प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में मंगलवार को सूचित कर दिया है कि 14 मई को लॉकडाउन खत्म होने के बाद लॉकडाउन-4 आरंभ होगा, यानि लॉकडाउन जारी रहेगा। संभव है कि नई गाइडलाइंस
में थोड़ी राहत कुछ जगहों पर मिले। निष्कर्ष यही है कि हमें लॉकडाउन में कोरोना वायरस
के साथ जीने की आदत डालनी पड़ेगी। लॉकडाउन अनंतकाल तक नहीं रखा जा सकता। लेकिन दूसरी
ओर भारत में कोरोना का संकट आंकड़ों के हिसाब से इस समय चरम पर है। अंदेशा है कि ग्राफ
का बढ़ना अभी जारी रहेगा। उधर करीब एक दर्जन से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में
कहा गया है कि संक्रमण प्रसार का मुख्य कारण बंद कमरों, हॉलों
या बस्तियों में अधिक लोगों का एक साथ रहना है। जाहिर है कि लॉकडाउन खोलने की पहली
शर्त होगी दूरी बनाते हुए काम पर लगना। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के
बाद केंद्र सरकार को भी यह ज्ञान हो गया है कि हमें कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत
डालनी होगी। इसी का परिणाम है कि राष्ट्रव्यापी कठोर लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार ने
सार्वजनिक परिवहन को शुरू करने का निर्णय किया है। अब रेल की पटरियों पर यात्री ट्रेनें
दौड़ने लगी हैं। जाहिर है कि इसकी पहली शर्त होगी दूरी बनाते हुए सफर करना। क्या मेट्रो,
गांव की बसों, पैसेंजर ट्रेनों और अनाज व भोजन
आदि के वितरण और धार्मिक अवसरों पर या धर्मस्थलों पर लंबे समय तक दूरी निभाना संभव
होगा? शराब की लाइनें हमने देखी हैं। लेकिन इस संकट के दौरान
सरकारी संस्थाओं ने अभूतपूर्व क्षमता दिखाई। कुल 138 करोड़ आबादी
वाले देश को डेढ़ महीने लंबे लॉकडाउन के दौरान लगातार रसद, सब्जी
और दूध ही नहीं, दवाओं की भी आपूर्ति करना कोई साधारण काम नहीं
है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से लेकर
नुक्कड़ की परचून की दुकान ने जबरदस्त क्षमता दिखाई। पिछले 47 दिनों से आर्थिक और व्यवसायिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हैं। अभी तक इसका नकारात्मक
असर रोज कमाने और खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है। लेकिन अगर आर्थिक गतिविधियां
आगे भी पूरी तरह ठप रहती हैं तो छोटे और मझौले व्यापारी या अन्य नौकरीपेशा वाले निम्न
मध्यमवर्गीय लोग भी प्रभावित होने लगेंगे। यह वर्ग ऐसा है जो अपनी आय का बहुत मामूली
हिस्सा बचा पाते हैं। आर्थिक तबाही के कारण जब यह वर्ग सड़कों पर उतरेगा तो अराजकता
पैदा होने लगेगी। इसलिए सरकार यह समझ चुकी है कि कोरोना से बचाव के नियमों का कठोरता
से पालन करते हुए आर्थिक गतिविधियों को शुरू करना चाहिए। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने
के लिए आर्थिक गतिविधियां शुरू करनी ही होंगी। अब तो कोरोना वायरस के प्रति जन साधारण
में जागरुकता का प्रचार-प्रसार भी हो गया है। लोगों से यह अपेक्षा
की जा सकती है कि वह सावधानियां बरतते हुए अपने कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। केंद्र और
राज्य सरकारों की असली अग्निपरीक्षा भी इन्हीं दिनों में होगी कि वह किस तरह कोरोना
महामारी और आर्थिक गतिविधियों के बीच सामंजस्य बैठा पाती है। अर्थात कोरोना की रोकथाम
भी हो और आर्थिक गतिविधियां भी चलती रहें यह राज्य सरकारों के लिए जबरदस्त चुनौती होगी।
परिणाम सरकारों की प्रशासनिक चुस्ती और दक्षता पर निर्भर करेगा।
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