Thursday 28 January 2021

लाल किले की गरिमा पर चोट

पिछले दो महीने से किसान आंदोलन बड़े संयम, अनुशासन से चल रहा था पर गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड में कैसे अपनी दिशा से भटक गया, यह सवाल आज सब पूछ रहे हैं? काफी विवाद और मशक्कत के बाद किसान नेताओं को ट्रैक्टर परेड की लिखित अनुमति मिली। आपसी सहमति से परेड के मार्ग तय हुए थे। पर अंदरखाते किसान नेताओं को इस बात का एहसास हुआ था कि शायद कुछ बाहरी तत्व किसानों की आड़ में गड़बड़ कर सकते हैं। इसीलिए किसान नेताओं ने बार-बार आंदोलनरत किसानों से अपील की थी कि वह किसी भी रूप में हिंसा न करें, अराजकता न फैलाएं। पर 26 जनवरी को जो हुआ वह शर्मसार करने वाला है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों ने सारी मर्यादाएं भूलकर हिंसा की। 72वें गणतंत्र दिवस की चमक को इन अराजक तत्वों ने धूमिल कर दिया। मंगलवार को जिस तरह से उपद्रवियों ने लाल किले पर कब्जा किया और दिल्ली की सड़कों पर कोहराम मचाया, उससे विदेशी मीडिया ने भारत की छवि को खराब की ही, पाकिस्तान में भी जश्न मनाया गया। लाल किले पर तो इतिहास को कलंकित कर दिया गया। जिस स्थान पर और पोल पर प्रधानमंत्री 15 अगस्त को हर साल झंडा फहराते हैं, वहां निशान साहिब (गुरुद्वारों पर फहराने जाने वाला झंडा) फहरा दिया। लाल किले पर निशान साहिब की तस्वीरें विश्वभर में वायरल हो गईं और जिससे भारत विरोधी ताकतों ने जश्न मनाया होगा। पाकिस्तान के कई ट्विटर हैंडलों से इस तस्वीर को ट्वीट किया गया और बताया गया कि भारत का झंडा बदल गया है। ट्रैक्टर परेड दिन के 12 बजे से दिल्ली के बाहरी रिंग रोड पर शुरू होनी थी। मगर सिंघु बॉर्डर की तरफ से कुछ किसानों ने सुबह साढ़े सात बजे ही अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं और दिल्ली के अंदर घुसने के प्रयास शुरू कर दिया। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने जगह-जगह अवरोध लगाए, मगर उपद्रवियों ने उन्हें तोड़ दिया और आगे बढ़ने लगे। मजबूरन पुलिस को कई जगहों पर बल प्रयोग करना पड़ा, आंसू गैस के गोले दागने पड़े। हालांकि कुछ किसान नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने तय मार्गों पर भी अवरोध खड़े कर परेड को रोकने की कोशिश की, इसलिए वह उग्र हो गए। कुछ का यह भी कहना है कि इस आंदोलन में बहुत सारे ऐसे भी लोग घुस आए थे, जो संयुक्त किसान मोर्चे का हिस्सा नहीं हैं। कुछ नेताओं ने यह आरोप भी लगाया कि यह सारा षड्यंत्र सरकार ने रचा और उसके द्वारा भेजे गए किसान रूप में गुंडों ने यह सारा बवाल मचाया। कुछ शरारती तत्वों ने भी इस परेड को गुमराह करने की कोशिश की ताकि जो हिंसा हुई उससे किसान आंदोलन को तोड़ा जा सके, आंदोलन को कमजोर किया जा सके। हकीकत क्या है, इसका पता निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा। मगर दिल्ली में जगह-जगह हुए उत्पात से किसान आंदोलन की काफी बदनामी हुई है। उन सिद्धांतों पर सवाल खड़े हुए हैं, जिन्हें लेकर यह आंदोलन पिछले 60 दिनों से शांतिपूर्ण, नियंत्रित चल रहा था। यह सही है कि इतनी बड़ी संख्या में जब कहीं आंदोलनकारी जमा हो जाते हैं तो उन्हें अनुशासित रख पाना बहुत कठिन हो जाता है, मगर इस तर्क पर किसान नेता अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते। बेशक अब वह मुंह छिपाते रहें पर कटु सत्य यह भी है कि यह उनके लिए भी शर्मिंदगी का विषय है। जो भी हुआ बुरा हुआ। इससे बचा जा सकता था अगर सरकार थोड़ी समझदारी से काम लेती। वैसे भी किसानों को बैठे 60 दिन हो गए थे इतने दिन में भी समस्या का हल न निकलना यह सरकार की कमजोरी है।

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