Friday, 15 January 2021

गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक व्यक्ति जिसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसकी गिरफ्तारी पुलिस के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए। जिन मामलों में आरोपी को गिरफ्तार करना, अपरिहार्य है या हिरासत में पूछताछ आवश्यक है, उन मामलों में गिरफ्तारी होनी चाहिए। बुधवार को एक मामले में उक्त टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने बुलंदशहर के सचिन सैनी नाम के व्यक्ति को सशर्त अग्रिम जमानत प्रदान की जिसके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जिस आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसे गिरफ्तार करने को लेकर पुलिस के लिए कोई निश्चित अवधि तय नहीं है। अदालत ने कहाöप्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस अपनी इच्छा से गिरफ्तारी कर सकती है। अदालतों ने बार-बार कहा है कि पुलिस के लिए गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए और यह असाधारण मामलों तक सीमित होना चाहिए, जहां आरोपी की गिरफ्तारी या हिरासत में पूछताछ आवश्यक है। तर्कहीन और अंधाधुंध गिरफ्तारी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने अपने आदेश में जोगिंदर कुमार के मामले का भी सन्दर्भ लिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तृतीय रिपोर्ट का हवाला है। इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत में पुलिस द्वारा गिरफ्तारी, पुलिस में भ्रष्टाचार के मुख्य स्रोतों में से एक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमोबेश करीब 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां या तो अनावश्यक होती हैं या अनुचित होती हैं और इस तरह की अनुचित पुलिस कार्यवाही, जेल के खर्चों पर 43.2 प्रतिशत का योगदान करती है। निजी स्वतंत्रता एक बहुमूल्य मौलिक अधिकार है और बहुत अपरिहार्य होने पर ही इसमें कटौती होनी चाहिए। अदालत ने कहाöखास तथ्यों और खास मामलों की परिस्थितियों के मुताबिक आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए।

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