Saturday 28 March 2020

कोरोना से पहले भूख हमें मार देगी

अली हसन जिस दुकान में काम करते हैं वो बंद हो गई है और अब उनके पास खाने के पैसे नहीं हैं। भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया है। अत्यावश्यक कामों को छोड़कर किसी चीज के लिए घर से बाहर आने की इजाजत नहीं दी जा रही है। लेकिन रोज कमाने-खाने वालों के लिए अगले 21 दिन तक घर बैठने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। बीबीसी संवाददाता विकास पांडे ने ऐसे ही लोगों की जिंदगियों में झांक कर यह समझने की कोशिश की है कि आने वाले दिन उनके लिए क्या लेकर आने वाले हैं? उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक चौराहा है जिसे लेबर चौक कहते हैं। सामान्य तौर पर इस जगह पर काफी भीड़भाड़ रहती है। दिल्ली से सटे हुए इस इलाके में घर और बिल्डिंग बनाने वाले ठेकेदार मजदूर लेने आते हैं। लेकिन बीते रविवार की सुबह जब मैं इस इलाके में गया तो यहां पसरा हुआ सन्नाटा देखने लायक था। उस दिन वहां चिड़ियों का शोर अरसे बाद सुनने को मिला। इस सवाल के जवाब में कि क्या वह जनता कर्फ्यू का पालन नहीं कर रहे तो एक शख्स रमेश कुमार जो उत्तर प्रदेश के बांदा जिले का रहने वाला है ने बताया कि उन्हें पता था कि रविवार के दिन हमें काम देने के लिए कोई नहीं आएगा लेकिन हमने सोचा कि अपनी किस्मत आजमाने में क्या जाता है? रमेशöमैं हर रोज छह सौ रुपए कमाता हूं और मुझे पांच लोगों का पेट भरना होता है। अगले कुछ दिनों में ही हमारी रसद खत्म हो जाएगी। मुझे कोरोना वायरस के खतरे का पता है लेकिन मैं अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता। इलाहाबाद के उत्तर में रहने वाले किशन लाल रिक्शा चलाने का काम करते हैं। बीते पांच दिनों से उनकी कमाई शून्य के बराबर है। रमेश की तरह भारत में लाखों दिहाड़ी मजदूर ऐसी ही परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर केरल और दिल्ली राज्य ने रमेश कुमार जैसे मजदूरों के खाते में सीधे पैसे डालने की बात कही है। मोदी सरकार ने इस महामारी की वजह से परेशान होने वाले दिहाड़ी मजदूरों को भी मदद करने का वादा किया है। लेकिन इन वादों को अमल में लाने के लिए सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इन परिवारों की जिंदगी उसी नकदी पर टिकी होती है जिसे यह पूरा दिन काम करने के बाद घर लेकर आते हैं। इनमें से कई सारे प्रवासी मजदूर भी हैं। इसका मतलब यह है कि यह किसी दूसरे राज्य के निवासी हैं। यह काम करने कहीं और आए हैं। इनका क्या होगा? मजबूरन कुछ मजदूर परिवार पैदल ही अपने गांवों की तरफ चल पड़े हैं। क्योंकि घर पहुंचने का कोई साधन नहीं है, ट्रेनें और बसें चल नहीं रही हैं।

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