Tuesday 3 March 2020

बिहार में नहीं मांगा जाएगा कोई दस्तावेज

देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर फैले जन आक्रोश और हिंसा के बाद बिहार ने रास्ता दिखाया है। विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि एनआरसी लागू नहीं होगा, एनपीआर 2010 के फॉर्मेट (मनमोहन सिंह कार्यकाल वाला) के अनुसार होगा। बिहार में एनपीआर के लिए किसी से भी नाम, पता व जन्मतिथि इत्यादि को लेकर कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। यह 2010 के पैटर्न पर सिर्प ट्रांसजैंडर का नया मानक शामिल करते हुए होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को विधानसभा में राजद के कार्यस्थगन प्रस्ताव की मंजूरी व उस पर चर्चा के दौरान इसे स्पष्ट किया और इस संबंध में सर्वसम्मत (जिसमें भाजपा विधायक भी शामिल हैं) प्रस्ताव सदन से पारित कर केंद्र सरकार को भेजने की बात कही। एनपीआर 2010 के फॉर्मेट (मनमोहन सिंह कार्यकाल वाला) के अनुसार किसी व्यक्ति के माता-पिता का जन्म प्रमाण और निवास प्रमाण तथा उसका पिछला निवास स्थान नहीं पूछा जाएगा। दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा की आग में लगभग 40-45 लोगों की आहुति के बाद केंद्र को शायद अहसास होने लगा है कि कदम मोड़ने पड़ सकते हैं, लिहाजा बिहार सदन में सत्ता में रहते हुए भी पार्टी के विधायकों ने इस प्रस्ताव पर सहमति दी। उस समय पार्टी के नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, जिन्होंने ऐलान किया था कि  बिहार में मई 15 से 20 के बीच एनपीआर प्रक्रिया पूरी की जाएगी, विधायकों की सहमति का जायजा ले रहे थे। पिछले दिन सदन में सभा अध्यक्ष ने जब सबको चौंकाते हुए उर्दू में भाषण पढ़ा तो भाजपा ठगी-सी रह गई। परिणति तब हुई जब शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन ने भाषण खत्म होने पर सुभान अल्लाह कहा। इस पर भाजपा के एक सदस्य ने जय श्रीराम कहा। बहरहाल राजनीतिक शतरंज में बिसात तर्प के आधार पर नहीं मौके की बुनियाद पर होती है यह नीतीश कुमार ने सिद्ध कर दिया। तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता की पोल खुल रही है और ऐसे में राजद का एक बड़ा वर्ग नीतीश से हाथ मिलाने की वकालत कर रहा है। बिहार विधानसभा में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर अपने मनमुताबिक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास करवाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर खुद को कुशल राजनेता साबित करते हुए जद (यू) के एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। बहरहाल ऐसे हिंसात्मक वातावरण में  बिहार ने थोड़ी उम्मीद की किरण जरूर जगाई है।

-अनिल नरेन्द्र

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