Saturday 23 February 2013

शिंदे की माफी एक सोची-समझी रणनीति के तहत मजबूरी का बयान है



 Published on 23 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
वह कहावत है न कि देर आए दुरुस्त आए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पर फिट बैठती है। हिन्दू आतंकवाद संबंधी अपने बयान पर आखिरकार केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को झुकना पड़ा। बजट सत्र की पूर्व संध्या पर एनडीए को भेजे पत्र में शिंदे ने लिखा है कि किसी धर्म को आतंक से जोड़ने का उनका इरादा नहीं था। इतना ही नहीं शिंदे ने यह भी साफ किया कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कोई आतंकी शिविर नहीं चलाते हैं। भाजपा ने इस बयान का स्वागत किया है और कहा है कि शिंदे का यह बयान उन लोगों के लिए सबक है जो भाजपा और संघ पर गलत आरोप लगाते रहते हैं। शिंदे के बयान से लोगों में भारी गुस्सा था। भाजपा ने लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक और दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के दौरान शिंदे को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि वे अपना बयान सिद्ध करें अन्यथा माफी मांगें। यूपीए सरकार को चुनौती देते हुए पार्टी नेताओं ने कहा था कि संघ और भाजपा पर पाबंदी लगाकर दिखाएं। दरअसल यूपीए सरकार और कांग्रेस की मजबूरी बन गई थी कि वह शिंदे से माफी मंगवाए। मजबूरी कहें या रणनीति कांग्रेस ने यह माफी सोची-समझी रणनीति के तहत ही मंगवाई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पी. चिदम्बरम, अहमद पटेल की बैठक हुई और कई चरणों में बयान तैयार हुए। कांग्रेस के चिन्तन शिविर में भगवा आतंकवाद, आरएसएस और भाजपा के शिविरों में आतंकी प्रशिक्षण के बयान पर पूरी भगवा ब्रिगेड ने संप्रग पर हल्ला बोल दिया था। कांग्रेस की मजबूरी थी माहौल को शांत करना। बजट पेश करना और पास कराना, सिस्टम को हिला देने वाले और टॉप तक अटैक करते दिख रहे हेलीकाप्टर घोटाले का सामना करना, आतंकवाद संबंधी बयान का कोर्ट में सामना न कर पाना, इन सब मुद्दों पर विचार ने गृहमंत्री शिंदे के खेद का आधार तैयार किया। मैं समझता हूं कि यह कांग्रेस का सही कदम था क्योंकि यह सत्र उसके और सरकार के लिए वैसे भी बहुत मुश्किल है और एक मुद्दा खत्म होता है तो बेहतर रहेगा। भाजपा ने भी शिंदे की माफी स्वीकार करके कम से कम इस मामले को तो रास्ते से हटा दिया है। भाजपा के पास और बहुत मुद्दे हैं जिन पर वह सरकार और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करेगी। यह प्रसन्नता की बात है कि संसद के सुचारू रूप से चलने में एक गतिरोधक तो समाप्त हुआ। जब हम शिंदे की माफी की बात कर रहे हैं तो शिंदे ने तो माफी मांग ली, लेकिन पार्टी के जिन वरिष्ठ नेताओं ने इस बयान का धुर समर्थन किया था, क्या वे भी माफी मांगेंगे? उल्लेखनीय है कि पिछले महीने 20 जनवरी को जयपुर के कांग्रेस चिन्तन शिविर में गृहमंत्री ने बयान दिया था कि भाजपा और संघ के प्रशिक्षण शिविरों में हिन्दू आतंकवाद की ट्रेनिंग  दी जाती है। इस टिप्पणी को लेकर पिछले एक महीने से कांग्रेस और संघ परिवार के बीच टकराव की नौबत रही है। मजेदार बात यह है कि शिंदे के बयान का जोरदार समर्थन कांग्रेस के कई नेताओं ने किया था। खासतौर पर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने। दोनों ने कहा कि उन्हें तो बहुत पहले से पता था कि संघ नेतृत्व हिन्दू आतंकवाद का कारोबार कर रहा है। मुंबई दंगों के बाद ऐसे कई मौके आए जब बड़बोले दिग्विजय सिंह ने हिन्दुत्व को किसी न किसी रूप में निशाना बनाया। मणिशंकर अय्यर ने कहा है कि शिंदे ने भले ही कोई सफाई दी हो, लेकिन वे आज भी अपने पुराने नजरिए पर कायम हैं। क्योंकि उनके पास ऐसे तमाम तथ्य हैं जिनसे साबित किया जा सकता है कि पूरा संघ परिवार सालों से सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए काम करता आया है। भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अन्य हिन्दूवादी संगठनों को गृहमंत्री शिंदे के ताजा बयान से बहुत खुश नहीं होना चाहिए। इसका यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि उन्होंने सरकार और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को थूक कर चाटने पर मजबूर किया है। यह सिर्प एक केंद्रीय गृहमंत्री का एक रणनीतिक बयान है जो केवल बजट सत्र में सरकार को चलाने की एक मजबूरी है। हालांकि इससे इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बजट सत्र सुचारू रूप से चलेगा?

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