Saturday, 2 January 2021

बात बढ़ी तो सही पर आधी रह गई

किसान सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता से भी समाधान नहीं निकलना निराशाजनक है। इस वार्ता से बहुत उम्मीदें जताई जा रही थीं। विज्ञान भवन में आयोजित सातवें दौर की वार्ता के बीच मंत्रियों ने भी किसानों के लंगर का आनंद लिया, लेकिन कुल मिलाकर सभी मुद्दों पर सहमति नहीं बन सकी। अगली वार्ता शायद चार जनवरी को होगी, तब तक किसान आंदोलन जारी रहेगा। सरकार के साथ इस दौर की बातचीत के बाद किसान नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा कि सरकार ने दो समितियां बनाने का प्रस्ताव दिया था। एक एमएसपी के अनुपालन के लिए और दूसरा हमारी कानून वापसी की मांग का विकल्प तलाशने के लिए, हमने दोनों को नामंजूर कर दिया है। सरकार का रवैया नरम था और उन्होंने आज की वार्ता के आधार पर नया प्रस्ताव भेजने को कहा है। लेकिन किसानों का कोई और प्रस्ताव है ही नहीं, हमारी बस यही मांग है कि एमएसपी पर गारंटी मिले और तीनों कानून वापस लिए जाएं। हम इस पर एक बार दो जनवरी को विचार-विमर्श करेंगे। सरकार और किसानों के बीच हुई बातचीत में पेंडिंग दिखे दो मुद्दों के पेच बड़े हैं और दूरगामी हैं। तीन कानून वापस लेने से सरकार के सम्मान, इकबाल और व्यापक कृषि सुधारों की सोच को धक्का लग सकता है। एमएसपी को कानून में शामिल करने से सरकार पर आर्थिक बोझ तो बढ़ेगा ही, साथ ही इन तीन कानूनों का प्रभाव भी कम हो जाएगा। किसानों और सरकार के लिए नई चुनौतियां पैदा भी हो सकती हैं। तीन कानूनों के जरिये सरकार ने एपीएमसी और एमएसपी जारी रखने के साथ ही निजी क्षेत्र को फसल की बिक्री के विकल्प भी दिए हैं। लेकिन आंदोलनकारी किसान इन तीन कानूनों को अपने लिए घातक मान रहे हैं। उसकी कई वजह गिना रहे हैं। कह रहे हैं कि एमएसपी तो मिलेगी नहीं और निजी क्षेत्र हावी होता जाएगा। अंतत किसानों की जमीन भी संकट में पड़ सकती है। सूत्रों के अनुसार आंदोलनकारी किसान एमएसपी पर कानून की मांग इसलिए कर रहे हैं कि इससे सभी फसलों के दाम सुरक्षित हो जाएंगे। अभी गेहूं, धान, तिलहन, दलहन जैसी कुछ चीजें ही एमएसपी पर खरीदी जाती हैं। बाकी खुले बाजार में जाती हैं। एमएसपी पर कानून के बाद सभी तरह की फसल इसी आधार पर खरीदी जाएगी। फल और सब्जियों तक के लिए भी नई बेहतर राह बन सकती है। जब सब चीजें एमएसपी पर खरीदी जाएंगी तो निजी क्षेत्र को कुछ बेचने की भागदौड़ और जरूरत कहां रहेगी? सरकार इस तरह के कई पेच को समझ रही है। किसानों को यह समझाने की कोशिश भी हो रही है कि आखिर सारा माल बिकना तो आमजन को ही है। यदि किसान एमएसपी पर सब कुछ बेचता है और निजी क्षेत्र विदेश से सस्ती दर पर चीजें मंगाकर बाजार में उतार देती है तो क्या होगा? सरकार किसी को भी अपना कारोबार करने से रोक नहीं सकती है? इस तरह के और भी कई पेच पैदा हो सकते हैं, जिनकी वजह से किसान या अन्य किसी सेक्टर के लोग नई मांग लेकर आंदोलन कर सकते हैं। जानकारों के अनुसार आंदोलनकारियों ने कानूनी और विपक्षी मदद से सरकार को सही फंसाया है? सूत्रों के मुताबिक इससे निकलने की राह धीरे-धीरे बना रही है। पराली और बिजली मुद्दे पर सरकार द्वारा भरोसा देने के बाद आंदोलनकारी नेताओं तक पहुंचाया जा रहा है कि वह भी भरोसा बढ़ाने के कदमों और भाषा पेश करें। एक सूत्र के अनुसार किसान नेताओं से कहा गया है कि वह तीन कानूनों की वापसी की जगह कोई अन्य शब्द और भाषा सुझाएं। हालांकि आंदोलनकारी नेता फिलहाल विरोध की तेजी न दिखाने के संकेत दे रहे हैं, पर उनके भी विकल्प खुले हैं।

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