Sunday, 31 January 2021
दीप सिद्धू की सफाई में किसान नेताओं को धमकी
लाल किले पर निशान साहिब लगाए जाने के लिए लोगों को भड़काने के दोषी ठहराए जा रहे पंजाबी सिंगर व एक्टर दीप सिद्धू ने खुद को बेगुनाह बताया है। उन्होंने बुधवार देर रात अपने फेसबुक पेज पर लाइव आकर किसान नेताओं को धमकी दी। सिद्धू ने कहा कि तुमने मुझे गद्दार का सर्टिफिकेट दिया है। अगर मैंने तुम्हारी परतें खोलनी शुरू कर दीं तो तुम्हें दिल्ली से भागने का रास्ता नहीं मिलेगा। सिद्धू ने कहा कि मुझे इसलिए लाइव आना पड़ा क्योंकि मेरे खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। मेरे खिलाफ बहुत कुछ झूठ फैलाया जा रहा है। मैं इतने दिनों से यह सब पी रहा था, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि हमारे साझा संघर्ष को कोई नुकसान पहुंचे, लेकिन आप जिस पड़ाव पर आ गए हैं, वहां कुछ बातें करना बहुत जरूरी हो गया है। पहली बात तो यह है कि 25 तारीख की रात को नौजवानों ने मंच पर रोष जताया था, क्योंकि उन्हें पंजाब से दिल्ली में परेड करने को कहकर ही बुलाया गया था। इसके लिए बार-बार मंच से बड़े-बड़े ऐलान और वादे किए गए थे। रोष जता रहे नौजवानों ने कहा कि जब हम दिल्ली आ गए तो आप हमें सरकार की ओर से तय किए गए रूट पर जाने के लिए कह रहे हैं, जो हमें मंजूर नहीं है। सिद्धू ने वीडियो में कहा कि उस दौरान मंच पर हालात ऐसे बन गए थे कि अगुवाई कर रहे किसान नेता वहां से किनारा कर गए। भीड़ को उकसान का आरोपöकिसान संगठनों ने दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा का आरोप दीप सिद्धू पर लगाया है। भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि किसान संगठनों का लाल किले पर जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था। दीप सिद्धू ने किसानों को भड़काया और आउटर Eिरग रोड से लाल किले तक ले गए। दीप सिद्धू ने कहा कि मैं जब लाल किले पहुंचा, तब तक गेट टूट चुका था। वहां हजारों की भीड़ खड़ी हुई थी। बाद में मैं वहां पहुंचा। जिस रोड से पहुंचा, उस पर सैकड़ों ट्रैक्टर पहले से खड़े थे। मैं पैदल ही किले के अंदर पहुंचा था। वहां देखा तो कोई किसान नेता नहीं था। कोई भी वह व्यक्ति नहीं था, जो पहले बड़ी-बडी बातें कर रहा था। सोशल मीडिया पर लाइव आकर बड़े-बड़े ऐलान हो गए थे कि हम दिल्ली की गर्दन पर घुटना रखेंगे, लेकिन वहां कोई नहीं था। इस बीच कुछ नौजवान मुझे पकड़ कर ले गए कि भाई वहां चलो। वहां दो झंडे पड़े थे एक किसान झंडा और दूसरा निशान साहिब। हमने सरकार के सामने रोष जताने के लिए दोनों झंडे वहां लगा दिए। हमने तिरंगा नहीं हटाया था। हमें कोई डर नहीं है, क्योंकि हमने कुछ गलत नहीं किया है। पुलिस सूत्रों की मानें तो दिल्ली पुलिस ने अभिनेता दीप सिद्धू और गैंगस्टर से सामाजिक कार्यकर्ता बने लक्खा सिघाना की तलाश तेज कर दी है। लाल किले पर झंडा फहराने वालों में 22 वर्षीय जुगराज सिंह नामक युवक का भी नाम आ रहा है, जो फिलहाल फरार है। वह भी पुलिस के अभी हाथ नहीं चढ़ा है। पुलिस उसकी भी तलाश में जुटी है। वह पंजाब के तरनतारन का रहने वाला बताया जा रहा है। उधर पुलिस दीप सिद्धू के टेक्निकल सर्विसलांस की मदद से भी जांच कर रही है। दीप सिद्धू ने लाल किले पर आते वक्त अपना फोन बंद कर दिया था।
पुतिन के खिलाफ सबसे बड़ा प्रदर्शन
रूस में राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के धुर विरोधी एलेक्सी नवेलनी की गिरफ्तारी के विरोध में रूस के 109 शहरों में हाड़ कंपाने वाली सर्दी में प्रदर्शन हो रहे हैं। पुलिस ने रविवार तक 3500 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया। इनमें नवेलनी की पत्नी यूलिया नवलन्या, प्रवक्ता और वकील भी शामिल हैं। दावा है कि पुतिन के खिलाफ रूस में यह अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन है। इसे लेकर पुतिन ने भी सख्त रवैया अपनया है। प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए कई शहरों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। कुछ इलाकों में मोबाइल नेटवर्क ही जाम कर दिया गया है। वहीं पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज भी किया। लोगों को खींचकर बसों और ट्रकों में ले जाया जा रहा है। फिर भी बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी रूस आजाद होगा और पुतिन चोर है जैसे नारों वाले पोस्टर लेकर पुतिन का विरोध जता रहे हैं। लोगों की मांग है कि नवेलनी को जल्द से जल्द रिहा किया जाए। एक रिपोर्ट में बताया गया कि साइबेरिया के कुछ इलाकों का तापमान माइनस 51 डिग्री तक पहुंच गया है। इस ठंड में भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। देशभर के लाखों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। अकेले राजधानी मास्को में 70 हजार लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई की अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने निंदा की है। 44 वर्षीय एलेक्सी नवेलनी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने 2018 में राष्ट्रपति चुनाव में उतरने की कोशिश की थी। लेकिन उन्हें एक आरोप में दोषी ठहरा दिया गया और चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। पिछले साल 20 अगस्त को नोविचोक जहर दिए जाने के बाद से वह जर्मनी में इलाज करा रहे थे। वहां लौटकर 17 जनवरी को जैसे ही मास्को लौटे एयरपोर्ट से ही पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। इससे पहले उन्होंने कुछ वीडियो जारी किए थे। इनमें पुतिन पर आरोप लगाया था कि उनके पास शाही महल है, जिसमें विलासिता की चीजों के साथ एक जुआघर भी है। साथ ही पुतिन खुलकर महिलाओं पर सरकारी खजाना लुटा रहे हैं। इन महिलाओं में पुतिन की गर्लफ्रेंड, उनकी पूर्व पत्नी और उनकी 17 साल की एक सीक्रेट बेटी एलिजावेटा शामिल हैं। इसे लुइजा नाम से भी जाना जाता है। लुइजा ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें पोस्ट कर अपनी विलासिता भरी जिंदगी के बारे में कुछ खुलासे किए हैं। विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को चाय में जहर मिलाकर पिलाया गयाöसर्गेई क्रिपल को चार मार्च 2018 को जहर दिया गया था। एलेक्जेंडर लितविनेंको को ग्रीन टी में जहरीला पदार्थ पोलोनियम-210 मिलाकर पिलाया गया था। उन्हें कई महीने जर्मनी में इलाज करवाना पड़ा था। रूस लौटते ही उन्हें फिर एयरपोर्ट से ही गिरफ्तारी कर लिया था। पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद से यह उनके खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन है। देखें आगे क्या होता है? पुतिन कैसे इससे निपटते हैं।
शवों को अंतिम हक दिलाने वाले शंटी को पद्मश्री
भारतीय संस्कृति में संस्कार अहम रखते हैं। दरअसल यह संस्कार धर्म ही नहीं, राष्ट्र को भी एक सूत्र में बांधते हैं। मानव जीवन के आखिरी पड़ाव अंतिम संस्कार के बारे में हर संस्कृति व समाज में माना जाता है कि यह मृतक के विश्वास के अनुरूप स्वजनों के हाथों सम्पन्न हों। कोरोना महामारी की शुरुआत में एक वक्त ऐसा भी आया जब संक्रमितों के अंतिम संस्कार से अपनों ने ही हाथ खींच लिया। ऐसे वक्त में जिनका कोई नहीं था उनका अंतिम संस्कार उनके विश्वासों के अनुरूप किया गया। ऐसे ही लोगों पर आधारित है तंत्र के गण श्रृंखला ही आखिरी कड़ी...। कोरोना काल में लोगों ने ऐसे भी दिन देखे जिनकी कल्पना करना मुश्किल है। शवों को कंधा परिवार के सदस्य और जानकर लोग देते हैं, लेकिन जब दिल्ली में कोरोना संक्रमण की शुरुआत हुई और लोगों की मौत होने लगी तो परिवार के सदस्यों ने भी दूरी बना ली। ऐसे में शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र सिंह शंटी आगे आए। बेटे ज्योत जीत और संस्था के सदस्यों के साथ मिलकर वह अब तक कोरोना से जान गंवाने वाले 965 मरीजों के शवों को अंतिम संस्कार स्थल तक पहुंचा चुके हैं। ज्यादातर के अंतिम संस्कार भी अपने हाथों से किए। शहीद भगत सिंह सेवा दल करीब 26 वर्षों से एम्बुलैंस की निशुल्क सेवा उपलब्ध करवा रहा है। कोरोना संक्रमण की शुरुआती दौर में तो मरीजों के घर से अस्पताल और अस्पताल से घर पहुंचाने का जिम्मा उठाया। मई 2020 में जब अस्पतालों में मौतों के मामले बढ़े तो सेवा दल की तरफ से सात एम्बुलैंस शवों को अंतिम स्थान तक पहुंचाने में लगा दी गई। शंटी बताते हैं कि उस समय परिवार के लोग शमशान स्थल पर भी नहीं पहुंच रहे थे। यह देखकर काफी दुख होता था। इससे हमारी इच्छाशक्ति और मजबूत हो गई और बाद में 12 एम्बुलैंस शवों को ढोने में लगा दी गईं। धीरे-धीरे लोगों की मदद से बेड़े में 18 एम्बुलैंस हो गईं। साथ ही आठ मोर्चरी बॉक्स भी तैयार किए गए, ताकि परिजन के इंतजार में शव खराब न हों। इस दौरान जिंतेंद्र सिंह शंटी और उनका पूरा परिवार खुद भी कोरोना की चपेट में आ गया। उनके एक एम्बुलैंस चालक मोहम्मद आरिफ खां ने तो अपनी जान तक गंवा दी। वह शुरू से ही एम्बुलैंस के जरिये मरीजों की सेवा कर रहे थे। इसके बावजूद संस्था के सदस्यों के जरिये सेवा जारी रही। कोरोना मरीजों की सेवा और उनकी मौत के बाद उन्हें शमशान घाट पहुंचाने वाले समाज सेवक जितेंद्र सिंह शंटी को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित होने पर हम भी उन्हें बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह इसी तरह जनता की सेवा करते रहें। भगवान उन्हें लंबी उम्र दे ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की सेवा कर सकें।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 28 January 2021
लाल किले की गरिमा पर चोट
पिछले दो महीने से किसान आंदोलन बड़े संयम, अनुशासन से चल रहा था पर गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड में कैसे अपनी दिशा से भटक गया, यह सवाल आज सब पूछ रहे हैं? काफी विवाद और मशक्कत के बाद किसान नेताओं को ट्रैक्टर परेड की लिखित अनुमति मिली। आपसी सहमति से परेड के मार्ग तय हुए थे। पर अंदरखाते किसान नेताओं को इस बात का एहसास हुआ था कि शायद कुछ बाहरी तत्व किसानों की आड़ में गड़बड़ कर सकते हैं। इसीलिए किसान नेताओं ने बार-बार आंदोलनरत किसानों से अपील की थी कि वह किसी भी रूप में हिंसा न करें, अराजकता न फैलाएं। पर 26 जनवरी को जो हुआ वह शर्मसार करने वाला है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों ने सारी मर्यादाएं भूलकर हिंसा की। 72वें गणतंत्र दिवस की चमक को इन अराजक तत्वों ने धूमिल कर दिया। मंगलवार को जिस तरह से उपद्रवियों ने लाल किले पर कब्जा किया और दिल्ली की सड़कों पर कोहराम मचाया, उससे विदेशी मीडिया ने भारत की छवि को खराब की ही, पाकिस्तान में भी जश्न मनाया गया। लाल किले पर तो इतिहास को कलंकित कर दिया गया। जिस स्थान पर और पोल पर प्रधानमंत्री 15 अगस्त को हर साल झंडा फहराते हैं, वहां निशान साहिब (गुरुद्वारों पर फहराने जाने वाला झंडा) फहरा दिया। लाल किले पर निशान साहिब की तस्वीरें विश्वभर में वायरल हो गईं और जिससे भारत विरोधी ताकतों ने जश्न मनाया होगा। पाकिस्तान के कई ट्विटर हैंडलों से इस तस्वीर को ट्वीट किया गया और बताया गया कि भारत का झंडा बदल गया है। ट्रैक्टर परेड दिन के 12 बजे से दिल्ली के बाहरी रिंग रोड पर शुरू होनी थी। मगर सिंघु बॉर्डर की तरफ से कुछ किसानों ने सुबह साढ़े सात बजे ही अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं और दिल्ली के अंदर घुसने के प्रयास शुरू कर दिया। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने जगह-जगह अवरोध लगाए, मगर उपद्रवियों ने उन्हें तोड़ दिया और आगे बढ़ने लगे। मजबूरन पुलिस को कई जगहों पर बल प्रयोग करना पड़ा, आंसू गैस के गोले दागने पड़े। हालांकि कुछ किसान नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने तय मार्गों पर भी अवरोध खड़े कर परेड को रोकने की कोशिश की, इसलिए वह उग्र हो गए। कुछ का यह भी कहना है कि इस आंदोलन में बहुत सारे ऐसे भी लोग घुस आए थे, जो संयुक्त किसान मोर्चे का हिस्सा नहीं हैं। कुछ नेताओं ने यह आरोप भी लगाया कि यह सारा षड्यंत्र सरकार ने रचा और उसके द्वारा भेजे गए किसान रूप में गुंडों ने यह सारा बवाल मचाया। कुछ शरारती तत्वों ने भी इस परेड को गुमराह करने की कोशिश की ताकि जो हिंसा हुई उससे किसान आंदोलन को तोड़ा जा सके, आंदोलन को कमजोर किया जा सके। हकीकत क्या है, इसका पता निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा। मगर दिल्ली में जगह-जगह हुए उत्पात से किसान आंदोलन की काफी बदनामी हुई है। उन सिद्धांतों पर सवाल खड़े हुए हैं, जिन्हें लेकर यह आंदोलन पिछले 60 दिनों से शांतिपूर्ण, नियंत्रित चल रहा था। यह सही है कि इतनी बड़ी संख्या में जब कहीं आंदोलनकारी जमा हो जाते हैं तो उन्हें अनुशासित रख पाना बहुत कठिन हो जाता है, मगर इस तर्क पर किसान नेता अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते। बेशक अब वह मुंह छिपाते रहें पर कटु सत्य यह भी है कि यह उनके लिए भी शर्मिंदगी का विषय है। जो भी हुआ बुरा हुआ। इससे बचा जा सकता था अगर सरकार थोड़ी समझदारी से काम लेती। वैसे भी किसानों को बैठे 60 दिन हो गए थे इतने दिन में भी समस्या का हल न निकलना यह सरकार की कमजोरी है।
बात तो दूर, नजरें भी नहीं मिलाईं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए थे और प्रोटोकॉल के तहत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके साथ मौजूद थीं। दोनों नेताओं के बीच इस दौरान मुश्किल से करीब पांच फुट का ही फासला था परन्तु राजनीतिक विचारधारा की दूरी और संवाद की कमी कैमरे के सामने आखिरकार झलक ही गई। दरअसल पीएम मोदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर कोलकाता नेशनल लाइब्रेरी पहुंचे हुए थे। यहां उनके साथ प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। लाइब्रेरी में इस दौरान राज्य के अधिकारी भी मौजूद थे। लाइब्रेरी में प्रवेश से लेकर बाहर आने तक प्रधानमंत्री मोदी और ममता बनर्जी के बीच कोई संवाद होता दिखाई नहीं दिया। प्रधानमंत्री वहां मौजूद अधिकारियों से लाइब्रेरी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी जानकारी लेते हुए दिखाई दिए परन्तु ममता से उन्होंने कोई बात नहीं की। यहां तक कि दोनों नेता एक-दूसरे से बहुत ज्यादा दूरी पर नहीं खड़े थे, इसके बावजूद एक-दूसरे की नजरें भी नहीं मिलीं। इस दौरान दोनों ही नेता एक-दूसरे के विपरीत दिशा में देखते हुए नजर आए। यह बात जरूर है कि लाइब्रेरी से बाहर आने से पहले ममता बनर्जी और राज्यपाल धनखड़ के बीच किसी बात पर संवाद होता हुआ दिखाई पड़ा परन्तु पीएम मोदी से कोई बात नहीं हुई। खास बात यह है कि आने वाले कुछ महीनों में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के बंगाल दौरे को काफी अहम माना जा रहा है। बता दें कि बीते कुछ महीनों में बंगाल में सियासी उठापटक और बयानबाजी तेज हुई है। इस सभा में ममता बनर्जी सख्त नाराज हो गईं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में वहां जय श्रीराम के नारे लगाए गए। महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी की 125वीं जयंती मनाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने अपना भाषण शुरू नहीं किया था कि उसी समय भीड़ में शामिल कुछ लोगों द्वारा जय श्रीराम का नारा लगाया गया। बनर्जी ने कहा कि ऐसा अपमान अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि यह एक सरकारी कार्यक्रम है, कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं। एक गरिमा होनी चाहिए। किसी भी लोगों को आमंत्रित करके अपमानित करना शोभा नहीं देता है। मैं नहीं बोलूंगी, जय बांग्ला जय हिंद। उन्होंने सरकारी कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री और संस्कृति मंत्रालय को धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ आए। ममता के पोडियम पर भाषण देने से पहले सब कुछ ठीक था। जैसे ही ममता ने भाषण देना शुरू किया तो दर्शकों का एक वर्ग जय श्रीराम का नारा लगाने लगा, जिससे स्पष्ट रूप से ममता नाराज हो गईं। इस घटना का विरोध करते हुए तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सांसद नुसरत जहां ने सरकारी कार्यक्रमों में राजनीतिक और धार्मिक नारों की निंदा की और ट्वीट कियाöनेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती समारोह कार्यक्रम में राजनीतिक और धार्मिक नारों की निंदा करती हूं। हालत पश्चिम बंगाल में यह हो गई है कि जनता का समर्थन हासिल करने के लिए आजमाए जाने वाले तौर-तरीकों के बीच तृणमूल और भजापा के बीच जैसे टकराव सामने आ रहे हैं, उससे चुनाव अभियानों को शांतिपूर्ण गुजारने को लेकर आशंकाएं हो रही हैं, सवाल है कि लोकतांत्रिक माहौल में चुनाव होने के हालात अगर कमजोर होंगे तो इससे किसको फायदा मिलेगा?
सिर्फ 25 प्रतिशत काम कर रहे हैं लालू के गुर्दे
चारा घोटाला में सजा काट रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) मुखिया लालू प्रसाद यादव को दिल्ली के भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया है। डॉक्टरों के मुताबिक उनका गुर्दा केवल 25 प्रतिशत काम कर रहा है। उनका क्रिएटिनाइन बढ़ा हुआ है। हृदय विशेषज्ञ डॉ. राकेश यादव व अन्य डॉक्टरों के दल इलाज में लगे हुए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक निमोनिया से भी पीड़ित लालू की हालत स्थिर बताई जा रही है। उनका यूरिन क्रिएटिनाइन बढ़कर तीन हो गया है। जो एक या इसके नीचे होना चाहिए। साथ ही टीएलसी भी बढ़ा है जो छाती में संक्रमण के कारण है। लालू जी को 20 सालों से मधुमेह व दिल की बीमारी है। जिसका 20 सालों से इलाज चल रहा है। उन्हें कोरोना नहीं है लेकिन बचाव के सभी उपाय अपनाए जा रहे हैं। प्रोटोकॉल के तहत ही आंगतुकों की आवाजाही पर रोक है। केवल परिवार के लोगों को ही उनसे मिलने व उनके साथ रहने दिया जा रहा है। बताते चलें कि तबीयत बिगड़ने पर उन्हें शनिवार को रिम्स से एम्स लाया गया था और यहां एम्स के कार्डियो, फोरेसिंक सेंटर में आईसीयू में भर्ती किया गया है। वहीं लालू के एम्स आने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके बेहतर स्वास्थ्य की कामना करते हुए कहा कि वह उनसे इसलिए फोन पर बात नहीं करते क्योंकि उनके स्वास्थ्य की जानकारी मिलती रहती है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 23 January 2021
बिडेन ने राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप के कई बड़े फैसले पलटे
अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति जो बिडेन ने पद्भार ग्रहण करते ही डोनाल्ड ट्रंप के फैसलों को पलटने वाले आदेश जारी कर दिए। बिडेन ने शपथ ग्रहण समारोह के बाद काम शुरू करने से पहले व्हाइट हाउस के लिए रवाना होते हुए सोशल मीडिया पर लिखाöहमें हमारे सामने मौजूद संकट से निपटना है, हमारे पास बर्बाद करने के लिए वक्त नहीं है। राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने 15 एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें कोरोना महामारी से निपटने में सरकार को मदद मिलने संबंधी ऑर्डर भी शामिल हैं। इसके अलावा इसमें जलवायु संकट और अप्रवासन संबंधी ट्रंप प्रशासन की नीतियों को बदलने के लिए नए आदेश भी शामिल हैं। इससे पहले ओवल ऑफिस (अपने दफ्तर) में काला मास्क पहनकर आए राष्ट्रपति बिडेन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनकी बड़ी प्राथमिकताओं में कोविड संकट, आर्थिक संकट और जलवायु संकट शामिल हैं। बुधवार को एक विशेष समारोह में जो बिडेन ने देश के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण की जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण कम ही लोग उपस्थित थे। हालांकि तीन पूर्व राष्ट्रपति, बराक ओबामा, बिल क्लिंटन और जॉर्ज बुश उनके शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे। साथ ही ट्रंप प्रशासन में उपराष्ट्रपति रहे माइक पेंस भी इस दौरान मौजूद रहे। राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि न केवल ट्रंप प्रशासन के फैसलों से देश को जो नुकसान हुआ है उसे बदलने के लिए बल्कि देश को आगे बढ़ाने के लिए हम एक्शन लेंगे। कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर उन्होंने सभी सरकारी दफ्तरों के परिसर में मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य कर दिया है। अब तक कोरोना वायरस के कारण अमेरिका में चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। बिडेन ने फैसला लिया है कि महामारी पर प्रतिक्रिया के समन्वय के लिए एक नया ऑफिस स्थापित किया जाएगा। इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अमेरिका को अलग करने की जो प्रक्रिया डोनाल्ड ट्रंप ने शुरू की थी, बिडेन उस फैसले को खारिज करने के लिए एक्शन लेंगे। बिडेन ने बुधवार को एक साथ कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए। इसमें जहां प्रवासियों को राहत दी गई है, वहीं कई मुस्लिम देशों से यात्रा पर लगाया गया बैन हटा लिया गया है। कोरोना के खतरे को देखते हुए बिडेन ने देशभर में मास्क को अनिवार्य कर दिया है। साथ ही मैक्सिको की सीमा पर बन रही बाड़ के पैसे को भी रोक दिया है। बिडेन ने प्रवासियों को राहत देने वाले एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। इस आदेश से 1.1 करोड़ ऐसे प्रवासियों को फायदा होगा जिनके पास कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है। इसमें करीब पांच लाख भारतीय हैं। बिडेन ने आव्रजन प्रणाली को पूरी तरह से बदलने की शुरुआत कर दी है। इसके साथ ही जो बिडेन ने घरेलू आतंकवाद और श्वेतों को श्रेष्ठ मानने वाली मानसिकता को परास्त करने का वादा किया। बिडेन ने दोनों चुनौतियों के खात्मे के लिए हर अमेरिकी से साथ आने की अपील की। इन कदमों के जरिये बिडेन अमेरिका को फिर से वैश्विक नेतृत्वकारी की भूमिका में चले आएं, पर अपने देश में विभाजित सोच को बदलने में वह कितना सक्षम होते हैं, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। जहां तक भारत की बात है, जो बिडेन के नेतृत्व में दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की संभावना है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें बधाई देते हुए उम्मीद जताई है। बिडेन को अमेरिका और भारत के बीच संबंध सहज नहीं होंगे। बिडेन को अमेरिका के हितों को सर्वोपरि रखते हुए आगे बढ़ना है, लेकिन चीन और रूस के साथ वह कैसे शक्ति संतुलन बना पाते हैं, यही उनके कौशल की परीक्षा होगी। विभाजित अमेरिकी मानसिकता को सही करना होगा।
पूर्व के विचार उसे अयोग्य नहीं बनाते
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बोबड़े ने मंगलवार को कहा कि महज इसलिए कि एक व्यक्ति ने पहले के मामले पर विचार व्यक्त किए हैं, यह उसे किसी समिति का सदस्य होने के लिए अयोग्य नहीं बनाता। चीफ जस्टिस ने यह बात अदालत वाली चार सदस्यों की कमेटी के बारे में कही। उल्लेखनीय है कि चारों सदस्यों ने किसान कानूनों के समर्थन में बयान दिए थे। किसानों को इनके नामों पर ऐतराज है कि इन्होंने चूंकि किसान कानूनों का समर्थन किया है इसलिए इनसे हमें इंसाफ नहीं मिल सकता। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि किसी समिति के सदस्य न्यायाधीश नहीं हैं और वह अपनी राय बदल भी सकते हैं। इस प्रकार केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति ने किसी मामले पर कुछ विचार व्यक्त किए हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि उसे उस मुद्दे को हल करने के लिए एक समिति में नियुक्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट की यह टिप्पणी किसानों के विरोध पर समिति के गठन विवाद के सन्दर्भ में प्रासंगिक मानी जा रही है। केंद्र सरकार और किसानों के बीच गतिरोध को हल करने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति में वह सदस्य शामिल हैं, जिन्होंने कृषि कानूनों के क्रियान्वयन के समर्थन में खुले विचार व्यक्त किए हैं। समिति की पहली बैठक के बाद एक सदस्य का कहना है कि हम किसी पक्ष (सरकार) की ओर से नहीं हैं, हम शीर्ष अदालत की ओर से हैं। इसलिए किसान संगठनों के नेताओं से आग्रह है कि वार्ता के लिए आगे आएं। समिति के सदस्य व शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल धनवत ने कहा कि विभिन्न हितधारकों से कृषि कानून पर चर्चा के दौरान सदस्य अपनी निजी राय को हावी नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि समिति 21 जनवरी को किसानों व दूसरे हितधारकों से पहले चरण की वार्ता करेगी। आंदोलनरत किसान संगठनों ने समिति के समक्ष आने से मना कर दिया उनको आगे फिर वार्ता के लिए बुलाना एक बड़ी चुनौती होगी। समिति का हर संभव प्रयास होगा कि किसान जल्द वार्ता में शामिल हों। जिससे मसले का हल निकल सके। इस बैठक में धनवत के अलावा कृषि अर्थशास्त्राr अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी भी शामिल हुए। अनिल धनवत ने कहा कि समिति केंद्र व राज्य सरकारों के अलावा किसानों व सभी दूसरे हितधारकों की कृषि कानूनों पर राय जानना चाहती है। एक सवाल के जवाब में धनवत ने कहा कि भूपेंद्र सिंह मान के स्थान पर किसे नियुक्त किया जाएगा यह सुप्रीम कोर्ट का अधिकार है। समिति के सदस्य अशोक गुलाटी ने कहा कि समिति में सभी सदस्य बराबर हैं और उन्होंने समिति का अध्यक्ष नियुक्त करने की संभावना को खारिज कर दिया। वहीं प्रमोद कुमार जोशी ने कहाöहमारी राय अलग हो सकती है, लेकिन जब इस तरह की जिम्मेदारी दी जाती है तो हमें निष्पक्ष तरीके से काम करना होता है। देखना अब यह है कि किसान संगठन अब इस समिति के समक्ष आगे पेश होते हैं या नहीं?
-अनिल नरेन्द्र
Friday, 22 January 2021
36 से शिखर, क्रिकेट के नए नायकों का आगाज हो चुका है
ऑस्ट्रेलिया की टेस्ट सीरीज में भारत ने जो कमबैक किया, वह 144 साल के टेस्ट क्रिकेट के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बन गया है। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया ने भी 1902 में 36 पर आलआउट होने के बाद सीरीज जीती थी। लेकिन वह अधिकतम 299 रन बना पाई थी। भारत 329 रन बनाकर जीता है। इस लिहाज से यह अब तक की सबसे बड़ी कमबैक जीत है, खास बात यह भी है कि यह जीत बड़े खिलाड़ियों की गैर-मौजूदगी में युवा खिलाड़ियों ने दिलाई। भारत इस सीरीज को 2-1 से जीतने में कामयाब रहा। इस जीत पर बीसीसीआई ने टीम को पांच करोड़ रुपए दिए। 19 दिसम्बर को टीम इंडिया 36 रन पर टेस्ट इतिहास के अपने न्यूनतम स्कोर पर आउट हुई थी। अब 19 जनवरी को 329 रन बनाकर मैच के साथ टेस्ट सीरीज भी जीत ली। यह ब्रिस्बेन मैदान पर किसी भी टीम को मिला अब तक का सबसे बड़ा लक्ष्य था। इससे पहले 1957 में ऑस्ट्रेलिया ने यहां 236 रन बनाकर मैच जीता था। यह जीत इसलिए बनी अहमöऑस्ट्रेलिया 32 साल बाद ब्रिस्बेन के गाबा मैदान में टेस्ट मैच हारा है। इससे पहले 1988 में वेस्टइंडीज ने उसे नौ विकेट से हराया था। भारत की इस मैदान पर यह पहली जीत थी। भारत को जीत के लिए 324 रन चाहिए थे। टीम ने आखिरी 10 ओवर में वनडे की तरह 64 रन बनाकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उस समय 18 गेंदें बाकी थीं। पहली बार कोई टीम 300+ के लक्ष्य का पीछा करते हुए जीती। जीत इस मायने में अहम है कि पिछले टेस्ट में भारत को करारी हार मिली थी। पूरी टीम 36 रन पर ऑलआउट हुई थी। विराट कोहली पैटरनिटी लीव पर गए हुए थे। चौथे टेस्ट से पहले टीम के सात खिलाड़ी घायल थे। टीम के पांच खिलाड़ियों शुभमन गिल, मोहम्मद सिराज, नवदीप सैनी, वॉशिंगटन सुंदर और टी. नटराजन ने इस दौरे से पहले टेस्ट नहीं खेला था। शार्दुल ठाकुर ने कुछ साल पहले हैदराबाद में 10 गेंदें ही फेंकी थीं। इस मैच से पहले ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाजों के पास 1046 विकेट थे, जबकि हमारे गेंदबाजों के पास कैरियर के सिर्फ 13 थे। सिराज के सात, सैनी के चार, रोहित के दो विकेट। यूं क्रिकेट के लिहाज से देखें तो इस दौरे में टीम इंडिया जहां 1-2 से एक दिवसीय मैचों की श्रृंखला में पीछे थी तो टी-20 में उसने ऑस्ट्रेलिया पर 2-1 से जीत दर्ज की। मगर भारतीय टीम को टेस्ट श्रृंखला में मिली जीत को यदि उसकी सर्वकालिक सफलताओं में से एक कहा जा रहा है, तो उसका श्रेय अजिंक्य रहाणे की कप्तानी के साथ ही अपेक्षाकृत युवा खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन को भी जाता है। जिस तरह इस सीरीज में शुभमन गिल, मोहम्मद सिराज, ऋषभ पंत, शार्दुल ठाकुर और नटराजन ने खेला उससे भारतीय क्रिकेट का भविष्य स्वर्णमय बन गया है। यह इन हीरोज का कमाल है कि हम पहला टेस्ट एडिलेड में बुरी तरह से हारने के बाद गाबा में इतिहास रच सके। दरअसल पूर्णकालिक कप्तान विराट कोहली ने श्रृंखला के बीच पितृक अवकाश पर जाने और मोहम्मद शमी, जसप्रीत बुमरा, रवींद्र जडेजा और आर. अश्विन सहित अनेक खिलाड़ियों के चोटिल होने की वजह से पूरा दारोमदार युवा खिलाड़ियों पर आ गया। ऋषभ पंत, शुभमन गिल, चेतेश्वर पुजारा जैसे युवा खिलाड़ियों ने इस अवसर का लाभ उठाकर वह करके दिखा दिया जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी की हो। भावी टीम के इस दौरे ने दिखा दिया कि नए नायकों का आगाज हो चुका है।
अर्नब गोस्वामी विवाद और इमरान खान
रिपब्लिक टीवी नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी और बार्क के पूर्व सीईओ पार्थ दासगुप्ता के बीच हुई कथित व्हाट्सएप चैट्स के लीक होने का विवाद अब पाकिस्तान तक पहुंच गया है। अर्नब गोस्वामी की इस कथित चैट में पुलवामा हमले और फिर बालाकोट एयर स्ट्राइक का जिक्र किया गया है। इन चैट्स के क्रीनशॉट्स वायरल होने के बाद कई हलकों में सवाल उठाए जा रहे हैं कि पुलवामा हमले और बालाकोट पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी अर्नब गोस्वामी को पहले से कैसे थी? सोशल मीडिया पर अर्नब समर्थक और विरोधी दोनों अपने-अपने विचार रख रहे हैं। विपक्षी कांग्रेस ने भी इस मामले में अपना बयान जारी किया है। बहस तब तेज हो गई, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इस मसले को लेकर एक के बाद एक कई ट्वीट किए। अपने ट्वीट में इमरान खान ने लिखा हैö2019 में मैंने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीसी) में कहा था कि कैसे भारत की फासिस्ट मोदी सरकार ने बालाकोट का इस्तेमाल चुनावी फायदों के लिए किया था। एक भारतीय पत्रकार की (जिसे जंग की भड़काऊ भाषा बोलने के लिए जाना जाता है) बातचीत ने मोदी सरकार और भारतीय मीडिया के बीच बने हुए गलत तानेबाने को बयां कर दिया है। अपने अगले ट्वीट में इमरान खान ने लिखा है, इसकी वजह से एक खतरनाक सैन्य दुस्साहस की स्थितियां पैदा की गईं, ताकि चुनाव जीता जा सके। इससे पूरे इलाके में अस्थिरता पैदा करने के दुष्परिणामों को नजरंदाज कर दिया गया। पाकिस्तान ने बालाकोट मामले में एक जिम्मेदाराना और संतुलित प्रतिक्रिया दी और इस तरह से एक बड़े संकट को पैदा होने से रोक दिया। उन्होंने अपने अगले ट्वीट में लिखा हैöभारत का पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देना, भारतीय कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में इसकी ज्यादतियां और हमारे खिलाफ 15 साल से जारी गलत प्रचार की मुहिम में सब बेपर्दा हो गए हैं। अब भारत की खुद की मीडिया इस गठजोड़ की जानकारी दे रही है। इस गठजोड़ से हमारा परमाणुसम्पन्न पूरा इलाका एक ऐसी जंग में फंस सकता है, जिसे बर्दाश्त कर पाना मुमकिन नहीं होगा। अपने आखिरी ट्वीट में पाकिस्तानी पीएम ने कहा हैöमैं दोहराना चाहता हूं कि मेरी सरकार भारत के पाकिस्तान के खिलाफ किए जा रहे षड्यंत्रों और मोदी सरकार के फासिज्म का पर्दाफाश करना जारी रखेगी। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भारत के इस विवेकहीन, सैन्य एजेंडे को रोकना होगा अथवा मोदी सरकार इस पूरे इलाके को एक ऐसे विवाद में धकेल देगी, जहां से इस पर नियंत्रण पाना मुमकिन नहीं हो जाएगा। रविवार को कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहाöमुंबई पुलिस की चार्जशीट में जो व्हाट्सएप चैट सामने आई है, उससे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े होते हैं। किस प्रकार से वित्तीय धोखाधड़ी हुई, उससे देश के बड़े-बड़े पदों पर बैठे कौन से लोग शामिल थे, कैसे जजों को खरीदने की बात हुई और मंत्रिमंडल में कौन-सा पद किसको मिलेगा, उसका निर्णय पत्रकार द्वारा किया गया, यह सारी बातें हैं मुंबई पुलिस के आरोप पत्र में जो एक हजार पन्नों का है और हम इसका अध्ययन कर रहे हैं। शुक्रवार को इन चैट्स के लीक होने के बाद रिपब्लिक टीवी मीडिया ने अपना विस्तृत बयान जारी किया, रिपब्लिक टीवी ने पाकिस्तान के आरोपों को खारिज करते हुए कहाöरिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी ने पिछले 15 साल से पाकिस्तान और आईएसआई का षड्यंत्रों का पर्दाफाश किया है। गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी ने अपनी खोजी रिपोर्टिंग, स्टिंग ऑपरेशंस और तथ्यात्मक जानकारी के साथ पूरी दुनिया के सामने यह साफ कर दिया था कि पाकिस्तान आतंकी समूहों को स्पांसर करता है, मदद और आश्रय देता है।
मीडिया ट्रायल न्याय प्रशासन में दखल
बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को मीडिया प्रतिष्ठानों से कहा है कि वह आत्महत्या के मामलों में खबरें दिखाते वक्त संयम बरतें क्योंकि मीडिया ट्रायल के कारण न्याय देने में हस्तक्षेप तथा अवरोध उत्पन्न होता है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद रिपब्लिक टीखी और टाइम्स नाऊ पर दिखाई गई कुछ खबरें मानहानिकारक थीं। पीठ ने आगे कहा कि हालांकि उसने चैनलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने की निर्णय लिया है। अदालत ने कहा कि किसी भी मीडिया प्रतिष्ठान द्वारा ऐसी खबरें दिखाना अदालत की मानहानि करने के बराबर माना जाएगा और मामले की जांच में या उसमें न्याय देने में अवरोध पैदा करता है। पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल के कारण न्याय देने में हस्तक्षेप एवं अवरोध उत्पन्न होते हैं तथा यह केवल टीवी नेटवर्क नियमन कानून के तहत कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन भी करता है। अदालत ने कहाöकोई भी खबर पत्रकारिता के मानकों एवं नैतिकता संबंधी नियमों के अनुरूप ही होनी चाहिए अन्यथा मीडिया घरानों को मानहानि संबंधी कार्रवाई का सामना करना होगा। उच्च न्यायालय सुशांत राजपूत की मौत की घटना पर सुनवाई कर रही थी और इसी की कवरेज पर यह टिप्पणी की।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 21 January 2021
आंदोलन को तोड़ने की हो रही हैं कोशिशें
केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों का दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसान आंदोलन को लगभग दो महीने होने को जा रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के बाद अन्य राज्यों के किसानों के आंदोलन से जुड़ने से आंदोलन अब देशव्यापी रूप ले चुका है। किसान भी तीनों कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी को कानूनी अधिकार दिए जाने की मांग पर अडिग हैं। कई दौर की वार्ता भी विफल रही है। आंदोलनरत नेताओं का आरोप है कि सरकार के अधिकारियों व अवांछित तत्वों की ओर से हमारे आंदोलन को कमजोर करने की तमाम कोशिश की जा रही हैं, लेकिन सुनवाई के बगैर किसान पीछे नहीं हटेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा के डॉ. दर्शन पाल ने बताया कि जयपुर-दिल्ली हाइवे पर धरने पर बैठे किसानों को पुलिस लगातार परेशान कर रही है। इधर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) मामले में एक दर्जन से अधिक लोगों को गवाह के रूप में पूछताछ के लिए बुलाया है। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी। लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष और किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा के अलावा सुरेंद्र सिंह, पलविंदर सिंह, प्रदीप सिंह, नोबेलजीत सिंह और करनैल सिंह को भी 17 और 18 जनवरी को एजेंसी के सामने पेश होने को कहा गया था। एनआईए की ओर से मामले में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और अन्य देशों में जमीनी स्तर पर अभियान तेज करने और प्रचार के लिए भारी मात्रा में फंड भी इकट्ठा किया जा रहा है। इस साजिश में शामिल एसएफजे और अन्य खालिस्तानी समर्थक तत्व लगातार सोशल मीडिया अभियान और अन्य माध्यमों से भारत में अलगाववाद के बीज बोना चाहते हैं। यह भी कहा गया है कि यह समूह आतंकवादी कार्रवाई करने के लिए युवाओं को उग्र और कट्टरपंथी बना रहे हैं और उनकी भर्ती कर रहे हैं। उधर सिरसा ने कहा कि उन्हें कम समय में वॉट्सएप पर नोटिस मिला है, सिरसा ने साफ किया कि एजेंसी की ओर से उन्हें तलब किए जाने से संबंधित कोई औपचारिक सूचना अभी तक नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि पहले उन्होंने (सरकार) लोगों और राजनेताओं और फिर सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से हम (किसानों) पर दबाव बनाने की कोशिश की। अब वह एनआईए का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम इस तरह की रणनीति से न तो डरने वाले हैं और न ही झुकने वाले हैं। उधर भारतीय किसान यूनियन लोकशक्ति ने हलफनामे में संगठन ने केंद्र सरकार की एक याचिका को भी खारिज करने की मांग की है। याचिका में केंद्र सरकार ने दिल्ली पुलिस के जरिये 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन प्रस्तावित ट्रैक्टर मार्च या किसी अन्य प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की है। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ इन पर 18 मार्च को सुनवाई के लिए सहमत हो गई थी।
तांडव वेब सीरीज पर मचा घमासान
तांडव वेब सीरीज पर पूरे देश में तांडव मच गया है। सैफ अली खान की इस वेब सीरीज पर भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने अमेजन प्राइम को कानूनी नोटिस भेजा है। नोटिस में प्राइम से वीडियो हटाने की मांग की है। कहा है कि तांडव को अपने प्लेटफार्म से हटाएं। यही नहीं, हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान को लेकर विवादों में घिरी सैफ अली खान के लीड वाली वेब सीरीज तांडव को लेकर मुश्कलें बढ़ती जा रही हैं। लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में अमेजन प्राइम इंडिया की ओरिजनल कंटेट हेड अरुण पुरोहित, सीरीज के डायरेक्टर अली अब्बास जफर, प्रोड्यूसर हिमांशु कृष्ण मिश्रा और राइटर गौरव सोलंकी के खिलाफ रविवार रात एफआईआर दर्ज की गई। एक पुलिसकर्मी की शिकायत पर यह एफआईआर दर्ज की गई है। सेंट्रल जोन के डिप्टी कमिश्नर सोमन वर्मा ने कहा कि हजरतगंज कोतवाली की एक टीम उन लोगों से पूछताछ करेगी जिनके नाम एफआईआर में हैं। एफआईआर के मुताबिक 16 जनवरी को रिलीज हुई वेब सीरीज के कंटेंट को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट रहा है। वह आपत्तिजनक कंटेंट की क्लिप पोस्ट कर रहे हैं। सीरीज देखने के बाद यह पाया गया है कि पहले एपिसोड को 17 मिनट में हिन्दू देवी-देवताओं का रोल कर रहे किरदारों को अजीब ढंग से और अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हुए दिखाया गया है। इससे धार्मिक भावनाएं भड़क सकती हैं। इसी तरह उसी एपिसोड के 22वें मिनट में जातिगत झगड़ों को उकसाने की कोशिश की गई है। विवाद बढ़ते देख सोमवार को निर्देशक अली अब्बास जफर समेत पूरे क्रू ने बिना शर्त माफी मांग ली। माफीनामे में कहा है कि वेब सीरीज पूरी तरह काल्पनिक है। इसमें काम करने वाले कलाकारों व निर्माताओं का किसी व्यक्ति, जाति, समुदाय, धर्म और धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुंचाने या किसी संस्थान, सियासी दल या व्यक्ति का अपमान करने का कोई इरादा नहीं है। नाराजगी को ध्यान में रखते हुए अगर किसी व्यक्ति की भावनाएं आहत हुई हैं तो हम बिना शर्त माफी मांगते हैं। खबर है कि इस सीरीज के निर्माताओं ने सीरीज में से आपत्तिजनक सीन्स को हटाने की बात भी की है।
टीके से कन्नी काटते दिल्लीवासी
कोरोना को मात देने के लिए शनिवार को हुए टीकाकरण में दिल्ली के स्वास्थ्यकर्मियों ने अंतिम समय में टीका लगाने से कन्नी काट ली। दिल्ली में पहले दिन सिर्फ 50 प्रतिशत लोगों ने ही टीका लगवाया। यह जानकारी देते हुए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने रविवार को कहा कि कोरोना संक्रमण टीकाकरण के लिए कुछ लोग आखिरी समय में नहीं पहुंचे। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार किसी को अनिवार्य रूप से टीका लगवाने के लिए नहीं कह सकती। जैन ने कहा कि दिल्ली में टीकाकरण केंद्रों की संख्या 81 से बढ़ाकर जल्द ही 175 की जाएगी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में शनिवार को कोविड-19 टीकाकरण के पहले दिन कुल 4319 स्वास्थ्य कर्मचारियों ने टीका लगवाया जो टीकाकरण के लिए पंजीकरण कराने वाले कर्मचारियों का 53.3 प्रतिशत है। जैन ने कहा कि पूरे देश में इसी तरह की स्थिति रही और पहले दिन पंजीकरण कराने वालों में से केवल 50 प्रतिशत ने टीका लगवाया। सरकार ने अब फैसला किया है कि टीकाकरण से पहले स्वास्थ्यकर्मियों के लिए काउंसलिंग सेशन का आयोजन होगा। यह या तो उसी अस्पताल में होगा, जहां वह तैनात हैं या फिर फोन के जरिये काउंसलिंग की जाएगी। यही नहीं, टीका लगने से एक दिन पहले उन्हें फोन कर सुनिश्चित किया जाएगा कि वह टीका लगवाने के लिए आ रहे हैं या नहीं? पहले दिन लक्ष्य से आधे लोग ही टीका लगवाने के लिए आने के कारण सरकार ने यह फैसला लिया है। बातचीत के जरिये जाना जाएगा कि उनके मन में टीके को लेकर क्या आशंका है और क्या सवाल हैं? उसे दूर करके उन्हें प्रेरित किया जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 20 January 2021
प्रधानमंत्री का रिमोट कंट्रोल कुछ पूंजीपतियों के पास है
कृषि कानूनों और केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है। शुक्रवार को जब किसान नेताओं और सरकार के बीच नौवें दौर की बातचीत चल रही थी (जो फेल रही) उस दौरान कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर बड़ा हमला बोला। प्रदेश कांग्रेस की अगुवाई में दिल्ली के उपराज्यपाल के निवास के बाहर प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की आवाज को बुलंद करने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पहुंचे। लोगों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कानून रद्द होंगे, नरेंद्र मोदी जी को समझ जाना चाहिए कि किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं। यह हिन्दुस्तान है, पीछे नहीं हटता है। प्रधानमंत्री को आज नहीं तो कल पीछे हटना पड़ेगा। अगर समझदार होते तो आज यह कर देते। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा कि केंद्र सरकार को इन तीनों कानूनों को देर-सवेर वापस लेना ही पड़ेगा। भाजपा और उसकी कोर टीम ने केंद्रीय कृषि मंत्री कानूनों को लाकर एक बार फिर किसानों के अधिकारों का हनन किया है। केंद्र सरकार ने इन कानूनों की मदद करने के लिए नहीं, बल्कि किसानों को खत्म करने के लिए बनाया है। राहुल ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वह किसानों की इज्जत नहीं करते और बार-बार बातचीत करके सिर्फ किसानों को थकाना चाहते हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री जरूर हैं, लेकिन उनका रिमोट कंट्रोल कुछ पूंजीपतियों (अंबानी-अडानी) के पास है। राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने शुक्रवार को जंतर-मंतर पहुंचकर पंजाब से पार्टी के उन सांसदों के साथ एकजुटता प्रकट की जो पिछले करीब 50 दिनों से ज्यादा कृषि कानूनों के विरोध में धरने पर बैठे हैं। पंजाब से संबंध रखने वाले कांग्रेस के लोकसभा सदस्य जसबीर गिल, गुरजीत औजला, रवनीत सिंह बिट्टू और कुछ अन्य नेता कृषि कानूनों के खिलाफ खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठे हैं। इस मौके पर राहुल गांधी ने कहाöमोदी जी ने भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द करने की कोशिश की थी, हमने उसे रोका। अब यह नया कदम तीन कानूनों के तौर पर उठाया गया है। यह तीनों कानूनों को भी हमने रोकने की पूरी कोशिश की थी पर हमें बुलडोज कर दिया गया और इन्हें जबरन पास करा लिया गया। उन्होंने कहाöदेश को आजादी 1947 में मिली, लेकिन इस आजादी को किसान ने कायम रखा, जिस दिन खाद्य सुरक्षा खत्म होगी उस दिन आजादी भी चली जाएगी। कांग्रेस नेता ने दावा किया कि एक तरफ हिन्दुस्तान है और दूसरी तरफ मोदी जी के कुछ पूंजीपति मित्र हैं। देश के बहुत सारे लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही है कि आज किसान का हक छीना तो अगला नम्बर मध्यम वर्ग का होगा और फिर दूसरे लोग भी होंगे। सच्चाई यह है कि मोदी जी और उनके दो-तीन उद्योगपति मित्र आप से सब छीन रहे हैं। यह ही कुछ उद्योगपति सब कुछ चला रहे हैं। राहुल ने कहाöमोदी जी किसानों की बुनियादी इज्जत नहीं करते हैं। एक किसान मरे, चाहे 100 मरें, नरेंद्र मोदी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। मोदी समझते हैं कि किसान कितने दिन तक टिके रहेंगे? थक जाएंगे और भाग जाएंगे पर किसान भागने वाला नहीं है न ही थकने वाला है।
वॉशिंगटन की किलेबंदी
अमेरिका के वॉशिंगटन में हिंसक प्रदर्शनों की आशंका के मद्देनजर रक्षा अधिकारियों ने और सैनिकों को भेजने की मांग की थी। इसके बाद बड़ी संख्या में सैनिक विभिन्न राज्यों से बसों और विमानों के जरिये राजधानी वॉशिंगटन में आने लगे हैं। वॉशिंगटन छावनी में तब्दील हो गई है। 20 जनवरी को जो बाइडन का शपथ-ग्रहण समारोह है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के शपथ लेने से पहले प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए सेना के अधिकारियों ने राज्यों के गवर्नरों से नेशनल गार्ड के ज्यादा से ज्यादा जवानों को भेजने की अपील की थी, जिससे शहर के ज्यादातर हिस्सों में शपथ-ग्रहण से पहले लॉकडाउन लगाया जा सके। गौरतलब है कि छह जनवरी को अमेरिका की संसद भवन कैपिटल पर भीड़ ने हिंसक धावा बोला था। उसी घटना को देखते हुए यह आशंका जताई जा रही है कि हिंसक कट्टरपंथी समूह शहर को निशाना बना सकते हैं। सशस्त्र घुसपैठियों के आने तथा विस्फोटक उपकरण लगाने जैसी आशंका भी जताई गई है। वॉशिंगटन में अगले हफ्ते की शुरुआत तक 25000 से अधिक सैनिकों के आने का अनुमान है, लेकिन इसके साथ ही राज्यों के संसद भवनों में हिंसा की आशंका के संबंध में चिंता जताई जा रही है। अधिकारियों के मुताबिक बीते 72 घंटों में कम से कम 7000 सैनिक मैरीलैंड में ज्वाइंट बेस, एंड्रूज पहुंचे। कई हजार सैनिक बसों और सेना के ट्रकों में सवार हैं और वॉशिंगटन आ रहे हैं। सेना संबंधी मामलों के मंत्री रायन मैक्कर्थी ने गवर्नरों से मदद मांगी थी। एफबीआई ने भी सभी राज्यों के संसद भवनों में हिंसक हमलों की आशंका जताई है। रविवार को हमलों की आशंका के मद्देनजर सभी राज्यों की राजधानियों में हथियारों से लैस सैनिकों को तैनात किया गया है। वॉशिंगटन में पुलिस ने अमेरिकी संसद भवन कैपिटल के नजदीक एक जांच बिन्दु पर एक व्यक्ति के पास एक हैंड गन और 500 राउंड गोलियां बरामद कीं और उसे गिरफ्तार कर लिया है।
सीबीआई बनाम सीबीआई
सीबीआई द्वारा अपनी ही एजेंसी सीबीआई के जिन अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में मामले दर्ज किए गए हैं वो जांच से समझौता करने के लिए न केवल रिश्वत प्राप्त कर रहे थे बल्कि बैंकों से जनता के करोड़ों रुपए का घपला करने की आरोपी कंपनियों से अपने साथियों को रिश्वत दिलाने के लिए जरिये के रूप में भी काम कर रहे थे। यह आरोप उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में लगाए गए हैं। आठ पन्नों की एफआईआर में लगाए गए आरोपों को एजेंसी द्वारा छापेमारी की कार्रवाई पूरी होने के बाद शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया। इसके अनुसार इंस्पेक्टर कपिल धनखड़ को अपने उन वरिष्ठ अधिकारियों, पुलिस उपाधीक्षकों आरके सांगवान और आरके ऋषि से कम से कम 10-10 लाख रुपए प्राप्त हुए जो 700 करोड़ रुपए की बैंक की धोखाधड़ी के आरोपी श्री श्याम पल्प एंड बोर्ड मिल्स तथा फ्रास्ट इंटरनेशनल के लिए समर्थन जुटा रहे थे। जिस पर 3600 करोड़ रुपए के बैंक धोखाधड़ी का आरोप है। प्राथमिकी के अनुसार सांगवान, ऋषि, धनखड़ और स्टेनोग्राफर समीर कुमार Eिसह अधिवक्ताओंöअरविंद कुमार गुप्ता और मनोहर मलिक और कुछ अन्य आरोपियों के साथ मिलकर कुछ मामलों की जांच प्राभावित कर रहे थे। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीबीआई की भ्रष्टाचार के प्रति बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति है, चाहे वह अन्य विभागों की हो या संगठन में हो।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 19 January 2021
कर्नाटक के किसानों से रिलायंस ने एमएसपी से अधिक पर खरीदा धान
कृषि कानूनों के विरोध के बीच कर्नाटक से एक खबर आई है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) की रिलायंस रिटेल लिमिटेड ने सिंधनूर स्थित एग्रो कंपनी के जरिये कर्नाटक के 1100 किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी अधिक कीमत पर एक हजार क्विंटल धान खरीदने के लिए एक समझौते पर दस्तखत किए हैं। एक अधिकारी ने बताया कि कर्नाटक के रायचूर जिले में सिंधनूर तालुक के किसानों से धान (सोना मंसूरी वैरायटी) की 1100 क्विंटल की खरीद पर बड़ी राहत दी है। कर्नाटक में एपीएमसी के बाद किसी बड़ी कारपोरेट कंपनी और किसानों के बीच पहली बार इस तरह की डील हुई है। कंपनी ने सोना मंसूरी धान के लिए 1950 रुपए मूल्य की पेशकश की है, जो सरकार के तय एमएसपी रेट (1868 रुपए) से 82 रुपए अधिक है। स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी (एसएफपीसी) के प्रबंध निदेशक वी. मल्लिकार्जुन ने बताया कि सिंधनूर में हाल में संशोधित कर्नाटक एग्रीकल्चर मार्केटिंग कमेटी (केएपीएमसी) एक्ट 2020 के तहत किसानों से यह समझौता हुआ है। इस कानून के तहत किसानों को अपना उत्पाद सरकारी मंडियों के इतर कहीं भी बेचने और एमएसपी से भी अधिक मूल्य पर बेचने की आजादी मिलती है। चूंकि समझौते पर दस्तखत हो चुके थे, इसलिए किसानों ने विगत शनिवार तक रिलायंस रिटेल को करीब सौ टन धान दे दिया। प्रति 100 रुपए के ट्रांजेक्शन पर एसएफपीसी को 1.5 प्रतिशत का कमीशन मिला। इसके विपरीत देश के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा था कि देश में अभी जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर बहस चल रही है, उनके साथ उसका (कंपनी) का कोई लेना-देना नहीं है। कंपनी ने यह भी कहा कि उसे इस कानून से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हो रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने हाई कोर्ट को कहाöरिलायंस का नाम इन तीन कानूनों के साथ जोड़ना सिर्फ और सिर्फ हमारे कारोबार को नुकसान पहुंचाने और हमें बदनाम करने का कुप्रयास है। कंपनी ने अदालत को आश्वासन दिया था कि वह कारपोरेट या अनुबंध कृषि नहीं करती है। उसने कारपोरेट अथवा अनुबंध पर वृद्धि के लिए पंजाब या हरियाणा या देश के किसी भी हिस्से में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कृषि भूमि की खरीद नहीं की है। खाद्यान्न व मसाले, फल, सब्जियां तथा रोजाना इस्तेमाल की अन्य वस्तुओं का अपने स्टोर के जरिये बिक्री करने वाली उस खुदरा इकाई किसानों से सीधे तौर पर खाद्यान्नों की खरीद नहीं करती है। कंपनी ने कहाöकिसानों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिए हमने कभी लंबी अवधि का खरीद अनुबंध नहीं किया है। हमने न ही कभी ऐसा प्रयास किया है कि हमारे आपूर्तिकर्ता किसानों से पारिश्रमिक मूल्य से कम पर खरीद करें। हम ऐसा कभी नहीं करेंगे। तो सवाल यह है कि रिलायंस ने जो स्टैंड पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में लिया उससे विपरीत कर्नाटक में किसानों से सीधा सौदा किया है। इससे साबित होता है कि रिलायंस ने हाई कोर्ट में गलत हलफनामा दिया? यह भी साबित होता है कि रिलायंस कृषि क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है। यही तो किसानों को डर है कि कारपोरेट कृषि क्षेत्र को अपने कब्जे में करना चाहते हैं, इसीलिए सरकार इन तीनों कानूनों को वापस नहीं ले रही है।
पार्षद-अधिकारी लॉर्ड की तरह जी रहे हैं, कर्मियों को वेतन तक नहीं
राजधानी में नगर निगम के डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों, शिक्षकों और सफाई कर्मियों को नियमित तौर पर वेतन नहीं दिए जाने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया। हाई कोर्ट ने कहा कि निगम पार्षद, वरिष्ठ अधिकारी लॉर्ड की तरह जी रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों, शिक्षकों और सफाई कर्मियों को वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पिल्ले की पीठ ने कहा कि उनकी मंशा लॉर्ड की तरह जी रहे पार्षदों एवं वरिष्ठ अधिकारियों सहित तीनों नगर निगमों के सभी गैर-जरूरी एवं विवेकाधीन खर्चों पर रोक लगाने की है ताकि डॉक्टरों, नर्सों एवं सफाई कर्मचारियों सहित कोरोना के अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कर्मियों को वेतन एवं पेंशन का भुगतान किया जा सके। पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए तीनों नगर निगमों को यह कहते हुए वरिष्ठ अधिकारियों के व्यय का ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया कि यदि किसी को अपने वेतन में कटौती करनी है तो वह हों और उसकी शुरुआत पार्षदों से हो। न्यायालय ने कहा कि महामारी के दौरान डॉक्टरों एवं नर्सों समेत स्वास्थ्य कर्मियों एवं सफाई कर्मियों जो अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे हैं, के वेतन भुगतान को वरिष्ठ अधिकारियों के भत्ते, अन्य विवेकाधीन खर्चों से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। न्यायालय ने कहा है कि तीनों निगमों के पार्षदों, वरिष्ठ अधिकारियों जो शीर्ष के लोग हैं वह लॉर्ड की तरह जिंदगी जी रहे हैं। कोर्ट ने दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को दिए पैसे से ऋण राशि कटौती करने को नामंजूर कर दिया। पीठ ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी ऋण अदायगी और बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा खातों को गैर-निष्पादित सम्पत्तियां घोषित करने पर रोक लगा दी है। पीठ ने कहा कि राजाओं जैसी जिंदगी जी रहे लोगों को जब तक तकलीफ नहीं होगी, तब तक हालात नहीं बदलेंगे। जिन कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है, उनके भी तो परिवार हैं। उन पर भी तो कई जिम्मेदारियां हैं। जरा उनकी तकलीफ को समझें। कुछ लोग मौज करें और सिर्फ तीसरी और चौथी श्रेणी के कर्मचारी ही तकलीफ में क्यों रहें? हाई कोर्ट ने लोन की रकम से वेतन देने के दिल्ली सरकार के फैसले पर भी आपत्ति जताई। सरकार की तरफ से कहा गया था कि निगमों को जो लोन दिया गया है उसमें से वेतन दे सकते हैं। क्योंकि अभी वेतन देने के लिए कोई अन्य साधन नहीं है और फंड की कमी है। इस पर पीठ ने कहा कि फंड की कमी वेतन न देने का बहाना नहीं हो सकता। 21 जनवरी तक जवाब दाखिल कर बताएं कि वेतन देने के लिए क्या सोचा गया है? बता दें कि हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं, जिसमें वेतन की मांग की गई है, तीनों ही निगमों में कई माह से वेतन नहीं मिला है और इसके चलते कई बार हड़ताल तक भी हो चुकी है। अभी भी कुछ कर्मचारी हड़ताल पर हैं।
टीका लगने से कुछ को हुई परेशानी
कोरोना वायरस टीकाकरण के पहले दिन दिल्ली में 52 लोगों को टीका लगाने के बाद परेशानी हुई है। इनमें से एक की हालत गंभीर है। नई दिल्ली जिले में चार लोगों को टीका लगने के बाद हल्के दुप्रभाव के लक्षण सामने आए हैं। देश में पहली बार दिल्ली में 52 स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीका लगने के बाद दिक्कतें हुई हैं। इनमें से दो स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीके की डोज लेने के कुछ घंटे बाद एलर्जी होने लगी थी। इनकी निगरानी घर पर ही की जाएगी। केवल एक कर्मचारी को एईएफआई सेंटर भेजने की नौबत आई है। दिल्ली सरकार के अनुसार राजधानी के सभी 11 जिलों में 8117 लोगों को टीका लगाया जाना था लेकिन 4319 कर्मचारियों को ही टीका लगाया गया। दिल्ली के सभी जिलों में 52 दुप्रभाव के मामले सामने आए हैं, जिनमें से एक मरीज की हालत गंभीर है। सरकार ने बताया कि दिल्ली के 11 में से केवल दो ही जिले ऐसे हैं जहां एक भी दुप्रभाव का मामला नहीं मिला है। उनमें उत्तर पूर्वी और शाहदरा जिले हैं, जबकि अन्य सभी जिलों में साइड इफेक्ट के मामले सामने आए हैं। सरकार ने बताया कि उत्तरी दिल्ली जिला में एक, दक्षिण पूर्वी जिला में पांच, उत्तर पश्चिम में चार, पूर्वी दिल्ली में छह, सेंट्रल में दो, दक्षिणी जिले में 11, नई दिल्ली में पांच, दक्षिणी पश्चिमी जिले में 11 और पश्चिम जिले में छह लोगों में टीका लगने के बाद दिक्कत हुई है। दक्षिणी जिला में एक व्यक्ति में गंभीर दिक्कत हुई है। कुल मिलाकर यह कहा जाएगा कि कम संख्या में लोगों में टीका लगाने का कोई दुप्रभाव पड़ा है। जैसे-जैसे टीकाकरण बढ़ेगा संभव है कि इसके दुष्परिणाम सामने आएं।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 17 January 2021
व्हाट्सएप को पीछे छोड़ा सिग्नल ने
लोकप्रिय मैनेजिंग सर्विस व्हाट्सएप की नई निजता नीति उसे भारी पड़ने लगी है। निजी डाटा में सेंधमारी से नाराज यूजर नए विकल्पों की तलाश में जुट गए हैं। सबसे ज्यादा फायदा टेलीग्राम व सिग्नल एप को मिल रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में ही सिर्फ पांच दिन में 40 लाख लोगों ने सिग्नल और टेलीग्राम डाउनलोड कर लिया है। भारत में सिग्नल काफी तेजी से लोकप्रिय हुआ है। नए साल में ही सिग्नल डाउनलोड करने वालों की संख्या में 100 गुना बढ़ोत्तरी हुई है यानि 9483 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि। टेलीग्राम को भी 15 प्रतिशत ज्यादा लोगों ने डाउनलोड किया है। इतना ही नहीं, व्हाट्सएप को तगड़ा झटका लगा है, उसे डाउनलोड करने वालों की संख्या 35 प्रतिशत घटी है। 72 घंटों में ढाई करोड़ लोग टेलीग्राम से जुड़े हैं तो वहीं सिग्नल भी रोजाना करीब 10 लाख लोग डाउनलोड कर रहे हैं। यह अब तक की सर्वाधिक संख्या है। व्हाट्सएप के विकल्पों की तलाश दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है। टेलीग्राम की मंगलवार शाम तक उपभोक्ताओं की संख्या 50 करोड़ के पार हो गई। इसके संस्थापक पावेल डूरोव के अनुसार सबसे ज्यादा 38 प्रतिशत उपभोक्ता एशिया में बढ़े। इसके बाद 27 प्रतिशत यूरोप, 21 प्रतिशत लातिनी अमेरिका और आठ प्रतिशत वृद्धि अरब देशों व उत्तरी अमेरिका में हुई। खास बात है कि व्हाट्सएप से काफी पहले से टेलीग्राम एंड टू एंड एंक्रिप्शन देता आया है। एप स्टोर पर इसकी रेटिंग 4.5 स्टार और व्हाट्सएप की रेटिंग 4.2 स्टार है। प्राइवेसी संदेश के साथ व्हाट्सएप की खिंचाई को अपने लिए अवसर बनाते हुए सिग्नल ने 11 जनवरी को नया अपडेट जारी किया। इसमें व्हाट्सएप को टक्कर देने के लिए ग्रुप कॉलिंग लांच की। एप को निशुल्क, एंड टू एंड एनक्रिप्टेड और पूरी तरह सुरक्षित बताया गया, वहीं ग्रुप एडमिन, एट-मेंशन, ग्रुप लिंग जैसे फीचर भी जोड़े गए। एप विवरण में बताया कि एप मुनाफे कमाने के लिए नहीं बना, इसलिए विज्ञापन, उपयोगकर्ता की ट्रैकिंग और बाकी हास्यास्पद चीजें नहीं होंगी। दावा किया कि निजता वैकल्पिक नहीं है। यह सभी को मिलनी चाहिए। व्हाट्सएप ने यूजर्स को दी सूचना में निजता को ऑप्शनल बताया था।
70 साल बाद किसी महिला को दी गई सजा-ए-मौत
अमेरिका में लगभग 70 साल बाद, पहली बार किसी महिला कैदी को मौत की सजा दी गई है। 52 वर्षीय लीसा मॉन्टगोमरी को साल 2007 में एक जघन्य अपराध के मामले में दोषी पाया गया था और इस मामले में केंद्रीय अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। उन्हें अमेरिका के इंडियाना प्रांत की एक जेल में जहर का इंजैक्शन दिया गया। इससे पहले अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगाने की अपील को खारिज कर दिया था। इस केस ने लोगों का ध्यान अपनी ओर इसलिए भी आकर्षित किया क्योंकि लीसा के वकील ने अदालत में यह दलील दी थी कि उनकी मुवक्किल की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही है। एक चश्मदीद गवाह के अनुसार सजा से पहले जब मॉन्टगोमरी के चेहरे से मास्क उतारा गया और उनसे पूछा गया कि क्या मरने से पहले उन्हें कुछ कहना है? तो उन्होंने ना के अलावा कुछ नहीं कहा। मॉन्टगोमरी के वकील कैले हेनरी ने उनकी मौत के बाद कहा कि लीसा को न्याय नहीं मिला, उन्हें सजा देने में जो भी लोग शामिल रहे, उन्हें शर्म आनी चाहिए कि वो एक टूटी हुई और तकलीफों से घिरी रही महिला की सजा को रोक नहीं पाए। न्याय विभाग के मुताबिक लीसा की सजा को दो बार स्थगित किया गया जिसमें कोरोना महामारी एक बड़ी वजह रही। लीसा ने साल 2004 में अमेरिका के मिसोरी राज्य में एक गर्भवती महिला का गला घोंटकर हत्या कर दी थी और उसके बाद मृत महिला का पेट चीरकर लीसा ने उसके बच्चे का अपहरण कर लिया था। लीसा से पहले, अमेरिकी सरकार ने साल 1953 में ऐसी सजा दी थी। अमेरिका में मौत की सजा का रिकॉर्ड रखने वाले केंद्र (डीपीआई सेंटर) के मुताबिक 1953 में मिसोरी राज्य की बोनी हेडी को गैस चैंबर में रखकर मौत की सजा दी गई थी। कौन थी लीसा मॉन्टगोमरी? दिसम्बर 2004 में लीसा मॉन्टगोमरी की बॉबी जो स्टिन्नेट से बात हुई थी। लीसा एक पिल्ला खरीदना चाहती थीं। न्याय विभाग की प्रेस रिलीज के अनुसार इसके लिए लीसा कैनसस से मिसोरी गई, जहां बॉबी रहती थीं। बॉबी के घर में घुसने के बाद लीसा ने उन पर हमला किया और गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी। जिस वक्त यह घटना हुई, तब बॉबी आठ महीने की गर्भवती थीं। सरकारी प्रेस रिलीज के अनुसार इसके बाद लीसा मॉन्टगोमरी ने बॉबी के पेट को चाकू की मदद से चीरा लगाया और बॉबी के बच्चे को उनसे अलग किया और उसका अपहरण कर लिया। न्याय विभाग ने यह भी बताया था कि लीसा ने कुछ वक्त तक यह जताने की कोशिश भी की थी कि बच्चा उन्हीं का है। साल 2007 में एक जूरी ने लीसा को हत्या और अपहरण का दोषी पाया और सर्वसम्मति से उन्हें मौत की सजा दिए जाने की सिफारिश की, लेकिन मॉन्टगोमरी के वकील यह दलील देते रहे कि बचपन में लीसा मॉन्टगोमरी को बहुत ज्यादा पीटा गया, उनका उत्पीड़न हुआ जिससे उनके मस्तिष्क को क्षति पहुंची, वो मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं, इसलिए उन्हें मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। अमेरिका न्याय प्रणाली के तहत अभियुक्तों के खिलाफ या तो राष्ट्रीय स्तर पर संघीय अदालतों में मुकदमे चलाए जा सकते हैं या फिर क्षेत्रीय स्तर की राज्य अदालत में। कुछ अपराध जैसे जाली मुद्रा के मामले, ई-मेल चोरी आदि अपने आप ही संघीय स्तर की अदालतों के दायरे में आती है। बीच में अमेरिका में मृत्यु दंड पर रोक लग गई थी। 1976 में यह सजा बहाल हो गई थी।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 16 January 2021
जब तक कानून वापसी नहीं, तब तक घर वापसी नहीं
किसान नेताओं ने तीन कृषि कानूनों पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मंगलवार को स्वागत तो किया, लेकिन साथ ही कहा कि जब तक कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वह अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। करीब 40 आंदोलनकारी किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने अगले कदम पर विचार करने के बाद कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर रोक लगाई है, उनके आंदोलन पर नहीं। किसान नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त किसी भी समिति के समक्ष वह किसी भी कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहते और वह 26 जनवरी को परेड भी निकालेंगे। 13 जनवरी को लोहड़ी पर किसानों ने तीनों कानूनों की प्रतियां भी जलाईं। सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल को रोक लगा दी पर साथ-साथ किसानों से बातचीत के लिए एक चार मैंबर कमेटी बना दी। पर किसानों ने स्पष्ट कह दिया है कि यह कमेटी सरकार और उसके तीनों कानूनों के पक्षधर है और इसके सदस्य कृषि कानूनों की वकालत सार्वजनिक रूप से करते रहे हैं। हम ऐसी कमेटी के सामने बातचीत के लिए नहीं जाएंगे। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि कानून वापसी तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। किसान संगठनों ने 26 जनवरी के प्रोटेस्ट पर भी अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है। किसानों का कहना है कि गणतंत्र दिवस पर हम शांतिपूर्ण रैली निकालेंगे। कोर्ट को भी इस मामले में गुमराह किया गया है। हम साफ कर दें कि हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं और किसी भी तरह की हिंसा स्वीकार नहीं करेंगे। किसानों ने कहा कि कानूनों के अमल पर रोक अंतरिम राहत है, पर यह हल नहीं है। किसान संगठन इस उपाय की मांग नहीं कर रहे थे, क्योंकि कानूनों को तो कभी भी लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह साफ है कि कई ताकतों ने कमेटी के गठन को लेकर कोर्ट को गुमराह किया है। कमेटी में शामिल लोग वो हैं, जो इन कानूनों को समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं और लगातार इन कानूनों की वकालत करते रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा कि हम इस समिति की प्रक्रिया में भाग नहीं लेंगे। ऐसी कोई याचिका कोर्ट में नहीं दी गई है जिसमें कोई समिति बनाने को कहा गया हो। आगे कहा कि कृषि कानूनों पर अस्थायी रोक लगाई है, जो कभी भी हटाई जा सकती है। इसके आधार पर आंदोलन खत्म नहीं किया जा सकता, यह सभी किसान विरोधी कानूनों के समर्थन में है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट इस समिति से बात करना चाहें तो कर लें, लेकिन किसान उनसे बात नहीं करेंगे। किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ और मोर्च के वरिष्ठ नेता हरिंदर लोखवाल ने भी कहाöहमारा प्रदर्शन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर है, जब तक कानून वापसी नहीं, तब तक घर वापसी भी नहीं। संयुक्त किसान मोर्चा ने आरोप लगाया कि किसानों की लगातार हो रही मौत के सिलसिले को देखकर भी सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही है, किसानों की दिल्ली की सीमाओं समेत देश के अन्य हिस्सों में मौत हो रही हैं। अब तक यह आंकड़ा 120 तक पहुंच गया है। यह महज संख्या नहीं है, इनके न होने से किसानों को काफी नुकसान हुआ है।
पीएम, मंत्रियों को पहले टीका लगाने से बढ़ेगी विश्वसनीयता
कोरोना वैक्सीन को लेकर भी खींचतान शुरू हो चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली और पश्चिम बंगाल में फ्री वैक्सीनेशन पर रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अन्य राज्यों के लोगों का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार देश के सिर्फ तीन करोड़ लोगों को ही वैक्सीनेशन की बात कर रही है। देश के 135 करोड़ में से सिर्फ तीन करोड़ लोगों को वैक्सीन लगेगी तो शेष 132 करोड़ लोग कहां जाएंगे? केंद्र सरकार को इसे स्पष्ट करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने इनसे पहले चर्चा के दौरान यह भी कहा कि प्रधानमंत्री और मंत्रियों को पहले टीका लगाने पर ही वैक्सीन की विश्वसनीयता और जनता में इस वैक्सीन के प्रति विश्वास बढ़ेगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल में सिर्फ 70 मंत्री हैं। पहले फेज में केंद्रीय मंत्रिमंडल को वैक्सीन लगाकर देश की जनता के सामने उदाहरण पेश करना चाहिए। विदेश में कई प्रधानमंत्रियों, सरकार के मुखियाओं ने सबसे पहले टीका लगाकर उदाहरण पेश किया है। हालांकि पीएम के उस बयान पर भी सीएम ने सहमति जताई जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को ही वैक्सीन लगाना चाहिए। पीएम मानते हैं कि पहले फ्रंट लाइन वॉरियर्स को वैक्सीन लगे। अन्यथा इसके लिए नेताओं की कतार लग जाएगी। अगर राज्य में हैं तो मुख्यमंत्री से लेकर पूरे मंत्रिमंडल टीका लगाएं। यह जनता की डिमांड है। पहले कोरोना की चपेट में आए लोगों को वैक्सीन लगाने की बात हो रही है। यह सभी बातें अपनी जगह सही हैं। इससे पहले राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने फेज थ्री में परीक्षण के बगैर उपयोग पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि बिना परीक्षण के राज्य को वैक्सीन की सप्लाई न की जाए। उन्होंने निर्धारित वैज्ञानिक मापदंडों को तोड़ते हुए परीक्षण से पहले वैक्सीनेशन की जल्दबाजी करने को उचित नहीं माना था।
-अनिल नरेन्द्र
Friday, 15 January 2021
संसद से पारित कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में तीनों कृषि कानूनों के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध हल करने के लिए चार सदस्यीय एक समिति भी बनाई। समिति दो महीने में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी, जिसकी पहली बैठक 10 दिन में दिल्ली में होगी। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. राम सुब्रह्मण्यम की पीठ ने स्पष्ट कहा कि कृषि कानूनों के तहत किसी भी किसान को जमीन से वंचित नहीं किया जा सकता। किसानों की जमीन की सुरक्षा की जाएगी। साथ ही कानून पारित होने से पहले जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) था, वह अगले आदेश तक जारी रहेगा। कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहाöकोई भी ताकत हमें समिति के गठन से नहीं रोक सकती। समिति इसलिए बना रहे हैं ताकि हमारे पास साफ तस्वीर हो। यह कोई आदेश नहीं जारी करेगी या सजा नहीं देगी। केवल हमें रिपोर्ट सौंपेगी। यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बनेगी। पीठ ने कहाöहम कानूनों की वैधता व नागरिक को लेकर चिंतित हैं। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मोर्चा संभाला। मगर चुनौती देने वाले वकील नहीं आए। यह शायद दूसरी बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने संसद से पास कानून पर रोक लगाई है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि किसी कानून पर तब तक रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक कि वह मौलिक अधिकारों या फिर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न करता हो। किसी कानून को तभी रोका जा सकता है, जब उसमें विधि निर्माण की क्षमता न हो। किसी याचिकाकर्ता ने भी ऐसा मुद्दा नहीं उठाया है। इस पर पीठ ने कहाöअटॉर्नी जनरल ठीक कह रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि कोर्ट के पास किसी वैधानिक अधिनियम के तहत कानून निलंबित करने की शक्ति नहीं है। हम अपनी मौजूदा शक्तियों के अनुसार और एक उद्देश्य के लिए समस्या हल करने की कोशिश कर रहे हैं। चूंकि मामला दुर्लभ है और लोगों की चिंता इससे जुड़ी है इसलिए अंतरिम रोक लगानी पड़ी। चीफ जस्टिस ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक इसलिए है कि कमेटी किसानों व सरकार से बातचीत कर समाधान निकाले। कानूनों के अमल पर रोक लगाना महज औपचारिकता मात्र नहीं है। हम कानून को निलंबित करना चाहते हैं। लेकिन यह अनिश्चित काल के लिए नहीं होगा। हम निक्रियता चाहते हैं। वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि करीब 400 किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील दुष्यंत दवे, एचएस फुलका और कॉलिन गोंजाल्विस सुनवाई में उपलब्ध नहीं हैं। उन्हें किसानों के संगठनों से सलाह कर बताना था कि समिति को लेकर उनकी राय क्या है? इस पर सीजेआई ने कहाöहम समिति अपने उद्देश्यों के लिए बना रहे हैं, जिससे समझ सकें कि जमीनी हालात क्या हैं? अदालत की यह चिंता वाजिब है कि ठंड और बारिश जैसे प्रतिकूल हालात में भी दिल्ली की सीमाओं पर लाखों किसान मोर्चे पर डटे हैं। 60 से ज्यादा किसान ठंड से दम तोड़ चुके हैं व आत्महत्या कर चुके हैं। इस समस्या का हल निकलना चाहिए पर हमें अभी कोई तुरन्त समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा है।
गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक व्यक्ति जिसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसकी गिरफ्तारी पुलिस के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए। जिन मामलों में आरोपी को गिरफ्तार करना, अपरिहार्य है या हिरासत में पूछताछ आवश्यक है, उन मामलों में गिरफ्तारी होनी चाहिए। बुधवार को एक मामले में उक्त टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने बुलंदशहर के सचिन सैनी नाम के व्यक्ति को सशर्त अग्रिम जमानत प्रदान की जिसके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जिस आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसे गिरफ्तार करने को लेकर पुलिस के लिए कोई निश्चित अवधि तय नहीं है। अदालत ने कहाöप्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस अपनी इच्छा से गिरफ्तारी कर सकती है। अदालतों ने बार-बार कहा है कि पुलिस के लिए गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए और यह असाधारण मामलों तक सीमित होना चाहिए, जहां आरोपी की गिरफ्तारी या हिरासत में पूछताछ आवश्यक है। तर्कहीन और अंधाधुंध गिरफ्तारी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने अपने आदेश में जोगिंदर कुमार के मामले का भी सन्दर्भ लिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तृतीय रिपोर्ट का हवाला है। इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत में पुलिस द्वारा गिरफ्तारी, पुलिस में भ्रष्टाचार के मुख्य स्रोतों में से एक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमोबेश करीब 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां या तो अनावश्यक होती हैं या अनुचित होती हैं और इस तरह की अनुचित पुलिस कार्यवाही, जेल के खर्चों पर 43.2 प्रतिशत का योगदान करती है। निजी स्वतंत्रता एक बहुमूल्य मौलिक अधिकार है और बहुत अपरिहार्य होने पर ही इसमें कटौती होनी चाहिए। अदालत ने कहाöखास तथ्यों और खास मामलों की परिस्थितियों के मुताबिक आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए।
ड्रॉ मैच जीत से कम नहीं
दिल और मैदान में चोट लगने का दर्द सहकर भी भारतीय योद्धाओं ने सिडनी टैस्ट मैच ड्रॉ करा ही लिया। यह नतीजा किसी जीत से कम नहीं है। यह क्रिकेटरों के उस जुनून, साहस और धैर्य का प्रतीक बना, जो मुश्किल से मुश्किल हालात में भी लड़ना जानता है। बुलंद हौंसले के साथ चेतेश्ववर पुजारा (77) और ऋषभ पंत (97) की शतकीय साझेदारी से आगाज किया। वहीं हनुमा विहारी (23 नाबाद) ने मांसपेशियों के खिंचाव के बावजूद साबित कर दिया कि दौड़ नहीं सकते हैं तो क्या अंगद की तरह जमे तो रह सकते हैं। रविचंद्रन अश्विन (39) के साथ उन्होंने 259 गेंदों का सामना कर आजीवित 62 रन जोड़े। पैवेलियन तभी लौटे जब कप्तान टिम पेन ने स्वीकार कर लिया कि वो अब जीत नहीं सकते। रोमांच की पराकाष्ठा पर पहुंचे इस मैच के ड्रॉ होने के बाद चार मैचों की सीरीज 1-1 से बराबरी पर है। अब ब्रिस्वेन में 15 जनवरी से शुरू होने वाला चौथा और अंतिम टैस्ट मैच निर्णायक होगा। पंत की शानदार पारी के बाद विहारी और अश्विन ने जिस तरह विकेट पर डटने का जज्बा दिखाया वह लंबे समय तक याद रहेगा। डटे रहकर नया रिकॉर्ड बनाने के दौरान चोटिल होने पर भी हार नहीं मानी। इस प्रदर्शन के बाद अब 15 जनवरी में खेले जाने वाले चौथे टैस्ट में ऊंचे मनोबल के साथ टीम इंडिया उतरेगी। यह सही है कि टीम के कई वरिष्ठ खिलाड़ी चोटिल हो गए हैं पर इसके बावजूद टीम इंडिया के मनोबल में कोई कमी नहीं आई। यह टैस्ट लंबे समय तक याद रहेगा।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 14 January 2021
कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाएं वरना हम लगाएंगे
तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को लगभग 50 दिन हो रहे हैं। केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के बीच 8 दौर की बातचीत विफल रही। ऐसे में सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी थीं कि शायद वह कोई रास्ता निकाले। सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों को मनाने में नाकाम रही केन्द्र सरकार को सोमवार को जमकर फटकार लगाई। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा-केन्द्र सरकार स्पष्ट करे कि वह कानूनों के अमल पर रोक लगाएगी या नहीं? अगर सरकार ऐसा नहीं करेगी तो कोर्ट खुद ही रोक लगा देगी। कोर्ट ने कहा कि कानून के अमल पर रोक लगाकर एक कमेटी बनाई जाएगी, जो सभी पक्षों की बात सुनकर फैसला करेगी। सोमवार को शीर्ष अदालत ने केन्द्र से कहा, हम नहीं चाहते कि किसी के खून के छींटे हमारे हाथों में पड़े। कानूनों के अमल पर आप रोक लगाएं, अन्यथा यह काम हम करेंगे। इसे ठंडे बस्ते में डालने में क्या दिक्कत है? कोर्ट ने किसानों के खिलाफ और पक्ष में दायर हुई सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। सरकार ने कहा कि अभी सभी पक्षों में बातचीत जारी है। इसलिए अभी कानूनों पर रोक लगाना सही नहीं होगा। इस दलील पर चीफ बोबड़े नाराज हो गए और कहा हम बहुत निराश हैं। पता नहीं सरकार इस मामले को कैसे डील कर रही है? वह अब तक नाकाम रही है। केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जब यह कहा कि किसान यूनियनों ने सरकार के कई प्रस्तावों को नकार दिया है तो मुख्य न्यायाधीश बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस सुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, सरकार जिस तरह से इस मामले को देख रही है, उससे हम बेहद निराश हैं। पीठ ने यह भी कहा कि अगर सरकार को जिम्मेदारी का जरा भी अहसास है तो उसे कृषि कानूनों को फिलहाल लागू नहीं करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने हैरानी जताई कि आखिर सरकार गतिरोध खत्म होने तक तीनों कानूनों के अमल पर रोक लगाने को क्यों नहीं तैयार है? इस पर वेणुगोपाल ने कहा कि कानूनों के अमल पर रोक नहीं लगाई जा सकती। किसी भी पक्षकार ने नहीं कहा कि कानून असंविधानिक है। कई राज्यों की यूनियनों ने प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लिया है। पीठ-हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार समस्या को दूर करने में असफल रही है। कृषि कानूनों के कारण हड़ताल हुई और आपको इस परेशानी का समाधान करना है। सीजेआई ने कहा, हमें इस बात की आशंका है कि कोई व्यक्ति किसी दिन ऐसा कुछ करेगा जिससे शांति भंग होगी। नए कानूनों का विरोध अगर लंबा खिंचता है तो हो सकता है कि किसी दिन हिंसा भड़क जाए और जानमाल का नुकसान हो। अगर कुछ गलत होता है तो हम में से हरेक इसके लिए जिम्मेदार होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि केन्द्र सरकार समस्या का समाधान निकालने में सक्षम नहीं है। आपने बिना पर्याप्त मशविरे के ऐसा कानून बनाया जिसका नतीजा विरोध प्रदर्शन के रूप में सामने आया है। कई राज्य विरोध में उतर आए हैं। इसलिए अब आपको आंदोलन का समाधान निकालना होगा। ऐसा बहुत कम बार देखने को मिला है जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी केन्द्र सरकार की इस तरह की फटकार लगाई हो। जनता सुप्रीम कोर्ट से इसीलिए इंसाफ की उम्मीद रखती है।
ड्रग्स के माध्यम से नारको टेरेरिज्म को बढ़ावा
आतंकी फंडिंग के सारे सूत्र धीरे-धीरे बंद होते जा रहे हैं। हवाला से पैसों को ट्रांसफर करने में माहिर पाकिस्तान को अब अपनी आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिए भारत में पैसे भेजने में परेशानी आ रही है। ऐसे में भारत में आतंक को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसी देश की कुख्यात जासूसी एजेंसी आईएसआई ने नारको टेरेरिज्म का सहारा लेना शुरू कर दिया है। इसके पीछे दोहरी साजिश है। पैसे जुटाकर देश में आतंक फैलाया जाएगा और नशा देकर युवा पीढ़ी को विनाश के रास्ते पर भेजा जाएगा। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इसी माह इस साजिश का भंडाफोड़ कर कश्मीर के तीन और खालिस्तान समर्थक दो आतंकियों को दबोचा है। आतंकियों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि ड्रग्स से पैसा जुटाने का खेल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से चल रहा है। यह पैसा देश में आतंक को बढ़ावा देने में इस्तेमाल किया जाना था। नशा अफगानिस्तान में तैयार किया जाता है। वहां से इसे पाकिस्तान और फिर पीओके में लाया जाता है। इसके बाद कश्मीर के रास्ते पंजाब और देश के दूसरे इलाकों में भेजा जा रहा है। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि 7 दिसम्बर को पकड़े गए गुरजीत सिंह, सुखदीप सिंह उर्फ भूरा, शब्बीर अहमद, मो. अय्यूब पठान और रियाज ने खुलासा किया है कि उनकी साजिश हिंदू और राइट विंग नेताओं की हत्या की थी। इसके लिए तीन कश्मीरी आतंकी दो किलो हेरोइन व कुछ कैश दिल्ली में खालिस्तान समर्थक आतंकियों को देने आए थे। आईएसआई नारको टेरेरिज्म के जरिए भारत में आतंक का पेड़ दोबारा हरा करना चाहती है। पंजाब में खालिस्तान समर्थकों की मदद के लिए उन्हें हेरोइन और दूसरे ड्रग्स मुहैया करा फिर आतंक को पनपाने की कोशिश है। इस साजिश का खुलासा होने के बाद दिल्ली पुलिस और चौकन्नी हो गई है। स्पेशल सेल के पुलिस उपायुक्त प्रमोद सिंह कुशवाहा ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने नारको टेरेरिज्म के पहले मामले का खुलासा किया है, लेकिन यह ट्रेंड पहले से जारी है। दूसरी एजेंसियां नारको टेरेरिज्म के खिलाफ लगातार कार्रवाई करती रहती है। नारको टेरेरिज्म पर लगाम कसते हुए अलग-अलग एजेंसियों ने साढ़े चार माह के दौरान एक हजार करोड़ रुपए से भी अधिक की हेरोइन जब्त की हैं। तीन बार की कार्रवाई में नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (एसीबी) ने 160 किलो हेरोइन पकड़ी। इसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत 750 करोड़ रुपए से ज्यादा बताई गई है। इस साल पुलिस ने भी 340 करोड़ कीमत की हेरोइन पकड़ी। राजधानी से इस साल 844 नशा तस्करों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है। पुलिस ने 695 मामले भी दर्ज किए हैं। इनमें नारको टेरेरिज्म का एक ही मामला था। इस साजिश का हर हालत में पर्दाफाश होना चाहिए और इसको रोकने की हर संभव व हर स्टेज पर कार्रवाई करने की सख्त आवश्यकता है। एनआईए समेत सभी प्रभावित राज्यों की गुप्तचर एजेंसी पुलिस अब इस काम पर विशेष ध्यान दे रही है। आतंकवाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ हमारे युवाओं में भी नशे की आदत बढ़ाने हेतु आईएसआई की यह बहुत खतरनाक चाल है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 12 January 2021
ताकि पागल ट्रंप परमाणु हमला न कर सके
अमेरिकी संसद भवन (कैपिटल हिल) में हिंसा के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी के रिपब्लिकन सांसद ने भी डेमोक्रेट प्रतिनिधियों के सुर में सुर मिलाते हुए उन पर महाभियोग चलाने की मांग की है। यह महाभियोग प्रस्ताव संसद में अगले सप्ताह आ सकता है। इस बीच ट्रंप के करीबी चार और मंत्रियों ने विरोध में इस्तीफे दे दिए हैं। अब तक नौ मंत्री इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें शिक्षा मंत्री बेटसे देवोस, परिवहन मंत्री इलेन चाओ और स्वास्थ्य व मानव सेवा सहायक मंत्री एलिनोर शामिल हैं। यह तीनों महिलाएं हैं। जबकि चौथे मंत्री टायलर गुडस्पीड हैं। शिक्षा मंत्री देवोस ने कहाöयह हमला मेरे लिए निर्णायक रहा। परिवहन मंत्री इलेन चाओ ने कहाöवह हिंसा से बेहद दुखी हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की सहायक मंत्री एलिनोर मैककैंस काटजू ने कहाöमैं मानती थी कि महामारी के चलते ट्रंप प्रशासन के सत्ता हस्तांतरण तक मुझे पद पर रहना चाहिए लेकिन दंगों के बाद मेरी योजना बदल गई। उधर डेमोक्रेट सांसदों द्वारा महाभियोग चलाने की बात के बाद ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी 25वें संशोधन के जरिये (धारा चार) ट्रंप को कैबिनेट से हटाने की संभावना पर चर्चा शुरू कर दी है। उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने ट्रंप से रिश्ते टूटने के बाद भी संशोधन से इंकार किया। उधर प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने कहा कि यदि ट्रंप नहीं हटाए गए तो निचला सदन उनके खिलाफ दूसरा महाभियोग लाने पर विचार करेगा। अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने शुक्रवार को अमेरिकी सेना के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन जनरल मार्क माइले से बात की। पेलोसी ने डेमोक्रेटिक सांसदों को पत्र लिखकर बताया कि इस मुलाकात का मकसद पागल निर्वतमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कहीं भी सैन्य कार्रवाई या परमाणु हमला शुरू करने से रोकने के लिए उपलब्ध विकल्पों पर चर्चा करना था। ट्रंप का कार्यकाल खत्म होने में दो सप्ताह से भी कम वक्त बचा है लेकिन कैपिटल हिल के बाद डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टी के सांसद राष्ट्रपति की सफाई के बाद भी उन्हें हटाने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। इस बीच नैंसी पेलोसी ने पत्रकारों से कहा कि वह उपराष्ट्रपति पेंस और कैबिनेट के अन्य नेताओं के फैसले का इंतजार कर रही हैं। उन्होंने कहाöट्रंप को अब कुछ भी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। राष्ट्रपति ट्रंप के करीबी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने कहा है कि राष्ट्रपति को हिंसा में अपनी भूमिका स्वीकार कर लेनी चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा कि ट्रंप को समझना चाहिए कि उनका कदम समस्या है समाधान नहीं। ट्रंप की करीबी सारा मैथ्यूज व कांग्रेस सदस्य अर्ल ब्लूमेनॉयर ने भी ट्रंप पर महाभियोग चलाने की मांग की। ट्रंप समर्थकों की हिंसा को अमेरिका के इतिहास में काला दिन बताते हुए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा लोकतंत्र की अवहेलना के कारण हालात बिगड़े। उन्होंने कहा कि यह अपवाद की घटना कोई असहमति या विरोध प्रदर्शन नहीं बल्कि अराजकता थी। वह प्रदर्शनकारी नहीं थे। वह दंगाई भीड़ थे, वह देश के आतंकी थे, काश! मैं यह कह पाता कि हमने यह सब नहीं देखा, लेकिन यह सच नहीं है।
लश्कर कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी पर पाक का ताजा पैंतरा
पाकिस्तान ने एक बार फिर वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (एफएटीएफ) से बचने का दिखावा किया है। मुंबई हमले के गुनहगार और प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी को पाकिस्तान में शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया। लखवी को पंजाब प्रांत के आतंकरोधी विभाग (सीटीडी) ने अपने शिकंजे में लिया। इस बार उस पर अपने दवा के व्यापार से जुटाए गए पैसों को आतंक की गतिविधियों में लगाने के आरोप में पकड़ा गया है। लखवी को 2008 में संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक आतंकवादी घोषित कर रखा है। दरअसल एफएटीएफ द्वारा काली सूची या ब्लैक लिस्ट किए जाने से बचने के लिए पाकिस्तान समय-समय पर ऐसी पैंतरेबाजी करता रहता है। एफएटीएफ में अपनी इमेज सुधारने की कोशिश में बेशक लखवी की गिरफ्तारी की गई हो पर जिस आरोप में लखवी को शनिवार को गिरफ्तार किया गया, वह पाक हुक्मरानों की कलई भी खोलती है। लखवी पर आरोप लगाया गया है कि वह एक निजी एजेंसी के जरिये आतंकी गतिविधियों के लिए पैसा जुटा रहा है। दूसरी तरफ पाक एफएटीएफ के समक्ष पिछले दो साल से यह गवाही दे रहा है कि उसने आतंकी फंडिंग रोकने का हर मुमकिन रास्ता बंद किया हुआ है। भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि फरवरी 2021 की बैठक में इस बारे में पाक को सफाई देनी होगी। पाक को यह बताना होगा कि मुंबई हमले का मास्टर माइंड जिस पर पाकिस्तानी अदालत में मामला लंबित है, वह किस तरह से आतंकी फंडिंग कर रहा था? यह आरोप अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की इस शंका को भी मजबूत करता है कि पाक में आतंकी फंडिंग रोकने को अब तक कोई पुख्ता उपाय नहीं किए गए हैं। गौरतलब है कि एफएटीएफ ने जून 2018 में पाकिस्तान को ग्रे सूची में शामिल किया था। मुंबई आतंकी हमले के मामले में गिरफ्तारी के आरोप में छह साल जेल में रहने के बाद लखवी 2015 में जमानत पर बाहर घूम रहा था। हालांकि उसकी इस गिरफ्तारी का मुंबई हमले के मामले में कोई संबंध नहीं है यानि सब कुछ बस दिखावे के लिए किया जाता है। इस बार भी पाकिस्तान ने ऐसा ही किया। जेल में गिरफ्तार आतंकवादियों को हर तरह की सुख-सुविधाएं मिल रही हैं। ग्रे सूची से निकलने के लिए पाकिस्तान इससे पहले मुंबई आतंकी हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद को आतंकी फंडिंग के मामलों में सजा देने का पहले भी नाटक कर चुका है। भारत ने कहा है कि पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया हाफिज सईद, मुंबई हमले के मास्टर माइंड जकी-उर-रहमान लखवी को सजा और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के खिलाफ जारी वारंट महज दिखावा है। यह कार्रवाई गैर-कानूनी लेन-देन पर नजर रखने वाली फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की फरवरी में होने वाली बैठक को देखते हुए की गई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने शुक्रवार को कहा कि इस कार्रवाई के समय का संकेत साफ है कि पाकिस्तान दिखावे के लिए यह सब कर रहा है, क्योंकि फरवरी में एफएटीएफ की बैठक है। पाकिस्तान की आतंक निरोधी अदालत ने लखवी को 15 साल जेल की सजा सुनाई है। इससे पहले भी पाक हाफिज सईद को ऐसे ही एक मामले में दिखावे के लिए सजा सुनाने का नाटक कर चुका है।
पाक ने आखिर माना कि बालाकोट में 300 आतंकी मरे थे
पाकिस्तान ने आखिर मान ही लिया कि 26 फरवरी 2019 को बालाकोट एयर स्ट्राइक में 300 आतंकी मारे गए थे। पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक आगा हिलाली ने एक टीवी शो में स्वीकार किया है कि 26 फरवरी, 2019 को बालाकोट पर भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक में 300 आतंकी मारे गए थे। यह स्वीकारोक्ति उस पूर्व राजनयिक की है, जो नियमित रूप से टीवी बहस में पाकिस्तानी सेना का पक्ष लेते हैं। यह पाकिस्तान के उस दावे के बिल्कुल विपरीत है, जिसमें इमरान सरकार ने कहा था कि एयर स्ट्राइक में एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई। बता दें कि पुलवामा हमले के बदले में भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की थी। आगा हिलाली ने कहा कि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके युद्ध जैसा काम किया और इसमें कम से कम 300 आतंकी मारे गए। हमारा लक्ष्य उनसे अलग था। हमने उनके बड़े अधिकारियों को निशाना बनाया। हमारे द्वारा उठाया गया कदम पूरी तरह वैध था। क्योंकि वह सेना के आदमी थे। हमने उस समय कहा था कि इस कार्रवाई में कोई हताहत नहीं हुआ। अब हमने उनसे कहा है कि वह जो भी करेंगे हम सिर्फ उसका जवाब देंगे। हिलाली पाकिस्तानी उर्दू चैनल पर बहस के दौरान बोल रहे थे। पूर्व राजनयिक द्वारा यह रहस्योद्घाटन पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के नेता अजाज सादिक की टिप्पणी के बाद सामने आया है। बता दें कि सादिक ने अक्तूबर 2020 में देश की नेशनल असैंबली में कहा था कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक महत्वपूर्ण बैठक में कहा था कि यदि पाकिस्तान ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को रिहा नहीं किया तो भारत रात नौ बजे पाकिस्तान पर हमला कर देगा। सादिक ने कहा था कि जब कुरैशी संसदीय दल के नेताओं की बैठक में यह जानकारी दे रहे थे तो पाकिस्तान सेना के प्रमुख कमर जावेद बाजवा के पैर कांप रहे थे।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 10 January 2021
और अब एक और निर्भया जैसा कांड
उत्तर प्रदेश के बदायूं में 50 साल की आंगनवाड़ी सहायिका की गैंगरेप के बाद हत्या के बाद हुई बर्बरता ने एक बार फिर निर्भया कांड की याद ताजा कर दी है। यह घटना सन्न करने वाली तो है ही पर स्थानीय पुलिस का रवैया अधिक क्षुब्ध और विचलित करने वाला है। दुख की बात यह है कि वह अभागी आंगनवाड़ी सहायिका, जिसकी आय से परिवार चलता था, मंदिर में पूजा करने गई थी, जहां महंत और उसके चेलों ने महिला के साथ अत्याचार करते हुए बर्बरता की सारी सीमाएं पार कर दीं। बताया जाता है कि सात साल पहले उस मंदिर में आया महंत तंत्र-मंत्र करता था और वह महिला मानसिक रूप से बीमार पति की बेहतरी के लिए उसके पास जाती थी। रविवार की शाम वह महिला जब गांव के मंदिर में पूजा करने गई और जब काफी देर तक नहीं लौटी तो घर के लोग परेशान हो गए। बाद में रात 11ः30 बजे मंदिर का पुजारी अन्य दो लोगों के साथ बुरी तरह घायल अवस्था में उस महिला को घर के पास फेंक कर भाग गए। उसके शरीर से खून बह रहा था और आखिर उसकी मौत हो गई। सिर्फ इतने पर ही पुलिस को तुरन्त सक्रिय होकर मामले की तफ्तीश करनी चाहिए थी। लेकिन लापरवाही का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि रात में ही परिजनों की शिकायत के बाद भी पुलिस अगले दिन पहुंची और पहले रिपोर्ट दर्ज तक नहीं की गई। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी महिला से सामूहिक बलात्कार और जघन्य तरीके से उसकी हत्या के शुरुआती आरोपों की पुष्टि हुई। रिपोर्ट के मुताबिक उसके निजी अंग बुरी तरह घायल थे, लोहे की छड़ से गहरी चोट पहुंचाई गई थी और उसका एक पैर तोड़ दिया गया था। मानो पुलिस की यही निक्रियता कम आपराधिक न हो, बताया जाता है कि खबर फैलने पर उसने बलपूर्वक अंतिम संस्कार करा दिया। पुलिस का यही रवैया हाथरस में भी देखा गया था। हालांकि लापरवाह थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया गया है और मुख्यमंत्री ने मामले की एसआईटी जांच के आदेश दिए हैं। लेकिन विकास दूबे एनकाउंटर, गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या, बलिया में राशन दुकान के लाइसेंस मामले में हत्या और बदायूं जैसे कई मामले सामने आए हैं, जिससे स्थानीय पुलिस की भूमिका चिंतित करने वाली है। पुलिस और प्रशासन की लापरवाही की वजह से अपराधियों के बढ़ते हौंसले ऐसे राज्य की तस्वीर बनाते जा रहे हैं, जिसे अपराध से मुक्त करने का दावा बढ़चढ़ कर किया जाता है। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की दुहाई देकर बहुतेरे नियम-कानून लागू किए जा रहे हैं, मगर जमीनी हकीकत यह है कि दिनोंदिन उत्तर प्रदेश में महिलाओं का जीवन असुरक्षित और दुष्कर होता जा रहा है। समाज के स्तर पर हालत यह हो चुकी है कि मंदिर जैसी जगह को महिला ने सबसे सुरक्षित जगह माना होगा, वहां भी उसके खिलाफ ऐसा जघन्य अपराध हुआ कि उससे जीने का हक तक छीन लिया गया। बदायूं की दर्दनाक घटना यह भी बताती है कि निर्भया जैसी घटना के बाद भी समाज में कुछ नहीं बदला है और फांसी जैसी कठोर सजा अपराधियों में यौन अपराध के प्रति खौफ पैदा करने में विफल रही है।
कोरोना खत्म नहीं हुआ बर्ड फ्लू की नई आफत आ गई
कोरोना वायरस का खतरा अभी पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ कि देश में अब नई बीमारी आ गई है बर्ड फ्लू। बर्ड फ्लू के चलते कई राज्यों में दहशत का माहौल बन गया है। देश के पांच राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हो गई है। राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और केरल में एवियन इंफ्लूएंजा के मामले मिले हैं। केंद्रीय पशुपालन राज्यमंत्री संजीव बालियान ने कहा कि यह इंफ्लूएंजा पक्षियों से इंसानों में फैल सकता है, लेकिन राहत की बात यह है कि अभी ऐसा कोई मामला सामने आया नहीं है। इसका कोई इलाज भी नहीं है। ऐसे में सभी राज्य सरकारों को सावधानी बरतनी चाहिए। जिन राज्यों में हालात ज्यादा डरावने हैं, उनमें राजस्थान, हिमाचल, मध्य प्रदेश, केरल और पंजाब हैं। इन राज्यों में हजारों की संख्या में मौत होने के बाद सरकार ने हालात काबू में करने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। खास बात है कि बर्ड फ्लू के चलते हिमाचल में प्रवासी पक्षियों के भी मारे जाने की खबर है। हिमाचल में तो मछली, मुर्गे और अंडों की बिक्री पर बैन लगा दिया गया है। केरल सरकार ने तो कोट्टायम और अलापूझा जिलों में करीब 20 हजार बतखों और मुर्गियों में इससे संबंधित वायरस एच5एन1 के पाए जाने के बाद बर्ड फ्लू को राज्य आपदा घोषित कर दिया है। उसका यह कदम कोरोना के शुरुआती मामलों के सामने आने के बाद उठाए गए त्वरित कदम जैसा ही है, चिंता की बात यह है कि महज तीन महीने पहले 30 सितम्बर 2020 को देश को बर्ड फ्लू की बीमारी से मुक्त घोषित किया गया था, लेकिन जिस तरह से दक्षिण से लेकर उत्तर के राज्यों में बर्ड फ्लू के मामले सामने आए हैं, वह यह दिखाता है कि किसी भी तरह की चूक खतरनाक हो सकती है। वैसे बर्ड फ्लू वायरस का संक्रमण अमूमन इंसानों में नहीं होता, लेकिन यह पक्षियों और जानवरों के जरिये इंसानों को संक्रमित कर सकता है। सरकार को इसे रोकने हेतु जल्द से जल्द इसकी रोकथाम के उपाय तलाशने की जरूरत है। हो सके तो इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक दिशानिर्देश या बुलेटिन जारी किया जाना ज्यादा हितकर होगा। जिन राज्यों में मामले ज्यादा गंभीर हैं वहां अलग से कुछ अस्पतालों को इसके लिए तैयार करने और इस बीमारी से निपटने वाले विशेषज्ञ अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती से स्थिति को काबू में किया जा सकता है। इससे जनता में डर भी नहीं फैलेगा। निश्चित तौर पर यह समय हम सभी के लिए चुनौती से भरा है। कोरोना अभी कायदे से खत्म भी नहीं हुआ है कि श्वसन तंत्र पर हमला करने वाली दूसरी बीमारी के पैर पसारने से दुश्वारियां स्वाभाविक रूप से बढ़ती दिख रही हैं। स्वास्थ्य के मोर्चे पर बर्ड फ्लू एक चुनौती तो है ही, इससे पोल्ट्री के कारोबार पर भी असर पड़ना तय है। इस समय राष्ट्रीय कार्यबल के दिशानिर्देश का पालन करते हुए यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि एवियन इंफ्लूएंजा का संक्रमण और न फैले।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 9 January 2021
अमेरिकी लोकतंत्र का काला दिन
अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जितना बवाल इस बार हुआ है, शायद ही कभी हुआ हो। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप डेमोक्रैट जो बाइडन की जीत स्वीकार करने को पहले ही तैयार नहीं थे लेकिन शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि हालात इतने बिगड़ जाएंगे या बिगाड़ दिए जाएंगे। ट्रंप समर्थक बुधवार को जबरन संसद कैपिटल में घुस गए, हिंसा हुई और एक जान भी चली गई। इतिहासकार बताते हैं कि देश की संसद ने ऐसा हाल कम से कम 200 साल बाद पहली बार देखा है। यह घटना इतनी गंभीर है कि खुद रिपब्लिकन नेता लोकतंत्र पर हुए इस हमले के बाद डोनाल्ड ट्रंप को बाहर करने की मांग करने लगे हैं। कैपिटल हिल हिस्टॉरिकल सोसाइटी के डायरेक्टर ऑफ स्कॉलरशिप एंड ऑपरेशंस सैम्युअल डॉलिडे ने सीएनएन को बताया है कि 1812 के युद्ध के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि कैपिटल में इस तरह कोई दाखिल हुआ है। तब अगस्त 1814 में अंग्रेजों ने इमारत पर हमला कर दिया था और आग लगा दी थी। 1954 में हाउस ऑफ चैंबर में तीन पुरुष और एक महिला विजिटर गैलरी में हथियारों के साथ जाकर बैठ गए थे। प्योर्टो रीगन नेशनलिस्ट पार्टी के सदस्य देश की आजादी की मांग कर रहे थे। उन्होंने एक मार्च 1954 की दोपहर को सदन में ओपन फायरिंग कर दी और प्योर्टो रीगन का झंडा लहरा दिया था। इस घटना में कांग्रेस के पांच सदस्य घायल हुए थे। देश के साथ पूरी दुनिया को हिलाकर रख देने वाली इस घटना के बाद रिपब्लिकन पार्टी के ही नेता 20 जनवरी से पहले डोनाल्ड ट्रंप को पद से हटाने की मांग करने लगे हैं। इस दिन (20 जनवरी) बाइडन के पद्भार संभालने के लिए इनोग्रेशन समारोह आयोजित किया जाना है। नेताओं ने महाभियोग लगाकर ट्रंप को हटाने की मांग की है। एक पूर्व सीनियर अधिकारी ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐसा काम किया है कि भले ही उनके कार्यकाल के सिर्फ कुछ दिन ही बाकी हों, उन्हें हटा देना चाहिए। उनका कहना है कि यह हमला पूरी व्यवस्था के लिए झटका है। राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडन के निर्वाचन को मंजूरी देने के लिए अमेरिकी संसद (कांग्रेस) की बैठक के दौरान बुधवार को हजारों ट्रंप समर्थक जबरन संसद परिसर में घुस गए। कुछ समर्थक सीनेट तक पहुंच गए। इसके चलते संसद की कार्यवाही रोक दी गई और बैठक की अध्यक्षता कर रहे उपराष्ट्रपति माइक पेंस व सांसदों को वहां से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। वाशिंगटन में कर्फ्यू लगा दिया गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सीनेट में गोली भी मिली है। दरअसल दिन में समर्थकों की रैली में ट्रंप ने एक बार फिर चुनाव में जीत का दावा करते हुए सेव अमेरिका मार्च का आह्वान किया। इस पर बड़ी संख्या में उनके समर्थक कैपिटल हिल पहुंच गए और हंगामा शुरू कर दिया। कैपिटल हिल में ही अमेरिकी संसद स्थित है। समर्थक चार स्तरीय सुरक्षा घेरा तोड़कर आगे बढ़े तो पुलिस से भिड़ंत हो गई। अनियंत्रित भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले भी दागने पड़े। रिपब्लिकन संसदीय दल के नेता कैविन ने बताया कि मैंने पुलिस रेडियो पर गोली चलने की भी आवाज सुनी। कैपिटल हिल बिल्डिंग में हंगामा बढ़ते देख मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल और बम निरोधी दस्ता तैनात था। एक संदिग्ध पैकेट मिलने के बाद आसपास की दो बिल्डिंग भी खाली करवानी पड़ी। अमेरिकी लोकतंत्र का यह दिन काला अध्याय है।
जिनपिंग से विवाद के बाद अरबपति जैक मा लापता
चीन के अरबपति और अलीबाबा समूह के मालिक 56 वर्षीय जैक मा रहस्यमयी तरीके से लापता हैं। बीते दो माह से लोगों ने उन्हें देखा तक नहीं है। बताया जा रहा है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से विवाद के बाद उनका कुछ अता-पता नहीं है। वह चीन के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति हैं। उनके लापता होने के पीछे चीन सरकार का हाथ माना जा रहा है। अपनी नीतियों की आलोचना के कारण पिछले तीन महीने से चीन सरकार जैक मा के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। चीन उन्हें कारोबारी नुकसान पहुंचाने वाले निर्णय कर रहा है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा और एंट फाइनेंस कंपनी के संस्थापक जैक के लापता होने की आशंका तब और बढ़ गई जब वह अपनी ही कंपनी के स्टार्टअप रियलिटी शो अफ्रीका के बिजनेस हीरो में शामिल नहीं हुए। सात करोड़ रुपए की इनामी राशि वाले इस शो में उनकी जगह दूसरे अधिकारी को भेजा गया। शो की वेबसाइटस से भी उनकी तस्वीर हटा दी गई। शक की चार वजहें हैंöजिनपिंग को चुनौती-सरकारी सूत्रों का दावा है कि जैक की छवि सरकार को टक्कर दे रही थी। इस काम में वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग से ज्यादा प्रभावशाली माने जा रहे हैं। इससे कम्युनिस्ट पार्टी सदस्य नाराज हैं। जैक ने 24 अक्तूबर को कहा था कि चीन के बैंक साहूकार हैं। वह आगे बढ़ना ही नहीं चाहते और जोखिम से बचते हैं। वित्त क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में है। सरकार ने इस बयान को मुंह पर मुक्के जैसा बताया था। चीन ने नवम्बर में एंट फाइनेंस के 2.70 लाख करोड़ रुपए जुटाने के लिए लाए जाने वाले आईपीओ को रुकवा दिया, जिसे विश्व का सबसे बड़ा आईपीओ बताया जाता है। दिसम्बर में चीन ने अलीबाबा और एंट फाइनेंस के कारोबार को स्पर्धारोधी बताकर जांच बैठा दी। इस पर छोटी कंपनियों को नुकसान पहुंचाकर आगे बढ़ने का आरोप लगा। यह कदम मैक को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के लिए उठाया गया। वैसे तो चीन में सैकड़ों लोगों का कुछ अता-पता नहीं चलता पर जैक मा चीन के सबसे बड़ी उद्योगपतियों में से एक हैं और उनके हाई-प्रोफाइल की वजह से उनके लापता होने पर इतनी चर्चा हो रही है।
राजनीति के थियेटर में 21 बड़ी फिल्में
मई-जून में बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम व पुडुचेरी में चुनाव हैं। बंगाल में दीदी के सामने चौथी बार सरकार बनाने तो केरल में वामदलों को आखिरी किला बचाने की चुनौती होगी। पश्चिम बंगाल में मई-जून में चुनाव प्रस्तावित हैं। 294 सीटों वाली विधानसभा में टीएमसी के 211, कांग्रेस के 44, वामदलों के 27 और भाजपा के पास तीन सीटें हैं। केरल में 140 सीटों पर चुनाव है। सीपीएम 77 सीटों के साथ सत्ता में है। कांग्रेस के 22 विधायक हैं। भाजपा को यहां एक भी सीट नहीं मिली। असम में 126 में भाजपा, 60 कांग्रेस व अगप की 14 सीटें हैं। तमिलनाडु में जून में चुनाव हैं। 234 सीटों में 134 एआईडीएमके के पास है और वह सत्ता में है। डीएमके की 89 सीटें हैं। अभिनेता रजनीकांत चुनाव में उतरने में फिलहाल असमंजस में हैं। अब भाजपा-एआईडीएमके का गठबंधन नहीं होने के बाद उन्होंने चुनाव से इंकार कर दिया। पुडुचेरी में जून में चुनाव है। 30 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस की 15 सीटें हैं। भाजपा के पास दो प्रतिशत वोट पर सीट एक भी नहीं। यहां कांग्रेस-एआईडीएमके-डीएमके मुख्य मुकाबले में है। नए साल में सबसे पुराने राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को स्थायी अध्यक्ष मिल सकता है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस दिशा में जल्द फैसले की संभावना है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 7 January 2021
गए तो थे जयराम की अंत्येष्टि पर 25 लोगों की और करनी पड़ी
उत्तर प्रदेश के मुरादनगर की संगम विहार कालोनी उस श्मशान घाट से महज सौ मीटर दूर है जहां हुए हादसे ने इस पूरी कालोनी को ही श्मशान घाट सा शोकाकुल बना दिया। इस कालोनी की जिस गली के आखिर में 65 वर्षीय जयराम का घर है। उस गली में उनके अलावा चार अन्य घरों के भी चिराग उजड़ गए हैं और मातम पूरी गली में ही नहीं बल्कि पूरे इलाके में छाया हुआ है। हादसे के शिकार लोग जयराम के ही अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए श्मशान घाट गए हुए थे जिनका रविवार दिन में निधन हो गया था। मोहल्ले के लोगों और रिश्तेदारों समेत करीब सौ लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। जयराम के अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान स्थल में छत गिर गई और मलबे में 24 लोगों की मौत हो गई। यह हादसा जितना स्तब्ध कर देने वाला है, उतना ही दुखद और शोक का कारण। यह माना जा रहा है कि निर्माण में घटिया सामग्री के इस्तेमाल की शिकायतों के बावजूद समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की गई। करीब दो महीने पहले ही यह छत तैयार हुई थी और रविवार को फल विक्रेता जयराम के अंतिम संस्कार में आए बाकी 100 लोग तेज बारीश से बचने के लिए उसके नीचे खड़े हुए थे कि भरभराकर यह छत गिर गई। जिसमें कई लोग जिंदा दफन हो गए। यह घटना कितनी हृदय विदारक थी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारी भरकम मलबे के नीचे दबे कई मृतकों और घायलों को निकालने के लिए पुलिस के साथ राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की टीमों को कई घंटों मशक्कत करनी पड़ी। बेशक पुलिस ने मुरादनगर पालिका के कार्यकारी अधिकारी सहित तीन लोगों को गैर इरादतन हत्या सहित कई धाराओं में गिरफ्तार किया है, लेकिन यह हादसा दिखाता है कि सरकारी निर्माण की आड़ में भ्रष्टाचार करने वालों ने श्मशान घाट तक को नहीं बख्शा। हैरत इस बात की है कि श्मशान स्थल पर शेड बनाए जाने के दौरान ही निर्माण में घटिया सामग्री के इस्तेमाल की कई स्तरों पर शिकायतें की गई थीं, मगर उन पर ध्यान नहीं दिया गया। यदि यह सच है कि यहां हुए निर्माण की गुणवत्ता की जांच लंबित थी, तो यह और भी गंभीर मामला है। परिसर बिना गुणवत्ता को परखे श्मशान स्थल पर आने वाले लोगों के लिए क्यों खोल दिया गया था? श्मशान घाट में जिस गलियारे की छत ढही है, उसका निर्माण कार्य दो महीने पहले शुरू हुआ था। इस गलियारे को बनाने में करीब 55 लाख रुपए की लागत आई थी और अभी दो हफ्ते पहले ही इसे आम लोगों के लिए खोला गया था। परिसर और प्रवेश द्वार से लेकर सीधे कुछ दूर तक इस गलियारे का निर्माण इसलिए किया गया था ताकि लोगों को छाया मिल सके, लेकिन यह छत खुद कुछ घंटों की लगातार बारिश भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और ढह गई। मलबे से लोगों को निकालने के बाद मलबे में फंसी चप्पलें, जूते, शॉल और कपड़े घटना की भयानकता को बयां कर रहे हैं। दूसरी ओर मलबे में दिख रहीं ईंटें, सीमेंट और बालू निर्माण कार्य में बरती गई लापरवाही और भ्रष्टाचार की कहानी सुना रहे हैं। श्मशान घाट के बाहर आमीन ने घटना के बारे में बताया ऐसा लगा कि आसपास कहीं बम फट गया है। लेकिन उसके बाद चीख-पुकार सुनाई पड़ी तो यह देखा यह हादसा है न कि कोई बम फटा है। घटना के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गाजियाबाद के जिलाधिकारी व अन्य अफसरों को तुरन्त पहुंचने के निर्देश दिए और मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए की आर्थिक मदद की घोषणा की। लोगों में इस बात को लेकर बेहद गुस्सा स्वाभाविक है कि सरकारी लापरवाही ने इतने लोगों की जान ले ली।
रिलायंस की सफाई, कृषि कानूनों से हमारा लेना-देना नहीं
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अपनी सब्सिडियरी जियो इंफोकॉम के जरिए एक याचिका दायर की है। इसमें शासन से उपद्रवियों द्वारा तोड़फोड़ की गैर कानूनी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। कंपनी का कहना है कि उपद्रवियों द्वारा की गई तोड़फोड़ और हिंसक कार्रवाई से उसके हजारों कर्मचारियों की जिन्दगी खतरे में पड़ गई है। साथ ही दोनों राज्यों में कम्युनिकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, सेल्स और सेवा आउटलेट के रोजमर्रा के कामों में व्यवधान पैदा हुआ है। याचिका में रिलायंस ने कहा कि देश में वर्तमान में जिन तीन कृषि कानून पर देश में बहस चल रही है। उनसे रिलायंस का कोई लेना-देना नहीं है, और न ही किसी भी तरह से उसे इनका लाभ पहुंचता है। कृषि कानूनों से रिलायंस का नाम जोड़ने का एकमात्र उद्देश्य हमारे व्यवसायों को नुकसान पहुंचाना और हमारी प्रतिष्ठा को तहस-नहस करना है। याचिका में यह भी कहा गया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, रिलायंस रिटेल लिमिटेड, रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड और रिलायंस से जुड़ी कोई भी अन्य कंपनी न तो कॉरपोरेट का कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करती है और न ही करवाती है। और न ही भविष्य में इस बिजनेस में उतरने की कंपनी की कोई योजना है। सारा मामला किसान आंदोलन से जुड़ा है। कुछ तथाकथित किसानों ने पंजाब और हरियाणा के जियो टॉवर, जियो मॉल में तोड़फोड़ की है। इसी सिलसिले में रिलायंस ने भारती एयरटेल पर आरोप लगाया है कि जियो के खिलाफ तोड़फोड़ में उसका हाथ है। मुकेश अंबानी नियंत्रित टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो के टेलीकॉम टावर क्षतिग्रस्त कर दिए जाने के मामले में कंपनी और उसकी प्रतिस्पर्धियों एयरटेल में ठन गई है। भारती एयरटेल ने दूरसंचार विभाग (डीओटी) को पत्र लिखकर जियो के आरोपों को बेबुनियाद और साख पर चोट पहुंचाने वाला बताया है। वहीं वोडाफोन-आइडिया ने भी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि वह टेलीकॉम इंफ्रा को नुकसान पहुंचने वाली गतिविधियों की निंदा करती है। कम्पनी ने कहा है कि जियो के आरोप मनगढंत और उसे नुकसान पहुंचाने वाली प्रकृति के हैं। टेलीकॉम सचिव अंशु प्रकाश को लिखे पत्र में उसने खंडन किया है कि जियो के टावरों की तोड़फोड़ में उसकी कोई भूमिका है। वर्तमान किसान आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के एक वर्ग का मानना है कि सरकार नए कृषि कानूनों की आड़ में अडानी और अंबानी समेत चुनिंदा उद्योगपतियों को फायदा पहुंचा रही है। इस बीच पंजाब, हरियाणा व कुछ अन्य जगहों पर करीब 1600 टावरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। इनमें से अधिकांश मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस जियो के स्वामित्व वाले हैं। जियो का आरोप है कि उसकी प्रतिस्पर्धी कंपनियां ऐसा कर उसकी सेवा में बाधा डाल रही हैं। कंपनी के मुताबिक टावर मामले में एयरटेल, वोडा-आइडिया के चैनल पार्टनरों की प्रत्यक्ष भागीदारी है।
निशाने पर ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनव्वा प्रांत के कटक जिले में पिछले दिनों ऐतिहासिक मंदिर में तोड़फोड़ और आगजनी के मामले में पुलिस ने कई और लोगों को गिरफ्तार किया है। इसके साथ ही मामले में अब तक 100 से ज्यादा आरोपी पकड़े जा चुके हैं। इसमें पुलिस के कुछ कर्मी भी शामिल हैं। इस मामले में लगभग 350 नामजद आरोपी हैं। इनमें कट्टरपंथी संगठन जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के केंद्रीय नेता रहमत सलाम खट्टक और उनकी भीड़ के उकसाने वाले मौलवी भी शामिल हैं। गौरतलब है कि जिले टेरी गांव में कट्टरपंथियों की भीड़ ने एक ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर में नए निर्माण के साथ उसके पुराने ढांचे को गत बुधवार को गिरा दिया था और उसके बाद उसमें आग लगा दी गई थी। मानवाधिकार कार्यकर्ता और पाक अल्पसंख्यक हिन्दु समुदाय ने इस घटना की कड़ी आलोचना की थी। इसके बाद प्रांत के मुख्यमंत्री महमूद खान ने शुक्रवार को कहा था कि प्रांतीय सरकार गिराए गए मंदिर का पुनर्निर्माण कराएगी। सरकार ने पुनर्निर्माण के लिए आदेश जारी कर दिया है। वहीं मंदिर में तोड़फोड़ और आगजनी को लेकर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई शुरू कर दी है। ताजा घटना में साफ है कि मंदिर को गिराने का यह कृत्य सुनियोजित था। यह भी सच्चाई है कि कहीं भी उकसाए लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम नहीं देते हैं। वरना अब तक तो यह मंदिर कब का साफ हो चुका होता। दूसरे धर्मों के प्रति घृणा फैलाने का काम कट्टरपंथी ताकतें ही करती हैं। ऐसी ताकतों को सत्ता का पूरा संरक्षण हासिल रहता है। मंदिर या दूसरे धर्म स्थलों को नुकसान पहुंचाने के मामले में आज तक किसी के भी खिलाफ कोई कार्रवाई हुई हो ऐसा देखने में नहीं आया है। अपने नागरिकों को धार्मिक आजादी प्रदान कराने के मामले में वैसे भी पाकिस्तान बदनाम मुल्क के रूप में जाना जाता है। संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका और दूसरे देश भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को लेकर चिन्ता व्यक्त करते रहे हैं। यहां तक कि पाकिस्तान का मानवाधिकार आयोग तक कह चुका है कि आने वाले वक्त में यहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति और खराब होगी। पाकिस्तान के संविधान ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी सामान अधिकार देने की बात की है। लेकिन आज पाकिस्तान सरकार अपने ही संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए यहां धार्मिक उत्पीड़न कर रही है। धार्मिक स्थलों पर हमलों को रोकने की नीति को बनाए अगर पाकिस्तान सरकार दशकों से बन्द पड़े मंदिरों और गुरुद्वारों को फिर से खुलवाने की दिशा में बढ़े तो इससे अल्पसंख्यकों के भीतर भी सरकार के प्रति भरोसा पैदा होगा और ऐसी कवायद भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में सही भूमिका निभा सकती है लेकिन क्या पाकिस्तान इस बात को समझ पाएगा?
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 2 January 2021
बात बढ़ी तो सही पर आधी रह गई
किसान सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता से भी समाधान नहीं निकलना निराशाजनक है। इस वार्ता से बहुत उम्मीदें जताई जा रही थीं। विज्ञान भवन में आयोजित सातवें दौर की वार्ता के बीच मंत्रियों ने भी किसानों के लंगर का आनंद लिया, लेकिन कुल मिलाकर सभी मुद्दों पर सहमति नहीं बन सकी। अगली वार्ता शायद चार जनवरी को होगी, तब तक किसान आंदोलन जारी रहेगा। सरकार के साथ इस दौर की बातचीत के बाद किसान नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा कि सरकार ने दो समितियां बनाने का प्रस्ताव दिया था। एक एमएसपी के अनुपालन के लिए और दूसरा हमारी कानून वापसी की मांग का विकल्प तलाशने के लिए, हमने दोनों को नामंजूर कर दिया है। सरकार का रवैया नरम था और उन्होंने आज की वार्ता के आधार पर नया प्रस्ताव भेजने को कहा है। लेकिन किसानों का कोई और प्रस्ताव है ही नहीं, हमारी बस यही मांग है कि एमएसपी पर गारंटी मिले और तीनों कानून वापस लिए जाएं। हम इस पर एक बार दो जनवरी को विचार-विमर्श करेंगे। सरकार और किसानों के बीच हुई बातचीत में पेंडिंग दिखे दो मुद्दों के पेच बड़े हैं और दूरगामी हैं। तीन कानून वापस लेने से सरकार के सम्मान, इकबाल और व्यापक कृषि सुधारों की सोच को धक्का लग सकता है। एमएसपी को कानून में शामिल करने से सरकार पर आर्थिक बोझ तो बढ़ेगा ही, साथ ही इन तीन कानूनों का प्रभाव भी कम हो जाएगा। किसानों और सरकार के लिए नई चुनौतियां पैदा भी हो सकती हैं। तीन कानूनों के जरिये सरकार ने एपीएमसी और एमएसपी जारी रखने के साथ ही निजी क्षेत्र को फसल की बिक्री के विकल्प भी दिए हैं। लेकिन आंदोलनकारी किसान इन तीन कानूनों को अपने लिए घातक मान रहे हैं। उसकी कई वजह गिना रहे हैं। कह रहे हैं कि एमएसपी तो मिलेगी नहीं और निजी क्षेत्र हावी होता जाएगा। अंतत किसानों की जमीन भी संकट में पड़ सकती है। सूत्रों के अनुसार आंदोलनकारी किसान एमएसपी पर कानून की मांग इसलिए कर रहे हैं कि इससे सभी फसलों के दाम सुरक्षित हो जाएंगे। अभी गेहूं, धान, तिलहन, दलहन जैसी कुछ चीजें ही एमएसपी पर खरीदी जाती हैं। बाकी खुले बाजार में जाती हैं। एमएसपी पर कानून के बाद सभी तरह की फसल इसी आधार पर खरीदी जाएगी। फल और सब्जियों तक के लिए भी नई बेहतर राह बन सकती है। जब सब चीजें एमएसपी पर खरीदी जाएंगी तो निजी क्षेत्र को कुछ बेचने की भागदौड़ और जरूरत कहां रहेगी? सरकार इस तरह के कई पेच को समझ रही है। किसानों को यह समझाने की कोशिश भी हो रही है कि आखिर सारा माल बिकना तो आमजन को ही है। यदि किसान एमएसपी पर सब कुछ बेचता है और निजी क्षेत्र विदेश से सस्ती दर पर चीजें मंगाकर बाजार में उतार देती है तो क्या होगा? सरकार किसी को भी अपना कारोबार करने से रोक नहीं सकती है? इस तरह के और भी कई पेच पैदा हो सकते हैं, जिनकी वजह से किसान या अन्य किसी सेक्टर के लोग नई मांग लेकर आंदोलन कर सकते हैं। जानकारों के अनुसार आंदोलनकारियों ने कानूनी और विपक्षी मदद से सरकार को सही फंसाया है? सूत्रों के मुताबिक इससे निकलने की राह धीरे-धीरे बना रही है। पराली और बिजली मुद्दे पर सरकार द्वारा भरोसा देने के बाद आंदोलनकारी नेताओं तक पहुंचाया जा रहा है कि वह भी भरोसा बढ़ाने के कदमों और भाषा पेश करें। एक सूत्र के अनुसार किसान नेताओं से कहा गया है कि वह तीन कानूनों की वापसी की जगह कोई अन्य शब्द और भाषा सुझाएं। हालांकि आंदोलनकारी नेता फिलहाल विरोध की तेजी न दिखाने के संकेत दे रहे हैं, पर उनके भी विकल्प खुले हैं।
पत्रकारों के लिए सबसे बड़ा जेलर चीन है
पत्रकारों को सजा देने के मामले में चीन सबसे आगे है। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। चीन में 47 पत्रकारों को जेल में डाला गया है, जिनमें से तीन कोरोना पर सरकार के कदमों से जुड़ी खबरें देने के कारण जेल गए हैं। दुनियाभर में अपने काम की वजह से इस माह की शुरुआत में 250 पत्रकार जेल में बंद थे। तीन दर्जन ऐसे पत्रकार जेल गए, जिन पर फर्जी खबरें देने का आरोप है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन में पत्रकारों के खिलाफ सबसे ज्यादा कार्रवाई की गई है। इसके बाद तुर्की और मिस्र हैं। मिस्र में 27 पत्रकारों को जेल जाना पड़ा है, जिनमें से कम से कम तीन को कोविड-19 महामारी से जुड़ी खबरों के लिए जेल भेजा गया। वहीं मिस्र और होंडुरस में जेल में संक्रमित होने से पत्रकारों की मौत तक हो गई। बेलारुस और इथोपिया में असंतोष होने के दौरान कई पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई। कमेटी ने कहा कि यह लगातार पांचवां साल से ऐसा है, जब कम से कम 250 पत्रकार हिरासत में हैं, जो कि सरकारों के दमनकारी कदमों को दर्शाते हैं। कमेटी ने बताया कि जेल जाने वाले पत्रकारों में से 36 महिला पत्रकार भी हैं। अमेरिका प्रेस फ्रीडम एक्ट के अनुसार इस महीने की शुरुआत में अमेरिका में किसी पत्रकार की न तो हत्या हुई है और न ही कोई अभी जेल में है। लेकिन 2020 में 110 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और उन पर आपराधिक आरोप लगाए गए। ब्लैक लाइफ मैटर आंदोलन से सबसे ज्यादा पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई। कमेटी ने इस बात पर भी चिन्ता जताई है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फर्जी खबरों को लेकर बार-बार दिए गए बयान से अन्य देशों के अधिनायकवादी नेता प्रभावित हो रहे हैं। पिछले कई वर्षों के मुकाबले अब ज्यादा पत्रकार जेल में हैं। कमेटी ने बताया कि 2005 में 131 और 2000 में यह संख्या 92 थी। पत्रकार सुरक्षा समिति की रिपोर्ट के अनुसार इस साल भारत में चार पत्रकार जेल में बंद किए गए। वहीं दो पत्रकारों की मौत हो गई। इनमें यूपी में एक पत्रकार के जलकर मरने और असम में हिट एंड रन में एक अन्य पत्रकार की मौत शामिल है। समिति के एक पदाधिकारी कोर्टनी राडसश ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से इस साल संघर्ष क्षेत्रों में पत्रकारों की संख्या कम है, जहां वह संघर्ष का शिकार हो सकते हैं। इस साल अब तक कुल 29 पत्रकार मारे जा चुके हैं, जो पिछले साल से ज्यादा हैं। पिछले साल 26 पत्रकारों की हत्या हुई थी।
-अनिल नरेन्द्र
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