Wednesday 28 September 2016

सिंधु जल संधि जारी रखी जाए या तोड़ी जाए?

उड़ी अटैक के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के उपायों में से एक 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि जारी रखने के सवाल पर भी चर्चा हो रही है। इस संधि के फायदे-नुकसान पर विचार-विमर्श चल रहा है। आपको बता दें कि सिंधु जल समझौते के बारे में अकसर यह कहा जाता है कि यह एकपक्षीय है और इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। पड़ोसी देश पाकिस्तान से हुआ सिंधु जल समझौता 56 साल पुराना है। दोनों देशों के संबंधों में खटास आने के चलते पूर्व में भी कई बार इस अंतर्राष्ट्रीय जल संधि की समीक्षा की बात की गई है। इस बार मामला ज्यादा गंभीर है। इसलिए भारत सरकार ने अपनी समीक्षा बैठक में यह तय किया है कि वह अपने हिस्से के पानी का पूर्ण दोहन करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इतना भी कर दिया जाए तो पाकिस्तान की कमर टूट जाएगी। जो संधि हुई है उसके मुताबिक जितना पानी हमें लेना है वह भी हम नहीं ले पा रहे हैं। हम अपना हिस्सा पाकिस्तान को देते रहे हैं क्योंकि उस पानी के इस्तेमाल के लिए हम जम्मू-कश्मीर में बांध और जल विद्युत परियोजनाएं नहरें आदि नहीं बना सके। दरअसल आतंकी गतिविधियों के बढ़ने से हम ऐसा नहीं कर पाए। यदि हम अपने हिस्से के पानी को पाकिस्तान जाने से रोक दें तो पड़ोसी मुल्क में हाहाकार मचना तय है। पाकिस्तान के एक निजी चैनल पर एक विशेषज्ञ ने यह स्वीकार किया है कि अगर भारत सिंधु जल समझौते को रद्द करता है तो वहां परमाणु बम गिराने से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और आम जनजीवन में सिंधु जल समझौते की अहमियत को देखते हुए समझा जा सकता है कि उक्त विशेषज्ञ ने यह बात कही क्यों। समझौते से पाकिस्तान को जो पानी मिलता है, वह न सिर्प वहां 90 फीसद कृषि उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि पंजाब और सिंधु का पूरा इलाका पेयजल के लिए भी इसी पानी का इस्तेमाल करता है। सिंधु जल समझौते पर भारत की तरफ से की गई थोड़ी-सी कार्रवाई भी वहां जल संकट पैदा कर सकती है। वर्ष 2008 में भारत ने  जब बगलिहार बांध बनाने की शुरुआत की थी तब पाकिस्तान ने आरोप लगाया था कि उसके पंजाब प्रांत में गेहूं उत्पादन कम होने लगा है। भारत की किशन गंगा परियोजना के खिलाफ भी पाकिस्तान विश्व बैंक में मामला दायर कर चुका है। बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी। विश्व बैंक की मध्यस्ता के बाद पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। संधि के तहत छह नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं। तीन पूर्वी नदियों (रावी, व्यास और सतलुज) के पानी पर भारत को पूरा हक दिया गया। बाकी तीन पश्चिमी नदियों (झेलम, चेनाब व सिंधु) के पानी के बहाव को बिना बाधा पाकिस्तान को देना था। भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन संधि में तय मानकों के मुताबिक। इनका करीब 20 फीसदी हिस्सा भारत के लिए है। संधि पर अमल के लिए सिंधु आयोग बना, जिसमें दोनों देशों के कमिश्नर हैं। वे हर छह महीने में मिलते हैं और विवाद निपटाते हैं। माना जाता है कि कश्मीर के लिए पाकिस्तान की कोशिशें इसी बात से जुड़ी हैं कि वहां की नदियों के पानी पर कंट्रोल कर सके। अगर पाक को यह संधि खत्म होती दिखेगी तो वह कश्मीर में और विध्वंसक गतिविधियां तेज कर सकता है। पानी की कमी से पाकिस्तान आर्थिक तौर पर तबाह हो जाएगा। भारत-पाक के बीच तीन जंगें होने और लगातार तनाव के बावजूद संधि कायम है। इसे सहयोग के ग्लोबल मॉडल के तौर पर पेश किया जाता रहा है। दुनियाभर में भारत की छवि को पानी बंद करने से नुकसान हो सकता है। पानी को रोकने से पहले इन नदियों के किनारे बसे शहरों को डूबने से बचने का भी इंतजाम करना होगा। जम्मू-कश्मीर समेत पंजाब के बड़े शहर इसके दायरे में आ जाएंगे। भारत के पास फिलहाल कोई स्टोरेज क्षमता नहीं है। अगर भारत ने पाकिस्तान का पानी बंद किया तो चीन भी भारत के साथ वही कर सकता है। सतलुज और सिंधु का उदय चीन में है। चीन ब्रह्मपुत्र के साथ भी वही कर सकता है। वैसे संधि खत्म करने की  दलीलों में भी दम है। पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ दबाव बनाने के लिए इस संधि का इस्तेमाल करता रहा है। वह बगलिहार और किशन गंगा के मामले में इंटरनेशनल फोरम में जा चुका है। वह जम्मू-कश्मीर में विकास के प्रोजेक्ट को रोकने के लिए इस संधि का इस्तेमाल करता है। वह चाहता है कि विकास न होने से वहां असंतोष भड़के। जम्मू-कश्मीर में भी संधि को खत्म करने की मांग होती रही है। आखिर उपाय क्या है? एक उपाय यह भी बताया जा रहा है कि भारत पश्चिमी नदियों के पानी को अपने हक के मुताबिक पूरी तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दे। संधि के तहत भारत पाक को सूचना देकर काफी पानी स्टोर कर सकता है और बिजली बना सकता है। इससे पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया जा सकता है। पाकिस्तान का एक सत्य यह भी है कि सरकार और सेना में अहम भूमिका निभाने वाले पाकिस्तान का पंजाब प्रांत सिंधु के सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल करता है, जबकि बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत जैसे पिछड़े इलाकों को नाममात्र ही पानी मिलता है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment