Sunday, 10 January 2021

और अब एक और निर्भया जैसा कांड

उत्तर प्रदेश के बदायूं में 50 साल की आंगनवाड़ी सहायिका की गैंगरेप के बाद हत्या के बाद हुई बर्बरता ने एक बार फिर निर्भया कांड की याद ताजा कर दी है। यह घटना सन्न करने वाली तो है ही पर स्थानीय पुलिस का रवैया अधिक क्षुब्ध और विचलित करने वाला है। दुख की बात यह है कि वह अभागी आंगनवाड़ी सहायिका, जिसकी आय से परिवार चलता था, मंदिर में पूजा करने गई थी, जहां महंत और उसके चेलों ने महिला के साथ अत्याचार करते हुए बर्बरता की सारी सीमाएं पार कर दीं। बताया जाता है कि सात साल पहले उस मंदिर में आया महंत तंत्र-मंत्र करता था और वह महिला मानसिक रूप से बीमार पति की बेहतरी के लिए उसके पास जाती थी। रविवार की शाम वह महिला जब गांव के मंदिर में पूजा करने गई और जब काफी देर तक नहीं लौटी तो घर के लोग परेशान हो गए। बाद में रात 11ः30 बजे मंदिर का पुजारी अन्य दो लोगों के साथ बुरी तरह घायल अवस्था में उस महिला को घर के पास फेंक कर भाग गए। उसके शरीर से खून बह रहा था और आखिर उसकी मौत हो गई। सिर्फ इतने पर ही पुलिस को तुरन्त सक्रिय होकर मामले की तफ्तीश करनी चाहिए थी। लेकिन लापरवाही का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि रात में ही परिजनों की शिकायत के बाद भी पुलिस अगले दिन पहुंची और पहले रिपोर्ट दर्ज तक नहीं की गई। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी महिला से सामूहिक बलात्कार और जघन्य तरीके से उसकी हत्या के शुरुआती आरोपों की पुष्टि हुई। रिपोर्ट के मुताबिक उसके निजी अंग बुरी तरह घायल थे, लोहे की छड़ से गहरी चोट पहुंचाई गई थी और उसका एक पैर तोड़ दिया गया था। मानो पुलिस की यही निक्रियता कम आपराधिक न हो, बताया जाता है कि खबर फैलने पर उसने बलपूर्वक अंतिम संस्कार करा दिया। पुलिस का यही रवैया हाथरस में भी देखा गया था। हालांकि लापरवाह थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया गया है और मुख्यमंत्री ने मामले की एसआईटी जांच के आदेश दिए हैं। लेकिन विकास दूबे एनकाउंटर, गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या, बलिया में राशन दुकान के लाइसेंस मामले में हत्या और बदायूं जैसे कई मामले सामने आए हैं, जिससे स्थानीय पुलिस की भूमिका चिंतित करने वाली है। पुलिस और प्रशासन की लापरवाही की वजह से अपराधियों के बढ़ते हौंसले ऐसे राज्य की तस्वीर बनाते जा रहे हैं, जिसे अपराध से मुक्त करने का दावा बढ़चढ़ कर किया जाता है। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की दुहाई देकर बहुतेरे नियम-कानून लागू किए जा रहे हैं, मगर जमीनी हकीकत यह है कि दिनोंदिन उत्तर प्रदेश में महिलाओं का जीवन असुरक्षित और दुष्कर होता जा रहा है। समाज के स्तर पर हालत यह हो चुकी है कि मंदिर जैसी जगह को महिला ने सबसे सुरक्षित जगह माना होगा, वहां भी उसके खिलाफ ऐसा जघन्य अपराध हुआ कि उससे जीने का हक तक छीन लिया गया। बदायूं की दर्दनाक घटना यह भी बताती है कि निर्भया जैसी घटना के बाद भी समाज में कुछ नहीं बदला है और फांसी जैसी कठोर सजा अपराधियों में यौन अपराध के प्रति खौफ पैदा करने में विफल रही है।

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