Friday, 30 September 2016

अभी तो यह शुरुआत है

पाकिस्तान ने उड़ी में हमारे सोते हुए सैनिकों पर जो आतंकी हमला किया था, भारत ने उसका कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्रतिशोध लेने की ठान रखी थी। कूटनीतिक प्रतिशोध के तहत भारत ने पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग करने का प्रयास किया और उसमें सफलता भी मिली है। आतंकी हमले को लेकर उसे किसी देश का साथ नहीं मिला और सार्प देशों की मेजबानी भी गंवानी पड़ रही है। आर्थिक घेरेबंदी में उसे भारत से मिला एमएफएन का दर्जा भी गंवाना पड़ रहा है जबकि सिंधु जल समझौते को लेकर भारत उसे अब तक मिलने वाले पानी में कटौती करने जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि जिस संधि के बारे में 1960 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यह कहा था कि `हमने कीमत चुका कर शांति खरीदी है' उसको रद्द किए बिना ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपने हिस्से का पूरा पानी लेने का ऐलान करके पाकिस्तान के होश उड़ा दिए। रही सैन्य कार्रवाई की तो आज भारत ने अपना बदला ले लिया। भारतीय सेना की तरफ से सैन्य अभियान के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह और भारत सरकार की ओर से सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने भारतीय सैन्य कमांडों द्वारा नियंत्रण रेखा के पीछे दो किलोमीटर अंदर हेलीकाप्टर से जाकर सात आतंकी कैंपों को नष्ट किया साथ ही 38 आतंकियों को मार गिराया तथा पाक सेना के जो जवान आतंकियों की सुरक्षा में तैनात थे उन्हें भी मार डाला। सैन्य कमांडो अपना लक्ष्य पूरा करके सकुशल वापस आ गए, किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई। उड़ी अटैक के बाद भी कश्मीर में सेना ने घुसपैठ की दो बड़ी कोशिशों को नाकाम किया और बांदीपोरा में एक आतंकी को मार गिराने का दावा किया है। हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी के आठ जुलाई को मारे जाने के बाद घाटी में फैली हिंसा में 82 लोग मारे गए। जम्मू-कश्मीर में उड़ी सेना के आधार शिविर पर हुआ हमला 26 वर्षों का सबसे बड़ा हमला है। इसमें 18 जवान शहीद हुए। दक्षिण एशिया में आतंकी घटनाओं पर निगाह रखने वाले साउथ एशिया टेरोरिज्म पोर्टल (एसएटीपी) के मुताबिक 2016 में 11 सितम्बर तक  जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में 46 जवान शहीद हुए थे। अगर रविवार को उड़ी हमले की संख्या जोड़ ली जाए तो 18 सितम्बर तक शहीद जवानों की संख्या 64 हो जाती है। 2010 में इस सूबे में 69 जवान शहीद हुए थे यानि 2010 के बाद इस साल सबसे ज्यादा जवान शहीद हुए। गृह मंत्रालय की 2015-16 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से दो दशकों के समय से ज्यादा समय (1990 से) जारी आतंकवाद में 2015 तक 4961 जवान शहीद हो चुके हैं। इस दौरान 13921 नागरिकों की जान गई। हाल ही में केंद्र ने संसद में माना था कि इस साल सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ में इजाफा हुआ है। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर में कई जगह सुरक्षा बलों पर हमले बढ़े हैं। हाल ही एक रिपोर्ट के मुताबिक सीमा पार 200 आतंकी घुसपैठ की फिराक में हैं। 30 जून 2016 तक कश्मीर में घुसपैठ के 90 प्रयास हुए जबकि 30 जून 2015 तक सिर्प 29 प्रयास हुए थे। राज्यसभा में हाल में एक सवाल के जवाब में हंसराज अहीर ने यह सूचना दी थी। एक तरफ तो हमले बढ़ रहे हैं और दूसरी तरफ भारत सरकार जवाबी कार्रवाई क्या करनी है इस पर अभी भी विचार-विमर्श कर रही है। सबसे पहले जवाबी सैन्य कार्रवाई पर विचार हुआ। पर जल्द ही इस कदम से सरकार पीछे हट गई। हम समझते हैं कि जवाबी सैन्य कार्रवाई से मोदी सरकार इसलिए पीछे हटी उसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला कि पाकिस्तान बौखला कर परमाणु हमला कर सकता है जो सभी के लिए अत्यंत विनाशकारी साबित होता। दूसरा कारण हमें लगता है कि हमारी सेना में इतना कॉन्फिडेंस नहीं कि वह पाकिस्तान पर हमला कर सके। इकोनॉमिक टाइम्स ने सशस्त्र बलों और डिफेंस रिसर्च से जुड़े कई एक्सपर्ट और सेना के कई मौजूदा और रिटायर्ड अधिकारियों से इस बारे में बात की। इनमें अधिकतर का कहना था कि सेना में लड़ाई की बेसिक आइटम्स की कमी है। उदाहरण के तौर पर असाल्ट राइफल, कार्बाइन और आर्टिलरी गन जैसे बेसिक हथियारों की कमी है। इन्हें खरीदने की प्रक्रिया में काफी देरी हो रही है। पाकिस्तान आर्मी के पास बेहतर हथियार हैं। इसके अलावा सशस्त्र बलों के मनोबल में भी कमी है। इन परिस्थितियों को देखते हुए मोदी सरकार को जल्दी साफ हो गया कि पाकिस्तान को सीधा युद्ध का न्यौता देना समझदारी नहीं होगी। फिर सुझाव आया कि अगर भारत सिंधु जल संधि खत्म कर दे तो पाकिस्तान में त्राहि-त्राहि के हालात पैदा हो जाएंगे। वैसी सूरत में भारत उस पर मनचाहा दबाव डाल सकेगा। सिंधु जल समझौते की समीक्षा के भारत के विचार-विमर्श की खबर आने पर मंगलवार को पाकिस्तान पीएम के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा कि अगर भारत ने सिंधु जल समझौता रद्द किया तो हम इंटरनेशनल कोर्ट जाएंगे। समझौता रद्द होने को पाकिस्तान युद्ध छेड़ने की कार्रवाई के तौर पर लेगा। सरताज ने पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली को बताया कि अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत भारत समझौते से एकतरफा नहीं हट सकता। कारगिल और सियाचिन युद्ध के दौरान भी इसे रद्द नहीं किया गया। भारत सरकार ने बहरहाल सिंधु जल संधि की समीक्षा के संकेत दिए हैं। दो बातों से यह संकेत मिलते हैंöएक, प्रधानमंत्री का यह कहना कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। दूसरा, संधि की समीक्षा के लिए एक अंतरमंत्रालयी कार्यबल के गठन का प्रधानमंत्री का फैसला। कार्यबल इस बात की पड़ताल करेगा कि यह समझौता अब कारगर है या नहीं? अब इस विकल्प पर विचार हो रहा है कि भारत पाकिस्तान को दिए गए व्यापार के लिहाज से तरजीह एमएफएन के दर्जे को खत्म करे या नहीं? भारत ने 1996 में अपनी तरफ से पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा दिया था। यह दर्जा मिलने के बाद पाकिस्तान इस बात को लेकर आश्वस्त रहता है कि भारत उसे व्यापार में कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इसी दर्जे की वजह से पाक को भारत से अधिक आयात कोटा व कम टेड टैरिफ मिलता है। बता दें कि भारत ने यह एकतरफा दर्जा दिया है। कई बार बात करने के बावजूद पाकिस्तान ने अब तक भारत को ऐसा दर्जा नहीं दिया। हम पाकिस्तान से युद्ध नहीं चाहते। हमारी लड़ाई तो आतंकवाद से है और वह भी हमारी सरजमीं से छेड़ी गई है। हमारे जवान रोज मर रहे हैं और पूरा देश, जवानों सहित पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहते हैं। पाकिस्तान को एक बात समझ लेना होगा कि अब या तो वह सुधर जाए अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे क्योंकि भारत लोकतांत्रिक देश है। यहां की सरकारें जनभावनाओं के अनुसार कार्रवाई करती हैं। यदि पाक नहीं सुधरा तो फिर कार्रवाई होगी। उसे यह समझ लेना चाहिए कि यह मात्र शुरुआत है कि उसके साथ कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य व्यवहार किस तरह करना है।

-अनिल नरेन्द्र

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