Tuesday, 19 January 2021
पार्षद-अधिकारी लॉर्ड की तरह जी रहे हैं, कर्मियों को वेतन तक नहीं
राजधानी में नगर निगम के डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों, शिक्षकों और सफाई कर्मियों को नियमित तौर पर वेतन नहीं दिए जाने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया। हाई कोर्ट ने कहा कि निगम पार्षद, वरिष्ठ अधिकारी लॉर्ड की तरह जी रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों, शिक्षकों और सफाई कर्मियों को वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पिल्ले की पीठ ने कहा कि उनकी मंशा लॉर्ड की तरह जी रहे पार्षदों एवं वरिष्ठ अधिकारियों सहित तीनों नगर निगमों के सभी गैर-जरूरी एवं विवेकाधीन खर्चों पर रोक लगाने की है ताकि डॉक्टरों, नर्सों एवं सफाई कर्मचारियों सहित कोरोना के अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कर्मियों को वेतन एवं पेंशन का भुगतान किया जा सके। पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए तीनों नगर निगमों को यह कहते हुए वरिष्ठ अधिकारियों के व्यय का ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया कि यदि किसी को अपने वेतन में कटौती करनी है तो वह हों और उसकी शुरुआत पार्षदों से हो। न्यायालय ने कहा कि महामारी के दौरान डॉक्टरों एवं नर्सों समेत स्वास्थ्य कर्मियों एवं सफाई कर्मियों जो अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे हैं, के वेतन भुगतान को वरिष्ठ अधिकारियों के भत्ते, अन्य विवेकाधीन खर्चों से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। न्यायालय ने कहा है कि तीनों निगमों के पार्षदों, वरिष्ठ अधिकारियों जो शीर्ष के लोग हैं वह लॉर्ड की तरह जिंदगी जी रहे हैं। कोर्ट ने दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को दिए पैसे से ऋण राशि कटौती करने को नामंजूर कर दिया। पीठ ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी ऋण अदायगी और बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा खातों को गैर-निष्पादित सम्पत्तियां घोषित करने पर रोक लगा दी है। पीठ ने कहा कि राजाओं जैसी जिंदगी जी रहे लोगों को जब तक तकलीफ नहीं होगी, तब तक हालात नहीं बदलेंगे। जिन कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है, उनके भी तो परिवार हैं। उन पर भी तो कई जिम्मेदारियां हैं। जरा उनकी तकलीफ को समझें। कुछ लोग मौज करें और सिर्फ तीसरी और चौथी श्रेणी के कर्मचारी ही तकलीफ में क्यों रहें? हाई कोर्ट ने लोन की रकम से वेतन देने के दिल्ली सरकार के फैसले पर भी आपत्ति जताई। सरकार की तरफ से कहा गया था कि निगमों को जो लोन दिया गया है उसमें से वेतन दे सकते हैं। क्योंकि अभी वेतन देने के लिए कोई अन्य साधन नहीं है और फंड की कमी है। इस पर पीठ ने कहा कि फंड की कमी वेतन न देने का बहाना नहीं हो सकता। 21 जनवरी तक जवाब दाखिल कर बताएं कि वेतन देने के लिए क्या सोचा गया है? बता दें कि हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं, जिसमें वेतन की मांग की गई है, तीनों ही निगमों में कई माह से वेतन नहीं मिला है और इसके चलते कई बार हड़ताल तक भी हो चुकी है। अभी भी कुछ कर्मचारी हड़ताल पर हैं।
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