Tuesday 13 September 2016

5 साल में पैर गंवाया, 21 साल में गोल्ड मैडल लाया

भारत के 100 से ज्यादा खिलाड़ी पिछले महीने रियो ओलंपिक्स में एक गोल्ड मैडल तक नहीं ला सके, एक सिल्वर और एक ब्रांज मैडल से ही देश को संतोष करना पड़ा। वहीं इसके उलट एक विकलांग एथलीट ने रियो में ही जारी पैरा ओलंपिक्स में भारत के लिए गोल्ड मैडल जीत देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। महज पांच साल की उम्र में स्कूल जाते वक्त बस हादसे में दांया पैर गंवाने वाले तमिलनाडु के सेलम जिले के पेरियावादा गामपट्टी गांव के रहने वाले मरियप्पन थंगा वेलु ने 21 वर्ष की उम्र में रियो पैराओलंपिक में गोल्ड मैडल जीतकर इतिहास रच दिया। जज्बे, संघर्ष और हौसले जैसे शब्दों को नया आयाम देते हुए इस भारतीय ने टी-42 हाई जम्प स्पर्द्धा में 1.89 मीटर की कूद लगाकर पीला तमगा जीता। वर्ल्ड चैंपियन अमेरिका के सैम ग्रीव 1.86 मीटर के साथ दूसरे स्थान पर रहे। इसी इवेंट में भारत के ही वरुण सिंह ने ब्रांज मैडल जीता। यह पहली बार है कि एक ही इवेंट में दो भारतीय खिलाड़ियों ने मैडल जीता। टी-42 क्लासिफिकेशन शरीर के निचले हिस्से में अक्षमता, पैर की लंबाई या मूवमेंट में अंतर से संबंधित है। इसी कैटेगरी में भारत के शरद कुमार छठे स्थान पर रहे। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि भारत को गोल्ड और सिल्वर, दोनों मिल जाएंगे लेकिन अमेरिकी खिलाड़ी व विश्व चैंपियन ने 1.86 मीटर की कूद लगाकर दूसरे नम्बर की पोजीशन हासिल कर ली। इसी के साथ तमिलनाडु के मरियप्पन पैरालंपिक खेलों में गोल्ड जीतने वाले तीसरे भारतीय बन गए। इस तरह ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों के इतिहास में यह पहला मौका है जब दो भारतीय खिलाड़ी एक साथ पोडियम पर खड़े हुए। इससे पहले 1972 म्यूनिख पैरालंपिक में तैराकी में मुरलीकांत पाटेकर और 2004 एथेंस पैरालंपिक में देवेंद्र झझरिया ने गोल्ड मैडल जीते थे। तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की है कि वह मरियप्पन को दो करोड़ रुपए का पुरस्कार देगी और खेल मंत्रालय ने मरियप्पन को 75 लाख रुपए देने की घोषणा की है। वहीं खेल मंत्रालय ने घोषणा की है कि ब्रांज मैडल विजेता ग्रेटर नोएडा के वरुण भाटी को 30 लाख रुपए देगी। बता दें कि दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए पैरालंपिक गेम्स का आयोजन ओलंपिक्स के तुरन्त बाद उसी शहर में होता है। रियो में हो रहे इन गेम्स में 161 देशों के करीब 4300 पैरा एथलीट्स हिस्सा ले रहे हैं। मन में कुछ करने का जज्बा हो तो पैसा और शारीरिक अक्षमता भी रास्ते में रुकावट नहीं डाल सकती है। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा निवासी वरुण सिंह भाटी ने कांस्य पदक जीतकर यह साबित कर दिया। वरुण जब छह महीने का था तब पोलियो का पता चला। घर वालों ने काफी इलाज कराया लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। पर जज्बा हो, हिम्मत व लगन हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। हम इन दोनों बहादुरों को सलाम करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment