Sunday, 17 May 2020

दूसरे शहर में भूखे मरने से अच्छा है अपने घर चल दें

कोरोना वायरस महामारी के बीच देश में लॉकडाउन लागू है और इसकी सबसे बड़ी मार देश के करोड़ों मजदूरों पर पड़ी है। लॉकडाउन का समय बढ़ता देखकर प्रवासी मजदूरों का धैर्य जवाब दे गया है। वह अब बस किसी भी तरह अपने गांव, घर पहुंचना चाहते हैं। इसके लिए वह साधन के अभाव की परवाह किए बिना कई सौ किलोमीटर पैदल चलने के लिए भी तैयार हैं। काम बंद होने और पैसे खत्म होने से दो वक्त की रोटी और मकान का चढ़ता किराया उन्हें शहर छोड़ने पर मजबूर कर रहा है। ऐसे में यह अब किसी भी तरह अपने घर पर पहुंचना चाहते हैं। गुड्डू प्रसाद अपने परिवार और गोरखपुर जाने वाले लगभग नौ साथियों के साथ दिल्ली के आनंद विहार बस स्टेशन के पास रुके थे। उन्हें लग रहा था कि यहां से या आगे से उनको कोई साधन मिल जाएगा। किसी समाजसेवी ने उनके परिवार को खाना दे दिया था और वह लोग खाना खा रहे थे। गुड्डू रोहतक से बुधवार की सुबह छह बजे से पैदल चले थे। बोरी, खाने का सामान, दो बेटा, पत्नी के अलावा साथ में कुछ मजदूर साथी भी थे। वह रोहतक में राजमिस्त्राr का काम करते थे। रोहतक में जो काम किए ठेकेदार ने वह पैसा खाने के एवज में काट लिया। अब कुछ नहीं है उनके पास। रुंधे गले से उन्होंने कहा कि भूखे-प्यासे मरने से अच्छा है घर चले जाएं और हम लोग निकल लिए। अगर आनंद विहार से सवारी नहीं मिली तो हम किसी तरह रुकते-थकते पैदल ही गोरखपुर चले जाएंगे। मध्य प्रदेश के बालाघाट के पुंडे मोहगांव के रामू छोटमारे और उनकी पत्नी धनंवताबाई हैदराबाद में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन के कारण ठेकेदार ने काम बंद कर दिया। यह मजदूर परिवार रोटी-रोजी के लिए मोहताज हो गया। घर वापसी का सरकारी साधन नहीं मिला तो रामू गर्भवती पत्नी और दो साल की बेटी अनुरागिनी के साथ पैदल ही 800 किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े। कुछ दूर बेटी को गोद में रखा। जब पत्नी और बेटी की हिम्मत जवाब देने लगी तो रामू ने बांस और लकड़ी से हाथ गाड़ी बनाई। उस पर पत्नी, बेटी को  बैठाया। फिर हाथ गाड़ी खींचते हुए बालाघाट की ओर चल पड़े। 17 दिन बाद बालाघाट की लगी सीमा पर पहुंचे। यहां एसडीओपी नितेश भार्गव ने उन्हें गाड़ी से घर भेजा। सार्वजनिक वाहन नहीं चलने के कारण प्रवासी मजदूरों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ रही है। महाराष्ट्र के मुंबई में एक बार फिर मजदूरों का गुस्सा फुटा, यहां नागवाड़ा इलाके में सैकड़ों की संख्या में मजदूर सड़कों पर उतर आए। उन्होंने अपने घर उत्तर प्रदेश भेजने की मांग की, लेकिन जब भीड़ बढ़ती गई तो स्थानीय प्रशासन ने लाठीचार्ज कर मजदूरों को भगाया। गुजरात के कच्छ में भी प्रवासी मजदूरों ने स्थानीय प्रशासन के खिलाफ हंगामा किया। कच्छ के गांधी धाम में सैकड़ों मजदूरों ने सड़क पर हंगामा किया, हाई-वे ब्लॉक कर दिया और जब पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू किया तो उन पर ही पत्थर बरसा दिए। यही हाल सूरत में भी हुआ। पैरों में छाले, सिर पर सामान, निकल पड़े घर के लिए। बेशक लॉकडाउन की शर्तों में थोड़ी ढील दे दी गई है और लॉकडाउन-4 में यह और भी बढ़ सकती है पर प्रवासी मजदूरों का कहना है कि हमें इस बात का डर है कि पता नहीं कितनी मजदूरी मिलेगी और कितने दिन में मिलेगी और फिर यहां कोरोना को लेकर डर लगता है। इसलिए हम अपने गांव में ही बेहतर हैं।

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