सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को
राज्यसभा का सदस्य नामित किए जाने पर चौतरफा सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष के साथ अब सुप्रीम
कोर्ट के कई पूर्व जस्टिसों ने इसकी आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट के ही उनके साथी रहे
जस्टिस कुरियन जोसेफ (रिटायर्ड)
ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने (गोगोई)
ने न्यायपालिका की आजादी और निष्पक्षता के पवित्र सिद्धांत के साथ समझौता
किया है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि राज्यसभा में खुद को मनोनीत किए जाने पर पूर्व चीफ
जस्टिस द्वारा पद स्वीकार किए जाने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता में लोगों का विश्वास
कमजोर हुआ। न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का मूल आधार है। जस्टिस कुरियन ने कहा
कि मैं हैरान हूं, न्यायपालिका की स्वतंत्रता बरकरार रखने को
लेकर दृढ़ता व साहस दिखाने वाले जस्टिस गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता,
निष्पक्षता के सिद्धांतों से कैसे समझौता कर लिया? उनके कदम से न्यायपालिका के प्रति लोगों का भरोसा डिगा है। 2018 में हुई सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कांफ्रेंस में जस्टिस गोगोई के साथ
जस्टिस कुरियन भी थे। रिटायर्ड जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा कि
पिछले कुछ समय से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि जस्टिस गोगोई को क्या सम्मान मिलेगा?
इसलिए मनोनीत होना हैरानी वाली बात नहीं है। हैरानी तो इस बात की है
कि इतनी जल्दी नॉमिनेशन मिल गया। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को फिर से परिभाषित करता है। क्या आखिरी गढ़ गिर गया
है? रिटायर्ड जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने इस
मामले में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है। गोगोई के मनोनीत किए जाने पर एआईएमआईएम
नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि किसी
जज के रिटायर्ड होने के दो साल तक उसे कोई पद नहीं लेना चाहिए। सरकार को बताना चाहिए
कि अचानक क्या हो गया? कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा
कि यह न्यायपालिका पर हमला है। वहीं कांग्रेस के कार्यकाल में रंगनाथ मिश्रा को राज्यसभा
में लाने पर सफाई दी कि अगर हमने गलत किया तो आप भी गलत करेंगे? उल्लेखनीय है कि रंगनाथ मिश्रा को कांग्रेस ने अपने कोटे से राज्यसभा का सांसद
बनाया था। उन्होंने कहा कि गोगोई को रिटायर हुए चार महीने हुए हैं। हमारी नहीं तो अपनों
(जेटली) की सुन लें। कांग्रेस प्रवक्ता
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि न्यायपालिका सरकार और प्रशासन के खिलाफ जनता का आखिरी हथियार
है। आज पूरे देश में उसकी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। वहीं चर्चा यह भी है
कि राज्यसभा में मनोनयन के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी के नाम पर भी विचार हुआ
था। पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने लगातार उठ रहे सवालों पर चुप्पी तोड़ते हुए कहा
कि वह चाहते हैं कि राष्ट्र निर्माण के लिए न्यायपालिका और विधायिका मिलकर काम करे
और दोनों के बीच बेहतर तालमेल हो इसलिए राज्यसभा की सदस्यता को स्वीकार किया। विपक्षी
दलों के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं संभवत बुधवार को दिल्ली जाऊंगा... मुझे शपथ ग्रहण करने दीजिए, फिर विस्तार से मीडिया को
बताऊंगा कि मैंने राज्यसभा की सदस्यता क्यों स्वीकार की। भगवान मुझे शक्ति दे कि मैं
संसद में स्वतंत्र रूप से अपनी बात रख सपूं।
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