Wednesday 13 May 2020

हमें हर हाल में अपने घर जाना है

पूरे देश की सड़कों पर घर जाने वाले मजदूर कहीं साइकिल से तो कहीं पैदल जाते दिख रहे हैं। यह किसी तरह अपने गृह नगर लौटना चाहते हैं। पुलिस की सख्ती, दलालों का लालच और घर पहुंचाने का सरकारी दावा सब कम पढ़े-लिखे मजदूरों की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है। किसी का पैसा खत्म है तो किसी का राशन। मजदूर मजबूर होकर सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, दर-दर भटक रहे हैं। यूपी गेट के पास गाजीपुर सब्जी मंडी रोड पर रविवार सुबह 11 बजे करीब 15 साइकिल सवार मजदूर भटकते नजर आए। वह बदायूं जाने के लिए बॉर्डर पार करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन पुलिस उन्हें वापस भेज रही थी। साइकिल सवार मजदूर कामते ने बताया कि सभी बदायूं के हैं और दिल्ली में मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन में घर और रिश्तेदारों से रुपए मंगाकर खर्च चला रहे थे। घर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन के बारे में पता नहीं चल रहा तो साइकिल से ही घर जा रहे हैं। गोरखपुर का विमलेश लॉकडाउन में 35 दिन लोडेड ट्रक लेकर हैदराबाद के पास हाई-वे पर फंसा रहा। राशन खत्म होने पर ट्रांसपोर्टर ने हाथ खड़े कर दिए। विमलेश पैदल ही कर्नाटक के गुलबर्गा के लिए चल पड़ा। दो दिन में कमरे पर पहुंचा तो वहां बचत के रुपए से पुरानी साइकिल खरीदी और 1800 किलोमीटर दूर अपने घर के लिए निकल पड़ा। नौ दिन की जद्दोजहद के बाद वह गोरखपुर के बड़हलगंज पहुंचा। यहां आधार कार्ड जांचने के बाद पुलिस ने उसे एक स्कूल में क्वारंटीन कराया। बड़हलगंज के सतडौली गांव का विमलेश ओझा कर्नाटक के गुलबर्गा में रहकर ट्रक चलाता है। 19 मार्च को वह गुलबर्गा से सीमेंट लदा ट्रक लेकर निकला। तेलंगाना में हैदराबाद के पास वह ट्रक लेकर लॉकडाउन में फंस गया। उसने हाई-वे पर ट्रक में ही किसी तरह 35 दिन गुजारे। इस बीच खाने-पीने का सामान और पैसा खत्म हो गया। उसने ट्रांसपोर्टर को इसकी जानकारी दी। उस ट्रांसपोर्टर ने मदद से हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद वह ट्रक हाई-वे पर ही खड़ा कर पैदल गुलबर्ग के लिए निकल पड़ा। वह दो दिन में गुलबर्गा अपने कमरे पर पहुंचा। कमरे पर रखे बचत के छह हजार रुपए में से 5500 रुपए में मोहल्ले के एक युवक से पुरानी साइकिल खरीदी और 26 अप्रैल को अपने घर के लिए निकल पड़ा। विमलेश ने बताया कि जबलपुर से चला था कि रात में पिछला टायर पंक्चर हो गया। रात में पुछ दूर पैदल चला। हिम्मत जवाब देने पर सुरक्षित स्थान देखकर बैठ गया। खैर यह फिर यात्रा शुरू की। करीब 50 किलोमीटर पैदल चलने पर हाई-वे पर पंक्चर बनाने वाली दुकान मिली। काफी अनुरोध करने पर उसने पंक्चर जोड़ा। प्रवासी मजदूर अपने घर पहुंचने के लिए हर प्रकार के जोखिम उठाने पर तुले हैं। बस उनकी एक ही जिद हैöघर पहुंचना है चाहे कैसे भी पहुंचे।

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