Saturday 2 February 2013

तमिलनाडु की राजनीति के दल-दल में फंसती हासन की विश्वरूपम

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi

 Published on 2 February, 2013
 अनिल नरेन्द्र
यह एक कटु सत्य है कि अपनी कला, सांस्कृतिक बहुलता और सहिष्णुता के माध्यम से दुनियाभर में विशिष्ट पहचान बनाने वाले मेरे भारत महान में एक कलाकार को इस हद तक परेशान किया जाता है कि वह देश छोड़ने तक की धमकी देने पर मजबूर हो जाता है। मैं बात कर रहा हूं दक्षिण भारत के जाने-माने फिल्मकार कमल हासन की। कमल हासन की फिल्म `विश्वरूपम' पर तमिलनाडु में प्रतिबंध को लेकर हासन इतने आहत हैं कि उन्होंने कह डाला कि अगर मेरे साथ यहां (तमिलनाडु) न्याय नहीं हुआ तो मैं दूसरी जगह देखूंगा। भारत में कोई धर्मनिरपेक्ष जगह। लेकिन अगर मुझे पूरे देश में ऐसी जगह नहीं मिली तो मैं दूसरा धर्मनिरपेक्ष देश देखूंगा। जैसे एमएफ हुसैन ने देखा था। मैं यह देश छोड़ दूंगा। यह फिल्म 25 जनवरी को तमिलनाडु में रिलीज होनी थी। लेकिन कुछ मुस्लिम संगठनों ने इस फिल्म के कुछ दृश्यों और संवादों को लेकर आपत्ति उठाई, तो राज्य सरकार ने इस पर 15 दिन का प्रतिबंध लगा दिया। कमल हासन ने मद्रास हाई कोर्ट में सरकार के इस कदम को चुनौती दी थी। मंगलवार शाम हाई कोर्ट की सिंगल बैंच ने फिल्म पर लगे प्रतिबंध हटाने के आदेश दे दिए थे। लेकिन जयललिता की अन्नाद्रमुक सरकार ने रातोंरात बड़ी बैंच में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी और अदालत ने फिर से विश्वरूपम पर रोक जारी रखने का आदेश पारित कर डाला। इस याचिका से कमल हासन इतने आहत हुए कि उन्होंने देश तक छोड़ने की बात कह डाली। फिल्म में ऐसे कौन से दृश्य या संवाद हैं यह तो पता नहीं पर सारा पंगा राज्य सरकार ने फंसाया है। कहा जा रहा है कि राज्य सरकार हासन की उस बात से नाराज है जिसमें उन्होंने पी. चिदम्बरम की ओर इशारा करते हुए कहा था कि धोती पहनने वाले किसी तमिल को देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। तमिलनाडु में सत्ताधारी पार्टी का एक नजदीकी चैनल टीवी पर फिल्म प्रसारण के अधिकार खरीदना चाहता था। लेकिन उसकी कम बोली पर हासन राजी नहीं हुए। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। फिल्म में कमल हासन ने ऐसी खुफिया सूचनाओं का उपयोग किया है, जो बेहद गोपनीय हैं। वे उन तक कैसे पहुंचीं? राज्य सरकार इस बात से नाराज है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि फिल्म में मुस्लिमों की भावनाओं को आहत पहुंचाने वाले दृश्य और डायलाग हैं और फिल्म से सांप्रदायिक दंगा भड़क सकता है। राज्य सरकार के इस रवैये से यह बहस भी शुरू हो गई है कि किसी राज्य सरकार को फिल्म प्रदर्शन पर रोक लगाने का अधिकार है भी या नहीं? जबकि फिल्म प्रदर्शन का प्रमाण पत्र केंद्रीय सेंसर बोर्ड की तरफ से जारी होता है जो केंद्र सरकार के आधीन है और सेंसर बोर्ड की तरफ से इस फिल्म को वे अनुमति मिल चुकी है। फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी इस बात को लेकर हैरान हैं कि राज्य सरकार ने फिल्म को देखे बगैर कैसे प्रतिबंध लगा दिया? यह तो सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर शिकंजा कसने की कोशिश लगती है। केंद्र सरकार ने भी तमिलनाडु सरकार के रवैए पर नाराजगी जाहिर की है। लेकिन अब यह मामला अदालत के पाले में है। कमल हासन ने कहा है कि वे हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। यदि उन्हें न्याय नहीं मिला तो फिर नई रणनीति बनाएंगे। हमारे समय का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संकट है कि कुछ निहित स्वार्थों या राजनीतिक तुष्टीकरण के लिए चीजों को संदर्भों से काट कर देखा जा रहा है, या फिर उसे अपनी सुविधा से परिभाषित किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर केंद्रित विश्वरूपम को एक पूरे समुदाय से जोड़ने के पीछे दरअसल ऐसी ही राजनीति है। फिल्म पर चूंकि मद्रास हाई कोर्ट ने अभी रोक लगा रखी है, इसलिए इसकी सामग्री पर बात करना ठीक नहीं पर इस प्रकरण से केंद्रीय सेंसर बोर्ड के औचित्य पर सवाल भी उठता है। इस बोर्ड ने फिल्म को न केवल मंजूरी दी है बल्कि इसकी अध्यक्ष लीला सैमसन ने तमिलनाडु सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाया है। यदि इसी तरह फिल्मों या किताबों पर सरकारें राजनीतिक आधार पर फैसले लेने लगीं तब तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब ही नहीं रह जाएगा?

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