Saturday 2 February 2013

तेलंगाना मुद्दे पर बुरी फंसी कांग्रेस ः इधर कुआं तो उधर खाई


 Published on 2 February, 2013
 अनिल नरेन्द्र
तेलंगाना मुद्दा एक बार फिर से जोर पकड़ता जा रहा है। सरकार की ओर से गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने 28 दिसम्बर को हुई सर्वदलीय बैठक में एक महीने में इस मामले में फैसला देने की बात कही थी। शिंदे का वही बयान अब केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बनता दिखाई दे रहा है। वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने भी कुछ इसी तरह का बयान दिया था। दरअसल मंत्रियों के इन बयानों के आधार पर आंध्र प्रदेश की एक लोकल कोर्ट ने पुलिस को इन आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया है कि क्या इन केंद्रीय मंत्रियों ने अलग राज्य के गठन के मुद्दे पर अपने बयान के जरिए तेलंगाना क्षेत्र के लोगों के साथ छल किया है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद शिंदे और चिदम्बरम पर धारा 420 के तहत केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं। अर्जी पर सुनवाई के बाद रंगा रेड्डी मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने दोनों नेताओं पर अलग तेलंगाना राज्य के गठन पर अपना वादा पूरा नहीं करने का आरोप प्रथम दृष्टया सही पाया और शिंदे और चिदम्बरम के खिलाफ एलबी नगर पुलिस को धारा 420 के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दिया। जहां तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर फिर से आंदोलन शुरू हो गया है, वहीं राज्य के बाकी हिस्से में आंध्र को अविभाजित रखने के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव तटीय आंध्र और रायलसीमा के राजनीतिकों के गले आसानी से नहीं उतरेगा, यह बात शुरू से ही स्पष्ट थी पर लगातार अनिश्चितता की स्थिति बनी रहने के लिए कांग्रेस का दोहरा या ढुलमुल रवैया जिम्मेदार है। यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र ने इस तरह टालमटोल भरा रवैया दिखाया है। दिसम्बर 2009 में तब के केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने भी कुछ दिनों में ठोस फैसले का भरोसा दिलाया था पर तब से अब तक तीन साल बीत गए, केंद्र सरकार दुविधा में ही झूल रही है। तेलंगाना में अलग राज्य की चाहत कितनी प्रबल और व्यापक है, यह एक बार नहीं अनेक बार जाहिर हो चुकी है। लेकिन बात सिर्प इतनी नहीं है। 2004 में कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस गठजोड़ का आधार टीआरसी को दिया। कांग्रेस का यह आश्वासन था कि अगर वह सत्ता में आई तो तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करेगी। कांग्रेस आंध्र में भी सत्ता में आई और केंद्र में भी। पर उसने टीआरएस से किए वादे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। शायद इसलिए कि आंध्र में कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत मिल गया था और वहां सरकार चलाने के लिए टीआरएस पर निर्भर नहीं थी। आखिरकार हार के चन्द्रशेखर राव यूपीए से अलग हो गए। आज हालत यह है कि अलग राज्य की मांग पूरी न होने पर तेलंगाना के कांग्रेसी विधायक, सांसद पार्टी छोड़कर टीआरएस में शामिल होने की धमकी दे रहे हैं। वहीं कांग्रेस को भी यह भय सता रहा है कि तेलंगाना की मांग मान लेने पर तटीय आंध्र और रायलसीमा के पार्टी के सांसद-विधायक जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस की ओर कहीं रुख न कर लें। फिर बड़ा प्रश्न यह भी है कि अगर केंद्र सरकार तेलंगाना की मांग मान लेती है तो देश के बाकी हिस्सों में पृथक राज्यों की मांग तूल पकड़ सकती है। अगले आम चुनाव में अब साल से थोड़ा ज्यादा समय बचा है। इस स्थिति में कोई भी कदम उठाया गया तो उसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। कांग्रेस बुरी फंसी है, इधर कुआं है तो उधर खाई।

No comments:

Post a Comment