Friday 8 February 2013

जजों के नजरिए में भी बदलाव आ रहा है, बेशक धीरे-धीरे सही



 Published on 8 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
यह प्रसन्नता की बात है कि वसंत विहार गैंगरेप मामले में फास्ट ट्रैक अदालत में मंगलवार को सुनवाई शुरू हो गई है। पहले दिन छात्रा के दोस्त ने व्हीलचेयर पर पहुंचकर अपनी गवाही दी। 16 दिसम्बर की रात बस में हुई दुष्कर्म की घटना का सिर्प वही प्रत्यक्षदर्शी है और उसकी गवाही अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। वैसे दुख की बात यह है कि लोगों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है। इधर वसंत विहार गैंगरेप मामले में केस की सुनवाई शुरू हुई तो उसी दिन राजधानी में फिर एक मामला सामने आ गया। दक्षिण दिल्ली के पॉश कालोनी लाजपत नगर में एक केबल ऑपरेटर ने 24 साल की युवती से उसके घर में दुष्कर्म करने की कोशिश की। युवती ने जब शोर मचाना चाहा तो आरोपी ने उसके मुंह में लोहे की रॉड डाल दी। आरोपी अनिल कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। घटना सोमवार रात की है लेकिन मामला मंगलवार को सामने आया। 16 दिसम्बर की घटना ने माहौल बदलने में मदद की है। अगर दरिन्दों की मानसिकता में बदलाव नहीं आया तो आएगा धीरे-धीरे पर जब अदालतों का डंडा सख्ती से चलेगा। इस सिलसिले में दो दिन पहले जब उस वहशी दरिन्दे को आजीवन कारावास की कैद की सजा सुनाई जा रही थी तो उसके चेहरे पर निश्चिंतता का भाव झलक रहा था, लेकिन मंगलवार को जैसे ही उसे सजा-ए-मौत का फरमान सुनाया गया, वह सिहरा उठा। उसके चेहरे से पसीने छूट पड़े। सीरियल किलर के रूप में कुख्यात चन्द्रकांत झा को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लॉ ने हैवान ठहराया। फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जिस संवेदनहीनता के साथ उस व्यक्ति ने हत्या को अंजाम दिया उसके बाद उसके सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। यह व्यक्ति समाज के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधियों को समाज में रहने की इजाजत दी जाएगी तो वह समाज को ही नष्ट कर देंगे और यह आरोपी इसी कैटेगरी में आते हैं। इस घटना ने पूरे समाज की सामूहिक चेतना को झकझोर दिया था। इस तरह की घटना के दोषी को कड़ी सजा मिलने की उम्मीद की जाती है। अगर उसे उपयुक्त सजा नहीं मिली तो पूरी न्यायिक व्यवस्था पर सवाल खड़े हो जाते हैं। फैसला सुनाते हुए जस्टिस लॉ ने कहा कि अगर इस अपराधी को छोड़ दिया गया तो वह फिर से ऐसी घटना को अंजाम दे सकता है। खासकर वह जिस तरीके से पुलिस को चेतावनी दिया करता था। वह तो पूरी व्यवस्था को ही चुनौती दे रहा था। पेश मामले में झा ने साल 2007 में उपेन्द्र नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर जेल के बाहर फेंक दिए थे। हत्या के दो अन्य मामलों में भी उसकी दरिन्दगी ऐसी ही थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार सिर धड़ से अलग करने से हुई थी मौत, बाद में नहीं काटा था। हत्या से पहले शारीरिक यातनाएं दी गई थीं। गरीब परिवार के लोगों से दोस्ती कर भरोसे का करता था खून। दोस्त का सिर काटकर पुलिस के सामने फेंकने तक की जुर्रत की हत्यारे ने। जस्टिस कामिनी लॉ ने तो इंसाफ कर दिया पर ऊपरी अदालतों का क्या रुख होता है यह देखना बाकी है। खुशी की बात तो यह है कि जजों का भी नजरिया बदला है और अब वह शातिर अपराधियों को आसानी से निकलने नहीं देंगे। परिवर्तन हर स्तर पर हो रहा है, बेशक फिलहाल धीरे-धीरे ही सही।

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