकल गए। चिन्ता का विषय यह है कि हमारी अतिसुरक्षित जेलों का यह हाल है तो बाकियों का क्या हाल होगा? यह उस जेल का हाल है, जहां खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का सरगना हरमिंदर सिंह मिंटू कैद था। मिंटू के चूंकि कुख्यात पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते रहे हैं, ऐसे में उसकी फरारी को पाकिस्तान की साजिश से जोड़कर देखना स्वाभाविक है, पर इससे जेलों की सुरक्षा के मामले में हमारी कमजोरियां नजरअंदाज नहीं की जा सकतीं। जेल से आतंकियों के फरार होने की घटना कोई पहली बार नहीं हुई है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक कैदियों के जेल से भागने के मामले में पहले नम्बर पर राजस्थान की जेलें हैं, जहां सबसे ज्यादा कैदी भागते हैं। दूसरा नम्बर मध्य प्रदेश का है। नवम्बर के शुरुआत में आई इस रिपोर्ट में दिल्ली के लिए काफी राहत की बात है क्योंकि इसके मुताबिक राजधानी में 2001 से अब तक कोई कैदी जेल से फरार नहीं हुआ। यह थोड़ा संतोष की बात है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने हरमिंदर सिंह मिंटू को गिरफ्तार कर लिया है। बाकी फरार कैदियों को जल्द से जल्द शिकंजे में कसने का काम तो होना ही चाहिए, लेकिन जेल सुधार के मोर्चे पर अब अविलंब ध्यान देना होगा। उम्मीद की जाती है कि नाभा में हुई इस चूक से जेलों की सुरक्षा मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने का अवसर मिलेगा।

Tuesday, 29 November 2016

पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा

पाकिस्तान में कई दिनों से चली आ रही अटकलें कि सेना के प्रमुख जनरल राहील शरीफ को एक्सटेंशन मिलेगा या नहीं समाप्त हो गई हैं। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने शनिवार को नए आर्मी चीफ की घोषणा कर दी है। लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ होंगे। वह मंगलवार को अपना पद संभालेंगे। इसी दिन मौजूदा आर्मी चीफ जनरल राहील शरीफ रिटायर होंगे। बलूच रेजीमेंट से अपना आर्मी कैरियर शुरू करने वाले जनरल बाजवा को पाकिस्तान में कश्मीर मामलों का एक्सपर्ट माना जाता है। भारत और पाक के पंजाब राज्य में बाजवा समुदाय के काफी लोग अपने नाम के साथ बाजवा लिखते हैं। बाजवा शब्द बाज वाला यानि बाज रखने वाले से निकला है। बाजवा नाम जाट समुदाय से जुड़े लोगों का होता है। इन्हें जट सिख भी बोला जाता है। इनकी आबादी अमृतसर, जालंधर, चंडीगढ़ में है। पाकिस्तान के सियालकोट, मुल्तान और सहीवाल के मुस्लिम भी बाजवा लिखते हैं। प्रोफेशनल छवि रखने वाले जनरल जावेद बाजवा की नियुक्ति को भारत के विशेषज्ञ भारत के लिए पॉजिटिव मान रहे हैं क्योंकि आतंकवाद को लेकर उनका रुख सख्त रहा है। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को भारत से ज्यादा बड़ा खतरा आतंकवाद से है। बाजवा का नाम आर्मी चीफ की रेस में नहीं था। उनकी बजाय बहावलपुर कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इकबाल और मुल्तान कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अशफाक नदीम के नाम चल रहे थे। जनरल राहील शरीफ के रिटायरमेंट की खबर से पाकिस्तानी मीडिया हैरान है। सेना ने ट्वीट कर जनरल शरीफ के सेनाध्यक्ष पद पर तीन साल पूरे होने पर 29 नवम्बर को रिटायर होने की खबर पोस्ट की तो मीडिया हैरान हो गया। चूंकि पाकिस्तान में सेना ने कई बार तख्तापलट किया है और कई बार सेनाध्यक्षों को सेवा विस्तार मिला है। ऐसे में राहील शरीफ को रिटायर करने के फैसले से लोग चौंक रहे हैं। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में जनरल राहील शरीफ को फील्ड मार्शल बनाने के लिए बाकायदा एक याचिका भी दायर की गई है। ऐसी ही याचिका इस्लामाबाद हाई कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। हाई कोर्ट के इस फैसले को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि जनरल राहील शरीफ ने शांति और युद्ध के समय जिस तरह का अनुकरणीय, असाधारण और पेशेवर प्रदर्शन किया, जिस तरह का समर्पण और निष्ठा दिखाई उसकी वजह से वे राष्ट्रीय प्रशंसा, अवार्ड और पहचान पाने के पूरी तरह योग्य हैं। चूंकि नए पाक सेना प्रमुख कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं, संभव है कि वे आतंकवाद को और बढ़ावा दें। पाकिस्तान के साथ मौजूदा समय तनाव चरम पर है। ऐसे समय नवाज शरीफ का अपना आर्मी चीफ बदलना महत्वपूर्ण है। देखें, जनरल बाजवा लकीर से हटकर कुछ करने में सक्षम साबित होते हैं? वैसे यह माना जा रहा है कि पाक सेना की नीतियों में कोई तब्दीली नहीं होगी।

-अनिल नरेन्द्र

49 साल शासन किया, हत्या की 638 साजिश नाकाम कीं

पड़ोस में रहकर करीब 50 साल तक अमेरिका की आंखों में किरकिरी बने रहे क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्राs (90) ने शुक्रवार को हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं। कास्त्राs दुनिया में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले नेताओं में ही शुमार नहीं थे बल्कि साम्यवादी व्यवस्था के स्तम्भ थे, जो सोवियत संघ टूटने के बाद भी दरके। फौजी ड्रेस, लंबी दाढ़ी और हाथों में सिगार उनकी शख्सियत की पहचान थी। अमेरिका से महज 90 मील की दूरी पर छोटे से देश क्यूबा का कम्युनिस्ट शासक। अमेरिका परस्त सैन्य तानाशाह फुलखेशियो बतिस्ता को सात साल के लंबे संघर्ष के बाद सत्ता से बेदखल किया। 1959 में अमेरिकी महाद्वीप में पहली कम्युनिस्ट सरकार बनाई। पांच दशक से अधिक समय तक सत्ता संभाली। वे थाइलैंड के महाराजा भूमिबल अतुल्यतेज और ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ के  बाद सबसे लंबे समय तक राज करने वाले शासक हैं। अपने शासन में फिदेल कास्त्राs ने 11 अमेरिकी राष्ट्रपतियों से लोहा लिया। शीतयुद्ध के दौरान उन्होंने क्यूबा में सोवियत संघ की परमाणु मिसाइलों को अपने देश में तैनात करने की मंजूरी दे दी। हालांकि बाद में सोवियत संघ ने मिसाइलें तैनात नहीं कीं। पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दोस्ती का पैगाम लेकर क्यूबा पहुंचे। वे 1950 के बाद क्यूबा जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। कहते हैं कि अमेरिका उनकी हत्या कराना चाहता था। वहां की खुफिया एजेंसियों ने उन्हें मारने के लिए आपरेशन मांगूज चलाया। कहा जाता है कि अमेरिका ने कास्त्राs को मारने के लिए 638 कोशिशें कीं पर सब नाकाम रहीं। 13 अगस्त 1926 को क्यूबा के जमींदार परिवार में जन्मे फिदेल ने 24 साल की उम्र में क्यूबा में अमेरिकी समर्थित सरकार को पलटने के लिए गुरिल्ला टीम बनाई। कास्त्राs ने 1952 में फुलखेशियो बतिस्ता को हटाने के लिए 81 लोगों के साथ क्रांति का बिगुल पूंका। कास्त्राs ने बलिएता को हटाने के लिए द मूवमेंट नाम की संस्था शुरू की। 1953 में एक सैन्य बैरक पर हमला किया, लेकिन कास्त्राs को गिरफ्तार कर लिया गया। 15 साल की सजा हुई, लेकिन 19 महीने बाद रिहा हो गए। कास्त्राs मैक्सिको चले गए। 1956 में 80 साथियों के साथ लौटे। बतिस्ता के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ा और 1959 में बतिस्ता को हराकर क्यूबा में कम्युनिस्ट सत्ता कायम की जो आज तक चल रही है। कास्त्राs भारत के मित्र थे। उन्होंने 1973 और 1983 में भारत का दौरा किया था। दिल्ली में कास्त्राs को गुटनिरपेक्ष सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह गेवल मेजबान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपना था। दोनों मंच से उठे और इंदिरा ने गेवल लेने के लिए हाथ बढ़ाया पर कास्त्राs खड़े रहे।  इंदिरा ने दोबारा हाथ बढ़ाया, कास्त्राs मुस्कुराते रहे। इंदिरा ने जब तीसरी बार हाथ बढ़ाया तो कास्त्राs ने उन्हें गले लगा लिया। कास्त्राs की दाढ़ी उनकी पहचान थी। 1959 में उन्होंने कहा था कि मैं दाढ़ी नहीं काट सकता। मैं इसका आदी हूं और मेरी दाढ़ी देश के लिए मायने रखती है। वे कहते थे कि यदि आप रोजाना 15 मिनट शेव करते हैं। साल में 5000 मिनट। मैं इतना समय बर्बाद नहीं कर सकता। जब क्यूबा खुद ब्लेड बनाने लायक विकसित हो जाएगा तो शेविंग कर लूंगा। क्यूबा के विरोधी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने एक बार कहाöकास्त्राs सिर्प लैटिन तानाशाह नहीं है। अपने निजी लाभ के लिए अत्याचार कर रहा है। उसकी महत्वाकांक्षाएं उसके अपने समुद्र तट से भी आगे तक हैं। बिल क्लिंटन ने कहा था कि कास्त्राs ने गैर कानूनी तरीके से अमेरिकियों की हत्याएं कीं। वह गलत भी था। मुझे गर्व है कि मैंने निर्दोष अमेरिकियों को मारने के खिलाफ नाकेबंदी की। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि कास्त्राs एक कूर तानाशाह था। गोलियां चलाने वाले दस्ते और  लोगों को यातनाएं देने वाले व्यक्ति के तौर पर याद रखा जाएगा। उसने सिर्प लोगों पर जुल्म किया। क्रांति के दिनों में फिदेल का नाम दुनिया में बहुत प्रचलित हुआ। वह कहते थेöरुको नहीं, आगे बढ़ते रहोöजब तक विजय न मिल जाए। सन 2006 से कास्त्राs की तबीयत खराब चल रही थी। दो साल बाद उन्होंने सत्ता अपने छोटे भाई राउल कास्त्राs को सौंप दी थी। फिदेल कास्त्राs के निधन पर पश्चिम बंगाल की सभी वामपंथी पार्टियों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वाम मोर्चा ने राज्यभर में अपने सभी पार्टी कार्यालयों पर अगले तीन दिनों तक लाल झंडा झुका कर फिदेल कास्त्राs को अंतिम लाल सलाम दिया।

Sunday, 27 November 2016

نہ بینکوں میں بھیڑ گھٹی نہ جنتا کی تکلیفیں گھٹیں، بڑھی ہے تو صرف سیاست

500اور 1000 روپے کے نوٹوں کی واپسی کے فیصلے پر حکمراں فریق اور اپوزیشن آمنے سامنے آچکی ہیں۔ وزیر اعظم دعوی کررہے ہیں کہ ان کی جانب سے ایپ کے ذریعے سے مانگی گئی رائے میں اب تک5 لاکھ میں سے 93 فیصدی لوگوں نے نوٹ بندی کے فیصلے کو صحیح مانا ہے۔ نوٹ بندی پر سیاسی واویلا رکنے کے بعد وزیر اعظم نے منگل کو ایک موبائل ایپ کے ذریعے سے عام جنتا سے اس بارے میں رائے دینے کوکہا تھا۔ اس سلسلے میں عوام سے 10 سوالوں کا جواب دینے کی اپیل کی گئی تھی۔ بدھوار کو ٹوئٹ پر جاری رپورٹ میں کہا گیا ہے کہ 90 فیصد سے زیادہ نے نوٹ بندی کی حمایت کی ہے جبکہ صرف 2 فیصد نے اسے نا مناسب بتایا۔ نوٹ بندی کو لیکر پی ایم مودی کے ذریعے کرائے گئے سروے کو اپوزیشن نے یوں تو مسترد کردیا ہے لیکن اس سروے کو لیکر سیاسی اور سرکاری گلیاروں میں مباحثے جاری ہیں۔ اپوزیشن کو بحث کے ساتھ ساتھ تشویش بھی ہے کہ اگر یہ سروے صحیح میں ٹھیک ہے تو وزیر اعظم کی مقبولیت آسمان چھونے لگے گی۔ نوٹ بندی کے بعد اتنی پریشانیوں کے باوجود پی ایم کے تئیں لگاؤ اور کریز بنے رہنے کا توڑ کیا ہے؟ وہیں اپوزیشن یہ بھی مانتی ہے کہ سروے فرضی ہے۔ یہ بھی کہ بی جے پی کے 10 کروڑ ممبر دیش بھر میں پھیلے ہوئے ہیں ان ممبروں میں سے خاص کو ہی ایپس کا جواب دینے کے لئے لگایا گیا تھا اس لئے ایک ہی دن میں 5 لاکھ لوگوں نے اس میں حصہ لے لیا اور اس میں 93 فیصد نے پی ایم کے نوٹ بندی کے قدم کو پسند بھی کرلیا؟ کانگریس کے قومی سکریٹری جنرل اور مدھیہ پردیش کے سابق وزیر اعلی دگوجے سنگھ نے کہا ہے کہ500 اور 1000 روپے کے نوٹ بند ہونے سے دیش میں نہ تو کرپشن بند ہوگا اور نہ دہشت گردی و جعلی نوٹوں کا دھندہ اور نہ ہی کالا دھن بند ہوگا۔ انہوں نے کہا پچھلے 17-18 دنوں کے اندر کالا دھن رکھنے والا کوئی شخص بینک میں لائن میں کھڑا دکھائی نہیں دیا۔نئے نوٹ سے رشوت لینے کا دھندہ کافی سرگرم ہے۔ کل ہی ایکسس بینک کا منیجر ساڑھے تین کروڑ روپے کے پرانے نوٹ بدلنے کے عوض رشوت لیتے رنگے ہاتھوں پکڑا گیا ہے۔ جموں و کشمیر میں پچھلے دنوں مارے گئے آتنکیوں کے پاس سے دو دو ہزارکے چار نوٹ برآمد ہوئے ہیں۔ جعلی نوٹوں کا دھندہ کرنے والے آج بھی اپنا کاروبار چلانے میں مصروف ہیں۔ جو لوگ مودی کی تعریف کریں انہیں تو دیش بھکت سمجھا جاتا ہے اور جو نہیں کررہے ہیں انہیں باغی کہا جارہا ہے۔ نوٹ بندی پر وہ شخص کھل کر بولے جو برسوں خاموش رہنے کے لئے مشہور ہیں۔ میں بات کررہا ہوں سابق وزیر اعظم ڈاکٹر منموہن سنگھ کی۔ عام طور پر خاموش اور سنجیدہ رہنے والے سابق وزیر اعظم اور دنیا کے مشہور ماہر معاشیات منموہن سنگھ نے راجیہ سبھا میں بیٹے مودی سے کہا کہ نوٹ بندی بدنظمی کی جیتی جاگتی علامت بن گئی ہے۔ انہوں نے نوٹ بندی کو سرکار کی طرف سے منظم اور لوٹ قراردیا ہے۔ معیشت کے ماہر منموہن سنگھ نے مودی کو آگاہ کیا کہ نوٹ بندی کے فیصلے سے دیش کا جی ڈی ٹی 2 فیصدی تک گر گیا ہے۔ انہوں نے پی ایم سے پوچھا کہ کیا پی ایم اس دیش کا نام بتائیں گے جہاں نقدی جمع کرنے پر روک نہیں ہے۔ لیکن نقدی نکالنے پر روک ہے۔ اس کے بعد مایاوتی ایک قدم اور آگے بڑھ گئیں۔ مودی کے ایپ سروے پر طنز کرتے ہوئے بسپا چیف نے پی ایم مودی کو چیلنج دے ڈالا کہ وہ اگر اپنے سروے پر بھروسہ کرتے ہیں تو نوٹ بندی کے اشو پر ہی صحیح معنی میں لوگوں کے نظریات جاننا چاہتے ہیں تو لوک سبھا بھنگ کرکے نئے چناؤ کرائیں۔ بہن جی نے نوٹ بندی پر پی ایم کے سروے کو غلط بتاتے ہوئے کہا کہ یہ سروے نقلی اور اسپانسرڈ ہے۔ سپا نیتا نریش اگروال نے کہا نوٹ بندی کا فیصلہ اترپردیش کے چناؤ کے پیش نظر لیا گیا ہے اور دوسرے دیشوں میں جہاں بھی ایسافیصلہ لیا گیا ہے وہاں کے تاناشاہوں نے فیصلہ لیا ہے۔ جنتا اس فیصلے سے پریشان ہے اور چناؤ میں جنتا اس کا ضرور جواب دے گی۔ نوٹ بندی کے نفع نقصان پر چل رہی بحث کے درمیان سماج کا ایک ایسا طبقہ بھی ہے جو اس فیصلے سے صرف اور صرف مسئلے ہی جھیل رہا ہے۔ دہاڑی مزدور، ریڑھی ،ٹھیلی یا فٹ پاتھ پر سامان بیچنے والا چھوٹا تاجر ہو یا پھر گنگا کنارے 10 روپے میں مچھلی کا دانا بیچنے والا ہو، ان سبھی کا کام دھندہ چوپٹ ہوگیا ہے۔ نوٹ بندی کے سبب دہاڑی مزدوری کرنے والوں کی زندگی مشکل ہوگئی ہے۔ روزانہ کام کی تلاش میں مزدوروں کا میلہ لگتا ہے۔ پہلے تو مزدوروں کی اتنی مانگ تھی کہ آدھے گھنٹے میں ہی سبھی کو مزدوری مل جاتی تھی لیکن نوٹ بندی کے بعد آدھے مزدوروں کو کام نہیں ملتا۔ ان کے سامنے روزی روٹی پر مشکل آ کھڑی ہوئی ہے۔ ہمارے دیہات میں کسان اس لئے پریشان ہے کہ پرانی کرنسی سے اسے بیج نہیں مل رہا ہے۔ بہت سی جگہوں پر سرکاری احکامات پہنچے نہیں ہیں تاکہ وہ بیج کے لئے پیسہ نکال سکیں۔ سرکار کے حکم کے باوجود 500-1000 کے نوٹ پر کسانوں کو کھاد بیج ملنے سے پریشانی آرہی ہے۔ سرکاری اداروں سے کسانوں کو کہیں نہ کہیں 500 کے نوٹ پر آسانی سے خرید بیج مل رہا ہے لیکن کہیں کہیں سرکار کی گائڈ لائن نہ آنے کا حوالہ دے کر پرانے نوٹ نہیں لئے جارہے ہیں۔ یہی صورتحال ڈیبٹ کارڈ اور کسان کریڈٹ کارڈ کو لیکر بھی یہ افواہ ہے یا سچ ہے سرکار کو بدنام کرنے کی سازش ہے؟ لیکن بازار میں کرنسی خوب چل رہی ہے۔باقی کے دھندے بیشک کمزور ہوںیہ دھندہ تیزی پکڑ چکا ہے۔ 10 لاکھ کے 7 لاکھ روپے ملیں گے۔ 13 لاکھ دو تو 10 لاکھ لے لو۔ ٹھگی کرنے والے الگ سے سرگرم ہیں۔ کچھ لوگ پکڑے بھی گئے ہیں۔ واقف کاروں کے مطابق پرانے نوٹ بدلنے کا کام بازار میں زوروں پر چل رہا ہے۔ شروع میں 20 پرسنٹ کم پر نوٹ بدلنے کا ریٹ تھا ۔ پھر یہ 25-30 ہوا اب یہ 35-40 فیصد ہوگیا ہے ۔ یعنی 100 روپے 60 روپے ملیں گے۔ یہ سب دھندہ چل رہا ہے۔ نئے نوٹ کہاں سے آرہے ہیں؟ جانکار مانتے ہیں کہ یہ بینکوں کے کچھ ملازمین اور دیش میں کئی مقامات کے چیسٹ ملازمین کی ملی بھگت سے ہی ممکن ہوسکتا ہے۔ وہ یہ بھی مانتے ہیں کہ اس طرح لگتا ہے کہ نوٹ بندی کے فوراً بعد ہی کالا دھن کمانے کا ذریعہ کچھ لوگوں نے بنا لیاہے۔ دہلی پولیس کی کرائم برانچ کے ایک افسر نے بتایا پرانے نوٹوں کی شکل میں موجودہ کالادھن دھڑلے سے سفید کیا جا رہا ہے۔ بڑے پیمانے پر حوالہ کاروباری سرگرم ہیں۔ ممبئی، دہلی میں کچھ بینک ملازمین کی مدد سے حوالہ کاروباری آرام سے پرانے نوٹوں کو نئے نوٹ میں بدلوا رہے ہیں۔ سونے میں بھی کالا دھن کھپایا جارہا ہے۔ فی الحال تو یہ نوٹ بندی نہیں ہے ، یہ نوٹ بدلی ہے۔ اس میں شبہ ہے کہ اس طرح نہ تو کالا دھن بند ہوگا اور نہ ہی کرپشن۔
(انل نریندر)

न बैंकों में भीड़ घटी, न जनता की तकलीफें घटीं, बढ़ी है तो सिर्फ सियासत

500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों की वापसी के फैसले पर सत्तापक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं। प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि उनके द्वारा ऐप के माध्यम से मांगी गई राय में अब तक पांच लाख में से 93 प्रतिशत लोगों ने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है। नोटबंदी पर राजनीतिक बवाल मचने के बाद प्रधानमंत्री ने मंगलवार को एक मोबाइल ऐप के माध्यम से आम जनता से इस बारे में राय देने को कहा था। उन्होंने इस संबंध में जनता से 10 सवालों के जवाब देने को कहा था। बुधवार को ट्विटर पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 प्रतिशत से अधिक ने नोटबंदी का समर्थन किया है जबकि सिर्प दो प्रतिशत ने इसे अनुचित बताया। नोटबंदी को लेकर पीएम मोदी द्वारा कराए गए सर्वे को विपक्ष ने यूं तो नकार दिया है। लेकिन इस सर्वे को लेकर राजनीतिक और सरकारी गलियारों में चर्चाएं जारी हैं। विपक्ष को चर्चाओं के साथ-साथ चिन्ता भी है कि यदि यह सर्वे सही में ही ठीक है तो प्रधानमंत्री की लोकप्रियता आसमान छूने लगेगी। नोटबंदी के बाद इतनी परेशानियों के बावजूद पीएम के प्रति लगाव और केज बने रहने का तोड़ क्या है? वहीं विपक्ष यह भी मानता है कि यह सर्वे फर्जी है। यह भी मानता है कि भाजपा के 10 करोड़ सदस्य देशभर में हैं। इन सदस्यों में से खास को ही ऐप पर जवाब देने के लिए लगाया गया था। सो एक ही दिन में पांच लाख लोगों ने इसमें हिस्सा ले लिया और उसमें 93 प्रतिशत ने पीएम के नोटबंदी के कदम को पसंद भी कर लिया? कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि 500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने से देश में न तो भ्रष्टाचार बंद होगा, न आतंकवाद, न जाली नोटों का धंधा और न ही काला धन बंद होगा। उन्होंने कहा कि पिछले 17-18 दिनों के अंदर काला धन रखने वाला कोई व्यक्ति बैंक की कतार में खड़ा नहीं दिखा। नए नोट से रिश्वत लेने का धंधा सक्रिय है। कल ही एक्सिस बैंक का मैनेजर साढ़े तीन करोड़ रुपए के पुराने नोट बदलने की एवज में रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा गया है। जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों मारे गए आतंकियों के पास से दो-दो हजार के चार नोट बरामद हुए हैं। जाली नोटों का धंधा करने वाले आज भी अपना व्यवसाय करने में व्यस्त हैं। जो लोग मोदी की तारीफ करें उन्हें तो देशभक्त समझा जाता है और जो नहीं करें उन्हें देशद्रोही कहा जा रहा है। नोटबंदी पर वह व्यक्ति खुलकर बोला जो वर्षों चुप्पी साधने के लिए मशहूर हैं। मैं बात कर रहा हूं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की। आमतौर पर चुप और संजीदा रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री और विश्व ख्याति के अर्थशास्त्राr मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में सामने बैठे मोदी से कहा कि नोट की अव्यवस्था का जीता-जागता स्मारक बन गया है। उन्होंने नोटबंदी को सरकार की ओर से संगठित और वैध लूट तक करार दिया। अर्थशास्त्र के माहिर मनमोहन ने मोदी को आगाह किया कि नोटबंदी के फैसले से देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दो फीसदी तक गिर जाएगा। उन्होंने पीएम से पूछा कि क्या पीएम उस देश का नाम बताएंगे जहां नकदी जमा करने पर रोक नहीं है लेकिन नकदी निकासी पर रोक है। बहन मायावती तो एक कदम और आगे बढ़ गईं। मोदी के ऐप सर्वेक्षण पर कटाक्ष करते हुए बसपा सुप्रीमो ने पीएम को चुनौती दे डाली कि वे अगर अपने सर्वेक्षण पर विश्वास करते हैं तो नोटबंदी के मुद्दे पर सही मायने में लोगों के विचार जानना चाहते हैं तो लोकसभा भंग करके नए चुनाव करवाएं। बहन जी ने नोटबंदी पर पीएम के सर्वे को गलत बताते हुए कहा कि यह सर्वे फेक और स्पांसर्ड है। सपा नेता नरेश अग्रवाल ने कहा कि नोटबंदी का फैसला उत्तर प्रदेश के चुनाव के मद्देनजर लिया गया है। दूसरे देशों में जहां भी ऐसा निर्णय लिया गया वहां के तानाशाहों ने निर्णय लिया। जनता इस फैसले से परेशान है और चुनाव में जनता इसका जरूर जवाब देगी। नोटबंदी के नुकसान-फायदे पर चल रही बहस के बीच बहरहाल समाज का एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले से सिर्प और सिर्प समस्या ही झेल रहा है। दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी-ठेली या फुटपाथ पर सामान बेचने वाला छोटा व्यापारी हो या फिर गंगा किनारे 10 रुपए में मछली का दाना बेचने वाला हो, इन सभी का काम-धंधा चौपट हो गया है। नोटबंदी के कारण दिहाड़ी मजदूरी करने वालों का जीवन और मुश्किल हो गया है। रोजाना काम की तलाश में मजदूरों का मेला लगता है। पहले तो मजदूरों की इतनी डिमांड थी कि आधे घंटे में ही सभी को मजदूरी मिल जाती थी, लेकिन नोटबंदी के बाद आधे मजदूरों को काम नहीं मिलता। इनके सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है। हमारे ग्रामीण अंचल में किसान इसलिए परेशान है कि पुरानी करेंसी से उसे बीज नहीं मिल पा रहा है। बहुत से स्थानों पर सरकारी आदेश पहुंचे ही नहीं ताकि वह बीज के लिए पैसे निकाल सकें। सरकार के आदेश के बावजूद 500 और 1000 के नोट पर किसानों को खाद-बीज मिलने में परेशानी आ रही है। सहकारी संस्थाओं से किसानों को कहीं-कहीं तो 500 के नोट पर आसानी से खाद-बीज मिल रहा है लेकिन कहीं-कहीं सरकार की गाइड लाइन न आने का हवाला देकर पुराने नोट नहीं लिए जा रहे हैं। यही स्थिति रूपे कार्ड और किसान केडिट कार्ड को लेकर भी है। यह अफवाह है या सच, या सरकार को बदनाम करने की साजिश? लेकिन बाजार में खूब चल रही है। बाकी के धंधे बेशक कमजोर हों, यह धंधा तेजी पकड़ चुका है। 10 लाख के सात लाख रुपए मिलेंगे, 13 लाख दो तो 10 लाख लो। ठगी करने वाले अलग से एक्टिव हैं। कुछ लोग पकड़े भी गए हैं। जानकारों के मुताबिक पुराने नोट बदलने का काम बाजार में जोरों से चल रहा है। शुरू में 20 प्रतिशत कम पर नोट बदलने का रेट था। फिर यह 25, 30 हुआ और अब यह 35-40 प्रतिशत हो गया है यानि 100 रुपए के पुराने नोट के 60-65 रुपए नए नोटों में मिलेंगे, यह सब चल रहा है, नए नोट कहां से आ रहे हैं? जानकार मानते हैं कि यह बैंकों के कुछ कर्मियों और देश में कई जगहों के पोस्ट ऑफिस कर्मियों की मिलीभगत से ही संभव हो सकता है। वे यह भी मानते हैं कि इस तरह लगता है कि नोटबंदी के फौरन बाद ही काला धन कमाने का एक जरिया  कुछ लोगों ने बना लिया है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के अधिकारी ने बतायाöपुराने नोटों के रूप में मौजूदा काला धन धड़ल्ले से सफेद किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर हवाला कारोबारी सक्रिय हैं। मुंबई और दिल्ली में कुछ बैंक कर्मचारियों की मदद से हवाला कारोबारी आराम से पुराने नोटों को नए नोटों में बदलवा रहे हैं। सोने में भी काला धन खपाया जा रहा है। फिलहाल तो यह नोटबंदी नहीं है, यह नोट बदली है। इसमें संदेह है कि इस तरह न तो काला धन बंद होगा और न ही भ्रष्टाचार।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 26 November 2016

Israeli President’s visit strengthens bilateral relations

The six day visit of Israeli President was an important step in the direction of growing relations between India and Israel. In the current global scenario, Israel and India are the vital partners in mutual strategic and comprehensive economic areas. Now India doesn't hesitate to openly publicize its friendship with Israel. After assuming the charge of Prime Minister by Sh. Narendra Modi, India has modified relations with many such nations which were avoided to be accepted as friends. Years ago I also had the opportunity to visit Israel. But the Indo – Israel relations were not so open then. I went to Tel Aviv via a third nation. But it is gratifying that relations between Israel – India have not only opened but have strengthened more  than ever before. Israel has always helped India. When Kargil war broke out we had no shells for Bofors guns. It was Israel who supplied us the shells for Bofors guns. Israel also gave the investigating technique to our helicopters during the Pathankot attack to find out the hideouts of the terrorists. Located in the middle-east, Israel is an important nation with a point of view of global politics. The late Prime Minister Narsimha Rao contributed a lot in modifying the relations with Israel. He established diplomatic relations with Israel in 1992 for the first time. It strengthened more during the term of the Prime Minister Atal Behari Vajpayee. Israeli President Reuven Rivlin is the first Israeli President in last 20 years to visit India. He was given a warm welcome in India. After meeting the Prime Minister Narendra Modi in Hyderabad House both the leaders had dialogues on delegate level and two important agreements were signed on Water Resources Management and Agricultural Co-operation between both the nations. Since Israel is expert in the water management, as such Israeli technique will be beneficial at the places in India with shortage of water due to any reason. In last few years bilateral relations between both the nations have more strengthened, that is why the Israeli President has committed full support to India in the war against the terrorism and both the nations have agreed that terrorism is not a problem of a single nation in the global scenario for taking strict action against the terrorist network and nurturing them. Presently there is no such a nation which is not affected by the terrorism. In the strategic field, the Israeli guest said that we are ready for Make in India and Make with India. In all the visit of Mr. Rivlin has strengthened the Indo-Israel relations.
Anil Narendra

Israeli President’s visit strengthens bilateral relations

The six day visit of Israeli President was an important step in the direction of growing relations between India and Israel. In the current global scenario, Israel and India are the vital partners in mutual strategic and comprehensive economic areas. Now India doesn’t hesitate to openly publicize its friendship with Israel. After assuming the charge of Prime Minister by Sh. Narendra Modi, India has modified relations with many such nations which were avoided to be accepted as friends. Years ago I also had the opportunity to visit Israel. But the Indo – Israel relations were not so open then. I went to Tel Aviv via a third nation. But it is gratifying that relations between Israel – India have not only opened but have strengthened more  than ever before. Israel has always helped India. When Kargil war broke out we had no shells for Bofors guns. It was Israel who supplied us the shells for Bofors guns. Israel also gave the investigating technique to our helicopters during the Pathankot attack to find out the hideouts of the terrorists. Located in the middle-east, Israel is an important nation with a point of view of global politics. The late Prime Minister Narsimha Rao contributed a lot in modifying the relations with Israel. He established diplomatic relations with Israel in 1992 for the first time. It strengthened more during the term of the Prime Minister Atal Behari Vajpayee. Israeli President Reuven Rivlin is the first Israeli President in last 20 years to visit India. He was given a warm welcome in India. After meeting the Prime Minister Narendra Modi in Hyderabad House both the leaders had dialogues on delegate level and two important agreements were signed on Water Resources Management and Agricultural Co-operation between both the nations. Since Israel is expert in the water management, as such Israeli technique will be beneficial at the places in India with shortage of water due to any reason. In last few years bilateral relations between both the nations have more strengthened, that is why the Israeli President has committed full support to India in the war against the terrorism and both the nations have agreed that terrorism is not a problem of a single nation in the global scenario for taking strict action against the terrorist network and nurturing them. Presently there is no such a nation which is not affected by the terrorism. In the strategic field, the Israeli guest said that we are ready for Make in India and Make with India. In all the visit of Mr. Rivlin has strengthened the Indo-Israel relations.
Anil Narendra


पाक की बर्बर हरकत का सेना ने करारा जवाब दिया

पाकिस्तान अपनी बर्बर हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। पाक ने फिर वही हरकत की है और इसका करारा जवाब भी मिला है। मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के माछिल सेक्टर में सीमा पार से आए आतंकियों ने मुठभेड़ में न केवल हमारे तीन सैनिकों को शहीद किया बल्कि आतंकियों ने उनमें से एक शहीद का सिर भी काट लिया। जिस तरह से 57 राष्ट्रीय राइफल्स के एक जवान के शव को क्षत-विक्षत किया वह सहनशीलता की सीमा पार करने वाला है। माछिल वही इलाका है, जहां घात लगाकर किए गए हमले में 29 अक्तूबर को 17 सिख रेजीमेंट के सिपाही मनदीप सिंह को शहीद कर उनके शव को भी इसी तरह क्षत-विक्षत कर दिया गया था। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पाकिस्तान ने एक साथ रेंजर, सेना व आतंकियों को हर प्रकार की कार्यवाही में झोंक दिया है। तब से 125 बार उसकी ओर से संघर्षविराम का उल्लंघन हो चुका है। भारत इन हमलों का करारा जवाब दे रहा है। भारत की ओर  से 29 सितम्बर को की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद के लगभग दो महीनों में 12 सैनिक शहीद हो चुके हैं। सीमावर्ती इलाकों में नागरिकों के जानमाल का जो नुकसान हुआ सो अलग। हमारे जवान पाकिस्तान की हर बर्बर हरकत का जवाब देने में सक्षम हैं। माछिल में ताजा बर्बरता का मुंहतोड़ जवाब देते हुए भारतीय सेना ने मोर्टार और भारी तोपों का इस्तेमाल करते हुए एलओसी के कई सेक्टरों को गोलों से पाट दिया। पाकिस्तानी क्षेत्रों में त्राहि-त्राहि का माहौल है। रक्षा सूत्रों का दावा है कि उनकी जवाबी कार्यवाही में दर्जनभर पाक सैनिक मारे गए हैं और बीसियों पाक बंकर और फारवर्ड पोस्टों को नेस्तनाबूद कर दिया गया है। हालांकि पाक का दावा है कि भारतीय सेना की गोलीबारी में नीलम घाटी के लवार गांव में नौ बस यात्रियों की मौत हो गई है। बताया जा रहा है कि 2003 के बाद से भारतीय सेना की तरफ से यह सबसे बड़ा हमला है। भारतीय सैनिक पाकिस्तान की उन पोस्टों को निशाना बना रहे हैं, जहां से आतंकी घुसपैठ करने का प्रयास करते हैं। पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ है। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार भारत की जवाबी कार्यवाही में पीओके में 10 लोग मारे गए हैं। हालांकि पाक सेना ने चार लोगों के मारे जाने और सात लोगों के घायल होने की पुष्टि की है। तो जवाब तो पाकिस्तान को मिल रहा है। लेकिन जिस तरह की बर्बरता पाकिस्तान कर सकता है, वैसा भारत नहीं कर सकता। न हम आतंकवादी भेज सकते हैं न किसी सैनिक का सिर काट सकते हैं और न ही उसे किसी तरह से अंग-भंग कर सकते हैं। तो रास्ता एक ही है, सशक्त निगरानी से अपना बचाव एवं पाक को हमले से मुंहतोड़ जवाब देकर ज्यादा से ज्यादा क्षति पहुंचाना। अभी हाल ही में पाक ने स्वीकार किया था कि उसके सात जवान भारतीय हमले में मारे गए। ताजा हमले में पाकिस्तान के एक कैप्टन के मारे जाने की भी पुष्टि हुई है। पाकिस्तान को ईंट का जवाब गोले से मिलेगा।

-अनिल नरेन्द्र

नोटबंदी पर सरकार को दिया सुप्रीम कोर्ट ने झटका

नोटबंदी पर केंद्र सरकार को संसद से सड़कों तक, गांवों से अदालत तक झटके ही झटके लग रहे हैं। अदालतें बार-बार केंद्र को झटके दे रही हैं। ताजा झटका बुधवार को तब लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न हाई कोर्टों में नोटबंदी के संबंध में लंबित कार्रवाई पर स्थगनादेश जारी करने की केंद्र की अपील को यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि हो सकता है कि जनता उनसे त्वरित राहत चाहती हो। केंद्र सरकार ने दावा किया कि नोटबंदी सफल है क्योंकि अब तक बैंकों में छह लाख करोड़ रुपए के 500 और 1000 के नोट जमा हो चुके हैं। 30 दिसम्बर तक यह आंकड़ा 10 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे नजरअंदाज करते हुए साफ कहाöहम विभिन्न हाई कोर्टों में दायर याचिकाओं को रोकना नहीं चाहते। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि अदालतें लोगों को तत्काल राहत दे सकती हैं। पीठ के जजों डीवीई चन्द्रचूड़ और एल. नागेश्वर राव ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहाöहमें लगता है कि आपने जरूर कुछ उचित कदम उठाए होंगे? अब क्या स्थिति है? आपने अभी तक कितनी रकम एकत्र की है? इसके जवाब में रोहतगी ने कहा कि स्थिति काफी बेहतर है व नोटबंदी के बाद छह लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि अभी तक बैंकों में आ चुकी है। धन के डिजिटल लेन-देन में काफी उछाल आया है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला 70 सालों में जमा काले धन को हटाने के मकसद से लिया गया है और सरकार हालात पर हर रोज और हर घंटे निगरानी कर रही है। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए दो दिसम्बर की तारीख तय कर दी और याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे उस समय केंद्र की स्थानांतरण की अपील पर अपने जवाब दाखिल करें। उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने 18 नवम्बर को बैंकों और डाक घरों के बाहर लंबी कतारों को गंभीर मुद्दा बताते हुए केंद्र की उस याचिका पर अपनी आपत्ति जताई थी जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि आठ नवम्बर की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर देश में कोई अन्य अदालत विचार नहीं करे। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर और अनिल आर. दवे की पीठ ने संबंधित पक्षों से सभी आंकड़ों और दूसरे बिन्दुओं के बारे में लिखित में सामग्री तैयार करने का निर्देश देते हुए कहा था कि यह गंभीर विषय है जिस पर विचार की आवश्यकता है। देखिए जनता किस तरह की समस्याओं से रूबरू हो रही है। लोगों को हाई कोर्ट जाना ही पड़ेगा। यदि हम हाई कोर्ट जाने का उनका विकल्प बंद कर देते हैं तो हमें समस्या की गंभीरता कैसे पता चलेगी। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि सरकार के अचानक लिए गए इस फैसले ने अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है और आम जनता परेशान, हैरान हो रही है।

Friday, 25 November 2016

RBI Governor should resign on moral grounds

When the Prime Minister Narendra Modi on 8th November at 8 P.M. announced the demonetization of 500 & 1000 rupee note to abolish the corruption and the black money, the entire nation welcomed it. Who doesn’t want to abolish the corruption and the black money? But as the time passed, peoples’ woes went on rise and even after 15 days the public is seen in queues for hours. Queues are formed since midnight outside the banks to withdraw their own hard earned money. After standing in queues for hours with hunger and thirst they are told that the Bank is out of cash and they will have to queue again the next day. Without proper preparation of implementation, best of the best plan may turn into the worst nightmare; we have various examples in the past. The way the government has to frequently modify its decision to demonetize the 500 and 1000 rupee note; perhaps it appears that the Government or the Reserve Bank of India had not properly prepared a detailed plan. Repeated government announcements mean that the government isaware  that the people everywhere are facing problems. Secondly, these announcements prove that the government’s preparation to implement such a big decision was very poor. While the government claims it was preparing for it for months. Had the homework been done  properly the government should have been aware that this is the season of sowing, and weddings. How appropriate was the decision to stall the transactions, business justified? That is why the government has to frequently change its order. Implementation and the execution of the Prime Minister’s plan, was the duty of the Reserve Bank of India. If it lacks it is the fault of the Reserve Bank and it should be accountable to the nation. Dozens of people have died, who is responsible for it? On 22nd November a father in PS Tidambari (Banda-UP) could not withdraw the money for treatment of her daughter, the girl died within the bank premises. An old man in Delhi collapsed in queue. News of withdrawal of Rs. Two and half lakhs for the families having weddings has proved to be a trouble instead of relief. People reached in various banks on Tuesday with wedding cards to withdraw Rs. Two and half lakh in cash had to turn empty handed being hounded with  various conditions of the Reserve Bank of India. The families are in fix having the wedding within coming two-three days. Anita from Laxminagar tells that her younger daughter is to be married in two days. The home is crowded with relatives. We have nothing in hand as cash. Petty cash is much needed in the homes with wedding. Now bank has placed such conditions we can’t fulfill them within two days. The documents banks are asking are impossible to be arranged within one or two days. Should we prepare for wedding or wander here and there for arranging the documents? We’ve not completed the card distribution yet. Demonetization has also affected the pace of the economic growth of the nation. International rating agency Fitch has indicated on Tuesday that the expected Gross Domestic Product (GDP) growth rate of India may decrease in the last quarter (October-December). Fitch has reported that the decision of demonetization of 500 and 1000 rupee note has created cash crisis in India. All the economic activities have come to a halt. People are unable to make purchases. Farmers are facing problems in purchasing seeds. Production capacity of the nation has been badly affected due to the long queues in the banks. As per the Ex-Governor of the Reserve Bank Raghuraman the nation is losing Rs. 80 thousand crore per day, being the loss of Rs. 40 lakh crore within 50 days. There was not so much black money. What type of economics it is? It is the Reserve Bank of India solely responsible for this wastage. All India Bankers’ Union has rightly sought the resignation of Reserve Bank Governor Urjit Patel for putting the nation into crisis with such incomplete preparation. Union has held him responsible for taking decision without preparation and cash-strap. The Union represents 2.5 lakh senior officials of nationalized, private sector, co-operative and regional banks of the country. Union has said that the RBI Governor should take the moral responsibility of deaths of several people including 11 bank officials and resign from the office. The present RBI Governor has failed in taking right decision for which the general public is paying. Senior banker also questioned on releasing 2000 rupee note in place of 500 rupee note first and said that the RBI Governor signed on 2000 rupee note. Why didn’t his team feel that the size of 2000 rupee note is smaller than 1000 rupee note? How can two lakh ATM machines be calibrated simultaneously? Unions have cursed the RBI saying that it has been failed in case of demonetization and could not properly advice the government. So before the government faces more miserable situation, the RBI Governor should resign from the office taking the moral responsibility.

ANIL NARENDA


इजराइली राष्ट्रपति की यात्रा से दोनों देशों के संबंध मजबूत हुए हैं

इजराइल के राष्ट्रपति रेउवेन रिवलिन की छह दिवसीय भारत यात्रा, भारत-इजराइल के बढ़ते संबंधों की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम रही। वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में इजराइल-भारत एक-दूसरे के सामरिक और व्यापक आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण साझेदार हैं। अब भारत खुलकर इजराइल से अपनी दोस्ती को सार्वजनिक होने से नहीं घबराता। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने कई ऐसे देशों से संबंध सुधारे हैं जिनसे पहले खुले में दोस्ती स्वीकार करने से परहेज था। बहुत वर्षों पहले मुझे भी इजराइल जाने का अवसर मिला। पर तब भारत-इजराइल के खुले संबंध नहीं थे। एक तीसरे देश से होते हुए मैं तेलअवीव गया था। पर खुशी की बात है कि अब इजराइल-भारत के संबंध न केवल खुले हैं पर पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हैं। इजराइल ने हमेशा भारत की मदद की है। जब कारगिल जंग हुई थी तो हमारी बोफोर्स तोप के गोले हमारे पास नहीं थे। इजराइल ने ही हमें बोफोर्स तोप के गोले दिए थे। पठानकोट हमले के दौरान इजराइल ने ही हमारे हेलीकाप्टरों को खोजी तकनीक दी थी जिससे हमें पता चला था कि आतंकी कहां छिपे हुए हैं। इजराइल मध्य पूर्व में स्थित विश्व राजनीति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण राष्ट्र है। इजराइल से संबंध सुधारने में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव का विशेष योगदान रहा। उन्होंने 1992 में पहली बार इजराइल के साथ सियासी संबंध स्थापित किए थे। आज देश इसी का लाभ उठा रहा है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में यह संबंध और मजबूत हुए। इजराइल के राष्ट्रपति रेउवेन रिवलिन पिछले 20 वर्षों में पहले इजराइली राष्ट्रपति हैं जिन्होंने भारत का दौरा किया। उनका गर्मजोशी से भारत में स्वागत हुआ। हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के पश्चात दोनों नेताओं ने प्रतिनिधि स्तर की वार्ता के पश्चात दोनों देशों के मध्य जल संसाधन प्रबंधन और कृषि सहयोग के लिए दो अहम समझौते हुए। इजराइल जल प्रबंधन में माहिर है, ऐसे में भारत में जिन स्थानों पर पानी का किसी कारण से अभाव है उसमें इजराइली तकनीक फायदा पहुंचाएगी। पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध काफी मजबूत हुए हैं, यही कारण है कि इजराइली राष्ट्रपति ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का पूर्ण सहयोग करने की प्रतिबद्धता जताई और दोनों देशों ने आतंकवादी नेटवर्प और उनका पालन-पोषण करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए वैश्विक परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं रह गई है। वर्तमान में शायद ही कोई देश ऐसा हो जो आतंकवाद से पीड़ित न हो। रक्षा क्षेत्र में इजराइली मेहमान ने कहा कि मेक इन इंडिया और मेक विद इंडिया के लिए हम तैयार हैं। कुल मिलाकर सफल रही श्री रिवलिन की इस यात्रा से भारत-इजराइल संबंध और मजबूत हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर को इस्तीफा देना चाहिए

जब आठ नवम्बर को रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार और काले धन को समाप्त करने के लिए 500 और 1000 रुपए की नोटबंदी की घोषणा की थी तो सारे देश ने इसका स्वागत किया था। कौन नहीं चाहता कि भ्रष्टाचार और काला धन समाप्त हो। पर जैसे-जैसे दिन गुजरे, जनता की परेशानियां बढ़ती चली गईं और 15 दिन के बाद भी जनता घंटों लाइनों में खड़ी नजर आ रही है। अपनी ही गाढ़ी कमाई को बैंक से निकालने के लिए बैंकों के बाहर आधी रात्रि से ही लाइनें लग जाती हैं। घंटों भूखे-प्यासे लाइन में रहने के बाद भी पता चलता है कि बैंक में पैसे खत्म हो गए हैं और अगले दिन फिर लाइन लगानी पड़ेगी। नायाब से नायाब योजना भी अमल की विस्तृत तैयारी के बिना बेमानी हो जाती है, इसकी मिसालें अतीत में कई हैं। 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने के केंद्र के फैसले में जिस तरह बार-बार सुधार करना पड़ रहा है, उसे देखकर शायद ही लगता है कि इसके लिए सरकार या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने विस्तृत योजना तैयार नहीं की थी। बार-बार सरकार की घोषणाएं यही बताती हैं कि सरकार को देर से ही सही, परोक्ष रूप से यह मानना पड़ रहा है कि हर जगह लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरे, ये घोषणाएं यह भी साबित करती हैं कि इतने बड़े फैसले को लागू करने की सरकार की तैयारी एकदम लचर थी। जबकि सरकार यह दावा करती है कि उसकी तैयारी महीनों से चल रही थी। अगर ढंग से सोचा गया होता तो सरकार को पता होना चाहिए था कि यह बुआई, शादी-ब्याह का मौसम है। ऐसे वक्त लेन-देन, कामकाज ठप कर देने का फैसला कितना मुनासिब था? इसलिए ही सरकार को बार-बार अपने आदेश को बदलना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री की योजना को क्रियान्वयन, अमली जामा पहनाने का काम भारतीय रिजर्व बैंक का था। अगर इसमें कमी रही है तो यह रिजर्व बैंक की कमी रही है और रिजर्व बैंक को देश को जवाब देना होगा। दर्जनों की मौत हो गई है, इसका जिम्मेदार आखिर कौन है? 22 नवम्बर को तिदंबारी (बांदा यूपी) थाना क्षेत्र में बच्ची के इलाज के लिए पिता धन नहीं निकाल सका, जिससे बच्ची ने बैंक परिसर में ही दम तोड़ दिया। दिल्ली में एक वृद्ध ने बैंक के बाहर लाइन में खड़े-खड़े ही दम तोड़ दिया। शादी वाले परिवारों के लिए रिजर्व बैंक से ढाई लाख रुपए निकालने की खबर राहत की बजाय आफत साबित हुई है। मंगलवार को तमाम बैंकों में शादी का कार्ड लेकर ढाई लाख की नकदी लेने पहुंचे सैकड़ों परिवारों को भारतीय रिजर्व बैंक की तमाम शर्तों के बीच फंसकर खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ा। जिन परिवारों में दो-तीन दिन में शादी है उन परिवारों की समस्या और बढ़ गई है। लक्ष्मीनगर निवासी अनीता बताती हैं कि दो दिन में छोटी बेटी की बारात आने वाली है। घर रिश्तेदारों से पटा पड़ा है। हमारे पास हाथ में नकदी के नाम पर कुछ भी नहीं है। शादी वाले घरों में छुटकर पैसे की बहुत जरूरत पड़ती है। अब बैंक ने ऐसी शर्तें रखी हैं उन्हें दो दिन में कैसे पूरा कर पाएंगे? बैंक जितने कागज मांग रहे हैं वे एक-दो दिन में जुटाने भी संभव नहीं। हम शादी की तैयारी करें या कागज जुटाने के लिए दर-दर भटकें? अभी तो कार्ड बांटने का काम भी पूरा नहीं हुआ। नोटबंदी ने देश के आर्थिक विकास की रफ्तार को भी प्रभावित किया है। अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी `फिच' ने मंगलवार को संकेत दिए हैं कि अंतिम तिमाही (अक्तूबर-दिसम्बर) में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के अनुमान में कमी आ जाएगी। फिच ने रिपोर्ट में कहा है कि 500 और 1000 रुपए के नोट बंद के फैसले से भारत में नकदी की समस्या पैदा हो गई है। इससे तमाम आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ गई हैं। लोग खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं। किसानों को बीज खरीदने में दिक्कतें हो रही हैं। बैंकों में लगी लंबी लाइनों से देश की उत्पादन क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराजन के अनुसार हर रोज देश को 80 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है, मतलब 50 दिन में 40 लाख करोड़ रुपए का नुकसान। इतना तो काला धन भी नहीं था? यह कैसा अर्थशास्त्र है? इस सब बर्बादी का जिम्मेदार है भारतीय रिजर्व बैंक। ऑल इंडिया बैंकर्स यूनियन ने इस अधूरी तैयारी के लिए देश को संकट में डालने के लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल का इस्तीफा मांगा है। यूनियन ने उन पर बिना तैयारी के फैसला लेने और आर्थिक तंगी के लिए जिम्मेदार ठहराने का आरोप लगाया है। यह यूनियन देश के राष्ट्रीय, निजी सेक्टर, को-ऑपरेटिव और क्षेत्रीय बैंकों के 2.5 लाख सीनियर बैंक अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करती है। यूनियन ने कहा कि 11 बैंक अधिकारियों समेत तमाम लोगों की हुईं मौतों की नैतिक जिम्मेदारी आरबीआई गवर्नर को लेनी चाहिए और उन्हें पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। वर्तमान आरबीआई गवर्नर सही फैसला लेने में विफल रहे हैं जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ा है। सीनियर बैंकर ने 500 रुपए की जगह 2000 रुपए का नोट पहले उतारने पर भी सवाल किया और कहा कि आरबीआई गवर्नर ने 2000 रुपए के नोट पर साइन किए। उनकी टीम को इस बात का अहसास क्यों नहीं हुआ कि 2000 रुपए के नोट का साइज 1000 रुपए के नोट से छोटा है। इससे दो लाख बैंक एटीएम मशीनों को एक साथ कैसे बदला जा सकेगा? फ्रंकों ने आरबीआई को कोसते हुए कहा कि नोटबंदी के मामले में यह पूरी तरह विफल रहा है और सरकार को सही ढंग से सलाह भी नहीं दे पाया। लिहाजा सरकार की और दुर्गति होने से पहले रिजर्व बैंक गवर्नर को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

Thursday, 24 November 2016

फिर कोलेजियम और सरकार में टकराव

न्यायपालिका और विधायिका में टकराव जारी है। यह भी ऐसे समय में जब सरकार और अदालतें नोटबंदी के कारण आमने-सामने आती नजर रही हैं। ताजा मामला विभिन्न हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति का है। विभिन्न हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम द्वारा भेजे गए 43 नामों को नकारने के केंद्र सरकार के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करने से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने फिर से इन सभी नामों को केंद्र सरकार के पास भेजा है और सरकार को इस पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की अध्यक्षता करने वाले चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि हमने फाइलों को देख लिया है और देखने के बाद यह निर्णय लिया है। पीठ ने सरकार को आगे की कार्यवाही करने का निर्देश देते हुए कहा कि अब सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद होगी। मालूम हो कि पिछली सुनवाई में अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया था कि विभिन्न हाई कोर्टों के जजों की नियुक्ति को लेकर कोलेजियम द्वारा की गई 77 नामों की सिफारिश में से 34 को हरी झंडा दे दी गई है जबकि 43 सिफारिशों को वापस भेज दिया गया है। साथ ही अटार्नी जनरल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार ने गत तीन अगस्त को मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) का ड्राफ्ट कोलेजियम को भेज दिया था लेकिन अब तक सरकार को वापस नहीं मिला। अदालत लेफ्टिनेंट कर्नल अनिल बाबोतरा द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बने कोलेजियम द्वारा सरकार की ओर से वापस किए गए सभी 43 नामों की दोबारा सिफारिश करने के बाद सरकार के समक्ष इसके अलावा और अन्य कोई विकल्प नहीं दिख रहा कि वह इन नामों के स्वीकृति प्रदान करे। चूंकि कोलेजियम की दोबारा सिफारिश सरकार के लिए बाध्यकारी होती है इसलिए संभावना इसी बात की है कि इन नामों को केंद्र सरकार की स्वीकृति मिल जाए। न्यायाधीशों की नियुक्तियों का मामला लंबे अरसे से सरकार और न्यायपालिका के बीच खींचतान का कारण बना हुआ है। यह खींचतान तब से और बढ़ी दिख रही है जब से सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए बनाए गए कानून को असंवैधानिक ठहराया है। जो भी हो न्यायाधीशों की कमी को दूर करना देशहित में होगा। इससे देश में लंबित केसों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। हालांकि लंबित मुकदमों का बोझ बढ़ते जाने का एकमात्र कारण पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों का होना ही नहीं है। बेहतर है कि इस विवाद को जल्द सुलझाया जाए जिससे जनता को जल्द न्याय मिल सके। हम तो सभी पक्षों से अनुरोध करेंगे कि मिल-बैठ कर इस समस्या को सुलझाएं। आगे तभी बढ़ा जा सकता है।

                        -अनिल नरेन्द्र