Sunday, 24 May 2020
Friday, 22 May 2020
सिर पर गठरी, गोद में मासूम
लॉकडाउन
के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों
में फंसे प्रवासी मजदूरों के सब्र का बांध टूटने लगा है और अब वह उग्र हो चले हैं।
सोमवार को ऐसी ही तस्वीरें तीन प्रदेशों से सामने आईं। गुजरात में लगातार पांचवीं बार
प्रवासी मजदूरों का बवाल देखने को मिला। यहां अहमदाबाद में सैकड़ों की संख्या में पैदल
घर के लिए निकले मजदूरों को पुलिस ने रोका तो भीड़ आक्रोशित हो गई। मजदूरों ने पुलिस
पर पथराव शुरू कर दिया। गाड़ियां तोड़ दीं। इसमें दो पुलिस वाले घायल हो गए। उधर राजकोट
में ट्रेन का समय बदलने के बाद सड़क पर पत्थरबाजी कर वाहनों को नुकसान पहुंचाने के
मामले में पुलिस ने 29 लोगों को गिरफ्तार किया है। राजकोट रेंज
के डीआईजी संदीप सिंह ने बताया कि रविवार को यूपी और बिहार की दो श्रमिक स्पेशल ट्रेनों
के रद्द होने की फर्जी सूचना के बाद मजदूर भड़क गए थे और पत्थरबाजी की। वहीं करनाल
हाईवे पर यूपी-बिहार और दूसरे राज्यों के मजदूर इकट्ठा होने से
हालात बेकाबू हो गए। उत्पात मचा रहे मजदूरों को काबू करने के लिए पुलिस ने आंसूगैस
के गोले छोड़े। ज्वाइंट कमिश्नर अमित विश्वकर्मा ने बताया कि मजदूरों को आश्वासन दिया
गया है कि उन्हें जल्द घर पहुंचा दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि लेबर कॉलोनी के 400
से 500 मजदूर सड़क पर उतरे थे। घटना में दो पुलिस
वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं। 100 संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया
गया है। करनाल हाईवे के पुंडली में सड़क पर उतरे मजदूरों का कहना था कि अब भूखे पेट
नहीं रहा जाता है। करीब दो हजार मजदूरों ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि अधिकारी कह रहे
हैं कि 50 बसें की गई हैं लेकिन अब तक सिर्प 10 बसों का इंतजाम किया गया है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में हजारों मजदूरों
की भीड़ श्रमिक स्पेशल ट्रेन के लिए रजिस्ट्रेशन कराने जुटी। राज्य ने इसके पहले भी
चार बार प्रवासी मजदूरों का बवाल हो चुका है। दो बार सूरत में प्रवासी मजदूरों ने तोड़फोड़
की थी। सभी घर जाने की मांग कर रहे थे। एक प्रवासी मजदूर का कहना था कि लॉकडाउन से
पहले जो कुछ जोड़ा था वह लॉकडाउन के दौरान सब बिक गया। गहनें, मोबाइल यहां तक कि मंगल-सूत्र भी बिक गया। लेकिन अब पापी
पेट के साथ बच्चों की भूख ने हौंसले तोड़ दिए हैं। अलबत्ता अब यह अपने राज्य जाने के
लिए आतुर हैं। इसके लिए राह में आ रहे बॉर्डर से बचने के लिए यह प्रवासी घग्गर नदी
के जरिये अंबाला की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। थोड़ी-सी चूक
इनके साथ-साथ मासूमों की भी जान ले सकता है, लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। अंबाला पहुंचे प्रवासियों ने कुछ
इसी तरह अपना दर्द साझा किया। कहा कि रोजाना 50 से 70
किलोमीटर सफर तय करते हैं और थककर जहां भी पनाह मिलती है वहीं खुले आसमान
तले सो जाते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल है पत्रकारिता की आजादी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पत्रकारिता की आजादी
संविधान में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का मूल आधार
है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भारत की स्वतंत्रता उस समय तक सुरक्षित है, जब तक सत्ता के सामने पत्रकार किसी
बदले की कार्रवाई का भय माने बिना अपनी बात कह सकता है। जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ और
जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह कड़ी टिप्पणियां मंगलवार को रिपब्लिक टीवी के संपादक
अर्णब गोस्वामी के मामले में सुनवाई के दौरान की। पीठ ने कहा कि एक पत्रकार के खिलाफ
एक ही घटना के संबंध में अनेक आपराधिक मामले दायर नहीं किए जा सकते हैं। उसे कई राज्यों
में राहत के लिए चक्कर लगाने के लिए बाध्य करना पत्रकारिता की आजादी का गला घोंटना
है। सुप्रीम कोर्ट ने उस समय आंशिक राहत दी जब शीर्ष अदालत ने पालघर में दो साधुओं
तीन-तीन व्यक्तियों द्वारा पीट-पीटकर हत्या
की घटना से संबंधित कार्यक्रम के सिलसिले में नागपुर में दर्ज प्राथमिकी के अलावा शेष
सभी जगह पर दर्ज मामले रद्द कर दिए लेकिन इसकी जांच सीबीआई को सौंपने से इंकार कर दिया।
नागपुर में दर्ज प्राथमिकी मुंबई स्थानांतरित कर दी गई थी जिसकी जांच मुंबई पुलिस कर
रही थी। पीठ ने अपने 56 पेज के फैसले में कहा कि यह प्राथमिकी
निरस्त कराने के लिए अर्णब गोस्वामी को सक्षम अदालत के पास जाना होगा। हालांकि पीठ
ने अर्णब गोस्वामी को किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से तीन सप्ताह का संरक्षण प्रदान
कर दिया। जस्टिस चन्द्रचूड़ ने निर्णय में कहाöअनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारों को बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
के लिए मिले अधिकार उच्च स्तर के हैं, लेकिन यह असीमित नहीं है।
पीठ ने कहाöमीडिया की भी उचित प्रतिबंधों के प्रावधानों के दायरे
में जवाबदेही है। पीठ ने कहा कि हालांकि एक पत्रकार को बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी
सर्वोच्च पायदान पर नहीं है, लेकिन बतौर समाज हमें यह नहीं भूलना
चाहिए कि पहले का अस्तित्व दूसरे के बगैर नहीं रह सकता। यदि मीडिया को एक दृष्टिकोण
अपनाने के लिए बाध्य किया गया तो नागरिकों की स्वतंत्रता का अस्तित्व ही नहीं बचेगा।
आरोप-प्रत्यारोप के दौर में पिसता बेबस मजदूर
लॉकडाउन में फंसे मजदूरों को वापसी के लिए बसों पर सियासी
महाभारत छिड़ गया है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार और कांग्रेस के बीच
भयंकर विवाद शुरू हुआ पत्रों का दौर चलता जा रहा है। दुर्भाग्य यह है कि इस विवाद के
चलते मजदूर लटके पड़े हैं और बसें बॉर्डर पर खड़ी हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बसें
यूपी की सीमा पर हैं, प्रशासन
उन्हें अंदर आने की अनुमति नहीं दे रहा है। वहीं यूपी सरकार ने कहा कि जो सूची कांग्रेस
ने 1049 वाहनों की सौंपी थी उसमें ऑटो, एम्बुलैंस, ट्रक और निजी कार के नम्बर हैं। दरअसल कांग्रेस
ने 1049 वाहनों की सूची यूपी सरकार को सौंपी थी। इसमें 870
बसें हैं। इसके अलावा 31 नम्बर ऑटो और तिपहिया
वाहन के हैं। एक-एक एम्बुलैंस और ट्रक, दो डीसीएम, एक मैजिक, 50 स्कूल
बसें, एक निजी कार तथा दो टाटा शामिल हैं। 297 वाहनों के कागजात पूरे नहीं हैं। इनमें 79 वाहनों की
फिटनेस और 140 का इंश्योरेंस नहीं है। वहीं 78 वाहनों के फिटनेस और इंश्योरेंस दोनों नहीं हैं। इस पर कांग्रेस ने मौके पर
आकर बसें देखने की चुनौती दी। इन सबके बीच बेबस मजदूर या तो पैदल घर जाने को मजबूर
हैं या मदद के लिए भटक रहे हैं। प्रियंका ने सीएम योगी आदित्यनाथ को टैग करते हुए ट्वीट
किया कि जांच में सही मिलीं हमारी 879 बसें तो चलने दीजिए। भले
ही इन पर भजापा का बैनर-पोस्टर लगवा दें। प्रियंका गांधी वाड्रा
ने कहाöयूपी सरकार ने हद कर दी है। जब राजनीतिक परहेजों को परे
करते हुए प्रवासी भाई-बहनों की मदद करने का मौका मिला तो दुनियाभर
की बाधाएं सामने रख दीं। एक अन्य ट्वीट में प्रियंका ने कहा कि योगी जी, हमारे सेवाभाव को मत ठुकराइएगा, क्योंकि इस राजनीतिक
खिलवाड़ में तीन दिन व्यर्थ हो चुके हैं और इन्हीं तीन दिनों में हमारे देशवासी सड़कों
पर चलते हुए दम तोड़ रहे हैं। आपको जल्द 200 बसों की नई सूची
उपलब्ध करा देंगे। उधर डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि
कांग्रेस केवल व्यवधान लगाना और जनता को गुमराह करना जानती है। यह आपराधिक कृत्य है।
सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि राहुल और प्रियंका
की कांग्रेस फर्जीवाड़ा पार्टी है। जनशक्ति मंत्री डॉ. महेन्द्र
सिंह ने कहा कि प्रियंका वाड्रा ने बस चलाने के नाम पर मजदूरों के साथ भद्दा और कूर
मजाक किया है। कांग्रेस की तरफ से पूर्व राज्यसभा सांसद व यूपी के दिग्गज नेता प्रमोद
तिवारी ने कहा कि सरकार झूठ बोल रही है। सभी बसें हैं। सरकार की पूरी कैबिनेट केवल
प्रेस कांफ्रेंस कर रही है जबकि हमसे लिस्ट की गड़बड़ी साझा नहीं की गई। हमें दें और
हम उनकी जांच करवा लेते हैं। सरकार बस आरोप-प्रत्यारोप खेल रही
है। कांग्रेस प्रवक्ता अ]िखलेश प्रताप सिंह ने भी कहा कि भाजपा बसों को लेकर गलत आरोप
लगा रही है। उन्होंने कहा कि जो सूची दी गई है सभी बसें हैं। एक बार बसों को खड़ा करने
दें सब साफ हो जाएगा कि कौन सही बोल रहा हैं, कौन गलत। इस चिट्ठियों
के खेल में बेचारा कामगार पिस रहा है। वह पैदल ही चलने पर मजबूर हैं। रास्ते में अगर
कोई हादसा होता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?
Thursday, 21 May 2020
मजहब नहीं सिखाता लाउडस्पीकर से अजान
पिछले दिनों मशहूर संगीतकार, लेखक जावेद अख्तर ने कहा था कि अजान के लिए लाउडस्पीकर जरूरी
नहीं है। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुकवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अजान इस्लाम
का एक आवश्यक एवं अभिन्न हिस्सा हो सकता है, लेकिन लाउडस्पीकर
या ध्वनि बढ़ाने वाले किसी अन्य उपकरण के जरिए अजान को इस धर्म का अनिवार्य हिस्सा
नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने कहा कि इसलिए किसी भी परिस्थिति में रात दस बजे से सुबह
छह बजे के बीच लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती है। हालांकि न्यायमूर्ति
शशिकांत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने कहा कि मस्जिद की मीनारों से मुअज्जिन
एम्पलीफायर वाले उपकरणों के बिना अजान बोल सकते हैं और पशासन को कोविड-19 महामारी रोकने के दिशानिर्देश के बहाने इसमें किसी तरह का अवरोध उत्पन्न नहीं
करने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने कहा कि पशासिनक अधिकारी इसमें तब तक अवरोध
पैदा नहीं कर सकते जब तक कि ऐसे दिशानिर्देशों का उल्लघंन किया जाए। इन व्यवस्थाओं
के साथ अदालत ने गाजीपुर से सांसद अफजल अंसारी द्वारा दायर जनहित याचिका का निस्तारण
कर दिया। अंसारी ने अदालत से गुहार लगाई थी कि गाजीपुर के लोगों के धर्म के मौलिक अधिकार
की सुरक्षा की जाए और राज्य सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वह गाजीपुर की मस्जिदों
से एक मुअज्जिम को अजान बोलने की अनुमति दे। पूर्व केन्द्राrय
मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी फर्रुखाबाद और अन्य जिलों के मुस्लिमों के संबंध में इसी
तरह की राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। खुर्शीद ने भी यह दलील दी थी कि अजान
इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा है।
-अनिल नरेन्द्र
yle='font-family:Mangal;mso-ascii-font-family:Mangal;
mso-hansi-font-family:Mangal'>
कार्यस्थल में कोरोना से कैसे होगा बचाव?
महामारी विशेषज्ञों को इस बात की फिक हो रही
है कि क्या लाकडाउन-4 में जिस तरह कार्यस्थलों को
चालू किया गया है क्या वहां संकमण के बचाव के पूरे उपाय किए जाएंगे? महामारी विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य मंत्रालय के जरिए अपनी चिंता पकट की है। महामारी
विशेषज्ञों को कार्यस्थल पर कर्मियों की बैठक व्यवस्था, सामूहिक
शौचालय, बाहरी व्यक्तियों के पवेश, संकमण
से बचाव के उपकरण और सभी कर्मियों के साथ स्कैनिंग जैसे विषयों को लेकर फिक है। वह
तो फिलहाल कार्यस्थल पर कैंटिन में खाना खाने और वाटरकूलर से पानी पीने देने के भी
पक्ष में नहीं हैं। लिफ्ट की भी वह बार-बार सफाई की बात कर रहे
हैं और उनका कहना है कि जिन कर्मियों के लिए संभव हो वह सीढ़ियों का ज्यादा इस्तेमाल
करें। भले ही लाकडाउन समाप्त हो जाए मगर हमें ये सावधानियां बरतनी आवश्यक हैं जैसे-
हमेशा मास्क लगाना, हाथ साफ करने के लिए सेनिटाइजर
साथ रखना, शारीरिक दूरी (सामाजिक दूरी)
बनाना, अति आवश्यक होने पर ही बाहर जाएं,
दाढ़ी न बढ़ाएं, कटिंग करवाने सैलून न जाएं,
शेव स्वयं करें या फिर नाई को घर बुलाएं, उसने
मास्क पहना हो, उसके हाथ साफ करवाएं, कंघी,
कैंची, ब्लैड, रुमाल आदि
सब सामान हमारे होने चाहिए। अगर नहीं हैं तो रुको पहले अच्छे से सैनिटाइज करें। बेल्ट
नहीं पहनें। अंगूठी, कलाई घड़ी अगर पहननी है तो पूरी तरह सैनिटाइज
करें। हाथ रुमाल का उपयोग नहीं करें। सेनेटाइजर और टिश्यू पेपर साथ रखें और जब जरूरी
हो इस्तेमाल करें। घर में जूते पहनकर पवेश न करें, उन्हें बाहर
ही उतारें। बाहर से घर आने पर ही हाथ और पैर धोकर ही घर में पवेश करें। यदि आपको लगता
है कि आप किसी संदिग्ध के संपर्प में आ गए हैं तो पूरा स्नान करें, भाप लें, गर्म काढ़ा पिएं। लाकडाउन हो या न हो अगले 4-6
महीने तक सावधानियां अति आवश्यक हैं। कृपया इन सावधानियों को अपने परिवार,
मित्रों के साथ अधिक से अधिक शेयर करें।
ये लोग चलते जा रहे हैं, हम इन्हें कैसे रोक सकते हैं?
सुपीम कोर्ट ने शुकवार को कहा है कि देश में
पवासी कामगारों की आवाजाही की निगरानी करना या इसे रोकना अदालतों के लिए असंभव है।
अदालत ने कहा कि इस संबंध में सरकार को ही आवश्यक कार्रवाई करनी होगी। पवासी मजदूरों
की शिनाख्त कर उनके लिए भोजन, छत और परिवहन की व्यवस्था करने
के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग को लेकर दायर एक जनहित याचिका
पर दखल देने से इंकार करते हुए अदालत ने कहा कि इस बाबत राज्यों को ही कार्रवाई करनी
होगी। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल
और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने याचिका पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि अदालत कैसे
पवासी मजदूरों को पैदल जाने से रोक सकती है? न्यायमूर्ति कौल
ने पूछा अगर वे रेल की पटरी पर सो रहे हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है? न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ये लोग चलते जा रहे हैं रुकने
का नाम नहीं ले रहे, हम इन्हें कैसे रोक सकते हैं? केन्द्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि देशभर में इन पवासी कामगारों को उनके गंतव्य
तक पहुंचाने के लिए सरकार परिवहन सुविधा मुहैया करा रही है लेकिन महामारी के दौरान
पैदल ही चल देने के बजाए उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना होगा। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर
राव, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति वीआर गवई के पीठ
ने रास्ते में फंसे कामगारों की पहचान कर उनके लिए खाने और आवास की व्यवस्था करने का
सभी जिलाधिकारियों को निर्देश देते हुए दायर आवेदन पर विचार करने से इंकार कर दिया।
इस मामले में वीडियो कांपेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने केन्द्र की ओर
से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि क्या इन कामगारों को सड़कों पर
पैदल चलने से रोकने का कोई रास्ता है? मेहता ने कहा कि राज्य
इन कामगारों को अंतर्राज्यीय बस सेवा उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन अगर लोग परिवहन सुविधा
के लिए अपनी बारी का इंतजार करने की बजाए पैदल ही चलना शुरू कर दें तो कुछ नहीं किया
जा सकता। मेहता ने कहा कि राज्य सरकारों के बीच समझौते से पत्येक व्यक्ति को अपने गंतव्य
तक यात्रा करने का अवसर मिलेगा। इस मामले में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अलख आलोक
श्रीवास्तव ने हाल ही में मध्य पदेश और उत्तर पदेश में राज मार्गों पर हुई सड़क दुर्घटनाओं
में श्रमिकों के मारे जाने की घटनाओं की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया।
Wednesday, 20 May 2020
5 लाख तक सिक्यूरिटी ले रहे हैं प्राइवेट अस्पताल
दिल्ली
में कोरोना का इलाज कई प्राइवेट अस्पतालों में पैसे लेकर किया जा रहा है। यह खर्च मरीजों
को ही उठाना पड़ रहा है। इन अस्पतालों ने पेमेंट वसूलने के लिए अपने नियम और शर्तें तय की हैं। किसी अस्पताल
में सिक्यूरिटी के नाम पर 5 लाख रुपए
जमा कराए जा रहे हैं तो कहीं पर 3 लाख रुपए का डिपॉजिट है। कुछ
अस्पतालों में कोई फिक्स पैकेज तो नहीं है, पर इतना जरूर है कि
पहले की तुलना में ज्यादा खर्च आ रहा है। कोरोना की वजह से अशोक कुमार गुप्ता का इलाज
गंगाराम अस्पताल में हुआ। अब वह ठीक होकर घर पहुंच चुके हैं। उनके भतीजे निखिल गुप्ता
ने बताया कि 30 अप्रैल को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो हमने उन्हें
गंगाराम में एडमिट कराया। वहां 5 लाख रुपए डिपॉजिट कराए गए। गंगाराम
अस्पताल में डिपॉजिट रकम 5 लाख है तो अपोलो में यह 3 लाख रुपए है। हालांकि मैक्स ने अभी तक इलाज के लिए कोई डिपॉजिट रकम फिक्स नहीं
की है, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि पहले की तुलना में ज्यादा
डिपॉजिट लिया जा रहा है। एक मरीज के रिश्तेदार ने बताया कि एक बार में इतना पैसा जमा
कराना आसान नहीं है। उनके मरीज को प्राइवेट में इलाज नहीं मिला तो वो कई दिनों तक सरकारी
अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद एडमिट हुए। परेशानी वाली बात यह है कि प्राइवेट अस्पतालों
में भी अब मरीजों को आसानी से एडमिशन नहीं मिल रहा है। 5 प्राइवेट
सेंटरों में इलाज हो रहा है और बैड भी फिक्स हैं। दिल्ली में जिस तरह से कोरोना केस
बढ़ रहे हैं, यह परेशानी आगे और बढ़ेगी।
-अनिल नरेन्द्र
अर्थव्यवस्था में आने वाला है तूफान
यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में विपक्ष को
इतना कमजोर कर दिया गया है कि वह कुछ भी बात करे, चेतावनी दे चाहे वह अत्यंत आवश्यक ही क्यों न हो सत्ता पक्ष
उसे हवा में उड़ा देता है। यही नहीं बल्कि चेतावनी देने वाले विपक्षी नेता को या तो
पप्पू कहकर मजाक में उड़ा देता है या अपने अहंकार में उसे नजरंदाज कर देता है। मैं
बात कर रहा हूं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और नेता राहुल गांधी की। राहुल गांधी ने
इस साल फरवरी में चेतावनी दी थी कि देश में कोरोना आ चुका है और सरकार को अविलंब उससे
देशवासियों की सुरक्षा हेतु कदम उठाने चाहिए। पर सरकार ने उनकी चेतावनी को हवा में
उड़ा दिया। आज नतीजा सबके सामने है। कोरोना ने इतना भयंकर रूप धारण कर लिया है कि रोज
कोरोना संक्रमितों के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। इस कोरोना की मार जानमाल पर तो पड़ ही रही
है पर सबसे ज्यादा हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगी। राहुल गांधी ने कोरोना वायरस महामारी
में मुसीबत का सामना कर रहे गरीबों, किसानों एवं मजदूरों तक न्याय
योजना की तर्ज पर मदद पहुंचाने की मांग करते हुए शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
सरकार से आग्रह किया कि वह आर्थिक पैकेज पर पुनर्विचार करें और सीधे लोगों के खातों
में पैसा डालें। उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन को समझदारी एवं सावधानी के साथ खोलने
की जरूरत है और बुजुर्गों एवं गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों का विशेष ध्यान रखना
चाहिए तथा अर्थव्यवस्था में आने वाले तूफान का मुकाबला करने की तैयारी रखनी चाहिए।
गांधी ने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददाताओं से कहाöजो पैकेज
होना चाहिए था वो कर्ज का पैकेज नहीं होना चाहिए था। इसको लेकर मैं निराश हूं। आज किसानों,
मजदूरों और गरीबों के खाते में सीधे पैसे डालने की जरूरत है। उन्होंने
कहाöआप (सरकार) कर्ज
दीजिए, लेकिन भारत माता को अपने बच्चों के साथ साहूकार का काम
नहीं करना चाहिए, सीधे उनकी जेब में पैसे देना चाहिए। इस वक्त
गरीबों, किसानों और मजदूरों को कर्ज की जरूरत नहीं, पैसे की जरूरत है। मैं विनती करता हूं कि नरेंद्र मोदी जी को पैकेज पर पुनर्विचार
करना चाहिए। किसानों और मजदूरों को सीधे पैसे देने के बारे में सोचिए। उन्होंने कहाöमैंने सुना है कि पैसे नहीं देने का कारण रेटिंग है। कहा जा रहा है कि वित्तीय
घाटा बढ़ जाएगा तो बाहर की एजेंसियां हमारे देश की रेटिंग कम कर देंगे। हमारी रेटिंग
मजदूर, किसान, छोटे कारोबारियों से बनती
है। इसलिए रेटिंग के बारे में मत सोचिए, उन्हें पैसे दीजिए। गांधी
के मुताबिक लॉकडाउन खोलते समय समझदारी और सावधानी की जरूरत है। न्याय जैसी योजना इसमें
मददगार साबित हो सकती है। मांग न होने पर बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान होने की संभावना
है, जो कोरोना से भी बड़ी हो सकती है। मेरा यह मानना है कि आप
न्याय के नाम कुछ और दीजिए, लेकिन अगले कुछ महीनों के लिए इसे
लागू करिए। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में
वादा किया था कि सरकार बनने पर वह न्यूनतम आय गारंटी योजना (न्याय)
लागू करके हर गरीब परिवार को 72 हजार रुपए की सालाना
आर्थिक मदद देगी। उस वक्त राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। सरकार की आलोचना फिलहाल
नहीं करने के अपने रुख पर कायम रहते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यह समय किसी को गलत
बताने का नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी समस्या के समाधान का है। कोरोना
संकट में मांग और आपूर्ति दोनों बंद हैं। सरकार को दोनों को गति देनी होगी। जो कर्ज
पैकेज की बात है उससे मांग खुलने वाली नहीं है। क्योंकि बिना पैसे के लोग खरीददारी
कैसे करेंगे?
लॉकडाउन - चार
कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या और संक्रमण के फैलाव
के खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन-चार पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। महाराष्ट्र, तमिलनाडु व पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्यों ने अब अपने यहां लॉकडाउन को 31
मई तक के लिए बढ़ा दिया, तब केंद्र सरकार के लिए
लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा लगभग औपचारिकता रह गई थी। इस चौथे लॉकडाउन में कंटेनमेंट जोन
को छोड़कर बाकी इलाकों में सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों की इजाजत दे दी गई है। हालांकि
मॉल, सिनेमा हॉल, रेस्तरां, होटल, मेट्रो, रेल और हवाई सेवाओं
पर प्रतिबंध पहले की तरह जारी रहेगा। इस बार रेड, ऑरेंज और ग्रीन
जोन की परिभाषा तो वही रहेगी, लेकिन इनके तहत आने वाले इलाके
को तय करने की जिम्मेदारी राज्यों को सौंप दी गई है। लॉकडाउन के चौथे चरण के लिए जारी
गाइडलाइंस में गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि विशेष रूप से प्रतिबंधित गतिविधियों को छोड़कर अन्य गतिविधियों
की छूट होगी। आवाजाही को आसान करना समय की मांग है, क्योंकि उसके
बगैर आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को बल मिलने वाला नहीं। यह
इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके बगैर अर्थव्यवस्था का नुकसान बढ़ने के साथ-साथ रोटी-रोजी की समस्या भी गंभीर होती जा रही है। हम
देख रहे हैं कि किस तरह देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों की संख्या में कामगार अपने
गांव लौट रहे हैं, सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं, इनको घर पहुंचाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। पर यातायात पर पाबंदी
इसमें बाधा डाल रही है। लॉकडाउनöचार में रेल, हवाई यात्रा पर प्रतिबंध नहीं हटा है। हम इसके पीछे कारण भी समझ सकते हैं।
हमें सतर्प रहना होगा ताकि कोरोना संक्रमण ज्यादा फैले नहीं। जिस तरह लाखों मजदूर सड़कों
पर, ट्रकों पर, टैम्पो पर घर जा रहे हैं
उससे शारीरिक डिस्टेंस का पालन नहीं हो रहा है। इससे संभव है कि कोरोना की संक्रमित
दर अभी और बढ़े। आज पूरी दुनिया में लॉकडाउन और ग्रोसरी-ओपनिंग
की चर्चा चल रही है। दुनिया के सामने दो तरह के मॉडल हैंöएक लॉकडाउन
का, जिसे कड़ाई से सफल बनाकर चीन ने कोविड-19 को काबू किया है, वहीं दूसरी ओर दक्षिण कोरिया का मॉडल
है, जहां केवल कंटेनमेंट जोन में लॉकडाउन रखकर आर्थिक गतिविधियों
को नहीं रोका गया है। कड़े लॉकडाउन से जहां चीन की जीडीपी में इस साल की पहली तिमाही
में 30 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट हुई है। वहीं इस अवधि में
दक्षिण कोरिया में यह गिरावट कुल छह प्रतिशत भी नहीं है। जहां तक भारत का प्रश्न है
तो हम न तो चीन जैसे सख्त मिजाज के हैं और न ही हमारे यहां कोरिया जितनी कम आबादी है।
भारत में लॉकडाउन को खोलने वाले पक्षधर भी जानते हैं कि इसके खुलते ही संक्रमण बढ़ने
का जोखिम है। भारत की विशाल आबादी को पूरी तरह से नियंत्रित करना बेहद कठिन है मगर
इम्पोसिबल नहीं। संक्रमण को काबू रखने के साथ ही लापरवाह लोगों को भी सजग रहना होगा।
इसके साथ ही जो उद्योग अभी सक्रिय हैं, उन्हें अपनी सक्रियता
प्रदेश-देश के हित में बढ़ानी होगी। इस माहौल के निर्माण में
आम लोगों की भी महत्ती भूमिका होगी। उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि लॉकडाउन के चौथे
चरण में छूट का नाजायज फायदा न उठाएं और वह सभी एहतियात बरतें जो डॉक्टरों ने सुझाए
हैं। ऐसा नहीं हुआ तो सरकार को फिर सख्ती करनी पड़ेगी।
Tuesday, 19 May 2020
शराब के ठेके खुल सकते हैं तो धार्मिक स्थल क्यों नहीं?
भारत
वर्ष की खूबसूरती अनेकता में एकता है। अलग-अलग धर्म, जाति के होने के बावजूद सब आपसी सौहार्द से
रहते हैं। धार्मिक स्थलों से जब आरती, अजान, गुरुबाणी, बाइबल आदि की आवाजें आती हैं तो ईश्वर में
आस्था रखने वालों का मनोबल मजबूत होता है। देश में कोरोना महामारी के दौरान लोगों का
मनोबल गिर रहा है। ऊपर से आस्था के प्रतीक धार्मिक स्थल बंद हैं। धर्मगुरुओं का कहना
है कि शराब के ठेके खुले हैं। ठेकों पर भीड़ देखकर धर्म में आस्था रखने वाले धार्मिक
स्थलों (मंदिरों, गुरुद्वारों, मस्जिदों और चर्च) को बंद देखकर मायूस हैं और बेबसी महसूस
कर रहे हैं। धर्मगुरुओं का कहना है कि प्रार्थना और दुआओं में असर होता है। जब धार्मिक
स्थलों से लोग ईश्वर से प्रार्थना करेंगे तो संकट के बादल भारत वर्ष और दुनिया से हटेंगे।
अखिल भारतीय संत समिति एवं कालका जी मंदिर के महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत महाराज कहते हैं
कि धार्मिक स्थलों में आकर पूजा-अर्चना से व्यक्ति में एक ईश्वरीय
शक्ति का संचार होता है, सकारात्मक सोच बढ़ती है। दिल्ली सिख
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मनजिंदर सिंह सिरसा का मानना है कि विभिन्न धर्मों के
लोगों को अपने धार्मिक स्थल पर आने से ताकत मिलती है और हौसला मिलता है। डॉ.
मोहम्मद मुफ्ती मुकर्रम कहते हैं कि कुछ जरूरी शर्तों के साथ धार्मिक
स्थल खुलने चाहिए। हम भी इनसे सहमत हैं। जब आप शराब के ठेके खोल सकते हैं तो धार्मिक
स्थल क्यों नहीं?
-अनिल नरेन्द्र
चीन झूठ के बाद झूठ बोलता चला आ रहा है
कोरोना वायरस के मुद्दे पर अमेरिका लगातार चीन पर हमले
कर रहा है। अब अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) रॉबर्ट
ओब्रायन ने कहा है कि पिछले 20 साल में चीन से पांच महामारी आई
हैं। इस सिलसिले को रोका जाना चाहिए। उन्होंने दुनियाभर में 2,50,000 से अधिक लोगों की जान लेने वाली कोरोना महामारी वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार
ठहराया है। ब्रायन ने कहाöदुनियाभर के लोग खड़े होंगे और चीन
की सरकार से कहेंगे कि हम चीन से निकल रही इन महामारियों को सहन नहीं करेंगे। फिर चाहे
यह पशु बाजारों से निकल रही हो या फिर वुहान की लैब से। उन्होंने कहाöहमें पता है कि कोरोना वायरस महामारी वुहान से निकली है और सुबूत बताते हैं
कि यह किसी प्रयोगशाला या पशु बाजार से निकली है। अमेरिका के नौ प्रभावशाली सांसदों
के समूह ने संसद में एक विधेयक भी पेश किया है। इस विधेयक में कहा गया है कि अगर चीन
कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के पीछे की वजहों की पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं करता है
और इसे काबू करने में सहयोग नहीं देता है तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चीन पर पाबंदी
लगाने की मंजूरी दी जानी चाहिए। इन प्रभावशाली सीनेटरों द्वारा पेश विधेयक में कहा
गया है कि राष्ट्रपति 60 दिन के भीतर कांग्रेस में यह साबित करेंगे
कि चीन ने अमेरिका, उसके सहयोगियों या विश्व स्वास्थ्य संगठन
जैसी संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्थाओं के नेतृत्व वाली कोविड-19 संबंधी जांच के लिए पूरी जानकारी मुहैया कराई है। साथ ही उसने वेट मार्केट
(पशु बाजार) को बंद कर दिया था,
जिससे जानवरों से मनुष्यों में कोई संक्रमण फैलने का खतरा पैदा होता
है। चीन कोविड-19 महामारी को लेकर दुनिया को गुमराह करने के लिए
पहले से ही बदनाम है। इस बीच अमेरिकी समाचार वेबसाइट फॉरेन पॉलिसी के हाथ चौंकाने वाले
दस्तावेज लगे हैं। लीक डाटा से पता चला है कि चीन में कोरोना वायरस के कारण 6,40,000
लोग संक्रमित हुए और संक्रमण ने 230 शहरों को अपनी
जद में लिया। इसमें फरवरी से लेकर अप्रैल (2020) अंत तक संक्रमित
लोगों की सूची है। जबकि संक्रमित मरीजों की पुख्ता संख्या के साथ इसमें उनके मिलने
के स्थान की जीपीएस कोडिंग भी है। चीनी सेना की इंजीनियरिंग एकेडमी नेशनल यूनिवर्सिटी
ऑफ डिफेंस टेक्नोलॉजी से लीक हुए डाटा में अस्पतालों के साथ संक्रमितों के मिलने वाले
स्थान जैसे होटल, सुपर मार्केट, रेलवे स्टेशन,
रेस्तरां और स्कूलों के नाम भी शामिल हैं। हालांकि इस डाटा में इसकी
जानकारी नहीं है कि संक्रमित मरीज ठीक हुआ या उसकी मौत हो गई। जबकि चीन दावा करता रहा
है कि उसके देश में केवल हुबई ही एक मात्र प्रांत है, जो इस संक्रमण
से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ और देश में संक्रमित लोगों की अधिकतम संख्या 83
हजार से अधिक नहीं पहुंची जबकि रिपोर्ट के अनुसार यह 6,40,000
से ज्यादा है। चीन से उत्पन्न हुई पिछले 20 साल
में जो पांच महामारियां आई हैं वह हैंöसार्स, एवियन फ्लू, स्वाइन फ्लू और अब कोविड-19। ब्रॉयन ने पांचवीं बीमारी का नाम नहीं बताया। ऐसा साबित होता है कि कोविड-19
को लेकर चीन हमेशा झूठ बोलता आ रहा है। अब धीरे-धीरे उसकी पोल खुल रही है।
घर लौट रहे कामगारों की मौत का जिम्मेदार कौन?
अपने घरों को लौट रहे मजदूरों के साथ रोजाना हादसे हो
रहे हैं। अब तक 139 श्रमिकों
की मौत हो चुकी है विभिन्न हादसों में और यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। ताजा
हादसा उत्तर प्रदेश के औरैया में डीसीएम (मिनी ट्रक) और ट्रक की टक्कर का हुआ जिसमें अब तक 24 प्रवासी मजदूरों
की मौत हो चुकी है, वहीं 35 लोग जख्मी हुए
हैं। उधर मध्य प्रदेश के सागर में ट्रक पलटने से आठ प्रवासी मजदूरों की जान चली गई।
औरैया हादसे में घायल होने वाले मजदूरों ने बताया कि हादसा कितना भयावह था। हाई-वे पर उनकी डीसीएम खड़ी थी। ट्रक चालक चाय पीने के लिए रुका था, तभी एक ट्रक ने पीछे से खड़ी डीसीएम में टक्कर मार दी। पश्चिम बंगाल के रहने
वाले गुड्डू ने बताया कि खाने की समस्या बढ़ने लगी थी। इसके बाद साथ काम करने वाले
मजदूरों ने घर लौटने का फैसला किया। सुबह शायद ढाई-तीन बजे थे।
तय हुआ कि आगे जो ढाबा मिलेगा, उसमें रुककर रोटियां बांटेंगे
और खा लेंगे। कुछ लोग ढाबे पर उतरे। डीसीएम में मौजूद सभी मजदूर नींद में थे,
तभी पीछे से एक जोरदार टक्कर हुई। गाड़ी में जितने भी लोग थे उछल कर
दूर जा गिरे। कुछ उसके नीचे दब गए। लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे। लेकिन रात के सन्नाटे
में कोई भी कुछ सुनने वाला नहीं था। ढाबे पर सुरक्षित लोग फंसे हुए लोगों को बाहर निकाल
रहे थे। डीजीपी ने बताया कि शुरुआती जांच में ट्रालर के ड्राइवर के नींद में आने से
हादसे का पता चला है। औरैया में 24 से ज्यादा और भी मजदूरों की
जान जा सकती थी, अगर वह एक कप चाय के लिए न रुके होते। पुलिस
के मुताबिक दिल्ली से आए डीसीएम (मिनी ट्रक) में सवार कुछ लोग ढाबे पर चाय पीने के लिए रुके थे, तभी
राजस्थान से आने वाले दूसरे ट्रक ने टक्कर मार दी। जो लोग बाहर थे, वह बच गए। सुबह होने से पहले मजदूरों को चाय पीने की तलब लगी और इसी चाय ने
जिंदगी और मौत के बीच फासला कर दिया। यदि कामगारों की घर वापसी के लिए उचित प्रबंध
किए गए होते तो शायद इस भीषण हादसे में उनकी जान जाने से बच सकती थी। कायदे से तो केंद्र
और राज्य सरकारों को तभी चेत जाना चाहिए था जब महाराष्ट्र में ट्रेन पटरियों पर सो
रहे कामगार मालगाड़ी से कट मरे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोरी
संवेदना जताकर मृत परिवार को आर्थिक सहायता देने की घोषणा के बाद औपचारिकता पूरी कर
दी गई। नतीजा यह हुआ कि कामगारों के पैदल या साइकिल से घर जाने का सिलसिला उलटा और
तेज हो गया। जो श्रमिक ट्रेनें चल रही हैं वह पर्याप्त नहीं साबित हो रही हैं। यह साफ
है कि घर लौटना चाह रहे सभी कामगार इन ट्रेनों की सुविधा हासिल नहीं कर पा रहे हैं।
विडंबना यह है कि न तो पैदल घर जाने वाले मजबूर मजदूरों को रोकने की कोशिश की जा रही
है और न ही उन्हें उचित तरीके से घर भेजने के लिए प्रबंध किए जा रहे हैं। कुछ सरकारें
उलटा इन कामगारों पर लाठीचार्ज करवा रही हैं। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें
हों अब तक इन्होंने इस दिशा में कोई ठोस न तो नीति बनाई है और न ही कोई पर्याप्त बंदोबस्त
किया है। आज पूरे देश की सड़कों पर लाखों मजदूर घर लौटने की लालसा को लेकर पैदल ही
निकल पड़े हैं। राज्यों को आपसी तालमेल बढ़ाना होगा ताकि इस तरह के हादसों से बच सकें।
Sunday, 17 May 2020
माल्या को भारत लाने का रास्ता साफ
भगौड़े कारोबारी विजय
माल्या का खेल खत्म होने वाला है। कानूनी दांवपेंच के चलते माल्या भारत प्रत्यर्पण
से अब तक कोई न कोई कानूनी तिकड़म लगाकर बचता रहा है। पर अब उसके कानूनी विकल्प खत्म
होते दिख रहे हैं। विजय माल्या को भारत को सौंपे जाने के खिलाफ याचिका को ब्रिटेन के
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। अब माल्या के पास ब्रिटेन में लगभग सभी तरह के कानूनी
विकल्प खत्म हो चुके हैं। माल्या को 28 दिनों
के भीतर भारत को सौंपा जा सकता है। हालांकि इस पर अंतिम फैसला ब्रिटेन के गृहमंत्री
प्रीति पटेल को करना है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कोर्ट से मिले झटके के बाद माल्या
अब यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स में गुहार लगा सकता है। अगर ऐसा होता है तो प्रत्यर्पण
लटक सकता है। इससे पहले ब्रिटेन के हाई कोर्ट ने भी माल्या की याचिका खारिज कर दी थी।
कारोबारी माल्या पर आरोप है कि उसने भारतीय बैंकों से करीब 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया और उसे बिना वापस किए मार्च 2016 में भारत से फरार हो गया था। 64 वर्षीय माल्या पर भारत
में धोखाधड़ी और मनी लांड्रिंग का केस दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले माल्या
ने कोरोना संकट पर आर्थिक राहत पैकेज के ऐलान के लिए प्रधानमंत्री को बधाई दी और सरकार
को कर्ज वापस करने की बात भी कही। ट्वीट कर माल्या ने कहा कि उन्हें मेरे जैसे छोटे
सहयोगकर्ता को इग्नोर करना चाहिए, जो स्टेट बैंक का सारा पैसा
लौटाना चाहता है। मुझसे सारा पैसा बिना शर्त के लीजिए और मामला खत्म कीजिए। माल्या
पहले भी कहता रहा है कि कर्ज चुकाने के उसके बार-बार के आग्रह
को मोदी सरकार नजरंदाज कर रही है।
-अनिल नरेन्द्र
केजरीवाल की अपील पर पांच लाख लोगों ने रिस्पांड किया
राजधानी के लोगों से 17 मई के बाद लॉकडाउन-4
के स्वरूप पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने राय मांगी थी। उसके 24
घंटे में 5.48 लाख सुझाव आए। इसमें वॉट्सएप पर
4,76,000, ई-मेल पर 10,700, फोन पर 39,000 और चेंज ओआरजी पर 22,500 सुझाव मिले। सीएम अरविन्द केजरीवाल ने मंगलवार को जनता से बुधवार शाम पांच बजे तक सुझाव मांगे थे। अब सरकार
जनता के सुझाव पर विशेषज्ञों की राय लेकर दिल्ली का प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को
भेज चुकी है। मुख्यमंत्री ने डिजिटल प्रेस कांफ्रेंस पर कहा था कि प्रधानमंत्री ने
17 मई के बाद लॉकडाउन में ढिलाई देने के लिए मुख्यमंत्रियों से
15 मई तक सुझाव मांगा है। दिल्ली के लोग किन-किन क्षेत्रों में कितनी ढिलाई चाहते हैं? इस पर वह 13
मई की शाम पांच बजे तक अपने सुझाव भेज सकते थे। मुख्यमंत्री ने कहा था
कि मैं अपने दिल्ली के लोगों का सुझाव जानना
चाहता हूं। क्या-क्या चीजें नहीं खुलनी चाहिए? इस बारे में लोग बताएं। ज्यादातर लोगों की राय थी कि मार्केट, पार्प और सार्वजनिक स्थानों पर डब्ल्यूएचओ से मंजूर सैनिटाइजेशन टनल स्थापित
करें। क्रीनिंग के बाद ही इलैक्ट्रिशियल, ड्राइवर, मैकेनिकल व घरेलू हेल्पर को छूट दी जाए। वर्प फ्रॉम होम और 50 फीसदी कर्मियों के लिए ऑड-ईवन नम्बर के हिसाब से छूट
दी जाए। मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लैक्स को ऑड-ईवन रजिस्ट्रेशन व सैनिटाइजेशन
प्रोटोकॉल के हिसाब से खोलना चाहिए। बाजारों में एक दिन छोड़कर एक दुकान खोलने की छूट
ऑड-ईवन की तरह होनी च]िहए। यह नहीं होना चाहिएöरिहायशी इलाके में हालात सामान्य नहीं होने तक कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी की छूट
नहीं दी जाए। कोचिंग क्लास में ऑनलाइन क्लास की छूट दी जाए। जिम, स्पा, सैलून, लग्जरी गुड्स,
मनोरंजन की छूट न हो। पान-गुटखा पर प्रतिबंध लगाया
जाए। रेस्तरां में बैठकर खाना या स्टॉल पर खड़े होकर खाने की मनाही हो। ज्यादातर लोगों
ने परिवहन, बिजनेस, स्कूल-कॉलेज और इंडस्ट्री को पटरी पर लाने के सुझाव दिए हैं। लोगों ने मेट्रो,
बस, टैक्सी संचालन पर भी सुझाव भेजे हैं। लोगों
ने अर्थव्यवस्था को फिर से ठीक करने के लिए एमएसएमई व बिजनेस तथा इंडस्ट्री पर कई महत्वपूर्ण
सुझाव दिए हैं। अब देखना होगा कि लॉकडाउन-4 का स्वरूप क्या होगा?
दूसरे शहर में भूखे मरने से अच्छा है अपने घर चल दें
कोरोना वायरस महामारी के बीच देश में लॉकडाउन लागू है और इसकी सबसे बड़ी मार
देश के करोड़ों मजदूरों पर पड़ी है। लॉकडाउन का समय बढ़ता देखकर प्रवासी मजदूरों का
धैर्य जवाब दे गया है। वह अब बस किसी भी तरह अपने गांव, घर पहुंचना चाहते हैं। इसके लिए वह साधन के अभाव की परवाह
किए बिना कई सौ किलोमीटर पैदल चलने के लिए भी तैयार हैं। काम बंद होने और पैसे खत्म
होने से दो वक्त की रोटी और मकान का चढ़ता किराया उन्हें शहर छोड़ने पर मजबूर कर रहा
है। ऐसे में यह अब किसी भी तरह अपने घर पर पहुंचना चाहते हैं। गुड्डू प्रसाद अपने परिवार
और गोरखपुर जाने वाले लगभग नौ साथियों के साथ दिल्ली के आनंद विहार बस स्टेशन के पास
रुके थे। उन्हें लग रहा था कि यहां से या आगे से उनको कोई साधन मिल जाएगा। किसी समाजसेवी
ने उनके परिवार को खाना दे दिया था और वह लोग खाना खा रहे थे। गुड्डू रोहतक से बुधवार
की सुबह छह बजे से पैदल चले थे। बोरी, खाने का सामान,
दो बेटा, पत्नी के अलावा साथ में कुछ मजदूर साथी
भी थे। वह रोहतक में राजमिस्त्राr का काम करते थे। रोहतक में
जो काम किए ठेकेदार ने वह पैसा खाने के एवज में काट लिया। अब कुछ नहीं है उनके पास।
रुंधे गले से उन्होंने कहा कि भूखे-प्यासे मरने से अच्छा है घर
चले जाएं और हम लोग निकल लिए। अगर आनंद विहार से सवारी नहीं मिली तो हम किसी तरह रुकते-थकते पैदल ही गोरखपुर चले जाएंगे। मध्य प्रदेश के बालाघाट के पुंडे मोहगांव
के रामू छोटमारे और उनकी पत्नी धनंवताबाई हैदराबाद में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन के
कारण ठेकेदार ने काम बंद कर दिया। यह मजदूर परिवार रोटी-रोजी
के लिए मोहताज हो गया। घर वापसी का सरकारी साधन नहीं मिला तो रामू गर्भवती पत्नी और
दो साल की बेटी अनुरागिनी के साथ पैदल ही 800 किलोमीटर के सफर
पर निकल पड़े। कुछ दूर बेटी को गोद में रखा। जब पत्नी और बेटी की हिम्मत जवाब देने
लगी तो रामू ने बांस और लकड़ी से हाथ गाड़ी बनाई। उस पर पत्नी, बेटी को बैठाया। फिर हाथ गाड़ी खींचते
हुए बालाघाट की ओर चल पड़े। 17 दिन बाद बालाघाट की लगी सीमा पर
पहुंचे। यहां एसडीओपी नितेश भार्गव ने उन्हें गाड़ी से घर भेजा। सार्वजनिक वाहन नहीं
चलने के कारण प्रवासी मजदूरों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ रही है। महाराष्ट्र के मुंबई
में एक बार फिर मजदूरों का गुस्सा फुटा, यहां नागवाड़ा इलाके
में सैकड़ों की संख्या में मजदूर सड़कों पर उतर आए। उन्होंने अपने घर उत्तर प्रदेश
भेजने की मांग की, लेकिन जब भीड़ बढ़ती गई तो स्थानीय प्रशासन
ने लाठीचार्ज कर मजदूरों को भगाया। गुजरात के कच्छ में भी प्रवासी मजदूरों ने स्थानीय
प्रशासन के खिलाफ हंगामा किया। कच्छ के गांधी धाम में सैकड़ों मजदूरों ने सड़क पर हंगामा
किया, हाई-वे ब्लॉक कर दिया और जब पुलिस
ने लाठीचार्ज शुरू किया तो उन पर ही पत्थर बरसा दिए। यही हाल सूरत में भी हुआ। पैरों
में छाले, सिर पर सामान, निकल पड़े घर के
लिए। बेशक लॉकडाउन की शर्तों में थोड़ी ढील दे दी गई है और लॉकडाउन-4 में यह और भी बढ़ सकती है पर प्रवासी मजदूरों का कहना है कि हमें इस बात का
डर है कि पता नहीं कितनी मजदूरी मिलेगी और कितने दिन में मिलेगी और फिर यहां कोरोना
को लेकर डर लगता है। इसलिए हम अपने गांव में ही बेहतर हैं।
Saturday, 16 May 2020
दावे रोज पर नहीं पता कब नसीब होगी वैक्सीन
कोरोना
वायरस से संक्रमण को रोकने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक वैक्सीन तैयार करने के लिए
कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि इस महामारी को रोका जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस
रफ्तार से वैज्ञानिक कोरोना वायरस के टीके की रिसर्च कर रहे हैं वो असाधारण है। हमें
यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी वैक्सीन के विकास में सालों लग जाते हैं और कभी-कभी तो दशकों भी। उदाहरण के लिए हाल
ही में जिस इबोला वैक्सीन को मंजूरी मिली है, उसके विकास में
16 साल का वक्त लग गया और यह बहुत सामान्य बात है कि वैक्सीन के विकास
की प्रक्रिया कई चरणों से होकर गुजरती है। पहला फेज लैबोरेटरी में होता है,
उसके बाद जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। अगर प्रयोग के दौरान यह लगता
है कि वैक्सीन का इस्तेमाल सुरक्षित है और प्रतिरोधक क्षमता दिखाई देने लगती है तो
इंसानों पर इसका परीक्षण किया जाता है। इंसानों पर परीक्षण की प्रक्रिया भी तीन चरणों
में पूरी होती है। पहले चरण में भाग लेने वाले लोगों की संख्या बहुत छोटी होती है और
वह स्वस्थ होते हैं। दूसरे चरण के परीक्षण के लिए भाग लेने वाले लोगों की संख्या ज्यादा
होती है और कंट्रोल ग्रुप्स होते हैं ताकि यह देखा जा सके कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित
है? कंट्रोल ग्रुप का मतलब ऐसे समूह से होता है जो परीक्षण में
भाग लेने वाले बाकी लोगों से अलग रखे जाते हैं। प्रयोग के तीसरे चरण में यह पता लगाया
जाता है कि महज तीन महीने के भीतर कोविड-19 की वैक्सीन पर काम
कर रही 90 रिसर्च टीमों में से छह उस मुकाम पर पहुंच गई हैं जिसे
एक बहुत बड़ा लक्ष्य माना जाता है और वो है इंसानों पर परीक्षण। मार्डर्न थेटाप्यूटिक्स
एक अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी है जिसका मुख्यालय मैसाच्युसेट्स में है। यह कंपनी
कोविड-19 की वैक्सीन के विकास के लिए नए रिसर्च रणनीति पर काम
कर रही है। वैज्ञानिकों ने लैब में कोरोना वायरस का जेनेटिक कोड तैयार किया है। उसके
एक छोटे से हिस्से को व्यक्ति के शरीर में इजेक्ट किए जाने की जरूरत होगी। उन्हें उम्मीद
है कि ऐसा करने से व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण के खिलाफ लड़ने के लिए प्रतिक्रिया
करेगी। अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी इनोविया भी रिसर्च की नई रणनीति पर अमल कर रही
है। इससे ऐसी वैक्सीन तैयार की जा रही है जिससे मरीज के शरीर में संक्रमण से लड़ने
के लिए एंटीबॉडीज का निर्माण होने की उम्मीद है। चीन में इस समय तीन वैक्सीन प्रोजेक्ट
ऐसे हैं जिनमें इंसानों पर परीक्षण चल रहा है। वुहान में बन रही है एक और वैक्सीन।
चीन के जिस तीसरी वैक्सीन का काम चल रहा है उसमें निक्रिय वायरस की वैक्सीन दिए जाने
का प्रस्ताव है। इस पर वुहान बायोटेक्नालिजीकल प्रॉडक्ट्स इंस्टीट्यूट में काम चल रहा
है। ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जैनर इंस्टीट्यूट में मैडोक्स-1 वैक्सीन के विकास पर काम चल रहा है। 23 अप्रैल को यूरोप
में इसका पहला क्लिनिकल ट्रायल शुरू हो गया है। भले ही कोविड-19 की बीमारी का इलाज युद्धस्तर पर खोजा रहा हो, लेकिन जानकारों
का कहना है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इनमें से कोई टीका इसे रोकने में सफल
होगा या नहीं? एक प्रभावशाली वैक्सीन तैयार करना, उसे मंजूरी मिलना केवल पहला कदम होगा, उसके बाद असली
चुनौती अरबों लोगों के लिए इस वैक्सीन के उत्पादन और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने की
होगी।
-अनिल नरेन्द्र
तीन लाख करोड़ की बूस्टर डोज
प्रधानमंत्री की 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा का ब्यौरा पेश
करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने नई उम्मीद जताई है। कोविड-19 से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपए
की जिस राहत पैकेज की घोषणा की और वित्तमंत्री ने अगले दिन उसका विस्तृत ब्यौरा देते
हुए स्पष्ट कर दिया है कि जीडीपी के करीब 10 फीसदी का यह पैकेज
वास्तव में अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी साबित होगा। इसमें सबसे अधिक जोर सूक्ष्म,
लघु और मझौले उद्यमों यानि एमएसएमई को संकट से उबारने पर दिया गया है।
इन उद्यमों को तीन लाख करोड़ रुपए कर्ज के रूप में बिना शर्त उपलब्ध कराए जाने की बात
कही है। इससे 45 लाख उद्यमों को राहत पहुंचेगी। हालांकि
1.7 लाख करोड़ का पहले का राहत पैकेज और रिजर्व बैंक द्वारा की गई राहत
घोषणाएं भी इस पैकेज में शामिल हैं। वित्तमंत्री ने अब जिस राहत पैकेज का खुलासा किया
है, वह अर्थव्यवस्था के 14 अलग-अलग क्षेत्रों के लिए है। इसमें निस्संदेह सबसे ज्यादा संकट से जूझ रहे एमएसएमई
या सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्रों के लिए कुल छह कदम
उठाए गए हैं। इनमें से चार साल तक तीन लाख करोड़ का बिना गारंटी के कर्ज, जिसमें एक साल तक मूल धन नहीं लौटाना पड़ेगा और संकट में फंसे एमएसएमई यूनिट्स
को 20 हजार करोड़ का अतिरिक्त ऋण शामिल है। इससे दो लाख उद्यमों
के लाभान्वित होने की उम्मीद है। फिर 15 हजार रुपए से कम वेतन
पाने वाले कर्मचारियों के भविष्य निधि खाते में अगस्त तक अंशदान नियोक्ता के बजाय केंद्र
सरकार करेगी। एमएसएमई की परिभाषा बदलते हुए इनमें निवेश और कारोबार की सीमाएं भी बढ़ा
दी गई हैं। इसके अलावा आर्थिक दबाव झेल रही बिजली कंपनियों के लिए 90 हजार करोड़ रुपए की मदद पहुंचाने की घोषणा की गई है। निश्चय ही सरकार के इस
कदम खासकर एमएसएमई क्षेत्र को राहत मिलेगी। दरअसल पूर्ण बंदी की वजह से सबसे अधिक मार
इन्हीं उद्यमों पर पड़ी है और चिन्ता जताई जाने लगी है कि अगर इनकी सेहत सुधारने का
प्रयास नहीं किया गया तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना मुश्किल होगा। इसीलिए सरकार
का ध्यान इन उद्यमों पर करना समझ आता है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री
का वक्तव्य निश्चित वैसा नहीं था जैसा कि आमतौर पर लोगों के मन में अपेक्षित था। सभी
अटकलों और आंकलनों के बीच से यह उम्मीद लगा रहे थे कि पीएम कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन-3 की विवेचना
प्रस्तुत करेंगे। आम जनता की विशेषकर अपने-अपने स्थानों से पलायन
करने वाले मजदूरों की समस्याओं का उल्लेख करेंगे। महामारी के नियंत्रण में आ रही बाधाओं
और उनके संभावित निराकरणों पर चर्चा करेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री
ने ऐसा कुछ नहीं किया और जो किया वह अंधेरे का उल्लेख किए बिना प्रकाश के महत्व को
दर्शाने जैसा था। पर उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि आपदा को अवसर में बदलना
है और भारत को आत्मनिर्भर बनाना है, इस तरह का उनका यह उत्तर
उन सवालों का था जो बार-बार उठ रहे थे कि कोरोना के पश्चात भारतीय
अर्थव्यवस्था क्या मोड़ लेगी? जो करोड़ों लोग कोरोना निरोधक उपायों
की चपेट में आकर अपना व्यवसाय और आर्थिक आधार खो बैठे हैं, उनका
भविष्य क्या होगा?
Friday, 15 May 2020
डॉक्टर बोले फिलहाल होम डिलीवरी बेहतर विकल्प है
कोविड-19 के शिकार 80 प्रतिशत लोगों में या तो हल्के लक्षण होते हैं या फिर बिल्कुल कोई लक्षण नहीं
आता है। इसे मेडिकली एमिम्योमेटिक कहा जाता है। अनुमान यह है कि दिल्ली में ऐसे कई
लोग हो सकते हैं, जिनमें यह लक्षण नहीं आए हों और उन्हें पता
भी नहीं है कि वह कोरोना से संक्रमित हैं। ऐसे में अगर लॉकडाउन से घर से बाहर आने-जाने की छूट मिलती है तो भी समझदारी से इसका पालन करें। कोशिश करें कि कम से
कम घर से बाहर जाएं, क्योंकि बाहर संक्रमण के सोर्स हो सकते हैं।
संभव हो तो होम डिलीवरी की सुविधा लें। यह कहना है डॉक्टरों का। डॉक्टर नरेंद्र सोनी
के अनुसार घर के बाहर कहां संक्रमण है किसी को नहीं पता। इसलिए होम डिलीवरी सबसे बेहतर
ऑप्शन है। इससे जहां समय भी बचेगा, वहीं अनजान लोगों से संपर्प
में आने की आशंका भी कम रहेगी। यह जरूरी है कि होम डिलीवरी वाले स्टोर अपने स्टाफ की
सही जांच कराएं, उन्हें सैनिटाइज करके ही भेजें। उन्हें संक्रमण
के बारे में जागरूक करें। डिलीवरी ब्वॉय वह सभी प्रिकाशन लें, जिससे संक्रमण न हो। वहीं एशिया हॉस्पिटल के डॉक्टर राजेश बुद्धिराजा ने बताया
कि घर बैठे खरीददारी इस समय सबसे बेहतर है। हां, जिस समय आप सामान
की डिलीवरी ले रहे हों, उस समय डिलीवरी ब्वॉय से दूरी बनाए रखें।
जो सामान लेते हैं उसमें से अगर किसी चीज से सैनिटाइज कर सकें तो जरूर करें। अगर तुरन्त
जरूरत वाले सामान नहीं हैं तो उसे दो से तीन दिन के लिए छोड़ दें। ताकि अगर उसमें वायरस
हो तो खत्म हो जाए। बाहर से लाए गए सामान को तुरन्त इस्तेमाल न करें और न ही उसे तुरन्त
फ्रिज में रखें। डॉ. हरीश गुप्ता का भी कहना है कि इसमें कोई
दो राय नहीं है कि अभी घर से निकलना संक्रमण के लिहाज से सही नहीं है। अभी जितना हो
सके प्रिकाशन लें। छूट मिल रही है तो ऐसा नहीं है कि पहले की तरह निकल जाएं और घूमने लगें।
अभी हमें हर कदम संभल कर उठाना है। अब व्यक्तिगत जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई है। अब अपने
स्तर पर बचाव का ध्यान देना होगा, तभी परिवार संक्रमण से बच सकता
है। सिर्प डिलीवरी लेने के दौरान मास्क पहनें और डिस्टेंस मेनटेन करें। घर में आते
ही हाथ धोएं और सामान को भी सैनिटाइज करें। अगर धूप निकलती है तो कुछ सामान धूप में
रख दें। जिसे सैनिटाइज कर सकते हैं, उसे गरम पानी से भी धो दें।
-अनिल नरेन्द्र
बघेल ने राहत कोष का ]िहसाब जनता के सामने रखा
देश में कोरोना संकट के बीच बड़ी संख्या में लोग पीएम
केयर्स फंड में दान कर रहे हैं। इस बीच विपक्षी दलों की ओर से लगातार यह मांग की जा
रही है कि मोदी सरकार पीएम केयर्स फंड का हिसाब दे और बताए कि वह पीएम केयर्स फंड में
मिल रहे पैसे का किस तरह और कहां खर्च कर रही है? लोगों की मांग के बावजूद केंद्र सरकार ने पीएम केयर्स फंड
का अब तक हिसाब नहीं दिया है। इस बीच छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने बड़ी पहल की
है। सीएम भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री राहत कोष का हिसाब जनता के सामने रख दिया है। बघेल
ने ट्वीट कर कहाöमैं आप सबके बीच मुख्यमंत्री सहायता कोष का हिसाब
रख रहा हूं। मैं बताना चाहूंगा कि बीते 24 मार्च से लेकर
7 मई तक मुख्यमंत्री सहायता कोष में विभिन्न दानदाताओं के द्वारा कुल
56 करोड़ 4 लाख 38 हजार
815 रुपए की राशि प्राप्त हुई है। बघेल ने आगे कहाöइस फंड से कोरोना की रोकथाम के लिए, जरूरतमंदों की सहायता
के लिए राज्य के सभी जिलों को 10 करोड़ 25 लाख 30 हजार रुपए की राशि जारी कर चुकी है। संकट के समय
में आप सरकार पर इतना भरोसा जता रहे हैं तो पारदर्शिता को बरकरार रखना मेरा भी कर्तव्य
है। विश्वास है कि आपका सहयोग आगे भी मिलेगा। पीएम केयर्स फंड को कोरोना महामारी से
लड़ने के लिए खासतौर पर बनाया है। यह सवाल पूछा जा रहा है कि जब सालों से प्रधानमंत्री
कोष मौजूद है तो फिर एक नए फंड की जरूरत क्यों आन पड़ी? क्या
इस फंड का नियंत्रण महालेखा परीक्षक कैग की अवधि से बाहर होगा?
महामारी में फरिश्ता बनीं भारतीय नर्सें
कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया में लोगों की जान
बचाने के लिए भारतीय नर्सें फरिश्ता बन रही हैं। यूरोप हो या अमेरिका, खाड़ी के देश हों या अफ्रीका,
हर जगह खतरों से जूझती हुईं दिन-रात सेवाभाव से
जुटी हुई हैं। संक्रमण फैला, कई साथियों की मौत हुई, इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हजारों भारतीय
नर्सें अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व में महामारी से जूझ रही
हैं। अभी चार दिन पहले स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे दुबई की मदद करने के लिए
88 भारतीय नर्सों का नया दल वहां पहुंचा है। आर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनामिक
को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के मुताबिक भारत से सबसे ज्यादा नर्स,
स्वास्थ्य कर्मी दुनिया में जाते हैं। करीब 56 हजार पंजीकृत नर्स तो सिर्प अमेरिका, ब्रिटेन,
कनाडा और आस्ट्रेलिया में काम करती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेताया
है कि आने वाले दिनों में भारत से नर्सों की कमी पड़ सकती है। क्योंकि यहां से नर्सें
बेहतर अवसर के लिए अन्य मुल्कों में नौकरी करने जा रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के
मुताबिक भारत में 1000 लोगों पर 1.7 नर्स
हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार 1000 लोगों
पर तीन नर्स होनी चाहिए। खतरे में काम पर लगी रहती हैं नर्सें। नर्स अकसर उन मरीजों
के काफी करीब रहती हैं जो बुरी तरह संक्रमित होते हैं। उनके वायरल लोड ज्यादा होने
से संक्रमण फैलने का खतरा अधिक होता है। इसलिए दुनियाभर में बड़ी संख्या में स्वास्थ्य
कर्मी इसकी चपेट में आ जाते हैं। इसके बावजूद वह जूझ रही हैं। कई नर्सें तो महीनों
से अपने घर नहीं गईं। हम भारतीय नर्सों के सेवाभाव को सलाम करते हैं।
Thursday, 14 May 2020
29 दिनों में तीसरी बार भूकंप के झटके
दिल्ली में रविवार को
आए आंधी-तूफान के बाद भूकंप का झटका महसूस किया
गया। रिएक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.4 दर्ज की गई। भूकंप का
केंद्र जमीन के 2.9 किलोमीटर नीचे था। दिल्ली में 29 दिनों के अंदर भूकंप का यह तीसरा झटका महसूस किया गया है। दिल्ली में पहला
भूकंप का झटका 12 अप्रैल को आया था, जिसकी
क्षमता रिएक्टर स्केल पर 3.5 मापी गई थी। इसके अगले दिन ही
13 अप्रैल को भूकंप का दूसरा झटका दिल्ली में महसूस किया गया,
जिसकी तीव्रता रिएक्टर स्केल पर 2.3 मापी गई थी।
दिल्ली में 29 दिनों के अंदर आए भूकंप के तीनों झटकों का केंद्र
उत्तर-पूर्वी दिल्ली ही रहा। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र
के वरिष्ठ वैज्ञानिक जीएल गौतम के अनुसार रविवार को आए भूकंप का केंद्र उत्तर-पूर्वी दिल्ली में अलीपुर-उत्तर प्रदेश सीमा के पास था।
इससे पूर्व 12 और 13 अप्रैल को भूकंप का
केंद्र उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सोनिया विहार के पास था। जीएल
गौतम के मुताबिक दिल्ली में महसूस किए जा रहे भूकंप के झटके दिल्ली-हरिद्वार रेंज की प्लेटों में बदलाव की वजह से महसूस किए जा रहे हैं। जीएल
गौतम के मुताबिक इन प्लेटों की आंतरिक प्लेटों में मामूली बदलाव का क्रम जारी है। इस
वजह से भूकंप के हल्के झटके महसूस किए जा रहे हैं। दिल्ली में आए इन तीन झटकों के अलावा
आठ अप्रैल को दादरी के पास भी भूकंप का झटका महसूस किया गया था, जो रिज क्षेत्र में ही है। चिन्ता का विषय है। दिल्ली भूकंप के लिए संवेदनशील
है। इस क्षेत्र में कभी भी बड़ा झटका आने की संभावना जताई जा रही है। राष्ट्रीय भूकंप
]िवज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक जीएल गौतम पूरे हिमालयन क्षेत्र
को भूकंप के सिस्मिक जोन-5 में रखा है। इसका अर्थ है कि यह भूकंप
के लिए सबसे संवेदनशील है। इसके बाद जोन चार आता है, जिसमें दिल्ली
है। गौतम के मुताबिक हिमालयन क्षेत्रों में लगातार इंडियन प्लेट्स यूरेशिया प्लेट्स
से टकराती हैं। इस वजह से बड़े भूकंप की संभावनाएं लगातार बनी रहती हैं, ऐसा होने पर इसका असर जोन चार पर भी पड़ सकता है। वैज्ञानिकों ने इन भूकंपों
के बारे में अपनी थ्योरी दी है पर ज्योतिषियों के अनुसार इतने भूकंप आने अच्छे संकेत
नहीं हैं। वह कहते हैं कि यह बुरे टाइम का संकेत है और आगे भी ऐसे झटके आते रहेंगे।
-अनिल नरेन्द्र
शराब की होम डिलीवरी पर पत्नियों को एतराज
घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी की आशंका जताते हुए लॉकडाउन के दौरान शराब
की होम डिलीवरी पर पंजाब कांग्रेस के दो नेताओं की पत्नियों ने मुख्यमंत्री कैप्टन
अमरिन्दर सिंह से अनुरोध किया कि वह शराब की होम डिलीवरी के फैसले पर पुन विचार करें।
इनमें से एक कैबिनेट मंत्री की पत्नी है। पंजाब सरकार ने कोविड-19 लॉकडाउन में गुरुवार से शराब की होम डिलीवरी की अनुमति दी
है। पंजाब आबकारी कानून 1914 और आबकारी नियमों में होम डिलीवरी
का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन यह फैसला कोविड-19 महामारी के दौरान सामाजिक दूरी सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। अकाल तख्त
के जत्थेदार हरप्रीत सिंह ने भी कहा कि शराब की दुकानें खुलने से घरेलू हिंसा के मामले
बढ़ेंगे। सरकार के इस फैसले पर शंका जताते हुए लुधियाना से पार्षद और पंजाब के खाद्य
आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशू की पत्नी ममता आशू ने शनिवार को कहा कि मादक पदार्थों
के नशे के खिलाफ कांग्रेस का चुनावी वादा था। इसलिए इस फैसले पर दोबारा विचार करने
की जरूरत है। ममता आशू ने ट्वीट कियाöइसकी वजह से पूर्ण बंदी
के दौरान घरेलू हिंसा के मामले बढ़ सकते हैं। यहां तक कि ठेकेदार भी उन्हें खोलना नहीं
चाहते हैं। गिदड़बाहा से कांग्रेस विधायक अमरिन्दर सिंह राजा वारिंग की पत्नी अमृता
ने भी ऐसा ही अनुरोध किया है। अमृता वारिंग ने ट्वीट कर एक ओर जहां पूर्ववर्ती शिअद-भाजपा सरकार पर परिवारों को बर्बाद करने का आरोप लगाया, वहीं दूसरी ओर कहा कि सरकार के इस फैसले से घरेलू हिंसा के मामले बढ़ सकते
हैं। अमृता के पति विधायक अमरिन्दर सिंह राजा वारिंग ने भी ट्वीट करके इस मांग का समर्थन
किया है। वह मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार भी हैं।
ताकि कोरोना की रोकथाम भी हो और कामधंधा भी बढ़े
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में मंगलवार को सूचित कर दिया है कि 14 मई को लॉकडाउन खत्म होने के बाद लॉकडाउन-4 आरंभ होगा, यानि लॉकडाउन जारी रहेगा। संभव है कि नई गाइडलाइंस
में थोड़ी राहत कुछ जगहों पर मिले। निष्कर्ष यही है कि हमें लॉकडाउन में कोरोना वायरस
के साथ जीने की आदत डालनी पड़ेगी। लॉकडाउन अनंतकाल तक नहीं रखा जा सकता। लेकिन दूसरी
ओर भारत में कोरोना का संकट आंकड़ों के हिसाब से इस समय चरम पर है। अंदेशा है कि ग्राफ
का बढ़ना अभी जारी रहेगा। उधर करीब एक दर्जन से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में
कहा गया है कि संक्रमण प्रसार का मुख्य कारण बंद कमरों, हॉलों
या बस्तियों में अधिक लोगों का एक साथ रहना है। जाहिर है कि लॉकडाउन खोलने की पहली
शर्त होगी दूरी बनाते हुए काम पर लगना। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के
बाद केंद्र सरकार को भी यह ज्ञान हो गया है कि हमें कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत
डालनी होगी। इसी का परिणाम है कि राष्ट्रव्यापी कठोर लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार ने
सार्वजनिक परिवहन को शुरू करने का निर्णय किया है। अब रेल की पटरियों पर यात्री ट्रेनें
दौड़ने लगी हैं। जाहिर है कि इसकी पहली शर्त होगी दूरी बनाते हुए सफर करना। क्या मेट्रो,
गांव की बसों, पैसेंजर ट्रेनों और अनाज व भोजन
आदि के वितरण और धार्मिक अवसरों पर या धर्मस्थलों पर लंबे समय तक दूरी निभाना संभव
होगा? शराब की लाइनें हमने देखी हैं। लेकिन इस संकट के दौरान
सरकारी संस्थाओं ने अभूतपूर्व क्षमता दिखाई। कुल 138 करोड़ आबादी
वाले देश को डेढ़ महीने लंबे लॉकडाउन के दौरान लगातार रसद, सब्जी
और दूध ही नहीं, दवाओं की भी आपूर्ति करना कोई साधारण काम नहीं
है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से लेकर
नुक्कड़ की परचून की दुकान ने जबरदस्त क्षमता दिखाई। पिछले 47 दिनों से आर्थिक और व्यवसायिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हैं। अभी तक इसका नकारात्मक
असर रोज कमाने और खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है। लेकिन अगर आर्थिक गतिविधियां
आगे भी पूरी तरह ठप रहती हैं तो छोटे और मझौले व्यापारी या अन्य नौकरीपेशा वाले निम्न
मध्यमवर्गीय लोग भी प्रभावित होने लगेंगे। यह वर्ग ऐसा है जो अपनी आय का बहुत मामूली
हिस्सा बचा पाते हैं। आर्थिक तबाही के कारण जब यह वर्ग सड़कों पर उतरेगा तो अराजकता
पैदा होने लगेगी। इसलिए सरकार यह समझ चुकी है कि कोरोना से बचाव के नियमों का कठोरता
से पालन करते हुए आर्थिक गतिविधियों को शुरू करना चाहिए। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने
के लिए आर्थिक गतिविधियां शुरू करनी ही होंगी। अब तो कोरोना वायरस के प्रति जन साधारण
में जागरुकता का प्रचार-प्रसार भी हो गया है। लोगों से यह अपेक्षा
की जा सकती है कि वह सावधानियां बरतते हुए अपने कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। केंद्र और
राज्य सरकारों की असली अग्निपरीक्षा भी इन्हीं दिनों में होगी कि वह किस तरह कोरोना
महामारी और आर्थिक गतिविधियों के बीच सामंजस्य बैठा पाती है। अर्थात कोरोना की रोकथाम
भी हो और आर्थिक गतिविधियां भी चलती रहें यह राज्य सरकारों के लिए जबरदस्त चुनौती होगी।
परिणाम सरकारों की प्रशासनिक चुस्ती और दक्षता पर निर्भर करेगा।
Wednesday, 13 May 2020
लाउडस्पीकर पर अजान बंद हो
लेखक-गीतकार जावेद अख्तर का कहना है कि लाउडस्पीकर पर अजान देने
का चलन बंद होना चाहिए, क्योंकि इससे दूसरों को असुविधा होती
है। उन्होंने कहा कि अजान मजहब का अभिन्न हिस्सा है, लाउडस्पीकर
का नहीं। शनिवार को किए गए ट्वीट में जावेद ने पूछा कि यह चलन करीब आधी सदी तक हराम
(मना) माना जाता था, तो अब हलाल (इजाजत) कैसे हो गया?
गीतकार ने ट्वीट कियाöभारत में करीब 50
साल तक लाउडस्पीकर पर अजान देना हराम था। फिर यह हलाल हो गया और इतना
हलाल कि इसका कोई अंत नहीं है, लेकिन यह खत्म होना चाहिए। अजान
ठीक है, लेकिन लाउडस्पीकर पर इसे देने से दूसरों को असुविधा होती
है। मुझे उम्मीद है कि कम से कम इस दफा वह खुद इसे करेंगे। ट्विटर पर जब एक शख्स ने
75 वर्षीय अख्तर से मंदिरों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के
बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि स्पीकरों का रोजाना इस्तेमाल फिक्र की बात है। उन्होंने
जवाब दियाöचाहे मंदिर हो या मस्जिद, अगर
आप किसी त्यौहार पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ठीक है, लेकिन इसका इस्तेमाल मंदिर या मस्जिद में रोजाना ठीक नहीं। अख्तर ने कहाöएक हजार साल से अधिक समय से अजान बिना लाउडस्पीकर के दी जा रही है। अजान आपके
मजहब का अभिन्न हिस्सा है, इस यंत्र का नहीं। इससे पहले मार्च
में अख्तर ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान मस्जिदों को बंद करने का समर्थन किया था
और कहा था कि महामारी के दौरान काबा और मदीना तक बंद हैं। जावेद के विचार को कट्टरपंथी
मौलवी पता नहीं कैसे लेते हैं? इस पर विवाद पैदा कर सकते हैं।
देखें कि जावेद की बात का क्या रिएक्शन होता है?
-अनिल नरेन्द्र
कोरोना ने बदल डाली दुख बांटने की भी परिभाषा
कोरोना के तेजी से बढ़ते संक्रमण के बाद मरीजों का बेहतर इलाज और मृत्युदर
को कम करना सरकार की पहली प्राथमिकता बन गई है। सरकार इस बात से चिंतित नहीं है कि
केस कितने बढ़ रहे हैं। जितने ज्यादा टेस्ट होंगे उतनी संक्रमत केसों की संख्या बढ़ेगी।
पर चिंता इस बात की होनी चाहिए कि इससे मौत को कंट्रोल किया जा सके। फिलहाल हर दिन
कोरोना के तीन हजार से अधिक मरीज सामने आ रहे हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि रिकवरी
रेट भी बढ़ा है। लॉकडाउन तीन में मिली छूट का असर अगले हफ्ते सामने आने के बाद हर दिन
नए मरीजों की संख्या और ज्यादा होना तय माना जा रहा है। इसलिए जरूरी यह है कि लोगों
को कोरोना के साथ ही जीना सीखना होगा। लॉकडाउन के नियमों का सख्ती से पालन करें, सभी जरूरी प्रिकौशन लें तभी कोरोना को चरम पर पहुंचने से रोका
जा सकता है। देश में कोरोना के मरीजों की संख्या भले ही तेजी से बढ़ रही हो,
लेकिन अच्छी बात यह है कि हर तीसरा मरीज स्वस्थ होकर घर भी जा रहा है।
कोरोना ने जीवन की परिभाषा बदलकर रख दी है। संवेदना व भावनाओं को व्यक्त करने के तरीके
में बदलाव कर दिया है। समय के साथ, परिस्थितियों के साथ यह जरूरी
भी है, क्योंकि अगर थोड़ी-सी भी लापरवाही
हुई तो स्वास्थ्य के लिए कठिनाइयां उत्पन्न हो जाएगी। दिल्ली के राजौरी गार्डन में
ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला। राजौरी गार्डन निवासी एक महिला के पिता का देहांत कनाडा
में हो गया। महिला व उनके पति के करीबी लोगों ने अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए शारीरिक
दूरी का पालन करने के साथ-साथ दूसरों के लिए मिसाल पेश की है।
महिला अपने परिवार के साथ घर के बाहर खड़ी हो गई। इसी दौरान उनके करीबी कार में आए
और कार से ही संवेदना व्यक्त कर चले गए। अधिकांश लोगों ने सड़क पर अपनी कार में खड़े
होकर कागज पर अपनी बात लिखकर महिला को ढांढस बंधाया। राजौरी गार्डन में चांदनी अपने
परिवार के साथ रहती हैं। चांदनी के पिता गुरिन्दर सिंह आनंद की मौत कनाडा में कोरोना
संक्रमण के कारण दो मई को हो गई थी। इसके बाद से पूरा परिवार दुखी है। इस परिवार के
परिचित घर आकर संवेदना व्यक्त करना चाहते थे, लेकिन चांदनी के
पति रमनदीप ने इसके लिए साफ मना कर दिया। उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों
से कहा कि अभी के समय मिलना न तो आपके लिए हितकारी है और न मेरे लिए। पर दोस्तों का
मन नहीं मान रहा था। इसके बाद रमनदीप ने कहा कि आप सभी लोग सात मई को मेरे घर के पास
कार से आएं। हम सभी घर के गेट पर रहेंगे और आप बिना कार से उतरे अपनी संवेदना व्यक्त
कर चले जाएं, क्योंकि यह समय की मांग है। हमें सरकार के दिशानिर्देशों
का पूरी तरह से पालन करना है। साथ ही इस बात की जानकारी बीट ऑफिसर को भी दे दी गई।
इसके बाद सात मई को रमनदीप के 10 दोस्त अपनी कार में आए और संवेदनाएं
व्यक्त कर चले गए। हर कार में सिर्प दो लोग बैठे हुए थे। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग
के सभी निर्देशों का पालन किया गया।
हमें हर हाल में अपने घर जाना है
पूरे देश की सड़कों पर घर जाने वाले मजदूर कहीं साइकिल से तो कहीं पैदल जाते
दिख रहे हैं। यह किसी तरह अपने गृह नगर लौटना चाहते हैं। पुलिस की सख्ती, दलालों का लालच और घर पहुंचाने का सरकारी दावा सब कम पढ़े-लिखे मजदूरों की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है। किसी का पैसा खत्म है तो किसी
का राशन। मजदूर मजबूर होकर सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खा रहे
हैं, दर-दर भटक रहे हैं। यूपी गेट के पास
गाजीपुर सब्जी मंडी रोड पर रविवार सुबह 11 बजे करीब 15
साइकिल सवार मजदूर भटकते नजर आए। वह बदायूं जाने के लिए बॉर्डर पार करने
का प्रयास कर रहे थे, लेकिन पुलिस उन्हें वापस भेज रही थी। साइकिल
सवार मजदूर कामते ने बताया कि सभी बदायूं के हैं और दिल्ली में मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन
में घर और रिश्तेदारों से रुपए मंगाकर खर्च चला रहे थे। घर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन
के बारे में पता नहीं चल रहा तो साइकिल से ही घर जा रहे हैं। गोरखपुर का विमलेश लॉकडाउन
में 35 दिन लोडेड ट्रक लेकर हैदराबाद के पास हाई-वे पर फंसा रहा। राशन खत्म होने पर ट्रांसपोर्टर ने हाथ खड़े कर दिए। विमलेश
पैदल ही कर्नाटक के गुलबर्गा के लिए चल पड़ा। दो दिन में कमरे पर पहुंचा तो वहां बचत
के रुपए से पुरानी साइकिल खरीदी और 1800 किलोमीटर दूर अपने घर
के लिए निकल पड़ा। नौ दिन की जद्दोजहद के बाद वह गोरखपुर के बड़हलगंज पहुंचा। यहां
आधार कार्ड जांचने के बाद पुलिस ने उसे एक स्कूल में क्वारंटीन कराया। बड़हलगंज के
सतडौली गांव का विमलेश ओझा कर्नाटक के गुलबर्गा में रहकर ट्रक चलाता है। 19
मार्च को वह गुलबर्गा से सीमेंट लदा ट्रक लेकर निकला। तेलंगाना में हैदराबाद
के पास वह ट्रक लेकर लॉकडाउन में फंस गया। उसने हाई-वे पर ट्रक
में ही किसी तरह 35 दिन गुजारे। इस बीच खाने-पीने का सामान और पैसा खत्म हो गया। उसने ट्रांसपोर्टर को इसकी जानकारी दी।
उस ट्रांसपोर्टर ने मदद से हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद वह ट्रक हाई-वे पर ही खड़ा कर पैदल गुलबर्ग के लिए निकल पड़ा। वह दो दिन में गुलबर्गा अपने
कमरे पर पहुंचा। कमरे पर रखे बचत के छह हजार रुपए में से 5500 रुपए में मोहल्ले के एक युवक से पुरानी साइकिल खरीदी और 26 अप्रैल को अपने घर के लिए निकल पड़ा। विमलेश ने बताया कि जबलपुर से चला था
कि रात में पिछला टायर पंक्चर हो गया। रात में पुछ दूर पैदल चला। हिम्मत जवाब देने
पर सुरक्षित स्थान देखकर बैठ गया। खैर यह फिर यात्रा शुरू की। करीब 50 किलोमीटर पैदल चलने पर हाई-वे पर पंक्चर बनाने वाली दुकान
मिली। काफी अनुरोध करने पर उसने पंक्चर जोड़ा। प्रवासी मजदूर अपने घर पहुंचने के लिए
हर प्रकार के जोखिम उठाने पर तुले हैं। बस उनकी एक ही जिद हैöघर पहुंचना है चाहे कैसे भी पहुंचे।
Tuesday, 12 May 2020
2446 जमातियों के घर जाने का रास्ता साफ
क्वारंटीन की अवधि पूरी
करने के बाद निजामुद्दीन तबलीगी मरकज से निकले लोगों का घर जाने का रास्ता साफ हो गया
है। दिल्ली सरकार ने निजामुद्दीन मरकज से क्वारंटाइन केंद्रों में भेजे गए 2446 लोगों को उनके गृह राज्य भेजेगी। शनिवार देर शाम इस बाबत
दिल्ली सरकार की ओर से आदेश जारी कर दिए गए हैं। वहीं अस्पतालों में पूरी तरह ठीक हो
चुके लोग भी घर जाएंगे। हालांकि नियम तोड़ने की एवज में जिन लोगों पर मामले दर्ज हैं,
उन्हें दिल्ली पुलिस अपने साथ ले जाएगी। दिल्ली के रहने वाले जमातियों
को छोड़ने से पहले प्रशासन उनके पास भी बनवा कर देगी। इनमें से करीब एक हजार लोग कोरोना
वायरस से संक्रमित पाए गए थे, जिन्हें विभिन्न अस्पतालों में
भर्ती कराया गया, जबकि बाकी को नरेला के क्वारंटीन सेंटर में
भेज दिया गया है। इनमें करीब 900 लोग दिल्ली के हैं और बाकी अन्य
राज्यों के हैं। दिल्ली सरकार दूसरे राज्यों से बात कर ठीक हुए लोगों को उनके घर भेजने
की बात कर रही है। क्वारंटीन अवधि में कुछ जमातियों ने नियमों को तोड़कर अव्यवस्था
फैलाई थी। पुलिस ने इन पर मामला दर्ज किया था। ऐसे लोगों को घर न भेजकर दिल्ली पुलिस
के हवाले कर देगी। पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी। निजामुद्दीन से निकले 576 विदेशी जमातियों को दिल्ली पुलिस की हिरासत में रखा जाएगा। इन सभी की रिहाई
और वतन वापसी के लिए गृह मंत्रालय की ओर से आदेश जारी किया जाएगा। इसके अतिरिक्त उन
सभी जमातियों को भी नहीं छोड़ा जाएगा, जिन्हें पुलिस जांच के
लिए रोकेगी।
-अनिल नरेन्द्र
अब तो कब्रिस्तान में दफन करने के लिए जगह नहीं बची
राजधानी दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौत और दिल्ली सरकार की रिपोर्ट अलग-अलग तस्वीर क्यों बयां कर रही है? सरकार
के हैल्थ बुलेटिन के मुताबिक शुक्रवार तक दिल्ली में 68 लोगों
की कोरोना से मौत हुई, वहीं अकेले आईटीओ कब्रिस्तान में ही
86 डेड बॉडी कोरोना के तहत दफन की जा चुकी हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार
के हैल्थ बुलेटिन पर सवाल खड़े होने लाजिमी हैं। कोरोना से मरने वालों में हिन्दू भी
होंगे और कब्रिस्तान में तो सिर्प मुस्लिम लोगों को ही दफनाया जाता है। आईटीओ कब्रिस्तान
की स्थिति यह हो गई है कि यहां अब डेड बॉडीज दफन करने के लिए जगह बहुत कम बची है। इस
कब्रिस्तान के प्रबंधकों का कहना है कि सरकार दूसरे कब्रिस्तानों में डेड बॉडी दफन
करने का इंतजाम करे। कब्रिस्तान की प्रबंधक कमेटी के सचिव हाजी फैयाजुद्दीन का कहना
है कि कब्रिस्तान 1924 से है, जोकि
50 एकड़ जमीन पर है। यहां की कुछ जगह कोरोना से मरने वालों के लिए रखी
गई है। अब तक कोरोना से संबंधित 86 डेड बॉडी दफन की जा चुकी हैं।
इनमें से छह शुक्रवार को दफन की गई हैं। यह डेड बॉडी लोकनायक और सफदरजंग अस्पताल से
आई हैं। सभी डेड बॉडी कोरोना प्रोटोकॉल के हिसाब से दफन की जा रही हैं। हमारे पास सबके
कागजात हैं। फैयाजुद्दीन ने कहा कि अगर ऐसे ही कोरोना से संबंधित डेड बॉडी आती रहीं
तो आने वाले 10-12 दिन में जगह पूरी हो जाएगी। सरकार अब अन्य
कब्रिस्तानों में डेड बॉडी के दफनाने का इंतजाम करे क्योंकि यहां अब जगह नहीं बची है।
उन्होंने कहा कि 14 एकड़ जमीन उनके मिलेनियम पार्प स्थित कब्रिस्तान
में थी। दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के एक शीर्ष अधिकारी (निदेशक)
का कहना है कि अगर कोई मरीज संदिग्ध होता है और उसकी मौत हो जाती है
तो उसका शव प्रबंधन ठीक वैसा ही किया जाता है जैसा कि कोविड-19 पॉजिटिव के लिए किया जा रहा है। मोहम्मद शमीम (सुपरवाइजर)
ने बताया कि आईसीयू में भर्ती कई मरीजों के परिजन अब तक कब्रिस्तान आ
चुके हैं। ऐसे ही एक केस के बारे में उन्होंने बताया कि सरिता विहार में एक बड़ा प्राइवेट
अस्पताल है, जहां 32 वर्षीय महिला का लीवर
प्रत्यारोपण होना था, लेकिन कोरोना के चलते उसकी हालत बिगड़ गई।
डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। महिला वेंटिलेटर पर थी। बुकिंग कराने के लिए परिजन यहां
पहले आए थे, लेकिन कब्रिस्तान एडवांस बुकिंग नहीं करता है। कोरोना
के चलते परिजनों को दूर रखा जा रहा है। ऐसे में शवों को दफनाने के लिए एक जेसीबी कब्रिस्तान
में है, जो प्रति शव छह हजार रुपए शुल्क लेती है। मिट्टी डालने
के छह हजार रुपए। कब्रिस्तान प्रबंधन से इसका कोई लेना-देना नहीं
है।
एक और कोरोना वॉरियर लड़ते-लड़ते शहीद हो गया
सारा शहर उस समय सदमे में आ गया जब खबर आई कि जांबाज युवा दिल्ली पुलिस कांस्टेबल
अमित कुमार कोरोना का शिकार हो गया। कोरोना संक्रमित दिल्ली पुलिस के इस जांबाज सिपाही
अमित की मौत हो जाने से उनके सोनीपत स्थित गांव में मातम छा गया। गांव में उनकी पत्नी
पूजा व तीन साल के उनके बेटे रेयान का रो-रोकर बुरा
हाल है। उनके साले रवि ने बताया कि अमित की मौत हो जाने की खबर बहन को दो दिन बाद यानि
बुधवार शाम को दी गई। पूजा और अमित की शादी चार वर्ष पहले हुई थी। पूजा दिल्ली में
संविदा पर शिक्षक है। लॉकडाउन के चलते वह अभी गांव में थी। रवि ने बताया कि अमित बेहद
अच्छे इंसान थे। वह सबको अपना दोस्त मानते थे। अमित ने रविवार को पूरे परिवार से बात
की थी और कहा था कि मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं। अमित ने कुछ दिन पहले ही अपने तीन
वर्षीय बेटे रेयान का स्कूल में एडमिशन कराया था। वह चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा अधिकारी
बने। सोमवार को तबीयत खराब होने के बाद अमित ने घर पर पत्नी को बताया तो उन्होंने कोरोना
की जांच करा लेने की बात कही। हालांकि परिवार के किसी सदस्य को यह उम्मीद नहीं थी कि
इतनी जल्दी कोरोना उनकी जान ले लेगी। सिपाही अमित के रिश्तेदार रवि व दोस्तों ने स्वास्थ्य
व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। रवि का कहना है कि यदि समय रहते उन्हें अस्पताल में भर्ती
कर लिया जाता तो शायद वह आज जिन्दा होते। उनके साथी नवीन ने उनका इलाज करवाने के लिए
10 से अधिक अस्पतालों में चक्कर लगाए, लेकिन किसी
ने भर्ती नहीं किया। नवीन ने जब किसी पुलिस अधिकारी को फोन किया तो उन्होंने आरएमएल
में भर्ती कराने की बात कही। लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत हो गई। इस बात की जांच होनी
चाहिए कि क्या वाकई ही अमित का समय रहते इलाज नहीं हो सका? उनकी
मौत का जिम्मेदार कौन है? अमित की मौत के बाद दिल्ली पुलिस कमिश्नर
एसएन श्रीवास्तव ने बड़े स्तर पर जवानों की सुरक्षा के लिए बदलाव किए हैं। ताकि इस
महामारी के दौरान सड़कों पर मोर्चा संभाले दिल्ली पुलिस के किसी भी योद्धा के साथ ऐसा
न हो। सीपी ने कहा कि अगर किसी पुलिसकर्मी को ऐसा लगता है कि उनकी तबीयत बिगड़ रही
है तो वह तुरन्त अपने एसएचओ, सीपी या यूनिट में सूचित करेंगे।
डीसीपी को जानकारी देंगे। डीसीपी को भी ऐसे मामलों की जानकारी नोडल ऑफिसर को देनी होगी।
अगर किसी पुलिसकर्मी को ऐसा लगता है कि उसमें कोरोना के लक्षण हो सकते हैं तो उसके
लिए सेंट्रल दिल्ली में एक पूरा होटल रिजर्व किया गया है। जहां पर जाकर पुलिसकर्मी
खुद को क्वारंटीन कर सकते हैं। जांच के लिए हैदरपुर में दिल्ली सरकार के सहयोग से एक
टेस्टिंग सेंटर भी खोला गया है। यह अच्छी बात है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द
केजरीवाल ने अमित के परिवार को एक करोड़ रुपए की सम्मान राशि देने का ऐलान किया है।
हम अमित जांबाज को सलाम करते हैं। जय हिन्द।
Sunday, 10 May 2020
ई-रिक्शा चालकों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही
कलंदर
कॉलोनी में रहने वाले राम प्रसाद ई-रिक्शा चलाते हैं। बताते हैं कि लॉकडाउन में घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है।
वह बताते हैं कि जब मेट्रो चलती थी तो दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन से और झिलमिल से
सवारी लेता था और जीटीबी, सीमापुरी, शालीमार
गार्डन पहुंचाता था। ई-रिक्शा खरीदने के लिए परिचितों से उधार
लिया हूं लेकिन अब घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है। लॉकडाउन में एक माह से अधिक
समय से काम बंद होने के कारण ई-रिक्शा चालकों को अपने परिवार
के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल हो रहा है। जो जमापूंजी थी वह
खत्म होने के बाद हाल में उधारी पर गुजारा कर रहे थे, लेकिन अब
उधारी भी काफी चढ़ गई है। तुगलकाबाद इलाके में रहने वाले ई-रिक्शा
चालक हेमंत कुमार लॉकडाउन की वजह से पिछले एक महीने से परेशान हैं। कहते हैं कि अब
तो ई-रिक्शा भी चलाने से पहले ठीक कराने के लिए पैसे चाहिए। सरकार
से आर्थिक मदद की उम्मीद लगाकर बैठे हेमंत बताते हैं कि 12 घंटे
ई-रिक्शा चलाने पर औसतन 400-500 रुपए की
बचत हो जाती थी। लेकिन मार्च महीने की 24 तारीख से काम-धंधा ठप पड़ा है। ई-रिक्शा न चलाने की वजह से उसकी बैटरी
व अन्य सामान खराब होने का डर सता रहा है। पहले से ही नई बैटरी की किस्त जमा कर रहा
हूं। यह बैटरी खराब हो गई तो 30 हजार का बोझ बढ़ जाएगा। हेमंत
ने कहा कि तीन दिन से राशन के लिए चक्कर लगा रहा हूं लेकिन वह भी नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे में अब कुछ समझ नहीं आ रहा कि आखिर क्या किया जाए? चार सदस्यों
वाला मेरा परिवार है, जिसका भरण-पोषण रिक्शा
चलाकर ही हो रहा था। ई-रिक्शा काफी दिनों से यूं ही खड़ा है।
आय का कोई अन्य जरिया भी नहीं है। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है कि करूं तो क्या
करूं? ई-रिक्शा चालकों की हालत खराब है।
सरकार को इनकी ओर ध्यान देना चाहिए। रोज कमाना-रोज खाना वालों
की लॉकडाउन में समस्या गंभीर है।
-अनिल नरेन्द्र
चुन-चुनकर मारेंगे आतंकी कमांडरों को
जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ समय से जारी आतंकवादी गतिविधियों का करारा जवाब देते
हुए हमारे सुरक्षा बलों ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के शीर्ष कमांडर और पोस्टर ब्वॉय रियाज
नायकू समेत कुछ आतंकियों को जिस तरह मार गिराया है, वह वाकई एक
बड़ी सफलता है। दरअसल कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत की व्यस्तता
का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश में पड़ोसी पाकिस्तान न केवल संघर्षविराम का लगातार
उल्लंघन करता रहा है, बल्कि हाल के दिनों में घाटी में बड़ी आतंकवादियों
की सक्रियता भी उसकी नापाक मंशा के बारे में भी बताती है। विगत रविवार को हंदवाड़ा
में आतंकियों से लोहा लेते हुए कर्नल आशुतोष शर्मा समेत पांच जवान शहीद हो गए थे। इसका
सही जवाब देते हुए हमारे सुरक्षा बलों ने रियाज नायकू को ठिकाने लगाकर हिजबुल की रीढ़
तोड़ दी है। यह एक ऐसी उपलब्धि है जिसका असर कश्मीर में तो पड़ेगा ही देश के आतंकवाद
पर भी पड़ेगा। बुरहान वानी समूह का नायकू जुलाई 2017 से हिजबुल
के शीर्ष नेतृत्व की भूमिका में था। बुरहान वानी की तरह ही आतंकियों के लिए पोस्टर
ब्वॉय बन गया था। ऑडियो-वीडियो में अपनी बात रखने के उसके तरीकों
से युवा आतंकवाद की ओर आकर्षित होते थे। उसके नाटकीय अंदाज से लोगों को लगता था कि
वह उनके लिए लड़ रहा है। इस कारण उसने अपने प्रत्यक्ष तथा परोक्ष समर्थक भी पैदा कर
लिए थे। वह ऐसा आतंकवादी था जिसने पुलिस वालों के परिवारों के अपहरण से लेकर उनकी हत्या
को अपनी मुख्य रणनीति के तौर पर अपनाया था। उसने आह्वान किया कि जम्मू-कश्मीर के लोग पुलिस की नौकरी छोड़ दें। ऐसा न करने पर उसने अभियान चलाया।
यही वजह है कि उसकी मौत प्रदेश की पुलिस के लिए राहत की सांस लेने व जश्न मनाने का
कारण बन गया है। जिस तरह से उसे उसके पैतृक गांव में ही घेर कर मारा गया उससे यह भी
पता चलता है कि सुरक्षा बलों का खुफिया तंत्र पहले से बेहतर हुआ है। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष
(सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने गुरुवार को कहा कि
सुरक्षा बलों की प्राथमिकता है आतंकी कमांडरों को चुन-चुनकर खत्म
करना। बेशक यह हमारे सुरक्षा बलों की भारी सफलता है और कर्नल आशुतोष शर्मा व उनके साथियों
का बदला है पर हमारी चौकसी पहले से भी ज्यादा होनी चाहिए। बर्प पिघलने लगी है और घुसपैठ
बढ़ेगी। इस शानदार उपलब्धि पर सुरक्षा बलों को बधाई।
दम घुटा...जो जहां था, वहीं गिर गया
आंध्र प्रदेश के आरआर वेंकटपुरम गांव में स्थित एलजी
पॉलिमर के कैमिकल प्लांट से गैस का रिसना जितना चिन्ताजनक है, उससे कहीं अधिक दुखद है गैस रिसाव से
लोगों की मौत। इस रिसाव ने एक बार फिर भोपाल गैस त्रासदी की याद ताजा कर दी है। बुधवार
देर रात कारखाने में गैस का रिसाव शुरू हुआ। उस वक्त जो लोग कारखाने में तैनात थे,
उन पर तो असर हुआ ही, आसपास के करीब तीन किलोमीटर
क्षेत्र तक उसका प्रभाव देखा गया। दम घुटने से लोग दहशत में थे। किसी को कुछ समझ नहीं
आ रहा था, भागकर जाएं तो जाएं कहां। कुछ तो बेचारे ऐसे भी थे
जो अंधेरे में नाले में जा गिरे। कुछ की सांस इतनी फूल रही थी कि मौत आंखों के आगे
नाचने लगी। चारों ओर अफरातफरी का माहौल मचा तो लोग दहशत में आ गए कि कहीं कोरोना हवा
में तो नहीं फैल गई? रात के अंधेरे में ही लोग जहां जैसे थे,
वहां से भाग पड़े। पांच किलोमीटर तक के इलाके में अफरातफरी मच गई। रास्ते
में कई लोग गिरते जा रहे थे। कई जगहों पर लोग बेहोश पड़े दिखे। मृत मवेशी भी नजर आए।
बच्चों को कंधे पर रखकर लोग अस्पताल भाग रहे थे। भर्ती मरीजों में बड़ी संख्या में
बच्चे शामिल हैं। लोगों के मुताबिक सोते समय अचानक सांस में तकलीफ, भयानक खुजली और आंखों में जलन महसूस होनी शुरू हुई। गोपालपत्तनम पुलिस ने बताया
कि करीब 50 लोग स़ड़क पर बेहोश मिले। घटनास्थल तक पहुंचने में
काफी दिक्कत हुई। कई घरों से लोगों को दरवाजे तोड़कर निकलना पड़ा। एलजी पॉलिमर के प्लांट
से दरअसल बड़ी मात्रा में स्टाइरीन गैस लीक हो गई थी। इसके असर से 8 साल के बच्चे स]िहत 11 लोगों की मौत हो गई,
300 से ज्यादा लोग अस्पतालों में भर्ती हैं। 20 लोग वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए उच्च स्तरीय
कमेटी गठित की है। विशाखापत्तनम पुलिस ने एलजी पॉलिमर प्लांट के प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक
केस दर्ज कर लिया है। इस मामले में गैर-इरादतन हत्या और लापरवाही
से मौत की धाराएं जोड़ी गई हैं। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने भी इस घटना पर स्वत संज्ञान
लेते हुए राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। ऐसे औद्योगिक हादसों की वजह
छिपी नहीं है। यूं तो प्रशासन ने कारखाना प्रबंधन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है,
प्रबंधन अपने पक्ष में मामूली चूक, मानवीय भूल
जैसी दलीलें देकर बचने का प्रयास भी करेगा। पर सवाल है कि औद्योगिक सुरक्षा मानकों
के मामले में लापरवाही की प्रवृत्ति पर अंकुश क्यों नहीं लगता? जिन कारखानों में जहरीली गैसों का उपयोग या उत्पादन होता है, वहां सुरक्षा को लेकर अधिक मुस्तैदी की जरूरत होती है। भोपाल गैस त्रासदी के
अनुभवों को देखते हुए इसके लिए सख्त निर्देश भी तय हुए थे। मगर कारखाना प्रबंधन अकसर
मामूली पैसा बचाने के लोभ में सुरक्षा इंतजामों को नजरंदाज करते रहे हैं, जहां ऐसी खतरनाक गैसों का उपयोग या उत्पादन होता है, वहां रिसाव आदि की स्थिति में चेतावनी देने वाले स्वचालित यंत्र लगाने अनिवार्य
हैं। फिर विशाखापत्तनम के कारखाने में गैस का बड़े पैमाने पर रिसाव हो गया और कैसे
प्रबंधन को इसकी भनक तक नहीं लगी? आखिर लोगों की जान की कीमत
पर ऐसी लापरवाहियों और मनमानियों को कब तक अनदेखा किया जाता रहेगा?
Friday, 8 May 2020
कितना सुरक्षित है आरोग्य सेतु ऐप?
आरोग्य सेतु के निजता
में सेंध लगाने के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी
मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि यह मोबाइल ऐप निजता की सुरक्षा एवं डेटा सुरक्षा
के सन्दर्भ में पूरी तरह से मजबूत और सुरक्षित है। प्रसाद ने कहाöयह भारत का प्रौद्योगिकी आविष्कार है (इलैक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी, हमारे वैज्ञानिकों,
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, नीति आयोग और
कुछ निजी संस्थानों का) जो कोविड-19 के
खिलाफ लड़ाई में मदद के लिए पूरी तरह से एक जिम्मेदार मंच है। कांग्रेस ने आरोग्य सेतु
को निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला ऐप करार देते हुए बुधवार को दावा किया कि
इसके माध्यम से हर व्यक्ति की निगरानी की जाएगी। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला
ने यह सवाल किया कि आखिर इस ऐप का डेटा एकत्र करने वाला सर्वर कहां है? उन्होंने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददाताओं से कहाöआरोग्य सेतु ऐप को लेकर निजता के उल्लंघन से जुड़े गंभीर मुद्दे हैं। हम सब
जानते हैं कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। उच्चतम न्यायालय ने भी इस संबंध में
व्यवस्था दी है। सुरजेवाला के मुताबिक इस ऐप के बारे में कल एक ऐथिकल हैकर ने ट्वीट
के जरिये बताया कि किस प्रकार से इसमें निजता के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा है और राहुल
गांधी की इसे लेकर जताई गई आपत्ति सही थी। उन्होंने कहा कि हैकर ने यह भी बताया कि
भारत सरकार की इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम ने उससे तथ्यों की जानकारी ली।
यह अपने आपमें सबूत है कि यह ऐप निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। कांग्रेस ने
यह दावा किया कि इस ऐप के जरिये हर व्यक्ति की 24 घंटे निगरानी
की जा सकती है। यह तो एक जासूसी कैमरा लगाने जैसा है। दरअसल फ्रांस के हैकर ने साइबर
सुरक्षा विशेषज्ञ एल्लोट एल्डसन ने मंगलवार को दावा किया कि ऐप में सुरक्षा को लेकर
मसले पाए गए हैं और नौ करोड़ भारतीयों की निजता को खतरा है।
-अनिल नरेन्द्र
बिल्डरों के कहने पर कर्नाटक ने रोकी प्रवासियों की ट्रेनें
रेलवे 5 दिन में 122 स्पेशल ट्रेन चलाकर देशभर में फंसे 1.25 लाख प्रवासी
श्रमिकों को गृह राज्य तक पहुंचा चुका है। उधर कर्नाटक में बुधवार को तब राजनीति गरमा
गई जब बिल्डरों की कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से मुलाकात के कुछ घंटे
बाद राज्य की भाजपा सरकार ने रवानगी से ऐन पहले श्रमिक स्पेशल ट्रेन रद्द कर दी। बिल्डरों
ने मुख्यमंत्री से मांग की कि मजदूरों को उनके राज्य से जाने से रोका जाए। बिल्डरों
के मुताबिक अगर मजदूर लौट जाएंगे तो कंस्ट्रक्शन का काम रुक जाएगा। राज्य सरकार ने
लॉकडाउन की शर्तों में राहत दी है। भवन निर्माण समेत कुछ अन्य व्यापारिक गतिविधियों
को मंजूरी दी है। मजदूरों की कमी होने से इन उद्योगों से जुड़े काम प्रभावित होंगे।
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि वह मजदूरों को राज्य छोड़कर नहीं जाने के लिए
समझाएं। वहीं महाराष्ट्र सरकार ने यूपी-बिहार समेत उन राज्यों
पर निशाना साधा जो प्रवासी मजदूरों को राज्य से ले जाने से पहले उनकी जांच करवा रहे
हैं। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में यूपी-बिहार सरकार के
इस कदम को अमानवीय बताया। उन्होंने कहा कि अमीरों को सरकार फ्री बुला रही है जबकि इन
मजदूरों से किराये के रकम वसूलने के साथ ही इनकी जांच भी करा रही है। विशेष ट्रेनों
से भेजे गए अधिकतर श्रमिक उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश और झारखंड के रहने वाले हैं। रेलवे
ने बुधवार को 42 विशेष श्रमिक ट्रेनें चलाने की योजना बनाई थी,
जिनमें से देर शाम 26 अपने गंतव्य पर रवाना हो
चुकी थी और 16 को देर रात रवाना होना था। कर्नाटक राज्य के नोडल
अधिकारी एन. मंजूनाथ प्रसाद ने रेलवे को पत्र लिखकर अगले
5 दिन में चलने वाली 10 ट्रेनें रद्द करने के लिए
कहा। बिल्डरों द्वारा मजदूरों की वापसी पर निर्माण कार्य ठप होने की आशंका जताई गई
थी। ट्रेन रद्द होने को ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस ने आवाजाही की
स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है।
राजस्व के लिए डीजल-पेट्रोल व शराब पर निर्भर सरकारें
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के
दामों में भारी गिरावट आई है, कच्चे तेल के दाम अब तक के अपने
निचले स्तर पर आ चुके हैं तो ऐसे में अपने-अपने स्तर पर पेट्रोल
और डीजल के दाम बढ़ाने का राज्य सरकारों का फैसला हैरान करने वाला है। पेट्रोल और डीजल
का अतिरिक्त भार अंतत जनता पर ही पड़ता है। मंगलवार को पेट्रोल 10 रुपए और डीजल 13 रुपए सस्ता हो सकता था लेकिन केंद्र
सरकार ने जनता को कोरोना महामारी के बीच यह राहत नहीं आने दी। इतना ही पेट्रोल और डीजल
में एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी। डीजल की आधार कीमत ढुलाई के साथ 18.78 रुपए और पेट्रोल की 18.28 रुपए है लेकिन दिल्ली में हमें
डीजल 69.39 रुपए और पेट्रोल 71.26 रुपए
प्रति लीटर मिल रहा है। मसलन आप एक लीटर पेट्रोल खरीदते हैं तो केंद्र सरकार को एक्साइज
ड्यूटी के तौर पर 32.98 रुपए का कर और राज्य सरकार को
16.44 रुपए का कर देते हैं। केंद्र सरकार की तरफ से बढ़ाई गई एक्साइज
ड्यूटी और दिल्ली सरकार की तरफ से बढ़ाए गए वैट के बाद अब पेट्रोल और डीजल के दाम में
अंतर बहुत मामूली रह गया है। लॉकडाउन में हुए घाटे से उबरने के लिए दिल्ली सरकार ने
शराब और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा किया है। टैक्स फ्री
बजट का दावा करने वाली दिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी के दौर में पैसे जुटाने के लिए
शराब व पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त वैट लगाकर अपना घाटा पूरा करने
का जो फैसला किया वह जनहित में नहीं माना जा सकता। चलो शराब में 70 प्रतिशत कीमत बढ़ाना तब भी समझ आता है लेकिन पेट्रोल-डीजल तो आम जनता पर जिसकी कमर पहले से ही टूटी पड़ी है उस पर और भार डालना
हमारी समझ से बाहर है। सरकार को पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क
में बढ़ोतरी से चालू वर्ष में 1.6 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त
राजस्व मिल सकता है। इससे लॉकडाउन से हो रहे राजस्व नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी।
इस वक्त पूरी दुनिया में कच्चे तेल का बाजार इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट झेल रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले तीन महीने में कच्चा तेल 56 डॉलर
से गिरकर 22 डॉलर प्रति बैरल तक आ चुका है, यानि करीब 60 प्रतिशत तक की गिरावट। ऐसे में जब भारत
की तेल कंपनियों ने 19 डॉलर प्रति बैरल के भाव से कच्चा तेल खरीदा
हो, दाम घटने चाहिए थे। आज भी पेट्रोल-डीजल
के दाम कमोबेश वहीं के वहीं बने हुए हैं जहां दो-तीन महीने पहले
थे। उल्टा, अपना खजाना भरने के लिए राज्य सरकारों ने वैट बढ़ाने
जैसा जनविरोधी फैसला करने में कोई संकोच नहीं किया। सवाल है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार
में भारी गिरावट का आमजन को कोई फायदा क्यों नहीं मिलना चाहिए। ऐसा पहली बार हुआ है
जब केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क एक साथ इतना ज्यादा
बढ़ाया है। हालांकि कहा जा रहा है कि इससे जनता पर कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा पर
हकीकत में यह गरीब जनता पर एक और अतिरिक्त भार है। सरकारों को यह भी ध्यान में रखना
चाहिए कि पेट्रोल-डीजल महंगा होने का सीधा और पहला असर माल ढुलाई
पर और रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजों की कीमतों पर पड़ता है। वैसे ही लोग लॉकडाउन से
परेशान हैं, यह कदम और परेशानी में डालने वाला है।
Subscribe to:
Posts (Atom)