सुपीम कोर्ट ने शुकवार को कहा है कि देश में
पवासी कामगारों की आवाजाही की निगरानी करना या इसे रोकना अदालतों के लिए असंभव है।
अदालत ने कहा कि इस संबंध में सरकार को ही आवश्यक कार्रवाई करनी होगी। पवासी मजदूरों
की शिनाख्त कर उनके लिए भोजन, छत और परिवहन की व्यवस्था करने
के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग को लेकर दायर एक जनहित याचिका
पर दखल देने से इंकार करते हुए अदालत ने कहा कि इस बाबत राज्यों को ही कार्रवाई करनी
होगी। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल
और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने याचिका पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि अदालत कैसे
पवासी मजदूरों को पैदल जाने से रोक सकती है? न्यायमूर्ति कौल
ने पूछा अगर वे रेल की पटरी पर सो रहे हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है? न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ये लोग चलते जा रहे हैं रुकने
का नाम नहीं ले रहे, हम इन्हें कैसे रोक सकते हैं? केन्द्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि देशभर में इन पवासी कामगारों को उनके गंतव्य
तक पहुंचाने के लिए सरकार परिवहन सुविधा मुहैया करा रही है लेकिन महामारी के दौरान
पैदल ही चल देने के बजाए उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना होगा। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर
राव, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति वीआर गवई के पीठ
ने रास्ते में फंसे कामगारों की पहचान कर उनके लिए खाने और आवास की व्यवस्था करने का
सभी जिलाधिकारियों को निर्देश देते हुए दायर आवेदन पर विचार करने से इंकार कर दिया।
इस मामले में वीडियो कांपेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने केन्द्र की ओर
से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि क्या इन कामगारों को सड़कों पर
पैदल चलने से रोकने का कोई रास्ता है? मेहता ने कहा कि राज्य
इन कामगारों को अंतर्राज्यीय बस सेवा उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन अगर लोग परिवहन सुविधा
के लिए अपनी बारी का इंतजार करने की बजाए पैदल ही चलना शुरू कर दें तो कुछ नहीं किया
जा सकता। मेहता ने कहा कि राज्य सरकारों के बीच समझौते से पत्येक व्यक्ति को अपने गंतव्य
तक यात्रा करने का अवसर मिलेगा। इस मामले में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अलख आलोक
श्रीवास्तव ने हाल ही में मध्य पदेश और उत्तर पदेश में राज मार्गों पर हुई सड़क दुर्घटनाओं
में श्रमिकों के मारे जाने की घटनाओं की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया।
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