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Friday, 30 September 2011
आफेंस इज दी बेस्ट डिफेंस
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हक्कानी नेटवर्प को लेकर पाक-अमेरिका में बढ़ती तल्खी
Thursday, 29 September 2011
सीबीआई ने कहा सरकार जाए भाड़ में
सुधींद्र कुलकर्णी भी पहुंचे तिहाड़
Wednesday, 28 September 2011
अब क्या होगा आगे ः नजरें सुप्रीम कोर्ट पर
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बाबा रामदेव समर्थकों पर हुई लाठीचार्ज की शिकार राजबाला चल बसीं
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Anil Narendra, Baba Ram Dev, Daily Pratap, delhi Police, Human Rights Commission, P. Chidambaram, Raj Bala, Ram Lila Maidan, Supreme Court, Vir Arjun
Tuesday, 27 September 2011
कुरान पर लगाई प्रदर्शनी पर शाही इमाम का टकराव
पाकिस्तान की अमेरिका को धमकी व चुनौती
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Sunday, 25 September 2011
आस्था नहीं संविधान से चलता है देश
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से सरकार के भीतर और बाहर लगी आग से प्रधानमंत्री पद की छवि चाहे जितनी झुलसी हो किन्तु डॉ. मनमोहन सिंह का यह कहना बेहद आपत्तिजनक है कि उनको अपने मंत्रियों पर पूरा भरोसा है। इसी के साथ यह भी जोड़ना कि न तो वे उनसे त्यागपत्र मांगेंगे और न ही खुद त्यागपत्र देंगे। क्योंकि विपक्ष का तो काम ही है आलोचना करना।
इससे ज्यादा तो प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से उम्मीद की भी नहीं जा सकती। जो प्रधानमंत्री अपने संवैधानिक कर्तव्यों तक को भूल गया हो उससे यह उम्मीद करना कि वह देश में किसी घोटाले से विचलित हो जाएगा, अत्यंत मुश्किल है। संविधान के अनुच्छेद 78 के मुताबिक प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों की सूचना राष्ट्रपति को देता है। यही नहीं, मंत्रिपरिषद का सामूहिक उत्तरदायित्व ही संसदीय लोकतंत्र में सरकार का मुख्य आधार होता है। भारतीय संविधान ने स्पष्ट उपबंध द्वारा इस सिद्धांत को सुरक्षित किया है। अनुच्छेद 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है। सामूहिक उत्तरदायित्व का अर्थ यह है कि मंत्री गण अपने कार्यों के लिए टीम के रूप में लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। मंत्री गण एक टीम के रूप में कार्य करते हैं और मंत्रिपरिषद में लिए गए सभी निर्णय उसके सदस्यों के संयुक्त निर्णय होते हैं। मंत्रिमंडल की बैठक में मंत्रियों में किसी विषय पर कितना ही मतभेद क्यों न रहा हो, किन्तु एक बार जब निर्णय ले लिया जाता है तो हर मंत्री को उसे मानना ही पड़ता है। यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री या उसकी नीतियों से असहमत है तो उसके सामने मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यह सिर्प संविधान में प्रधानमंत्री और मंत्रियों के बीच संबंधों का सैद्धांतिक पंक्तियां नहीं हैं। इसी के आधार पर मंत्री या तो खुद मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र दे चुके हैं अथवा उन्हें हटाया जा चुका है।
प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी तो शुरू से ही इतने निरंकुश और अहंकारी तरीके से काम कर रहे हैं कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि उनकी भी कभी सत्ता से विदाई होगी। इसी दुर्भावना से प्रेरित होकर वे संवैधानिक भावनाओं की भी उपेक्षा करने में किसी तरह का संकोच नहीं कर रहे हैं और जो कुछ भी सही-गलत करना है, उसे वे बिना किसी भय एवं संकोच के कर रहे हैं। ऐसी सरकार से यह उम्मीद करना कि वह संवैधानिक उपबंधों के अनुकूल कार्य करेगी, निरर्थक है।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को तो ए. राजा पर भी हमेशा विश्वास रहा। उन्हें दयानिधि मारन भी प्रिय रहे। उनके प्रति भी उनके दिल में आस्था एवं विश्वास पूरा था। उन्होंने हमेशा ही अपने इन दोनों मंत्रियों को निर्दोष बताया। वे फंसे और जेल गए तो सुप्रीम कोर्ट की वजह से, प्रधानमंत्री की वजह से नहीं।
अब जब तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम घिरे हैं तो फिर प्रधानमंत्री उनके प्रति अपनी आस्था और विश्वास व्यक्त कर रहे हैं। मसलन घोटालेबाज मंत्री हो या घोटाले में शामिल सहघोटालेबाज मंत्री हो, सभी के प्रति जिस प्रधानमंत्री का विश्वास हो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है कि वह देश के शासन का संचालन ईमानदारी से कर सकता है? आखिर इसी सवाल का जवाब तो दयानिधि मारन के उस पत्र में मिला है जिसकी वजह से प्रधानमंत्री ने मंत्रिसमूह (जीओएम) की व्यवस्था खत्म कर दी थी। मसलन जो भी निर्णय ए. राजा और दयानिधि मारन के वक्त हुए उनकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह की भी है।
प्रधानमंत्री का पद एक संवैधानिक लोकतंत्र की रस्सी से बंधा है। वे कोई देश के सम्राट नहीं हैं कि देश की बागडोर उनके पूर्वजों ने उन्हें सौंपी है और इस पर उनका राज्य इसलिए कायम है कि उनकी भुजाओं में ताकत है। सच तो यह है कि वे इस देश के शासक इसलिए हैं कि देश की जनता को भारतीय संविधान ने अपना शासक चुनने का अधिकार दिया है। अपने इन्हीं संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करके देश की सवा अरब जनता ने अपने ऐसे शासक का चुनाव किया है जो खुद भी संवैधानिक अधिकारों के माध्यम से देश पर शासन करता है और अपने संवैधानिक कर्तव्यों के माध्यम से देश की जनता की सेवा। सवाल यह नहीं है कि प्रधानमंत्री की अपने किस मंत्री के प्रति विश्वास है। सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री के मंत्री उनके विश्वास के योग्य हैं अथवा अयोग्य एवं अपराधी होने के बावजूद उन पर विश्वास करके प्रधानमंत्री असंवैधानिक कार्य कर रहे हैं?
जहां तक रही प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण में इस पूरक आलोचना का कि विपक्ष का तो काम ही आलोचना करना है, यह आरोप भी प्रधानमंत्री के संवैधानिक अविज्ञता का ही परिणाम है। आखिर विपक्ष के पास है क्या? लोकतंत्र ने विपक्ष को न तो जांच के लिए कोई एजेंसी दिया है और न ही जांच का कोई अधिकार। सिर्प उसे गलत कामों की आलोचना एवं सरकार को सुधारने हेतु दबाव डालने का ही अधिकार दिया है। लेकिन फिर भी आलोचनाओं एवं मंत्रिपरिषद पर दबाव के लिए उसे भी उतना ही भुगतान मिलता है जितना कि सत्तापक्ष के गुनाहों को छिपाने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों एवं मंत्रियों को। लेकिन जिस बात के लिए प्रधानमंत्री विपक्ष पर पिले पड़े हैं उसकी पुष्टि तो उनके मंत्रिपरिषद के एक सहयोगी के मंत्रालय से बात सामने आई है।
प्रधानमंत्री संवैधानिक दायित्वों से बच नहीं सकते। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ए. राजा के मामले में ही लपेट लिया था किन्तु बड़ी मुश्किल से बचे हैं शपथपत्र वगैरह देने के बाद। शासन का भी सामान्य सिद्धांत यही है कि जब कभी किसी जिले में दंगा, हत्या या डकैती जैसी जघन्य अपराधों की घटना होती है तो जरूरी नहीं कि उन अपराधों में डीएम, एसपी और दरोगा शामिल हों किन्तु लापरवाही के आरोप में सभी के खिलाफ कार्रवाई होती है। इसलिए अरबों रुपये के घोटाले में शामिल अपने मंत्रियों के प्रति ऐसी आस्था और विश्वास का मतलब क्या होता है इसकी समझ प्रधानमंत्री को भले ही न हो देश की जनता एवं संवैधानिक संस्थाओं को जरूर है।
राक्षसों को मारने के लिए लक्ष्मण रेखा पार करनी पड़ती है
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उधर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी को लेकर अदालत केंद्र और सीबीआई में मतभेद भी सामने आ गए हैं। केंद्र ने बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट में जांच पर निगरानी जारी रखने का विरोध किया था, वहीं सीबीआई ने दलील दी कि निगरानी जारी रहनी चाहिए। केंद्र सरकार ने यहां तक कह दिया कि वह (सुप्रीम कोर्ट) 2जी घोटाले के मामले में गृहमंत्री पर सुनवाई नहीं कर सकती। उसने कोर्ट से कहा कि वह इस मामले में आदेश पारित कर लक्ष्मण रेखा पार न करे। यह सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को चुनौती देना था पर सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि आप लक्ष्मण रेखा की बात कर रहे हैं, यदि सीता ने लक्ष्मण रेखा पार नहीं की होती तो रावण मारा नहीं जाता। लक्ष्मण रेखा राक्षसों को मारने के लिए ही पार की जाती है, ऐसा लोग कहते हैं। जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एके गांगुली की बैंच ने यही नहीं कहा बल्कि सरकार और सीबीआई के मामले में हो रही जांच में टालमटोल करने पर भी फटकार लगाई। इसके बाद सीबीआई के वकील ने कहा कि अदालत जांच का आदेश देती है तो वह उसका पालन करेगी। उसने यहां तक आश्वासन दिया कि वह सुब्रह्मण्यम स्वामी की भूमिका के बारे में अदालत में दाखिल दस्तावेजों की भी जांच को तैयार है। दरअसल अदालत ने परोक्ष रूप से संकेत दिया कि शीर्ष पदों पर बैठे आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए वह पुराने फैसलों को नजरअंदाज कर जांच जारी रख सकती है। इससे पहले न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी राव ने शीर्ष अदालत के पुराने फैसलों का हवाला देकर निगरानी की तय लक्ष्मण रेखा होने की दलील दी थी। पीठ ने राव से ही पूछ लिया कि आखिर क्यों अदालत की ओर से जांच की निगरानी का चलन शुरू हुआ? विनीत नारायण के मामले तक हमने यह नहीं सुना था। यह चलन इसलिए शुरू हुआ क्योंकि दुर्भावना का स्वरूप बड़ा होता गया और पारम्परिक तरीके कमजोर पड़ गए। जहां एक ओर तो सरकार इस घोटाले में अदालत की निगरानी जारी रखने पर एतराज कर रही है वहीं दूसरी ओर सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि जांच अदालत की निगरानी में ही जारी रहनी चाहिए। इस पर पीठ ने केंद्र से पूछा कि सॉलिसिटर जनरल ने पहले अदालत की ओर से निगरानी पर सहमति जताई थी, अब यदि सरकार अपना बयान वापस ले रही है तो बताए? जवाब में राव ने कहा कि वह सॉलिसिटर जनरल के बयान को वापस नहीं ले रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में हुई कार्रवाई से जहां सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के मतभेद उभर कर सामने आए हैं वहीं सरकार और सीबीआई के भी मतभेद सामने आ गए हैं।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के बीच युद्ध अब खुलकर सामने आ चुका है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में सीबीआई द्वारा चार्जशीट दायर करने के एक सप्ताह पहले ही वित्त मंत्रालय के उस नोट का बाहर आना जिसमें यह कहा गया हो कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम स्पेक्ट्रम के मूल्य को लेकर ए. राजा से सहमत थे, आने वाली घटनाओं की ओर संकेत है और यह भी कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में जासूसी प्रकरण के बाद किस तरह से प्रणब और चिदम्बरम के बीच कटु युद्ध छिड़ा हुआ है। सभी की नजरें अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा अमेरिका से लौटने पर टिकी हुई हैं। देखें प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस नए झंझट से कैसे निपटते हैं?
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पद्मनाभस्वामी मंदिर का अंतिम तहखाना अभी नहीं खुलेगा
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सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक सीवी आनन्द बोस की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की थी। उसने खजाने की सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए जाने तक छठे तहखाने को नहीं खोलने की सलाह दी थी। विशेषज्ञ समिति में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और भारतीय रिजर्व बैंक के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। वर्षों से मंदिर के कस्टोडियन रहे त्रावण कोर शाही परिवार ने भी कोर्ट से पिछली तारीख में आग्रह किया था कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के (बी) तहखाने को नहीं खोलना चाहिए। शाही परिवार ने कहा कि इसके पहले मंदिर से बरामद हुए खजाने की वीडियोग्रॉफी या फोटोग्रॉफी इसलिए नहीं हुई, क्योंकि यह मंदिर की परम्पराओं और प्रथाओं के खिलाफ है। शाही परिवार ने पेश किए आवेदन में कहा कि (बी) तहखाने को खोलना मंदिर की आस्था रखने वालों की परम्पराओं और आस्था के खिलाफ है। न्यायालय ने उस समय आश्चर्य जाहिर किया जब उसे बताया गया कि न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने (बी) तहखाने को खोलने या न खोलने का निर्णय मंदिर के मुख्य पुजारी पर छोड़ दिया था। न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस समिति को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया वह निर्णय के इस अधिकार को दूसरे को कैसे दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने आदेश में यह भी कहा कि राज्य सरकार ही करे सम्पत्ति की सुरक्षा। केंद्रीय रिजर्व पुलिस की जरूरत नहीं है। त्रिस्तरीय व्यवस्था करे। मंदिर के रिवाजों और परम्पराओं का विशेष ध्यान रखा जाए। मंदिर प्रबंधन सुरक्षा के लिए 25 लाख रुपये प्रति वर्ष राज्य सरकार को दे। शेष खर्च सरकार उठाए। सम्पत्ति के संरक्षण के लिए निविदा आमंत्रित कर निजी कम्पनियों को शामिल नहीं किया जाए। केरल स्टेट इलैक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कारपोरेशन (केलट्रान) से यह काम कराया जाए।
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Saturday, 24 September 2011
Rabbani's killing, a cause of concern to all
चिदम्बरम सरकार और पार्टी दोनों के लिए लाइबिलिटी बन गए हैं
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चिदम्बरम पर सीधा आरोप लगता है कि ए. राजा जो कुछ कर रहे थे उसकी सहमति गृहमंत्री को थी। यही नहीं, 30 जनवरी 2008 को उन्होंने ए. राजा से मीटिंग में उन्हें पुरानी दरों पर स्पेक्ट्रम बेचने की इजाजत दी। ए. राजा भी शुरू से ही कह रहा है कि मैंने जो कुछ भी किया वह पीएमओ और गृह मंत्रालय की स्वीकृति और जानकारी में किया है। अब यह आरोप तो खुद सरकारी दस्तावेज से साबित होता है। पहले आओ, पहले पाओ की जगह ज्यादा कीमत पर स्पेक्ट्रम की नीलामी की जा सकती थी पर चिदम्बरम ने ऐसा कुछ नहीं किया। कम्पनियों को दिए यूएएस लाइसेंस का प्रावधान 5.1 सरकार को लाइसेंस की शर्तों को किसी भी समय बदलने की इजाजत देता है बशर्ते यह जनहित में हो या सुरक्षा के लिए जरूरी हो पर चिदम्बरम ने ऐसा कुछ नहीं किया। वित्त मंत्रालय ने टेलीकॉम सेक्टर में ग्रोथ के अनुपात फीस तय करने की बात की। राजा इससे सहमत नहीं थे। चिदम्बरम ने इसका भी विरोध नहीं किया। वित्त मंत्रालय 4.4 मेगा हर्ट्स से ऊपर के स्पेक्ट्रम को बाजार भाव में बेचना चाहता था। राजा ने यह सीमा 6.2 मेगा हार्ट्स कर दी। चिदम्बरम इसी पर मान गए। लेकिन किसी भी कम्पनी को 6.2 मेगा हर्ट्स से ऊपर स्पेक्ट्रम दिया ही नहीं गया। होना यह चाहिए था कि सरकार 4.4 मेगा हर्ट्स से ऊपर की नीलामी वाले रुख पर कायम रहती और कम्पनियों से नई दरों पर पैसा वसूलती पर यह भी नहीं हुआ।
यूपीए के अन्दर एक तरह से छिड़े गृह युद्ध से प्रधानमंत्री का परेशान होना स्वभाविक ही है। पीएम आजकल अमेरिका में हैं। मनमोहन सिंह ने प्रणब मुखर्जी और चिदम्बरम दोनों से फोन पर बात की है। गुरुवार शाम चिदम्बरम ने एक बयान जारी कर दोनों नेताओं से बातचीत की जानकारी दी। चिदम्बरम ने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री को आश्वस्त किया है कि जब तक वह स्वदेश वापस नहीं लौटते हैं मैं इस विषय पर कोई बयान नहीं दूंगा। मनमोहन सिंह 27 सितम्बर को न्यूयार्प से भारत लौटेंगे। उधर वित्त मंत्री ने भी न्यूयार्प में मीडिया से कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा। वहीं केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि चिदम्बरम पर सवाल नहीं खड़े किए जा सकते हैं। वह सरकार के समर्थन के हकदार हैं। केंद्रीय मंत्री अम्बिका सोनी ने भी सरकार में दरार के दावों को खारिज रकते हुए कहा कि जो भी रिपोर्टें आ रही हैं उनमें सच्चाई कम ही है। Šजी स्पेक्ट्रम केस की जांच करने वाली लोक लेखा समिति के अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि चिदम्बरम तुरन्त इस्तीफा दें या उन्हें बर्खास्त किया जाए। सीपीएम ने चिदम्बरम की भूमिका की सीबीआई जांच की मांग की है। उधर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने कहा है कि चिदम्बरम 2जी केस में शामिल हैं। यह साफ हो गया है। न्यूयार्प से प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें चिदम्बरम पर पूरा भरोसा है। चौतरफा समस्याओं से घिरी यह यूपीए सरकार के लिए समय दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। चूंकि इस बार सारे आरोप एक सरकारी दस्तावेज के आधार पर लग रहे हैं इसलिए इससे निकलना आसान नहीं होगा इस सरकार के लिए। रहा सवाल पी. चिदम्बरम का तो अब वह सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए एक लाइबिलिटी बनते जा रहे हैं।
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रब्बानी की हत्या ने सभी की चिन्ताएं बढ़ाईं
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श्री रब्बानी की हत्या से साफ है कि अमेरिका के नेतृत्व वाली नॉटो सेनाओं के अफगानिस्तान से विदा होने के बाद तालिबानी और कितनी बड़ी चुनौती उपस्थित कर सकते हैं। रब्बानी राजधानी काबुल के अति सुरक्षित इलाके में रहते थे जहां अमेरिका का दूतावास भी पास में स्थित है। रब्बानी को हामिद करजई सरकार ने पिछले करीब एक साल से अपनी उच्चस्तरीय शांति परिषद का प्रमुख बनाया था। उन्हें शांति प्रयासों में कोई खास कामयाबी नहीं मिली। अब उनकी हत्या से तो मेल-मिलाप की रही-सही संभावनाएं भी क्षीण होने लगी हैं। जिस तरह तालिबान ने छल कर रब्बानी की हत्या की, उसी तरह कुछ महीने पहले राष्ट्रपति हामिद करजई के सौतेले भाई वली करजई की उनके ही एक सहयोगी से छलपूर्वक हत्या कराई गई थी। इसके बाद तालिबानी बन्दूकधारियों ने एक पूर्व गवर्नर जान मोहम्मद खान की हत्या की थी। जब से अमेरिका और पश्चिमी देशों की मदद से करजई सरकार बनी है। तालिबानी उस पर हमले कर रहे हैं। एक के बाद एक होती हत्याओं से साफ है कि तालिबान मेल-मिलाप के पक्ष में नहीं है। तालिबान का निर्माण कभी पाकिस्तानी मदरसों में हुआ था और आज भी पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का तालिबान के अनेक गुटों पर नियंत्रण है। अफगानिस्तान में तालिबानी शासन होने से पाकिस्तान को भारत के साथ युद्ध की स्थिति में सामरिक गहराई मिलती है। इसलिए पाकिस्तान नहीं चाहता कि अफगानिस्तान में ऐसी कोई सरकार हो, जो भारत की मित्र हो। रब्बानी को भारत का मित्र माना जाता था। तालिबान को ऐसा भी कोई शख्स पसंद नहीं है जो अमेरिका, भारत और पश्चिमी देशों का मित्र हो।
श्री रब्बानी की हत्या के साथ अस्थिर हालात से गुजर रहे पड़ोसी मुल्क के हालात को लेकर भारत की चिन्ता बढ़नी स्वभाविक ही है। नई दिल्ली की चिन्ता अफगानिस्तान में शांति और विश्वास बहाली का परचम थामने वालों नेताओं को ठिकाने लगाने की कोशिशों को लेकर है। मनमोहन सिंह ने कहा कि इस घटना से गहरा धक्का पहुंचा है और भारत मुश्किल की इस घड़ी में अफगानिस्तान के लोगों के साथ खड़ा है। करजई को लिखे पत्र में पीएम ने कहा कि अफगानिस्तान में विभिन्न गुटों के बीच शांति प्रक्रिया की अगुवाई कर रहे रब्बानी को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि हम उनके काम को आगे बढ़ाएं। रब्बानी की हत्या ने अमेरिका और नॉटो सेना की चिन्ता भी बढ़ा दी है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने रब्बानी की हत्या पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि शांति प्रक्रिया जारी रहेगी। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति रब्बानी की हत्या करने वाले आत्मघाती हमलावर की पहचान एस्मातुल्ला के रूप में की गई है। वह लम्बे समय से रब्बानी की हत्या का मौका तलाश कर रहा था। तालिबान के इस आत्मघाती हमले से एक बात तो साफ है कि अगर अमेरिका व नॉटो गठबंधन को अफगानिस्तान से बाहर निकलना है तो उन्हें तालिबान से सीधी बातचीत करनी ही होगी पर मुश्किल यह भी है कि तालिबान के अन्दर कई गुट हैं। किस से किसके माध्यम से यह बात हो? फिर आईएसआई भी है। उनके अपने हित हैं। वह अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चाहेंगे जो पाकिस्तान का पिट्ठू बनने को तैयार हो। ओबामा का आगे का रास्ता कांटों भरा है पर फिर अमेरिका तो बुरी तरह फंसा हुआ है, इधर कुआं तो उधर खाई।
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Friday, 23 September 2011
अगर आप 25 रुपये रोज खर्च करते हैं तो आप गरीब नहीं हैं
आम आदमी सरकार के इस आकलन से शायद दुःखी हो पर मुझे बिल्कुल आश्चर्य नहीं हुआ। यह सरकार गरीब आदमी से कितनी कट चुकी है इसी हलफनामे से पता चलता है। अर्थशास्त्राr प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनके सिपहसलार मोंटेक सिंह आहलूवालिया, प्रणब मुखर्जी, पी. चिदम्बरम सरीखे लोगों से आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं। इनमें से किसी ने भी खुले बाजार में सब्जी, आटा, दाल, चावल, तेल, दूध, दवाई, डाक्टर की फीस, स्कूल की फीस, मेट्रो का या बस के किराये का पता किया है या अनुभव किया हो तो इन्हें जमीनी हकीकत का पता चले। एयर कंडीशन कमरों में बैठ कर अपने कम्प्यूटर में अंग्रेजी भाषा में गूगल पर रिसर्च करके हलफनामा तैयार तो हो जाता है पर जमीनी सच्चाई से यह कोसों दूर होता है। इतना दूर कि आदमी को गुस्सा और दुःख होता है।
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टी-20 की घटती लोकप्रियता को रोकने के लिए सचिन के सुझाव
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Thursday, 22 September 2011
भगौड़ा स्वामी अग्निवेश कब तक भागेगा?
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राम जेठमलानी की कैश फॉर वोट केस में पलटी
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Wednesday, 21 September 2011
मोदी के सद्भावना मिशन पर `टोपी' पहनाने का प्रयास
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