Sunday 10 May 2020

ई-रिक्शा चालकों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही

कलंदर कॉलोनी में रहने वाले राम प्रसाद ई-रिक्शा चलाते हैं। बताते हैं कि लॉकडाउन में घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। वह बताते हैं कि जब मेट्रो चलती थी तो दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन से और झिलमिल से सवारी लेता था और जीटीबी, सीमापुरी, शालीमार गार्डन पहुंचाता था। ई-रिक्शा खरीदने के लिए परिचितों से उधार लिया हूं लेकिन अब घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है। लॉकडाउन में एक माह से अधिक समय से काम बंद होने के कारण ई-रिक्शा चालकों को अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल हो रहा है। जो जमापूंजी थी वह खत्म होने के बाद हाल में उधारी पर गुजारा कर रहे थे, लेकिन अब उधारी भी काफी चढ़ गई है। तुगलकाबाद इलाके में रहने वाले ई-रिक्शा चालक हेमंत कुमार लॉकडाउन की वजह से पिछले एक महीने से परेशान हैं। कहते हैं कि अब तो ई-रिक्शा भी चलाने से पहले ठीक कराने के लिए पैसे चाहिए। सरकार से आर्थिक मदद की उम्मीद लगाकर बैठे हेमंत बताते हैं कि 12 घंटे ई-रिक्शा चलाने पर औसतन 400-500 रुपए की बचत हो जाती थी। लेकिन मार्च महीने की 24 तारीख से काम-धंधा ठप पड़ा है। ई-रिक्शा न चलाने की वजह से उसकी बैटरी व अन्य सामान खराब होने का डर सता रहा है। पहले से ही नई बैटरी की किस्त जमा कर रहा हूं। यह बैटरी खराब हो गई तो 30 हजार का बोझ बढ़ जाएगा। हेमंत ने कहा कि तीन दिन से राशन के लिए चक्कर लगा रहा हूं लेकिन वह भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में अब कुछ समझ नहीं आ रहा कि आखिर क्या किया जाए? चार सदस्यों वाला मेरा परिवार है, जिसका भरण-पोषण रिक्शा चलाकर ही हो रहा था। ई-रिक्शा काफी दिनों से यूं ही खड़ा है। आय का कोई अन्य जरिया भी नहीं है। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है कि करूं तो क्या करूं? -रिक्शा चालकों की हालत खराब है। सरकार को इनकी ओर ध्यान देना चाहिए। रोज कमाना-रोज खाना वालों की लॉकडाउन में समस्या गंभीर है।

-अनिल नरेन्द्र

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