Published on 21 February, 2013
अनिल नरेन्द्र
बजट सत्र चालू होने वाला है। संकेत तो साफ हैं कि सत्र
हंगामेदार रहेगा। अव्वल तो ज्यादा दिन सुचारु रूप से चलेगा नहीं और चला भी तो यूपीए
सरकार ज्यादा समय तक कटघरे में खड़ी रहेगी। विपक्ष के पास बहुत बारूद है। हेलीकाप्टर
सौदा, भगवा आतंकवाद, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि, बिगड़ती कानून व्यवस्था, कुरियन
का मामला इत्यादि इत्यादि यह सब मुद्दे उठेंगे। भगवा आतंकवाद पर भाजपा का स्टैंड स्पष्ट
है कि जब तक गृहमंत्री अपना बयान वापस नहीं लेते और माफी नहीं मांगते तब तक उनका बहिष्कार
जारी रहेगा। कांग्रेस पार्टी बेशक इस स्टैंड पर ऐतराज करे पर इतिहास गवाह है कि कांग्रेस
ने भी यही सब कुछ किया था जब वह विपक्ष में थी और राजग का राज था। ताबूत घोटाले को
लेकर जार्ज फर्नांडीस का बहिष्कार महीनों तक भला था। रही बात संसद को ठप करने की तो
कांग्रेस यह क्यों भूल रही है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव और बाद में अमेरिका
के राष्ट्रपति जार्ज बुश आए थे तो उन्हें सेंट्रल हॉल में सांसदों को संबोधित करना
था पर कांग्रेस ने न केवल बायकाट किया बल्कि दोनों विदेशी अति महत्वपूर्ण मेहमानों
को बोलने से रोक दिया। कांग्रेस देश के बारे में दुनिया को पता नहीं क्या संदेश देना
चाहती थी? कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल अब यह है कि उसके पास पणब मुखर्जी जैसा संकट
मोचक कोई नहीं बचा। पणब दा जैसे-तैसे करके विपक्ष को मना लेते थे और काम चलाऊ रास्ता
निकाल लेते थे पर उनके राष्ट्रपति बनने के बाद अब कांग्रेस की फ्लोर मैनेजमेंट जीरो
हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद कमान संभाली है पर वह रोब से ज्यादा
काम लेती है, चोरी और सीना जोरी दोनों एक साथ नहीं चल सकती। संसद को चलाने का दायित्व
सत्ता पक्ष का होता है। हम एक लोकतांत्रिक देश हैं और लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी
बात मनवाने के लिए संसद को ठप करने का अख्तियार है। यह कांग्रेस का फर्ज भी बनता है
और यूपीए सरकार का भी कि वह अव्वल तो विपक्ष की मांगों पर गंभीरता से विचार करे और
समाधान निकालने का पयास करे। होता क्या है कि संसद ठप करवा कर जब और कोई रास्ता नहीं
सूझता तो विपक्ष की मांग अंतत मान लेती है। हमने 2जी स्पेक्ट्रम में विपक्ष की जेपीसी
बनाने के मामले में देखा कि किस तरह सरकार पहले मानी नहीं और जब काम पूरी तरह ठप हो
गया तो जाकर मानी। अगर यह काम पहले ही मान जाती तो शायद संसद ठप भी नहीं होती। सत्ता
पक्ष को अपनी ईमानदारी से विपक्ष को कन्विंस करना पड़ेगा, लीपा-पोती से मामला बनने
वाला नहीं। फिर यह कहना भी सही नहीं होगा कि सिर्प भाजपा ही संसद ठप करने में लगी रहती
है। सत्ता पक्ष के घटक दल भी अपने मुद्दे उठाते हैं। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस सांसद
तेलंगाना का मुद्दा उठा सकते हैं। ममता प. बंगाल में कांग्रेस की गतिविधियों पर भी
हंगामा कर सकती हैं। इस सब के बावजूद सभी पक्षों की कोशिश होनी चाहिए कि संसद चले।
आखिर गरीब जनता की करोड़ों रुपए की कमाई को इस तरह बर्बाद होने से रोकना चाहिए।
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