Tuesday, 20 September 2016

लीक से हटकर बढ़िया फिल्म पिंक

शनिवार शाम को मैंने पिंक फिल्म देखी। सन् 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था जिसने सारी दुनिया को झिझोड़ कर रख दिया था। इसके बाद महिलाओं को लेकर कानून बदला। लेकिन क्या समाज की सोच बदली? क्या लड़कियों के बारे में दोहरे मानदंड बदले? इन्हीं मुद्दों को बहुत खूबसूरती से Eिपक फिल्म में दिखाया गया है। विक्की डोनर, मद्रास कैफे और पीकू जैसी फिल्में बनाने वाले शुजीत कुमार की गिनती बॉलीवुड के टॉप मेकर्स में होने लगी है। शुजीत कुमार इस फिल्म के प्रोड्यूसर हैं। फिल्म में पुरुष प्रधान समाज और महिलाओं के प्रति टोटली अलग किस्म की सोच रखने वालों को इस फिल्म से एक असरदार मैसेज देने की एक जबरदस्त पहल की है। फिल्म में कई सवाल ऐसे उठाए गए हैं जो समाज में पुरुष और महिलाओं को अलग-अलग पैमाने पर आंकते हैं। जैसे कि लड़कियों के पहनावे, उनका हंस-हंस कर बातें करना, शराब पीना आदि, क्या ये संकेत देते हैं कि वे सहज रूप से उपलब्ध है? क्या लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग सामाजिक नियम हैं? आखिर पुरुष यह क्यों नहीं समझते कि हर महिला या लड़की को `नो' कहने का अधिकार है और उस `नो' का सम्मान किया जाना चाहिए। चाहे वह सेक्स वर्पर हो, पत्नी हो या सामान्य कामकाजी लड़की। Eिपक इस बात को भी बड़ी खूबसूरती से रेखांकित करती है कि कैसे उत्तर-पूर्व की लड़कियों को भारत के दूसरे हिस्सों में सांस्कृतिक रूप से थोड़ा अलग समझा जाता है। Eिपक में हम कुछ झलक दामिनी की पा सकते हैं, लेकिन कुछ ही। इसका मुख्य जोर महानगरों में काम कर रही लड़कियों की सामाजिक हालात व हालत को दिखाना है और इसका मुख्य आकर्षण अदालती ड्रामा भी है, जहां अमिताभ बच्चन ने वकील दीपक सहगल अपने जीवन की सबसे श्रेष्ठ भूमिकाओं में से एक निभाई है। उनके सवालों और नसीहतों से सारे हॉल में सन्नाटा छा जाता है और फिल्म के बाद कई प्रश्नों पर सोचने को मजबूर कर देता है। फिल्म तीन लड़कियों मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नु), फलक (कीर्ति कुल्हारी) और एंड्रिया (एंड्रिया) पर आधारित है जो दुर्भाग्य से एक कानूनी पचड़े में फंस जाती है। यह निर्देशकीय कौशल से ही पता चलता है कि आखिर पार्टी के बाद ऐसा क्या हुआ था जो अदालत तक मामला पहुंच गया। अमिताभ शुरू में बेहद धीमी आवाज में बोलते हैं। एक थके हुए बूढ़े की तरह। धीरे-धीरे फिल्म में उनकी आवाज का वही पुराना रूप उभरता है। पीयुष मिश्रा ने भी एक ऐसे वकील के किरदार को जीवंत कर दिया है जो अपने सवालों से जिरह के दौरान औरतों के चरित्र पर कई सवाल उछालता है। अभिनय में तापसी पन्नु ने भी प्रभावी भूमिका निभाई है। कोर्ट रूम में बहस के दौरान तापसी का अंदाज, उनकी डॉयलाग डिलीवरी, फेस एक्सप्रेशन के साथ-साथ तापसी का चेहरा देखने लायक है। फलक अली के किरदार में कीर्ति ने कमाल की एक्टिंग की है। एंड्रिया ने अपने किरदार में अच्छी भूमिका निभाई है। दीपक के किरदार में बॉलीवुड के महानायक लेजेंड अमिताभ बच्चन ने इस बार भी यह साबित कर दिया है कि उन्हें लेजेंड क्यों कहा जाता है। मसालों, एक्शन, थ्रिलर, हॉट फिल्मों की भीड़ से दूर हटकर एक अच्छी फिल्म अगर आप देखना चाहते हैं तो पिंक जाकर देखिए। विश्वास कीजिए कि आप फिल्म देखने के बाद कहेंगे कि इसे तो देखना जरूरी था। और एक सुझाव। मुझे लगता है कि अगर कोई फिल्म सामाजिक मैसेज देती है तो वह पिंक है, इसका टैक्स माफ होना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखें और समाज की सोच में परिवर्तन आए।

-अनिल नरेन्द्र

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