दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले महीने जब अहम फैसले में यह
स्पष्ट किया था कि उपराज्यपाल नजीब जंग ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं, तभी साफ हो गया था कि आम आदमी पार्टी की अरविन्द केजरीवाल
सरकार के ऐसे हर फैसले पर गाज गिर सकती है, जो उसने उपराज्यपाल
की अनुमति के बिना लिए हैं। इसलिए उच्च न्यायालय द्वारा 21 संसदीय
सचिवों की नियुक्तियां रद्द करने के ताजे फैसले पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। इस फैसले
ने बहरहाल आम आदमी पार्टी को संकट में जरूर डाल दिया है। दिल्ली सरकार के
21 संसदीय सचिवों (विधायकों) के सामने अब सदस्यता का खतरा लगातार गहराता जा रहा है। उनकी सदस्यता को लेकर
केंद्रीय चुनाव आयोग ने फैसला रिजर्व रखा हुआ है। अब आयोग को हाई कोर्ट के फैसले की
समीक्षा करनी है। दिल्ली सरकार के इन 21 विधायकों (संसदीय सचिवों) का मामला पिछले डेढ़ साल से विवादों में
फंसा हुआ है। लाभ के पद में फंसे इन विधायकों को बचाने के लिए दिल्ली सरकार हर संभव
उपाय कर रही है। मामला दोहरे लाभ के पद का है। संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी पद पर नहीं रह सकता
है जिस पर रहते हुए उसे वेतन-भत्ते आदि मिलते हों। संविधान के
अनुच्छेद 191(1)(ए) और जनप्रतिनिधित्व कानून
की धारा 9(ए) के तहत भी सांसद-विधायक रहते कोई भी लाभ के किसी अन्य पद पर नहीं रह सकता है। संविधान विशेषज्ञ
सुभाष कश्यप कहते हैं कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति में दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल
नजीब जंग से मंजूरी नहीं ली थी। इसलिए हाई कोर्ट ने नियुक्ति रद्द कर दी। हालांकि अभी
हाई कोर्ट और चुनाव आयोग को यह फैसला करना है कि संसदीय सचिव पद लाभ के दायरे में आता
है या नहीं? कश्यप ने कहा कि संविधान को जितना मैंने समझा है,
उस हिसाब से ये पद लाभ के पद के दायरे में आता है, क्योंकि इस तरह के मामलों में भूतलक्षी प्रभाव से संशोधन को कानूनी मान्यता
नहीं है। मेरी राय में इन 21 विधायकों की सदस्यता को पूरा खतरा
है। असल में पिछले साल मार्च माह में दिल्ली सरकार ने अपने विभागों का काम आसान करने
के लिए अपने 21 विधायकों को इन विभागों से जोड़कर उन्हें संसदीय
सचिव बनाया था। सरकार को लगा कि मामला गड़बड़ा न जाए, इसके लिए
वह विधानसभा में बिल लाई थी और संसदीय सचिवों को लाभ के पद से हटा दिया था। पिछले साल
ही सरकार ने इस बिल को पास करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। इस बाबत राष्ट्रपति
ने चुनाव आयोग से सलाह मांगी, लेकिन इस साल जून माह में सरकार
के बिल को बैरंग लौटा दिया। इस मामले को लेकर आयोग लगातार सुनवाई कर रहा है और पिछले
माह उसने अपना फैसला रिजर्व कर लिया है। आयोग अब विस्तृत रिपोर्ट बनाकर राष्ट्रपति
को भेजेगा। वह सचिवों की सदस्यता के बाबत कोई फैसला नहीं लेगा। उनकी सदस्यता रहेगी
या जाएगी इस पर निर्णय राष्ट्रपति ही लेंगे।
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