Friday 9 September 2016

सरकार की आलोचना न तो देशद्रोह है न ही मानहानि

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि सरकार की आलोचना पर किसी के खिलाफ न तो देशद्रोह और न ही मानहानि का मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि इस संबंध में संविधान पीठ पहले ही फैसला दे चुका है। कोर्ट ने देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को चुनौती देने वाली एक याचिका के सन्दर्भ में यह बात कही, हालांकि उसने याचिका सुनने से इंकार कर दिया। इस विषय पर उसे देशद्रोह कानून की दोबारा व्याख्या करने की कोई जरूरत नहीं है। केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ 1962 में सब कुछ पहले ही स्पष्ट कर चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने मातहत अदालतों, जजों और पुलिस अधिकारियों को याद दिलाया है कि राजद्रोह के मामले में संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले को न भूलें। खंडपीठ ने यह टिप्पणी कॉमन कॉज नामक एक गैर सरकारी संगठन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को की। पिछले कुछ वर्षों में देशद्रोह के मुकदमों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। आलम यह है कि परमाणु संयंत्र का विरोध करना, फेसबुक पोस्ट लाइक करने, प्रतिद्वंद्वी क्रिकेट टीम का हौसला अफजाई करने, किसी और देश की तारीफ करने, कार्टून बनाना या सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान होते वक्त खड़ा न होने पर के लिए देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। अनेक समाजसेवियों, लेखकों और बुद्धिजीवियों के खिलाफ यह मामला दर्ज कर दिया गया क्योंकि इन्होंने सरकार की राय से अलग विचार व्यक्त किया था। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में ही देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किए गए थे और इस सिलसिले में 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। कटु सत्य तो यह भी है कि सरकार अब तक केवल एक व्यक्ति को ही दोषी सिद्ध करा सकी है। केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में अपने फैसले में संवैधानिक खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा () राजद्रोह को लेकर स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक को यह अधिकार है कि वह सरकार के बारे में मनचाहे तरीके से आलोचना या टिप्पणी कर सकता है। कोई भी व्यक्ति जब तक किसी विधिसम्मत सरकार के खिलाफ लोगों को हिंसा के लिए नहीं भड़काता या इरादतन लोक अव्यवस्था नहीं फैलाता तब तक राजद्रोह का दोषी नहीं बनता। लेकिन हाल में जो केस दर्ज हुए उसमें कहीं न कहीं से भी हिंसा या सामाजिक उथल-पुथल होने के कोई संकेत नहीं मिले। इसके पीछे कभी-कभी मकसद अपने विरोधियों को सबक सिखाना या किसी जनांदोलन को कुचलने की भावना नजर आई। विपक्ष या समाज का कोई तबका सरकार की आलोचना करता है तो सरकार को उसकी बात सुननी चाहिए और यथासंभव अपने विचारों और नीतियों में जगह देनी चाहिए। उन्हें कुचलना कुछ लोगों की नजरों में तानाशाही है।

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