Wednesday 6 May 2020

रमेश दत्ता नहीं रहे ः अलविदा दोस्त

दिल्ली के फकीरी कांग्रेस जमीनी नेता रमेश दत्ता हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी के चलते उन्हें एक बार फिर दिल्ली के बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। काफी बार मौत को चकमा देने में सफल रहे रमेश दत्ता इस बार बच नहीं सके और रविवार को उनका निधन हो गया। रमेश दत्ता को मैं पिछले 50 साल से ज्यादा समय से जानता हूं। मैं मॉर्डन स्कूल में पढ़ता था और अकसर बंगाली मार्केट जाता था। बंगाली मार्केट में भीम सेन की मिठाई इत्यादि की दुकान पर रमेश बैठे रहते थे। मेरा तब से उनसे संबंध बना जो अंतिम समय तक बना रहा। वह आए दिन हमारे कार्यालय अपनी खबर छपवाने आते थे और मिलने आ जाते थे। उनका तकिया कलाम था डेडी। हर एक को डेडी पुकार कर पांव छूने लगते थे। यहां तक कि अपने से बहुत छोटों को भी डेडी कहते थे और पांव छूते थे। मेरे दोनों बच्चों की शादियों में वह अपना नेहरू ब्रिगेड लेकर आए। उन्होंने शादी की तैयारियों में घर वालों की तरह काम किया। बहुत साल पहले हमने रामलीलाओं को सम्मानित करने के लिए रामलीला अवार्ड शुरू किए थे जिसमें हम दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ रामलीलाओं को सम्मानित करते थे। पहले अवार्ड फंक्शन में हमने स्वर्गीय राजीव गांधी को बुलाया था। मुझे आज भी याद है कि राजीव चुनाव हार चुके थे और उन्हें चीफ गेस्ट बनने में थोड़ा संकोच था। पर मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि उनका भव्य स्वागत होगा। रमेश दत्ता अपने बैंड-बाजे के साथ पूरे लाव-लश्कर के साथ आईफैक्स हॉल पहुंचे और राजीव जी का जोरदार स्वागत किया। भीड़ इतनी हो गई कि दत्ता साहब को क्राउड कंट्रोल करना पड़ा। हम हर साल अस्थि विसर्जन यात्रा करते हैं। इसमें हम भारत और विदेशों में पड़ी अस्थियों को जो लावारिस होती हैं उनका विधि-विधान से हरिद्वार में विसर्जन करते हैं। इस यात्रा में रमेश दत्ता ने हमेशा हमारे स्वागत के लिए अपने बैंड सहित लाव-लश्कर के साथ पहुंचते थे। तीन-चार बार तो वह हमारे साथ हरिद्वार पूरी यात्रा में शामिल हुए। एक साल जहां हम रात ठहरते थे वहां कमरे न मिलने की वजह से हमें होटल में ठहरना पड़ा जोकि धर्मशाला के सामने था वहां हमने कुछ कमरे लिए। रमेश दत्ता को भी मैंने होटल में ठहराया। उनके साथ हमारे पंडित रामेश्वर दयाल कमरे में ठहरे थे। अगली सुबह पंडित जी ने मुझे बताया कि रमेश दत्ता सुबह-सुबह उठ गए और जो कपड़े पहने थे उन्हें धोया। यानि उनके पास कपड़ों का दूसरा जोड़ा भी नहीं था। वही जोड़ा धोया और पहना। ऐसे साधारण व्यक्ति थे वह। हर कांग्रेसी नेता के किसी भी खुशी के कार्यक्रम में रमेश दत्ता अपना ब्रिगेड लेकर पहुंचते थे, उन्हें भला कांग्रेस कैसे भुला सकती है। यह और बात है कि कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें कभी वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। जो कोई भी उनसे मदद मांगता था अगर वह कर सकते थे तो जरूर करते थे। वह 75 साल के थे। जब वह डिप्टी मेयर भी थे तब भी उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। वह मिंटो रोड में एक टूटे-फूटे सरकारी घर में फकीरों की तरह रहते थे। उनके माता-पिता और बड़े भाई जो रंजीत होटल में सीनियर मैनेजर थे, सबका बहुत पहले निधन हो गया था। अलविदा दोस्त। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

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