अपने घरों को लौट रहे मजदूरों के साथ रोजाना हादसे हो
रहे हैं। अब तक 139 श्रमिकों
की मौत हो चुकी है विभिन्न हादसों में और यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। ताजा
हादसा उत्तर प्रदेश के औरैया में डीसीएम (मिनी ट्रक) और ट्रक की टक्कर का हुआ जिसमें अब तक 24 प्रवासी मजदूरों
की मौत हो चुकी है, वहीं 35 लोग जख्मी हुए
हैं। उधर मध्य प्रदेश के सागर में ट्रक पलटने से आठ प्रवासी मजदूरों की जान चली गई।
औरैया हादसे में घायल होने वाले मजदूरों ने बताया कि हादसा कितना भयावह था। हाई-वे पर उनकी डीसीएम खड़ी थी। ट्रक चालक चाय पीने के लिए रुका था, तभी एक ट्रक ने पीछे से खड़ी डीसीएम में टक्कर मार दी। पश्चिम बंगाल के रहने
वाले गुड्डू ने बताया कि खाने की समस्या बढ़ने लगी थी। इसके बाद साथ काम करने वाले
मजदूरों ने घर लौटने का फैसला किया। सुबह शायद ढाई-तीन बजे थे।
तय हुआ कि आगे जो ढाबा मिलेगा, उसमें रुककर रोटियां बांटेंगे
और खा लेंगे। कुछ लोग ढाबे पर उतरे। डीसीएम में मौजूद सभी मजदूर नींद में थे,
तभी पीछे से एक जोरदार टक्कर हुई। गाड़ी में जितने भी लोग थे उछल कर
दूर जा गिरे। कुछ उसके नीचे दब गए। लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे। लेकिन रात के सन्नाटे
में कोई भी कुछ सुनने वाला नहीं था। ढाबे पर सुरक्षित लोग फंसे हुए लोगों को बाहर निकाल
रहे थे। डीजीपी ने बताया कि शुरुआती जांच में ट्रालर के ड्राइवर के नींद में आने से
हादसे का पता चला है। औरैया में 24 से ज्यादा और भी मजदूरों की
जान जा सकती थी, अगर वह एक कप चाय के लिए न रुके होते। पुलिस
के मुताबिक दिल्ली से आए डीसीएम (मिनी ट्रक) में सवार कुछ लोग ढाबे पर चाय पीने के लिए रुके थे, तभी
राजस्थान से आने वाले दूसरे ट्रक ने टक्कर मार दी। जो लोग बाहर थे, वह बच गए। सुबह होने से पहले मजदूरों को चाय पीने की तलब लगी और इसी चाय ने
जिंदगी और मौत के बीच फासला कर दिया। यदि कामगारों की घर वापसी के लिए उचित प्रबंध
किए गए होते तो शायद इस भीषण हादसे में उनकी जान जाने से बच सकती थी। कायदे से तो केंद्र
और राज्य सरकारों को तभी चेत जाना चाहिए था जब महाराष्ट्र में ट्रेन पटरियों पर सो
रहे कामगार मालगाड़ी से कट मरे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोरी
संवेदना जताकर मृत परिवार को आर्थिक सहायता देने की घोषणा के बाद औपचारिकता पूरी कर
दी गई। नतीजा यह हुआ कि कामगारों के पैदल या साइकिल से घर जाने का सिलसिला उलटा और
तेज हो गया। जो श्रमिक ट्रेनें चल रही हैं वह पर्याप्त नहीं साबित हो रही हैं। यह साफ
है कि घर लौटना चाह रहे सभी कामगार इन ट्रेनों की सुविधा हासिल नहीं कर पा रहे हैं।
विडंबना यह है कि न तो पैदल घर जाने वाले मजबूर मजदूरों को रोकने की कोशिश की जा रही
है और न ही उन्हें उचित तरीके से घर भेजने के लिए प्रबंध किए जा रहे हैं। कुछ सरकारें
उलटा इन कामगारों पर लाठीचार्ज करवा रही हैं। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें
हों अब तक इन्होंने इस दिशा में कोई ठोस न तो नीति बनाई है और न ही कोई पर्याप्त बंदोबस्त
किया है। आज पूरे देश की सड़कों पर लाखों मजदूर घर लौटने की लालसा को लेकर पैदल ही
निकल पड़े हैं। राज्यों को आपसी तालमेल बढ़ाना होगा ताकि इस तरह के हादसों से बच सकें।
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