Friday 8 May 2020

राजस्व के लिए डीजल-पेट्रोल व शराब पर निर्भर सरकारें

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के दामों में भारी गिरावट आई है, कच्चे तेल के दाम अब तक के अपने निचले स्तर पर आ चुके हैं तो ऐसे में अपने-अपने स्तर पर पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने का राज्य सरकारों का फैसला हैरान करने वाला है। पेट्रोल और डीजल का अतिरिक्त भार अंतत जनता पर ही पड़ता है। मंगलवार को पेट्रोल 10 रुपए और डीजल 13 रुपए सस्ता हो सकता था लेकिन केंद्र सरकार ने जनता को कोरोना महामारी के बीच यह राहत नहीं आने दी। इतना ही पेट्रोल और डीजल में एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी। डीजल की आधार कीमत ढुलाई के साथ 18.78 रुपए और पेट्रोल की 18.28 रुपए है लेकिन दिल्ली में हमें डीजल 69.39 रुपए और पेट्रोल 71.26 रुपए प्रति लीटर मिल रहा है। मसलन आप एक लीटर पेट्रोल खरीदते हैं तो केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी के तौर पर 32.98 रुपए का कर और राज्य सरकार को 16.44 रुपए का कर देते हैं। केंद्र सरकार की तरफ से बढ़ाई गई एक्साइज ड्यूटी और दिल्ली सरकार की तरफ से बढ़ाए गए वैट के बाद अब पेट्रोल और डीजल के दाम में अंतर बहुत मामूली रह गया है। लॉकडाउन में हुए घाटे से उबरने के लिए दिल्ली सरकार ने शराब और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा किया है। टैक्स फ्री बजट का दावा करने वाली दिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी के दौर में पैसे जुटाने के लिए शराब व पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त वैट लगाकर अपना घाटा पूरा करने का जो फैसला किया वह जनहित में नहीं माना जा सकता। चलो शराब में 70 प्रतिशत कीमत बढ़ाना तब भी समझ आता है लेकिन पेट्रोल-डीजल तो आम जनता पर जिसकी कमर पहले से ही टूटी पड़ी है उस पर और भार डालना हमारी समझ से बाहर है। सरकार को पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी से चालू वर्ष में 1.6 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व मिल सकता है। इससे लॉकडाउन से हो रहे राजस्व नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी। इस वक्त पूरी दुनिया में कच्चे तेल का बाजार इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट झेल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले तीन महीने में कच्चा तेल 56 डॉलर से गिरकर 22 डॉलर प्रति बैरल तक आ चुका है, यानि करीब 60 प्रतिशत तक की गिरावट। ऐसे में जब भारत की तेल कंपनियों ने 19 डॉलर प्रति बैरल के भाव से कच्चा तेल खरीदा हो, दाम घटने चाहिए थे। आज भी पेट्रोल-डीजल के दाम कमोबेश वहीं के वहीं बने हुए हैं जहां दो-तीन महीने पहले थे। उल्टा, अपना खजाना भरने के लिए राज्य सरकारों ने वैट बढ़ाने जैसा जनविरोधी फैसला करने में कोई संकोच नहीं किया। सवाल है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी गिरावट का आमजन को कोई फायदा क्यों नहीं मिलना चाहिए। ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क एक साथ इतना ज्यादा बढ़ाया है। हालांकि कहा जा रहा है कि इससे जनता पर कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा पर हकीकत में यह गरीब जनता पर एक और अतिरिक्त भार है। सरकारों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि पेट्रोल-डीजल महंगा होने का सीधा और पहला असर माल ढुलाई पर और रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजों की कीमतों पर पड़ता है। वैसे ही लोग लॉकडाउन से परेशान हैं, यह कदम और परेशानी में डालने वाला है।

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