Thursday, 15 September 2016

दुष्कर्म के 30 पतिशत मामले `लिव-इन रिलेशनशिप' से जुड़े हैं

राजधानी दिल्ली में हर महीने औसतन 50 से ज्यादा दुष्कर्म के केस दर्ज हो रहे हैं और परेशान दिल्ली पुलिस ने इस मामलों की असलियत सामने लाने और इन पर अंकुश लगाने के लिए एक खास रिपोर्ट तैयार की है। पस्तुत है इस रिपोर्ट के महत्वपूर्ण आंकड़े। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के मामले दर्ज कराने की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इस साल देश की राजधानी दिल्ली में करीब 30 फीसदी मामले `लिव इन रिलेशनशिप' से ही जुड़े हैं। दिल्ली पुलिस की इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में लिव इन में रहने वालों के खिलाफ दुष्कर्म का पतिशत करीब 17 फीसदी था, लेकिन साल 2015 में यह बढ़कर 25.5 पतिशत तक पहुंच गया। इस साल तो अगस्त तक ही यह आंकड़ा 30.21 फीसदी तक पहुंच गया है। कुछ मामलों में कई साल तक साथ रहने के बाद महिला ने अपने साथी पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करा दिया। निहाल विहार में 5 अक्तूबर 2013 को एक युवती ने फेसबुक पर दोस्ती के बाद युवक के साथ लिव इन में रहने के बाद शादी पर सहमति नहीं बनने पर दुष्कर्म और धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा दिया। मगर कोर्ट में युवती बयान से पलट गई और कहा कि एक परिचित के कहने पर मैंने आरोप लगाए थे। मालवीय नगर में 13 मार्च 2013 को मैनेजमेंट की एक छात्रा ने अपने साथी पर रेप का केस दर्ज कराया। हालांकि बाद में युवक के परिजनों ने रिश्ते को स्वीकार करने के बाद मामला वापस ले लिया। पटना बिहार में दुष्कर्म के मामलो में 50 पतिशत मामले लिव इन व शादी से इंकार के हैं। सिटी एमपी चंदन कुशवाहा ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में लिव इन के मामले ज्यादा हैं। ग्रामीण क्षेत्र में अब भी ऐसे मामले कम देखे जाते हैं। ज्यादा मामलों में अपने ही आरोपी होते हैं। 40 फीसदी आरोपी दोस्त या पारिवारिक मित्र होते हैं। जबकि अन्य जानकार 27 फीसदी, पड़ोसी 15 फीसदी रिश्तेदार 11 फीसदी, अपरिचित 4 और सहकर्मी 3 फीसदी होते हैं। 23 फीसदी विवाहित महिलाओं के साथ होता है दुष्कर्म। 77 पतिशत अविवाहित महिलाओं द्वारा। 35 फीसदी उच्च वर्ग से संबंधित होती हैं, 38 पतिशत मध्य वर्ग की महिलाएं और 62 फीसदी निम्न वर्ग की महिलाएं। 75 फीसदी मामलों में सुबूतों के अभाव के कारण आरोपी छूट जाते हैं। सिर्फ 17 फीसदी मामलों में ही आरोप साबित हो पाए हैं। 28 फीसदी मामलो में आरोपी साबित करने की औसत है देश की। फोरेंसिक सुबूत का अभाव है। देरी के चलते सुबूत नष्ट हो जाते हैं। शिकायतकर्ता का बयान से पलटना या फिर कोर्ट में राजीनामा होने से केस खत्म हो जाते हैं। पर चिंता का विषय समाज में बढ़ते लिव-इन रिलेशनशिप की समस्या हल होनी चाहिए।

öअनिल नरेन्द्र

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