Wednesday 7 September 2016

नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा से चीन तिलमिलाया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर दांव विरोधियों को चित करने वाला रहता है। चीन के हांगझू में चार-पांच सितम्बर को आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में शिरकत करने से ऐन पहले वियतनाम का दौरा भी उनकी कूटनीतिक चाल है। विवादित दक्षिण चीन सागर पर चीन हमेशा दावा करता आया है और वियतनाम जैसे देश उसके दावे को नकारते रहे हैं। चीन से पहले वियतनाम पहुंचकर मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है। भारत वियतनाम का 13वां सबसे बड़ा निर्यातक देश है। वियतनाम की यात्रा पर प्रधानमंत्री ने जता दिया है कि दक्षिण पूर्व एशिया में भारत अपनी मजबूत पहलकदमी जारी रखेगा। इस मौके पर भारत ने वियतनाम के साथ रक्षा, आईटी, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य आदि क्षेत्र में 12 समझौते किए। भारत ने रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए वियतनाम को 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर कर्ज देने की घोषणा भी की। 70 के दशक को याद करें तो हमारे देश की वामपंथी फिजा में मेरा नाम, तेरा नाम, वियतनाम-वियतनाम के नारे गूंजते थे। तब वियतनाम पर अमेरिका ने हमला कर दिया था और वहां आजादी की लड़ाई चल रही थी। सारी दुनिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ माहौल था। लेकिन पिछली शताब्दी के आखिरी दौर में ही सोवियत संघ के ढहने और चीन के वियतनाम पर हमला कर देने से हालात एकदम बदल गए। वियतनाम अब चीन की विस्तारवादी नीतियों के बर अक्स एक अहम प्रतीक बन गया है। इसलिए भारत के नए करार के भू-राजनीतिक निहितार्थ भी इसी के इर्द-गिर्द सिमटे हुए हैं। सबसे अहम सवाल दक्षिण चीन सागर का है, जो एक नए टकराव का बिन्दु बनता जा रहा है। मगर चीन इसके तकरीबन 90 फीसद हिस्से पर अपना दावा जताता है। यही हिन्द महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है। चीन के इस दावे को वियतनाम, फिलीपींस जैसे तमाम छोटे देश चुनौती दे रहे हैं, जिनके तट पर यह सागर लहराता है। फिलीपींस की ही अपील पर अंतर्राष्ट्रीय पंचाट ने चीन के दावे को अनुचित ठहराया है जिसे चीन मानने से इंकार कर रहा है। दरअसल दक्षिण चीन सागर में अरब देशों से भी ज्यादा तेल और खनिजों का भंडार बताया जाता है। इसी वजह से चीन की इस पर निगाह है। अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देश भी इस सागर पर चीन के दबदबे से खुश नहीं हो सकते। ऐसे में दक्षिण चीन सागर में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए भारत ने वियतनाम को सामरिक रूप से मजबूत करने की जो नीति अपनाई है वह सराहनीय है। जिस तरह पीओके को लेकर चीन पाकिस्तान का साथ देता रहता है, भारत भी उसी तर्ज पर वियतनाम से रिश्ते मजबूत कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वियतनाम होकर चीन पहुंचना चीन को रास नहीं आया है। तिलमिलाए चीन ने मोदी के वियतनाम दौरे को दोनों द्वारा संयुक्त रूप से दबाव बनाने की कार्रवाई करार दिया है। उसने कहा है कि भारत-वियतनाम उससे सौदेबाजी कर रहे हैं। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में लिखा है कि दक्षिण चीन सागर विवाद की वजह से पिछले कुछ समय से बीजिंग और हनोई के रिश्ते इतने अच्छे नहीं रह गए हैं। इसके साथ ही वियतनाम के लोग बीजिंग को लेकर नकारात्मक सोचने लगे हैं। इन परिस्थितियों में मोदी की वियतनाम यात्रा बिना संदेह भारत द्वारा कई रणनीतियों का हिस्सा है। ऐसा  लगता है कि नई दिल्ली और हनोई संयुक्त रूप से बीजिंग पर दबाव बना सकते हैं। पिछले 15 सालों में यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री वियतनाम का दौरा कर रहा है जबकि इतने समय में चीन के तीन पूर्व राष्ट्रपति के साथ वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली के कियांग वियतनाम के दौरे करते रहे हैं।

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