Sunday, 18 September 2016

शारीरिक कमी के बावजूद देवेंद्र की शानदार थ्रो

ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हाल ही में खत्म हुए ओलंपिक खेलों में बेशक इस बार भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा पर उसी शहर में चल रहे पैरालंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने ओलंपिक की निराशा काफी हद तक भुला दी। रियो पैरालंपिक में भारत को दूसरा गोल्ड मैडल देवेंद्र झाझरिया ने भाला (जेवलिन थ्रो) फेंक खेल में जीता है। देवेंद्र का भाला 12 साल बाद फिर पैरालंपिक गेम पर सोने का मैडल तो जीता ही साथ-साथ एक नया विश्व रिकार्ड भी बनाया। देवेंद्र झाझरिया पैरालंपिक गेम में दोहरा स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं। देवेंद्र ने इससे पहले एंथेस पैरालंपिक में भी स्वर्ण पदक जीता था। 36 वर्षीय देवेंद्र ने 2004 एंथेस गेम में 62.55 मीटर भाला फेंक कर विश्व रिकार्ड बनाया था। 12 साल बाद उन्होंने फिर इस एफ-46 स्पर्द्धा में अपने ही विश्व रिकार्ड को सुधारते हुए 63.97 मीटर की दूरी नापी। देवेंद्र झाझरिया के जीवन के संघर्ष की दास्तां किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। राजस्थान के चुरू जिले में आठ वर्ष की उम्र में पेड़ पर चढ़ते समय उन्हें 11 हजार वोल्ट का बिजली करंट लगा था। उस वक्त वह इतनी बुरी तरह से झुलस गए थे कि एक दिन भी जिन्दा रह पाएंगे या नहीं, यह तय नहीं था। इस दुर्घटना में उनका बांया हाथ खराब हो गया था जिसे काटना पड़ा। डाक्टरों ने कहा था कि अब वह ज्यादा मेहनत का काम नहीं कर सकेंगे, लेकिन देवेंद्र ने सभी को गलत साबित किया। जुझारू देवेंद्र और उनके परिजनों ने हार नहीं मानी और फिर शुरू हुई उनकी सफलता की तरफ बढ़ने वाली कहानी। देवेंद्र जब 10वीं कक्षा में थे तब वह जेवलिन थ्रो से जुड़े। वह सामान्य खिलाड़ियों के साथ ही प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहे और सफलता हासिल करते रहे। द्रोणाचार्य अवार्डी आरडी सिंह ने 1997 में देवेंद्र की प्रतिभा को पहचाना और उनका प्रशिक्षण शुरू किया। आरडी सिंह ने ही भारत में पैरा स्पोर्ट्स की शुरुआत की थी। जीत के बाद देवेंद्र ने बताया कि छह साल की बेटी जिया से किया वादा उनकी जीत की वजह बनी। जिया को मैंने कहा था कि अगर वह अपनी एलकेजी परीक्षा में टॉप आएगी तो मैं पैरालंपिक में गोल्ड मैडल जीतकर लाऊंगा। पिछले दिनों जिया ने फोन पर पिता को बताया कि उसने टॉप कर लिया है। अब मेरी बारी है। जब मैं मैदान पर उतरा तो उसकी बातें कानों में गूंज रही थीं। पैरालंपिक खेल मुकाबलों में बहुतों को रुचि नहीं है और शायद जानकारी भी न हो। जबकि ओलंपिक के समस्तर यह प्रतियोगिता शारीरिक-मानसिक तौर पर किसी कमी के शिकार खिलाड़ी इस पैरालंपिक में भाग ले सकते हैं। ऐसे में किसी शारीरिक या मानसिक कमी का सामना करने के बावजूद पैरालंपिक में हमारे देश के नाम शानदार जीत दर्ज की है तो यह भारत के लिए अत्यंत गर्व की बात है। देवेंद्र व उनके कोच को हमारी बधाई।
-अनिल नरेन्द्र


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