Friday 13 March 2020

हम हैं अफगानिस्तान के वैध शासक ः तालिबान

हाल ही में अमेरिका और तालिबान के बीच कहा जाने वाला ऐतिहासिक समझौते की खबर आने के बाद से ही यह आशंका जताई जा रही थी कि क्या इससे तालिबान के रुख में बदलाव आएगा और अब अफगानिस्तान में शांति बहाली की दिशा में कोई सकारात्मक बदलाव आएगा? अब एक हफ्ते के भीतर तालिबान का जो रुख सामने आया है, उससे साफ है कि दुनिया की महाशक्ति के साथ हुआ कथाकथित ऐतिहासिक समझौते की अहमियत भी तालिबान की नजर में शून्य है और उसके लिए अपनी सोच ज्यादा मायने रखती है। तालिबान ने एक ताजा बयान में कहा है कि अमेरिका के साथ हुए उसके शांति समझौते के बाद भी यह तथ्य अपनी जगह बरकरार है कि उसके सर्वोच्च नेता अफगानिस्तान के वैध शासक हैं। उनके लिए धर्म ने यह अनिवार्य कर दिया है कि वह विदेशी कब्जाधारी फौजों की वापसी के बाद वह देश में इस्लामी हुकूमत कायम करे। तालिबान के इस बयान के बाद अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते को लेकर अनिश्चितता और बढ़ गई है। यह घटनाक्रम इस खुलासे के बाद सामने आया है कि अमेरिकी सरकार को इस आशय की खुफिया रिपोर्ट मिली है कि तालिबान, अमेरिका के साथ हुए समझौते पर अमल नहीं भी कर सकता है। तालिबान के ताजा बयान में कहा गया है कि उसके वैध अमीर मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा की मौजूदगी में कोई और अफगानिस्तान का शासक नहीं हो सकता। संगठन ने कहा कि विदेशी कब्जे के खिलाफ 19 साल लंबा जेहाद वैध अमीर की कमान के तहत किया गया। कब्जे को खत्म करने के समझौते का अर्थ यह नहीं है कि मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा का शासन खत्म हो गया है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि विदेशी फौजों की वापसी ही उनकी बगावत का लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह विदेशी हमलावरों का समर्थन करने वाले भ्रष्ट (अफगान) तत्वों को भावी सरकार का हिस्सा नहीं बनने देने के लिए भी है। तालिबान के साथ अमेरिका की शांति डील खटाई में पड़ती दिख रही है और अफगानिस्तान एक बार फिर से भीषण गृहयुद्ध की ओर बढ़ता दिख रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 35 मिनट तक फोन करने के बाद भी तालिबान ने 20 अफगान सैनिकों को मार डाला। तालिबान की इस कार्रवाई के बाद अमेरिका ने भी जोरदार हवाई हमला किया। अफगानिस्तान में 18 साल तक चली जंग के बाद शांति की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। दोनों पक्षों के हमलों के बाद अब अफगानिस्तान में एक बार फिर अस्थिरता का दौर आरंभ हो गया है, शांति डील खटाई में पड़ती दिख रही है। बता दें कि अमेरिका और तालिबान के बीच सीमित युद्धविराम संधि के कुछ घंटों के बाद ही यह हमले किए गए थे। दरअसल लंबे समय के जद्दोजहद के बाद पिछले 18 सालों में अब जाकर अमेरिका अंतत अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने की बात माना। इसी क्रम में अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते के तहत यह तय था कि 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से अमेरिका अपनी सेना वापस बुलाएगा। अमेरिका को समझ आ रहा होगा कि अफगानिस्तान से निकल भागने की उसकी योजना जोखिम-भरी है। मौजूदा परिस्थितियों में हमें नहीं लगता कि समझौते की सफलता की उम्मीद की जा सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

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